घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग या गृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग(Grishneshwar Jyotirlinga) एक प्रमुख शिवालय है जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। इस स्थान को भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं शिवजी की पूजा और अर्चना करने के लिए। इस ब्लॉग में हम घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग Grishneshwar Jyotirlingaके बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे जो आपको इस स्थान की महत्ता और अनुभव से परिचित करवाएगी।
गृष्णेश्वर और घृष्णेश्वर दोनों एक ही जगह के नाम हैं जो महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं। इन दोनों नामों के अंतर में कोई विशेष अर्थ नहीं है। दोनों ही नाम भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हैं। इसलिए, गृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दोनों ही एक ही स्थान को संदर्भित करते हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा (Story of Grishneshwar Jyotirlinga)
दशा में देव नामक एक भव्य अद्भुत पर्वत था । उसके पास सुधामा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। वह
भगवान शिव का परम भक्त था और सदा ही वेद वाक्यों का उच्चारण करता रहता
था। वह हवन, कर्मकांड, अग्निहोत्र आदि के पूजन करता था और भगवान शिव की
भक्ति करता था। इस रूप में वे दोनों पति-पत्नी अनेक समस्याओं में फँसे रहते
थे। सुदेहा संतानहीन थी और इस कारण वह चिंतित रहती थी। जब भी सुदेहा अपने
पति इस विषय में बात करता, वह उसे समझाता कि कर्मफल से नहीं बल्कि कर्तव्य
से आनंद लेना चाहिए। आजकल सभी रिश्ते-नाते स्वार्थी हो गए है।
एक दिन की घटना है। सुदेहा अपनी सहेली के साथ पानी भरने गई थी। उन्होंने अपने परिपक्व होने का दावा करते हुए उनसे झगड़ा कर लिया जिसके कारण से उनकी सहेलियों ने सुदेहा को अपमानित कर दिया । उसने कहा - "तुम बांझ होकर इतना घमंड करती हो? तुम्हारा सम्पूर्ण धन तो राजा के पास चला जाएगा, तुम्हारा कोई पुत्र भी नहीं है।" सुदेहा दुखी मन से घर लौट आई और अपने पति को सब कुछ बता दिया। पति ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह स्वीकारने को तैयार नहीं थी। तब उसके पति ने भगवान शिव का ध्यान करते हे दो फूलों को अग्नि के तरफ उछाला और सुदेहा को एक फूल चुनने के लिए कहा । सुदेहा ने गलत फूल चुन लिया था,तब उसके पति ने कहा की तुम्हारे भाग्य में पुत्र सुख नहीं है इसलिए अपनी ये इक्छा को त्यागो और शिव पूजन में धयान दो
अपने पति सुधामा को बातचीत का सुदेहा पर कोई असर नहीं पड़ा और वह उनसे इस तरह बोली—"हे प्राणनाथ यदि आपको मेरे गर्भ से पुत्र प्राप्त नहीं हो सकता तो आप दूसरी शादी कर लीजिए।" परंतु सुधामा ने शादी से इनकार कर दिया। तब सुदेहा अपनी छोटी बहन घुष्मा को अपने घर ले आई और अपने पति से बातचीत करने लगी कि वे उससे शादी कर लें। सुधामा ने उसे समझाते हुए कहा—"यदि मैंने इससे शादी कर ली और इससे प्रेम भी हो गया तो भी तुम दोनों बहनें सौतन बन जाएंगी और एक-दूसरे का विरोध करोगी और मेरे घर में झगड़ा होता रहेगा।" तब सुदेहा बोली—"हे प्राणनाथ! भला मैं अपनी बहन का विरोध क्यों करूँगी। आप चिंता तयाग दे और घुष्मा से शादी कर लें। अपनी पत्नी के बात मानकर सुधामा ने घुष्मा से शादी कर ली।
घुष्मा परम शिवे भक्त थी वो प्रतिदिन पार्थिव शिवे लिंग की पूजा कर के उसे तालाब में विसर्जित कर देती थी इस प्रकार जब १ लाख शिवलिंग का पूजन सम्पूर्ण हुआ तो शिवजी उसपे बहुत खुश हुए और शिव जी की किरपा से उसे अत्यंत सुन्दर और वलवान पुत्र प्राप्त हुआ हुआ । पुत्र मिलने से सुधामा और घुष्मा बहुत खुश हुई पर सुदेहा को अपनी छोटी बहन से जलन होने लगी।
धीरे धीरे घुष्मा का पुत्र बड़ा होने लगा पर सुदेहा का जलन घुष्मा और उसके पुत्र पर और बढ़ने लगा कुछ समय बाद घुष्मा का पुत्र सदी योग हो गया तब एक सुन्दर कन्या से उसका विवाह कर दिया गया इस से सुदेहा का जलन और बढ़ गया तब सुदेहा ने निश्चय किया की जब तक इसका पुत्र जीवित है मेरा भला नहीं हो सकता है।
एक रात जब सभी सो रहे थे तो सुदेहा ने घुष्मा के पुत्र की हत्या कर दी और उसके टुकड़े कर के उसी तालाब में फेक दिया जिसमे घुष्मा शिवलिंग को विसर्जित करती थी सुबह सभी अपने नित्य काम में लग गए जब घुष्मा की पुत्र वधु ने अपने पति के चारपाई पर खून के धब्बे देखे तो वो अत्यंत व्याकुल हो कई और अपने सास को ये बात बताई तब ये जानकर घर में कोलाहल मच गया पर शिव भक्त घुष्मा को भगवन शिवे पर पूरा भरोसा था उसने नित्य के तरह ही पार्थिव शिवे लिंग का पूजन किया सुर उसे विसर्जित करने के लिए तालाब पर गयी जैसे ही उसने शिवलिंग को विसर्जित कर के पीछे मुड़ा तब उसने अपने पुत्र को जीवित अपने सामने देखा पुत्र को पाकर वो बहुत खुश हुई और मन ही मन भगवान शिवे को धन्यवाद करने लगी।
उसी समय भगवान शिव वहाँ उपस्थित हुए और बोले - 'देवी घुष्मा मै तुम्हारी आराधना से बहुत खुश हूँ । मुझसे कुछ मांगो, क्या चाहती हो?' तुम्हारी बहन सुदेहा ने तो तुम्हारे पुत्र को मार डाला था, पर मैंने उसे फिर से जीवित कर दिया है। तो क्या तुम अपनी वहन को दंड नहीं देना चाहती हो ।
तब देवी घुष्मा ने कहा हे प्रभु अपकार करने वाले पे भी उपकार करना चाहिए ये मैंने ध्र्मग्रंथो में पढ़ा है इसलिए आप इसको माफ़ कर दे तब सदाशिव ने सुदेहा को माफ़ कर दिया और घुष्मा से कहा तुम और किओ वर मांग लो ।
इसे सुनकर घुष्मा ने कहा हे भोले भंडारी! आप इस जगत के हित और कल्याण करने के लिए यहीं निवास करो ।" तब सदाशिव ने कहा - "हे देवी! तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए मैं तुम्हारे नाम घृष्णेश्वर कहलाता हुआ यही निवास करूँगा।" इसके बाद सदाशिव भगवान शिव ज्योतिर्लिंग(Grishneshwar Jyotirlinga) के रूप में वही विराजमान हो गए वह सरोवर शिवालय नाम से जाना जाने लगा। इस सरोवर के दर्शन करने के बाद घृष्णेश्वर लिंग के दर्शन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास और महत्व (History and Importance of Ghrishneshwar Jyotirlinga)
इतिहास(History): घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)के मंदिर का निर्माण १८वीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर को चंदेल राजवंश के राजा राहुलदेव ने बनवाया था। इसमें अंग्रेज़ों के आने से पहले कुछ परिवर्तन किए गए थे।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग(Grishneshwar Jyotirlinga) का इतिहास हिंदू धर्म के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक है। यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक रहा है।
इस ज्योतिर्लिंग का नाम 'घृष्णेश्वर' है जो महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव के नाम पर रखा गया है। इस ज्योतिर्लिंग के नाम के पीछे के कारण को लेकर कुछ विवाद हैं। कुछ लोग इसे 'घुष्णेश्वर' और कुछ लोग इसे 'घृष्णेश्वर' कहते हैं।
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में इतिहास में विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन संभवतः यह ज्योतिर्लिंग 8वीं या 9वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था। इसे पहले एक छोटा मंदिर था जिसे बाद में बड़े मंदिर में बदला गया। इस मंदिर के निर्माण के बाद, इस जगह को एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित किया गया था।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग(Grishneshwar Jyotirlinga) के इतिहास के अलावा यह ज्योतिर्लिंग भारतीय संस्कृति और इतिहास के साथ-साथ हिंदू धर्म के इतिहास में भी महत्वपूर्ण रूप से जुड़ा हुआ है। यहां उल्लेखनीय कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हैं:
- महाराष्ट्र में गृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग(Grishneshwar Jyotirlinga) विश्व के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
- इस ज्योतिर्लिंग के निर्माण के बारे में कुछ निश्चित नहीं है। लेकिन इसका निर्माण 18 वीं शती के दौरान हुआ था जब भारतीय संस्कृति का स्वर्णिम काल था।
- इस ज्योतिर्लिंग का नाम अनेक प्रकार से उत्पन्न हुआ है। कुछ लोग इसे ग्रीष्मेश्वर या कोटीश्वर के नाम से भी जानते हैं।
- इस ज्योतिर्लिंग के लगभग सभी पूर्वोत्तर दिशाओं में स्थित प्राचीन मंदिरों का अधिकांश हिस्सा महाराष्ट्र के प्राचीन मंदिरों की शैली का अनुसरण करता है।
- इस ज्योतिर्लिंग के पास एक सुन्दर कुंड है जिसे कुंडेश्वर कुंड के नाम से भी जाना जाता है
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग(Grishneshwar Jyotirlinga) का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना महाराष्ट्र के पूर्वकाल में की गई थी और इसके विषय में वेद, पुराण और इतिहास ग्रंथों में विस्तार से वर्णन है।
इस ज्योतिर्लिंग के इतिहास के अनुसार, भगवान शिव के भक्त गुटशिखर और शिप्रा नामक दो ब्राह्मण इस स्थान पर तपस्या करते थे। उन्होंने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि यहां एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की जाए। वे दोनों ने इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की और इसे घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा।
इस ज्योतिर्लिंग की महत्वपूर्णता इस बात में है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भगवान शिव के भक्तों को मुक्ति मिलती है। यहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है और विभिन्न उत्सवों का आयोजन किया जाता है।
महत्व(Importance): घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग पुराणों में वर्णित तीन ज्योतिर्लिंगों में से एक है और उनकी त्रिमूर्ति का भी एक अंश है।
यह मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है और सालाना लाखों शिव-भक्तों का आगमन होता है। इसके अलावा, यह मंदिर महाराष्ट्र के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है और स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
घृष्णेश्वर मंदिर(Grishneshwar Temple)
घृष्णेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
इस मंदिर का निर्माण पहले किया गया था, लेकिन उसके बाद भी कई बार इसे नवीनीकृत किया गया है। मंदिर का विस्तृत कंप्लेक्स है, जिसमें प्राचीन शैली के शिखर वाले मंदिर और नए भवन शामिल हैं। मंदिर का प्राचीन भाग राजपुत स्थापत्य शैली में बनाया गया है। मंदिर के पास एक तालाब है जो मंदिर के सौंदर्य को बढ़ाता है।
घृष्णेश्वर मंदिर भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। इस मंदिर का निर्माण शैल्य प्राचीन वास्तुकला की प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर का निर्माण गुंबजों के साथ बना हुआ है, जिसमें प्रमुख गुंबज अपनी शिखर शैली के लिए विख्यात है।
वास्तुकला के अनुसार, मंदिर दक्षिण दिशा में होना चाहिए और घृष्णेश्वर मंदिर भी इस वास्तुशास्त्र का ध्यान रखता है। मंदिर के प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में स्थित हैं, जो वास्तुकला के अनुसार शुभ माना जाता है। वहां से विशिष्ट विवरणों वाले एक मंदिर के अंदर जाते हुए आप प्रतिमाओं और अन्य धार्मिक अभिषेक करने के लिए स्थान बनाते हुए प्रत्येक भक्त दक्षिण दिशा में जाता है।
मंदिर की बाहरी दीवारें सफेद और भूरे रंग की होती हैं जो मंदिर के अंदर शान्ति और शुभ का संदेश देती हैं। इसके अलावा, मंदिर की आवाज संवेदनशीलता भी विशिष्ट है।
घृष्णेश्वर मंदिर की वास्तुकला बहुत ही शानदार है। मंदिर का निर्माण हेमाद्रि याचल पर्वत पर हुआ है जिसे वास्तुकला के माध्यम से बहुत ही सुंदर ढंग से बनाया गया है।
मंदिर के द्वारा इंट्रेंस में एक छोटा सा मंदिर होता है जो कि शेष गणेश को समर्पित है। यहाँ देवी-देवताओं के मंदिर के आगे चौराहे पर पुष्पक विमान होता है।
मंदिर के गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। गर्भगृह के दक्षिण-पूर्वी कोने में एक स्तंभ है जिसे बाण स्तंभ भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में पूजा करने के लिए एक सीमावर्ती पथ होता है जो अन्तराल के माध्यम से जाता है।
इसके अलावा, मंदिर के बाहर दो अन्य मंदिर होते हैं, एक महादेव मंदिर और दूसरा शनि मंदिर, जो मंदिर के पूर्व द्वार के पास स्थित होते हैं।
मंदिर की वास्तुकला को उत्कृष्ट माना जाता है जिसमें ताजा पत्थर, विशाल पथर, बांस की तह सहित अन्य सामग्री का प्रयोग किया गया है
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचें
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में और एजोली गाँव के पास स्थित है।
वायुमार्ग से: शिवपुरी, औरंगाबाद और मुंबई से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग तक उड़ानें उपलब्ध हैं। औरंगाबाद हवाई अड्डे से, यहाँ से आप टैक्सी या बस सेवा का उपयोग करके घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग से: औरंगाबाद जंक्शन या मांजरपुर जंक्शन स्टेशन से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए टैक्सी या बस सेवा का उपयोग किया जा सकता है। राजधानी एक्सप्रेस, ह्वड़ा एक्सप्रेस और मंदोवर एक्सप्रेस जैसी कुछ मुख्य ट्रेनें अग्रिम बुकिंग के साथ अनुसूचित स्टॉप शहरों पर रुकती हैं।
सड़क मार्ग से: अपनी गाड़ी से, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को औरंगाबाद से जाने के लिए अगर आप मुंबई से आ रहे हैं, तो NH-3 और एनएच-211 द्वारा अग्रसर रहें। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस पास घूमने लायक अन्य जगह
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)अगर आप महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में हैं तो आप इसके आस-पास कई देखने लायक स्थान हैं। कुछ महत्वपूर्ण स्थानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
एलोरा गुफाएं: एलोरा गुफाएं उनमें से एक हैं जो उपलब्ध हैं। यह स्थान उन्हें दुनिया भर में प्रसिद्ध करता है, और यहां पर चार उन्नत धर्मशालाएं हैं जो बौद्ध वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
दौलताबाद किला: यह किला महाराष्ट्र के सबसे बड़े किलों में से एक है, जो भारत के इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। यह मुगल शासक और शिवाजी महाराज दोनों के शासनकाल में बना था।
बादामी गुफाएं: यह एक अन्य विश्व धरोहर है, जो बादामी नामक स्थान पर स्थित है। इस स्थान पर चार गुफाएं हैं, जो अग्रणी बौद्ध वास्तुकला के नमूने हैं।
बिबी का मकबरा: यह एक सूफी संत के मकबरे हैं, जो उनके समय में लोगों के बीच बड़े प्रभावशाली थे।
ग्रामदेवता पहाड़ी - यह पहाड़ी ऐतिहासिक महत्व की एक जगह है जो अहमदनगर से थोड़ी दूरी पर स्थित है। इस पहाड़ी पर कई ग्रामदेवता मंदिर हैं जिन्हें स्थानीय लोग पूजते हैं।
घृष्णेश्वर की पूजा विधि और प्रतिमाएं
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)मंदिर में पूजा विधि वेद-पुराणों में बताई गई प्राचीन पूजा विधि के अनुसार की जाती है। यहां पूजा विधि इस प्रकार है:
शुद्धिकरण: पूजा करने से पहले, स्नान कर अपने शरीर को शुद्ध करें।
देवी-देवताओं का ध्यान: पूजा की शुरुआत देवी-देवताओं के ध्यान में मन लगाकर की जाती है।
धूप-दीप: आरती करने से पहले दीप जलाएं और धूप दें।
पुष्पांजलि: फूलों की माला बनाकर उसे लेकर शिवलिंग के समक्ष जाकर अपनी इच्छानुसार मंत्र बोलें।
आरती: आरती करने से पहले दीप जलाएं और धूप दें। आरती के दौरान भगवान शिव की महिमा के गान किया जाता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में कई प्रतिमाएं हैं। सबसे प्रमुख प्रतिमा शिवलिंग है, जिसे पूजा किया जाता है। इसके अलावा, अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं, जिन्हें पूजा किया जाता है। इनमें से कुछ प्रतिमाएं नंदी, गणेश, माँ पार्वती की है
ज्योतिष और पौराणिक कथाएँ से जुड़ी रोचक जानकारी
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में भी विशेष महत्व रखता है। यहां कुछ रोचक जानकारी है:
अनुसूया की वृत्ति: पौराणिक कथाओं के अनुसार, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख अनुसूया की कथा में भी है। अनुसूया ने तीन देवताओं को अपने पति से मिलाने की वृत्ति की थी। उन्होंने अपने शक्ति से तीनों देवताओं को एक ही शरीर में मिलाया था। इस वृत्ति के दौरान, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भी बना था।
शिव पुराण के अनुसार, एक बार रावण ने अपनी ताकत को दिखाने के लिए घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को उखाड़ फेंका था। इससे शिव का क्रोध जागृत हुआ और उन्होंने रावण को पराजित कर दिया।
भगवान विष्णु के वमन अवतार: एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपने वमन अवतार में बलि दान के लिए राजा बलि के द्वारा की गई पूजा के दौरान उनके स्थान पर दो ज्योतिर्लिंग प्रकट किए थे, जिनमें से एक था घृष्णेश्वर
ज्योतिष के अनुसार, महाशिवरात्रि को घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रति विशेष श्रद्धा रखी जाती है। इस दिन महादेव की अराधना करने से मान्यता है कि सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है और भगवान शिव अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
इस दिन घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पर लाखों श्रद्धालु आते हैं और अपनी भक्ति व प्रार्थनाएं करते हैं। भगवान शिव की पूजा के लिए ज्यादातर लोग रात में मंदिर में जाते हैं और चूल्हे पर खाने का भोजन बनाते हैं। उन्हें बेहतर ध्यान देने के लिए विशेष जागरण भी आयोजित किए जाते हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि को भगवान शिव का विवाह दिवस माना जाता है। भगवान शिव के बाल रूप के दिव्य अवतार नीलकंठ के विवाह के अवसर पर यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के चारों दिशाओं में फूलों की बेलें सजाई जाती हैं ।