शिव प्रदोष स्तोत्रम् :दरिद्रता. क़र्ज़ दुःख से छुटकारा

 

मनुष्य के जीवन में दरिद्रता. क़र्ज़ दुःख  अक्सर आता जाता रहता है ये अल्प समय के लिए भी हो सकता है बहुत समय के लिए भी मनुष्य इससे छुटकारा पाने के लिए तरह तरह के उपाए खोजते रहते है. शिव पुराण,स्कन्दपुराण में इस से छुटकारा पाने के लिए एक स्टिक उपाए दिया हुआ जो है शिव प्रदोष स्तोत्रम्  Shiv Pradosh Stotram  आज हम उसके बारे में चर्चा करेंगे

शिव प्रदोष स्तोत्रम् :दरिद्रता. क़र्ज़ दुःख से छुटकारा Shiv Pradosh Stotram: Poverty. debt relief

वैसे तो इन सभी से छुटकारा पाने के लिए भगवान आशुतोष पंचाक्षर ॐ नमः शिवाय का जाप ही काफी है, लेकिन आज हम आपको इन सभी (दरिद्रता. क़र्ज़ दुःख से छुटकारा ) से तुरंत छुटकारा पाने के लिए शिव पुराण में वर्णित  स्तोत्रम् के बारे में बताने जा रहे है

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जिसका नाम है शिव प्रदोष स्तोत्रम् Shiv Pradosh Stotram जिसका सही तरिके से जाप करने से आप इन संकटो से तत्काल मुक्ति पा सकते है तो आइये जानते है मंत्र इसके जाप के तरिके के बारे में

शिव प्रदोष स्तोत्रम् :दरिद्रता. क़र्ज़ दुःख से छुटकारा

शिव प्रदोष स्तोत्रम् Shiv Pradosh Stotram  एक प्रमुख प्रार्थना स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति, महिमा, और आराधना के लिए प्रयोग किया जाता है। इस स्तोत्र को प्रार्थना सत्रों में प्रतिवर्ष आने वाले हर प्रदोष तिथि को पठने से सभी दुखो से मुक्ति मिलता है ।

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शिव प्रदोष स्तोत्रम् Shiv Pradosh Stotram के माध्यम से, भक्त भगवान शिव के नाम, गुण, और आराध्यता का भक्ति और प्रेम व्यक्त करते हैं। यह स्तोत्र उनके जीवन में सुख, शांति, और आनंद का स्रोत है और उन्हें अपार धैर्य, संतुलन, और आत्मविश्वास प्रदान करता है। शिव प्रदोष स्तोत्रम् एक माध्यम है जिसके द्वारा भक्त अपने मन को शुद्ध करते हैं, अंतर्मन को प्रसन्नता और प्रशान्ति से भरते हैं, और भगवान शिव के प्रति अपनी पूर्ण समर्पण और भक्ति को प्रकट करते हैं।

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इस व्रत को दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को निराहार रह कर  किया जाता है। व्रत की शुरुआत पूजा के प्रदोषकाल में की जाती है, जब सूर्यास्त होता है और रात्रि का आरम्भ होता है। प्रदोषकाल में भगवान शिव का पूजन आरंभ करें 

श्रीदुर्गातोत्तरशतनामस्तोत्रम् अर्थ सहित

व्रत की पूजा में, हाथ जोड़कर आपको मन-ही-मन भगवान शिव को आह्वान करना चाहिए। आप चाहें तो इस प्रकार कह सकते हैं, "हे भगवन्! आप ऋण, पातक, दुर्भाग्य, और दरिद्रता आदि के नाश के लिए मुझ पर प्रसन्न हों। मेरे जीवन से सभी आर्थिक और आध्यात्मिक कष्टों को दूर करें और मुझे आपकी कृपा, समृद्धि, और आनंद से आपूर्ण करें।"

फिर उसके बाद निचे दिए मंत्रो का १००८ बार जाप करे ।

जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत। 
जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित॥१॥।

 

जय हो देव जगन्नाथ की, जय हो शङ्कर की जो हमेशा के लिए स्थिर हैं। जय हो सभी देवताओं के आधिपति की, जय हो सभी देवताओं द्वारा पूजित की॥१॥

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इस श्लोक में भक्त भगवान जगन्नाथ और भगवान शंकर की जय घोषित करते हैं। वे उन्हें सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी देवताओं की जय घोषित करते हैं, जो सदैव स्थिर और पूजनीय हैं। यह श्लोक भक्ति भावना को प्रकट करता है और उसे अपने आदर्श देवताओं की स्तुति करने के लिए प्रेरित करता है।

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ॥
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥२॥

जय हो सर्वगुणों से परे, जय हो सभी वरदान देने वाले॥ जय हो सदैव निराधार, जय हो विश्व को सम्पोषण करने वाले॥२॥

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इस श्लोक में भक्त भगवान शिव की गुणातीतता, सर्ववरदान करने वाले और नित्य निराधार होने की जय घोषित करते हैं। वे उन्हें विश्व की पोषणा करने वाले और अविनाशी होने की जय घोषित करते हैं। यह श्लोक भक्ति और समर्पण के भाव को प्रकट करता है और भगवान की प्रशंसा करता है, जो सभी गुणों से परे हैं और सभी वरदान देने वाले हैं।

 
जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥३॥

जय हो विश्व के एकाकी ईश्वर, जय हो नागेन्द्र के आभूषण। जय हो गौरीपति शम्भो, जय हो चन्द्रार्धशेखर॥३॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव की जय घोषित करते हैं जो विश्व के एकाकी ईश्वर हैं। वे नागेन्द्र (सर्पों के राजा) के आभूषण हैं और गौरीपति (पार्वती के पति) हैं। भगवान शिव के चन्द्रार्धशेखर (चंद्रमा के सहायक) रूप की भी जय घोषणा की जाती है। यह श्लोक उनकी महिमा और भक्ति को प्रशंसा करता है।

जय कोठ्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय ।
जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥४॥

जय हो जिनकी ध्वजा सूर्य की तुलना में चमकती है, जय हो अनंत गुणों के आश्रय। जय हो भद्र और विरूपाक्ष की, जय हो अचिन्त्य और निरञ्जन की॥४॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव की जय घोषित करते हैं जो अपूर्व गुणों के आश्रय हैं। उनकी ध्वजा सूर्य की तुलना में चमकती है। भगवान शिव के भद्र और विरूपाक्ष रूप की भी जय घोषित की जाती है। उनकी महिमा अचिन्त्य है और वे निर्ञान (निरंजन) हैं। यह श्लोक भगवान शिव की प्रशंसा करता है और उनके अपूर्व गुणों को वर्णन करता है।

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन। 
जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो॥५॥

जय हो कृपा के सागर, जय हो भक्तों की दुःख विनाशकर्ता। जय हो दुस्तर संसार के सागर को पार करने वाले प्रभो॥५॥


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इस श्लोक में भक्त भगवान शिव की जय घोषित करते हैं जो कृपा के सागर हैं और भक्तों के दुःख को हरने वाले हैं। वे दुस्तर संसार के सागर को पार करने वाले प्रभु हैं। यह श्लोक भगवान शिव की कृपा, दया और उद्धार की प्रशंसा करता है। भक्त उनकी सर्वोच्चता और महिमा का स्मरण करते हुए उन्हें जय घोषित करते हैं।

प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः ।
सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥६॥

हे महादेव! मेरी संसार में पड़ी हुई आपकी कृपा की आवश्यकता है। सभी पापों का नाश करके मुझे रक्षा कीजिए, हे परमेश्वर॥६॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव से अपनी संसार में पड़े हुए दुःखों के नाश के लिए और सभी पापों का नाश करके अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। उन्हें अपनी संसारिक प्रकृति में उभरते हुए दुखों और पापों के नाश की आवश्यकता है और वे भगवान की अनुग्रह से सुरक्षित रहना चाहते हैं। यह श्लोक भगवान शिव की प्रार्थना करते हुए भक्ति और शरणागति के भाव को प्रकट करता है।


महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च ॥
महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥७॥

हे महादेव! जिनके लिए अत्यंत दरिद्रता और बड़े पापों का नाश है॥ जिनको बड़ा शोक और बड़ी बीमारी से पीड़ित होना है॥७॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव को प्रार्थना करते हैं कि उन्हें दरिद्रता से जल रहे और बड़े पापों का नाश करने की शक्ति प्रदान करें। वे बड़े शोक में और बड़ी बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं और उन्हें शिव की रक्षा और उद्धार की आवश्यकता है। यह श्लोक भगवान शिव की कृपा और उद्धार की प्रार्थना करता है।


ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः ॥
ग्रहैःप्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥८॥

जिसके ऊपर ऋणों का भार पड़ा हुआ है और जिसके कर्मों द्वारा जल रहा है॥ जिसे ग्रहों द्वारा पीड़ित किया जा रहा है, कृपा करो मेरे शङ्कर!॥८॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं कि वे उनके ऊपर बोझ बने हुए ऋणों का नाश करें और उनके कर्मों का दाह करें। वे ग्रहों द्वारा पीड़ित हो रहे हैं और उन्हें शिव की आशीर्वाद से सुरक्षित रखें। यह श्लोक भगवान शिव से उद्धार और रक्षा की प्रार्थना करता है।


दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् ॥
अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥९॥

दरिद्र व्यक्ति देवी गिरिजापति को प्रार्थना करे॥ धनी व्यक्ति या राजा भी देवी गिरिजापति को प्रार्थना करें॥९॥

इस श्लोक में व्यक्ति दरिद्रता में होने पर भगवती गिरिजापति (पार्वती माता) की प्रार्थना करता है। धनी व्यक्ति या राजा भी भगवती गिरिजापति की प्रार्थना कर सकते हैं। यह श्लोक भगवती गिरिजापति की कृपा को प्राप्त करने की प्रार्थना करता है।

दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः ॥
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥१०॥

दीर्घ आयु, सदा स्वस्थता, शरीर की वृद्धि और बल की उन्नति॥ मेरे लिए सदैव आनंद और प्रसाद रहे, हे शङ्कर॥१०॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव से दीर्घ आयु, सदा स्वस्थता, शरीर की वृद्धि और बल की उन्नति के लिए प्रार्थना करते हैं। उन्हें सदैव आनंद और प्रसाद मिले, जो कि भगवान शिव की कृपा से प्राप्त होते हैं। यह श्लोक भगवान शिव के प्रसाद, आनंद और आरोग्य की प्रार्थना करता है।



शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः ॥
नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥११॥

मेरी प्रजा के शत्रुओं का संक्षय हो और वे प्रसन्न हों॥ देश में दुश्मन नष्ट हों और जनता सुरक्षित रहे॥॥ 

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं कि उनकी प्रजा के शत्रुओं का संक्षय हो और वे खुश रहें। देश में दुश्मन नष्ट हो जाएं और जनता सुरक्षित रहे। यह श्लोक भगवान शिव से राष्ट्र और प्रजा की सुरक्षा और रक्षा की प्रार्थना करता है।



दुर्भिक्षमारिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले ॥
सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥१२॥

इसका हिंदी में अनुवाद निम्नलिखित है:

दुर्भिक्षा, मार, और संतापों का नाश हो, भूमि पर॥ सभी के लिए समृद्धि हो, और सुखमय दिशाएं बढ़ें॥१२॥

इस श्लोक में भक्त भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं कि दुर्भिक्षा, मार, और संतापों का नाश हो और भूमि पर शांति स्थापित हो। सभी के लिए समृद्धि हो और सुखमय दिशाएं बढ़ें। यह श्लोक भगवान शिव से शान्ति, समृद्धि और सुख की प्रार्थना करता है।


एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् ॥
ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥१३॥

इसका हिंदी में अनुवाद निम्नलिखित है:

इसी तरह भगवान शिव की आराधना करते हुए गिरिजापति (पार्वती माता) का पूजन करें॥ फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उसके बाद दक्षिणा देकर पूजन करें॥१३॥

इस श्लोक में बताया गया है कि भक्त भगवान शिव की आराधना करते हुए गिरिजापति (पार्वती माता) का पूजन करें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उसके बाद उन्हें दक्षिणा देकर पूजा करें। यह श्लोक भगवान शिव और पार्वती माता के संग एकाग्रता और एकजुटता का प्रदर्शन करता है, और विभिन्न पूजा विधियों का समर्थन करता है।


सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी ।
शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥१४॥

इसका हिंदी में अनुवाद निम्नलिखित है:

जो सभी पापों का नाश करने वाली है, सभी रोगों का निवारण करने वाली है। शिवपूजा से युक्त होने वाली है, सभी अभीष्ट फल प्रदान करने वाली है॥१४॥

इस श्लोक में भगवान शिव की सर्वपापक्षयकरी और सर्वरोगनिवारणी स्वरूपता का वर्णन किया गया है। उनकी पूजा से युक्त होने वाली है और सभी अभीष्ट फल प्रदान करने वाली है। यह श्लोक भगवान शिव की महिमा, शक्ति और कृपा का वर्णन करता है।


इति शिव प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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