Shri Durga Sahastranam Stotram:श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् अर्थ साहित


नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, हम भक्ति और साधना के माध्यम से माँ दुर्गा के दिव्य स्वरूप को समझने और उनके  शरण में समर्पित होने का अद्वितीय अवसर प्राप्त करते हैं। इस समय, हम उनकी अद्भुत महिमा का गुणगान करते हैं, और "श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" का पाठ करके उनकी शक्ति का अनुभव करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम जानेंगे कि श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र क्या (Durga Sahastranam Stotram)है, इसका महत्व क्या है, और इसके पाठ के माध्यम से हम कैसे अपने आध्यात्मिक और भौतिक जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

 

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Shri Durga Sahastranam Stotram:श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् 


हिंदू आध्यात्मिकता के इतिहास को सुशोभित करने वाली प्रार्थनाओं और भजनों की भीड़ में, "श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" (Durga Sahastranam Stotram) एक विशेष स्थान रखता है। यह पवित्र रचना देवी दुर्गा को समर्पित है, जो दिव्य स्त्री ऊर्जा का अवतार और शक्ति, साहस और सुरक्षा का प्रतीक है। "सहस्त्रनाम" शब्द का अनुवाद "एक हजार नाम" है, और इस भजन में, देवी दुर्गा की पूजा उनके हजारों दिव्य नामों की पुनरावृत्ति के माध्यम से की जाती है।

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"श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र"
(Durga Sahastranam Stotram) केवल नामों का संग्रह नहीं है बल्कि देवी के आशीर्वाद और कृपा का एक शक्तिशाली आह्वान है। यह अपने रचनाकारों की गहन भक्ति का प्रमाण है और सदियों से अनगिनत भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह दिव्य भजन आशा की किरण, शक्ति का स्रोत और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली सर्वोच्च स्त्री ऊर्जा से जुड़ने के साधन के रूप में कार्य करता है।

निम्नलिखित अनुभागों में, हम "श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र"
(Durga Sahastranam Stotram) के ऐतिहासिक संदर्भ में गहराई से उतरेंगे, इसकी प्राचीन जड़ों और पौराणिक प्रासंगिकता की खोज करेंगे। हम एक हजार नामों के पीछे की शक्ति को समझते हुए, इस भजन की संरचना और महत्व को भी समझेंगे। इसके अतिरिक्त, हम भक्ति और आध्यात्मिकता के बीच गहरे संबंध, इस भजन के जाप के परिवर्तनकारी लाभों और इससे जुड़े अनुष्ठानों और प्रथाओं का पता लगाएंगे। अंत में, हम "श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" के वैश्विक प्रभाव और समकालीन प्रासंगिकता की जांच करेंगे, जिसका समापन आधुनिक दुनिया में इसके स्थायी महत्व पर विचार के साथ होगा।
 

Importance of Shri Durga Sahastranam Stotra:श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का महत्व

"श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" अपने गहन महत्व और परिवर्तनकारी शक्ति के कारण हिंदू भक्ति साहित्य के क्षेत्र में एक विशेष स्थान रखता है। इसका महत्व धार्मिक अनुष्ठानों की सीमाओं से परे है, जो इसे आध्यात्मिक विकास और दिव्य आशीर्वाद चाहने वालों के लिए एक श्रद्धेय पाठ बनाता है। आइए उन विभिन्न पहलुओं पर गौर करें जो इस पवित्र भजन के महत्व को उजागर करते हैं:
 
1. प्राचीन भक्ति भजन: श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र देवी दुर्गा को समर्पित एक प्राचीन भक्ति भजन है, जिसमें उनकी स्तुति करने वाले हजारों नाम शामिल हैं।
2. आध्यात्मिक संबंध: स्तोत्र का जाप देवी दुर्गा द्वारा अवतरित दिव्य ऊर्जा के साथ एक गहरा आध्यात्मिक संबंध स्थापित करता है।
3. सुरक्षा: री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् का नियमित रूप से  पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जाओं और प्रतिकूलताओं से सुरक्षा मिल सकती है।
4. आंतरिक शक्ति: यह आंतरिक शक्ति के स्रोत के रूप में कार्य करता है, चुनौतीपूर्ण समय के दौरान साहस और लचीलापन प्रदान करता है।


5. दैनिक अनुष्ठान: कई हिंदू सौहार्दपूर्ण दिन के लिए देवी का आशीर्वाद पाने के लिए इस स्तोत्र के पाठ को अपने दैनिक आध्यात्मिक अनुष्ठानों में शामिल करते हैं।
6. त्यौहार का महत्व: नवरात्रि जैसे  त्योहारों के दौरान, स्तोत्र का सामूहिक रूप से जाप किया जाता है, जिससे भक्ति और उत्सव का माहौल बनता है।
7. नकारात्मकता को दूर करने वाला: ऐसा माना जाता है कि भक्तिपूर्वक इसका जाप करने पर इसमें नकारात्मकता को दूर करने और बुरी शक्तियों को दूर करने की शक्ति होती है।
8. ध्यान सहायता: स्तोत्र का उपयोग ध्यान सहायता के रूप में किया जाता है, जो अभ्यासकर्ताओं को ध्यान की स्थिति, आंतरिक शांति और मानसिक स्पष्टता प्राप्त करने में मदद करता है।
9. प्राचीन परंपरा: यह स्तोत्र हिंदू परंपराओं की समृद्ध परंपरा का एक हिस्सा है और पीढ़ियों से चला आ रहा है।
10. आध्यात्मिक विकास: श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ आध्यात्मिक विकास के मार्ग के रूप में देखा जाता है, जो आध्यात्मिक यात्रा पर सांत्वना और मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से लाभ : Benefits of reciting Shri Durga Sahastranam Stotra

श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने के लाभ यहां दिए गए हैं:

1. दिव्य आशीर्वाद: स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करने से देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे साधक को उनकी दिव्य कृपा प्राप्त होती है।
2. नकारात्मकता से सुरक्षा: माना जाता है कि स्तोत्र पाठ करने वाले के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाता है, जो नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी ताकतों को दूर रखता है।
3. आध्यात्मिक विकास: नियमित पाठ आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है, व्यक्ति का परमात्मा के साथ संबंध गहरा करता है और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाता है।
4. आंतरिक शांति: हजार नामों का जाप करने से ध्यान की स्थिति बनती है, जिससे आंतरिक शांति, मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन को बढ़ावा मिलता है।
5. साहस और लचीलापन: चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, स्तोत्र का पाठ लचीलेपन के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए आंतरिक शक्ति और साहस प्रदान करता है।
6. बाधाओं को दूर करना: भक्तों का मानना है कि स्तोत्र किसी के जीवन पथ से बाधाओं और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है।


7. सकारात्मक ऊर्जा: यह अभ्यासकर्ता को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है, दैनिक जीवन में कल्याण और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देता है।
8. शुभ शुरुआत: कई लोग अपने दिन की शुरुआत इस स्तोत्र के पाठ से करते हैं, शुभ शुरुआत और आशीर्वाद से भरे दिन की तलाश में।
9. उन्नत भक्ति: यह अभ्यास देवी दुर्गा द्वारा प्रस्तुत दिव्य स्त्री ऊर्जा के प्रति व्यक्ति की भक्ति और संबंध को गहरा करता है।
10. सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व: यह सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है, विभिन्न हिंदू अनुष्ठानों, त्योहारों और समारोहों में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
11. उद्देश्य की भावना: हजार नामों का पाठ करने से किसी की आध्यात्मिक यात्रा में उद्देश्य और स्पष्टता की भावना पैदा होती है।
12. स्त्री ऊर्जा का उत्सव: यह लैंगिक समानता और सम्मान को बढ़ावा देते हुए, दिव्य स्त्री की शक्ति और अनुग्रह का सम्मान और जश्न मनाता है।
13. तनाव में कमी: नियमित जप से तनाव और चिंता कम हो सकती है, जिससे समग्र मानसिक और भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
14. सामुदायिक और अनुष्ठान बंधन: त्योहारों के दौरान समूह पाठ में भाग लेने से भक्तों के बीच समुदाय और अनुष्ठान बंधन की भावना को बढ़ावा मिलता है।
15. आत्म-खोज का मार्ग: कई लोगों के लिए, स्तोत्र आत्म-खोज के मार्ग के रूप में कार्य करता है, जिससे व्यक्तियों को अपनी आंतरिक आध्यात्मिकता और परमात्मा से संबंध का पता लगाने की अनुमति मिलती है
 

Method of chanting Shri Durga Sahastranam Stotram Mantra : श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् मंत्र जाप करने का तरीका


1. तैयारी:अपने अभ्यास के लिए एक शांत और साफ जगह ढूंढें, आदर्श रूप से अपने पूजा स्थल या अपने घर के एक शांतिपूर्ण कोने में।आरामदायक मुद्रा में बैठें,। पवित्रता और भक्ति के प्रतीक के रूप में एक दीया या धूप जलाएं।
2. अपना इरादा निर्धारित करें: शुरू करने से पहले, अपने पाठ के लिए एक स्पष्ट इरादा निर्धारित करें। चाहे वह सुरक्षा, आध्यात्मिक विकास, या आंतरिक शांति की तलाश हो, एक विशिष्ट लक्ष्य रखने से आपके अभ्यास की प्रभावशीलता बढ़ जाएगी।
3. एकाग्रता और फोकस: अपने मन को शांत करने और अपने विचारों को केंद्रित करने के लिए अपनी आंखें बंद करें और कुछ गहरी सांसें लें। यदि आपके पास देवी दुर्गा की छवि या मूर्ति है तो उस पर ध्यान केंद्रित करें, या बस अपने मन की आंखों में उनके दिव्य रूप की कल्पना करें।
4. जप प्रारंभ करें:शुरुआत दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र मंत्र के जाप से करें.प्रत्येक नाम का जप धीरेधीरे और स्पष्ट रूप से, पूरी श्रद्धा और एकाग्रता के साथ करें।गिनती बनाए रखने के लिए आप माला (प्रार्थना माला) का उपयोग कर सकते हैं, मंत्र की प्रत्येक पुनरावृत्ति के लिए एक मनका घुमा सकते हैं।
5. उच्चारण:सुनिश्चित करें कि आप प्रत्येक नाम का सही उच्चारण करें। यदि आप सही उच्चारण के बारे में अनिश्चित हैं, तो किसी जानकार स्रोत या आध्यात्मिक शिक्षक से मार्गदर्शन लेने पर विचार करें।
6. सहस्त्र नाम का जाप करें:श्रद्धा और ईमानदारी से सहस्त्र नामों का पाठ करते रहें। दोहराव में समय लग सकता है, इसलिए धैर्य रखें और ध्यान केंद्रित रखें।
7. स्थिर गति बनाए रखें:स्थिर गति से जप करने से एकाग्रता बनाए रखने में मदद मिलती है और आप मंत्र के कंपन में डूब जाते हैं।
 
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8. प्रसाद और भक्ति:आप अपनी भक्ति और कृतज्ञता के संकेत के रूप में देवी दुर्गा की छवि पर फूल, फल या अन्य प्रतीकात्मक प्रसाद चढ़ा सकते हैं।
9. समापन और आभार: सभी हजार नामों का पाठ पूरा करने के बाद, देवी के आशीर्वाद के लिए उनका आभार व्यक्त करने के लिए कुछ समय निकालें।अपने अभ्यास की शुरुआत में आपने जो इरादा निर्धारित किया था उस पर विचार करें।
10. दैनिक अभ्यास: पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए, श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र के जाप को अपने दैनिक आध्यात्मिक अभ्यास का हिस्सा बनाने पर विचार करें।
11। समापन:कुछ क्षणों के मौन और चिंतन के साथ अपना अभ्यास समाप्त करें।श्रद्धा से अपना सिर झुकाएं और देवी दुर्गा को उनकी दिव्य उपस्थिति के लिए धन्यवाद दें।
12. नियमितता और भक्ति: इस अभ्यास के आध्यात्मिक लाभों का अनुभव करने के लिए निरंतरता और हार्दिक भक्ति महत्वपूर्ण है।

श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र मंत्र का जाप परमात्मा से जुड़ने और देवी दुर्गा के आशीर्वाद और सुरक्षा का उपयोग करने का एक शक्तिशाली तरीका है। यह एक अभ्यास है जो आपके जीवन में शांति, शक्ति और आध्यात्मिक विकास ला सकता है।

 

Shri Durga Sahastranam Stotram : श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् अर्थ साहित 

ॐ अस्य श्री दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्र महामंत्रस्य
हिमवान् ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः दुर्गाभगवती देवता
श्रीदुर्गाप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

यह मंत्र श्री दुर्गा के सहस्रनाम स्तोत्र का महामंत्र है। इसके ऋषि हैं हिमवान, छंद है अनुष्टुप, और देवता है दुर्गा भगवती। इस मंत्र का जप करते समय, श्री दुर्गा की कृपा प्राप्त करने और उनके प्रसाद को प्राप्त करने के लिए इसका विनियोग किया जाता है।

ध्यानम्

ॐ ह्रीं कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥

ॐ ह्रीं, जो सम्पूर्ण भयों को दूर करने वाली और कालरात्रि की कटाक्ष से अपनी सिर पर मौलि और चंद्र की रेखा के साथ, शंख, चक्र, कृपाण, और त्रिशूल धारण करती है, तीनों नेत्रों वाली, सिंह की पीठ पर बैठी हुई, जो सम्पूर्ण तीन लोकों को अपनी तेजस्वी भावना से भर देती है, वही मां दुर्गा है, जिन्हें त्रिदेवों द्वारा पूजित किया जाता है, और सिद्धि की प्राप्ति के लिए सेवित की जाती है॥"
 

। श्री दुर्गायै नमः।

ॐ शिवाऽथोमा रमा शक्तिरनन्ता निष्कलाऽमला।
शान्ता माहेश्वरी नित्या शाश्वता परमा क्षमा ॥
अचिन्त्या केवलानन्ता शिवात्मा परमात्मिका।
अनादिरव्यया शुद्धा सर्वज्ञा सर्वगाऽचला ॥

"हे शिवा, जो अम्बा के रूप में अनंत और निष्कल हैं, वह शान्ति, माहेश्वरी, नित्य और शाश्वत हैं, और वह परम क्षमा करने वाली हैं। वह अचिन्त्य, केवल, अनंत, शिव की आत्मा, परमात्मा हैं, और वह अनादि, अव्यय, शुद्ध, सर्वज्ञ, और सर्वगामी हैं, और वह सबकुछ अचल हैं॥"

एकानेकविभागस्था मायातीता सुनिर्मला ।
महामाहेश्वरी सत्या महादेवी निरञ्जना ॥
काष्ठा सर्वान्तरस्थाऽपि चिच्छक्तिश्चात्रिलालिता ।
सर्वा सर्वात्मिका विश्वा ज्योतीरूपाऽक्षराऽमृता ॥


"वह जो अनेक भिन्न-भिन्न रूपों में स्थित है, माया के परे है, सुनिर्मला है, महामाहेश्वरी है, सत्य है, महादेवी है, और निरञ्जना है। वह सभी कष्ठों के भी अंतर्गत है, और उसमें चिच्छक्ति (दिव्य शक्ति) है, और वह सभी को आवरण करती है। वह सभी का आत्मा है, विश्व का स्वरूप है, ज्योतिरूप है, अक्षर है, और अमृत है॥"

शान्ता प्रतिष्ठा सर्वेशा निवृत्तिरमृतप्रदा ।
व्योममूर्तिर्व्योमसंस्था व्योमधाराऽच्युताऽतुला ॥
अनादिनिधनाऽमोघा कारणात्मकलाकुला ।
ऋतुप्रथमजाऽनाभिरमृतात्मसमाश्रया ॥


"वह जो शांति, प्रतिष्ठा, सर्वेश्वरी, निवृत्ति, अमृत प्रदान करने वाली है। वह आकाशरूपी है, आकाश में स्थित है, अच्युत (अविनाशी) है, और अतुल (अत्यंत उत्कृष्ट) है। वह अनादि (आदिकाल से ही है), अनंत (अविनाशी), अमोघ (अविफल), कारण की कला कुला है। वह ऋतुप्रथम जी की संजना है और अमृत की आत्मा का आश्रय है॥"

प्राणेश्वरप्रिया नम्या महामहिषघातिनी ।
प्राणेश्वरी प्राणरूपा प्रधानपुरुषेश्वरी ॥
सर्वशक्तिकलाऽकामा महिषेष्टविनाशिनी ।
सर्वकार्यनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरेश्वरी ॥

"वह जो प्राणेश्वर (प्राणों की शक्ति का स्वामी) को प्रिय है, वह नम्या है, महामहिषघातिनी है। वह प्राणेश्वरी है, प्राण की रूप है, प्रधानपुरुषेश्वरी है। वह सर्वशक्तिकला (कला की मालिका) है, अकामा (किसी भी इच्छा के बिना) है, महिषेष्ट (महिषासुर के विनाशक) है। वह सर्वकार्यनियन्त्री है और सर्वभूतेश्वरों की ईश्वरी है॥"

अङ्गदादिधरा चैव तथा मुकुटधारिणी ।
सनातनी महानन्दाऽऽकाशयोनिस्तथेच्यते ॥
चित्प्रकाशस्वरूपा च महायोगेश्वरेश्वरी ।
महामाया सदुष्पारा मूलप्रकृतिरीशिका ॥

"वह जो अङ्गदा (अङ्गद की आत्मा का स्वामी) और अन्य देवताओं के धारक है, वह मुकुट धारिणी है। वह सनातनी है, महानन्दा (आनंद की महाशक्ति) है, आकाशयोनि (आकाश से उत्पन्न) है, चित्प्रकाश की स्वरूप है, महायोगेश्वरों की ईश्वरी है। वह महामाया है, सदुष्पारा (सदा पार किए जाने वाली) है, और मूल प्रकृति की रानी है॥"

संसारयोनिः सकला सर्वशक्तिसमुद्भवा ।
संसारपारा दुर्वारा दुर्निरीक्षा दुरासदा ॥
प्राणशक्तिश्च सेव्या च योगिनी परमाकला ।
महाविभूतिर्दुर्दर्शा मूलप्रकृतिसम्भवा ॥


"वह संसार की योनि (जीवन के स्रोत) है, सर्व शक्तियों का उद्भवकर्ता है। वह संसार से पार है, दुर्वारा (कठिनाई द्वार) है, दुर्निरीक्षा (कठिन देखा जाने वाला) है, और दुरासदा (कठिन साधने वाला) है। प्राणशक्ति को सेवन करने योग्य है और वह योगिनी की परम कला है। वह महाविभूति (महान और आश्चर्यजनक) है, दुर्दर्शा (कठिन से देखी जा सकने वाली) है, और मूल प्रकृति से उत्पन्न हुई है॥"

अनाद्यनन्तविभवा परार्था पुरुषारणिः ।
सर्गस्थित्यन्तकृच्चैव सुदुर्वाच्या दुरत्यया ॥
शब्दगम्या शब्दमाया शब्दाख्यानन्दविग्रहा ।
प्रधानपुरुषातीता प्रधानपुरुषात्मिका ॥


"वह अनादि (आदिकाल से ही है), अनंत (अविनाशी), अविभवा (सर्वशक्तिमान), परार्था (दूसरों के लिए), पुरुषारणि (मनुष्यों के आदरणीय), सर्ग (सृष्टि), स्थिति (संरक्षण), और अन्त (समाप्ति) में स्थित है। वह सुदुर्वाच्या (कठिनी वाचा जाने वाली), दुरत्यया (कठिन से प्राप्त नहीं होने वाली) है। वह शब्दगम्या (शब्द के द्वारा प्राप्त की जा सकने वाली), शब्दमाया (शब्द से माया बनाने वाली), और शब्दाख्यानन्दविग्रहा (आनंद रूपी शब्द) है। वह प्रधानपुरुषातीता (प्रधान के परे) है और प्रधानपुरुषात्मिका (प्रधान की आत्मा का स्वामी) है॥"

पुराणी चिन्मया पुंसामिष्टदा पुष्टिरूपिणी ।
पूतान्तरस्था कूटस्था महापुरुषसंज्ञिता ॥
जन्ममृत्युजरातीता सर्वशक्तिस्वरूपिणी ।
वाञ्छाप्रदाऽनवच्छिन्नप्रधानानुप्रवेशिनी ॥

"वह पुराणी (आदि काल से ही है), चिन्मया (चेतना की स्वरूप), पुंसामिष्टदा (पुरुषों की इच्छा का प्रकाशक), पुष्टिरूपिणी (पुष्टि की रूप में), पूतान्तरस्था (पूतना के अंदर निवास करने वाली), कूटस्था (अचल और स्थिर), महापुरुषसंज्ञिता (महापुरुषों द्वारा जानी गई) है। वह जन्म, मृत्यु, और जरा से अतीत है, सर्वशक्तिस्वरूपिणी (सर्वशक्ति की आत्मा की रूप में) है। वह वाञ्छाप्रदा (इच्छा को पूरा करने वाली), अनवच्छिन्न (अविच्छिन्न और अखंड), और प्रधानानुप्रवेशिनी (प्रधान के अंदर प्रविष्ट होने वाली) है॥"
 
"क्षेत्रज्ञाऽचिन्त्यशक्तिस्तु प्रोच्यतेऽव्यक्तलक्षणा ।
मलापवर्जिताऽऽनादिमाया त्रितयतत्त्विका ॥
प्रीतिश्च प्रकृतिश्चैव गुहावासा तथोच्यते ।
महामाया नगोत्पन्ना तामसी च ध्रुवा तथा ॥"


इस श्लोक का अर्थ है कि क्षेत्रज्ञ, जो सभी क्षेत्रों को जानने वाला है, अचिन्त्य शक्तियों से युक्त होता है और वह अव्यक्त के लक्षण होते हैं। वह मल से मुक्त होता है और वादियों के अनादि माया के त्रितय तत्त्व से युक्त होता है। प्रीति और प्रकृति वहीं गुहावासिनी कहलाती हैं। महामाया और तामसी माया भी वहीं हैं, और ध्रुव तत्त्व भी वहीं हैं।

 
व्यक्ताऽव्यक्तात्मिका कृष्णा रक्ता शुक्ला ह्यकारणा ।
प्रोच्यते कार्यजननी नित्यप्रसवधर्मिणी ॥
सर्गप्रलयमुक्ता च सृष्टिस्थित्यन्तधर्मिणी ।
ब्रह्मगर्भा चतुर्विंशस्वरूपा पद्मवासिनी ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:

"व्यक्त और अव्यक्त स्वरूप वाली, जिनका रंग रक्त और शुक्ल है, और जो अकारण कहलाती है, वह कार्य की जननी मानी जाती है, जो हमेशा प्रसव धारण करने वाली है। वह सर्ग (सृष्टि), प्रलय (संहार), और मुक्ति (ब्रह्म के साथ मिलन) से मुक्त है, और वह सृष्टि, स्थिति, और संहार के सभी धर्मों को धारण करने वाली है। वह चौबीस स्वरूपों में से एक ब्रह्मगर्भा कहलाती है, और पद्मवासिनी है।"

अच्युताह्लादिका विद्युद्ब्रह्मयोनिर्महालया ।
महालक्ष्मी समुद्भावभावितात्मामहेश्वरी ॥
महाविमानमध्यस्था महानिद्रा सकौतुका ।
सर्वार्थधारिणी सूक्ष्मा ह्यविद्धा परमार्थदा ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:
 
अच्युताह्लादिका, विद्युद्ब्रह्मयोनि, महालया, महालक्ष्मी से उत्पन्न और भावित आत्मा, महेश्वरी, महाविमान के बीच में स्थित, महानिद्रा, सकौतुका, सर्व वस्तुओं का धारण करने वाली, सूक्ष्म होने के कारण अविद्ध, और परमार्थ को प्रदान करने वाली है।"

अनन्तरूपाऽनन्तार्था तथा पुरुषमोहिनी ।
अनेकानेकहस्ता च कालत्रयविवर्जिता ॥
ब्रह्मजन्मा हरप्रीता मतिर्ब्रह्मशिवात्मिका ।
ब्रह्मेशविष्णुसम्पूज्या ब्रह्माख्या ब्रह्मसंज्ञिता ॥

इस मंत्र का अर्थ है:

"अनन्त रूप और अनन्त अर्थ की, पुरुष को मोहित करने वाली, अनगिनत हाथों वाली, और काल के तीनों अवस्थाओं से विरक्त होने वाली है। वह ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के रूप में जन्मती है, और उसकी प्रेम ब्रह्म, शिव, और आत्मा में होती है। वह ब्रह्म, ईश्वर, और विष्णु द्वारा पूज्य होती है, और वह ब्रह्म और अक्षर के रूप में जानी जाती है।"

व्यक्ता प्रथमजा ब्राह्मी महारात्रीः प्रकीर्तिता ।
ज्ञानस्वरूपा वैराग्यरूपा ह्यैश्वर्यरूपिणी ॥
धर्मात्मिका ब्रह्ममूर्तिः प्रतिश्रुतपुमर्थिका ।
अपांयोनिः स्वयम्भूता मानसी तत्त्वसम्भवा ॥

इस मंत्र का अर्थ है:

"व्यक्ता, प्रथमजा, ब्राह्मी, महारात्री, जिसका स्वरूप ज्ञान है, वैराग्य की स्वरूप, और ईश्वरी रूप में होती है। वह धर्म की स्वरूप, ब्रह्म की मूर्ति, प्रतिश्रुति के पुमार्थ की स्वरूप, अपांयोनि, स्वयम्भू, मानसी, और तत्त्व से उत्पन्न होती है।"

ईश्वरस्य प्रिया प्रोक्ता शङ्करार्धशरीरिणी ।
भवानी चैव रुद्राणी महालक्ष्मीस्तथाऽम्बिका ॥
महेश्वरसमुत्पन्ना भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी ।
सर्वेश्वरी सर्ववन्द्या नित्यमुक्ता सुमानसा ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:

"ईश्वर की प्रिया कहलाने वाली, जिसे शङ्कर के अर्धशरीरी रूप में प्रकटित किया गया है, भवानी, रुद्राणी, महालक्ष्मी, और अंबिका कहा जाता है। वह महेश्वर से उत्पन्न होती है और भुक्ति और मुक्ति की प्रदान करने वाली है, इसलिए वह सर्वेश्वरी, सर्ववन्द्या, नित्यमुक्ता, और सुमानसा कहलाती है।"

महेन्द्रोपेन्द्रनमिता शाङ्करीशानुवर्तिनी ।
ईश्वरार्धासनगता माहेश्वरपतिव्रता ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:
"महेन्द्र और उपेन्द्र के नाम से जानी जाने वाली, शाङ्कर के पति के अनुसरण करने वाली, ईश्वर के अर्धासन पर बैठने वाली, और माहेश्वर की पत्नी के रूप में प्रसिद्ध हैं।"


संसारशोषिणी चैव पार्वती हिमवत्सुता ।
परमानन्ददात्री च गुणाग्र्या योगदा तथा ॥
 
 इस मंत्र का अर्थ है:
"संसार को सूखा देने वाली, हिमाचल की पुत्री, परमानंद का दात्री, गुणों की श्रेष्ठ, योगदेवी।"

ज्ञानमूर्तिश्च सावित्री लक्ष्मीः श्रीः कमला तथा ।
अनन्तगुणगम्भीरा ह्युरोनीलमणिप्रभा ॥
सरोजनिलया गङ्गा योगिध्येयाऽसुरार्दिनी ।
सरस्वती सर्वविद्या जगज्ज्येष्ठा सुमङ्गला ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:

"ज्ञान की मूर्ति, सावित्री, लक्ष्मी, श्री, कमला, अनन्त गुणों की गहराई वाली, उरोनीलमणि की तरह चमकने वाली, सरोजनीलया (गंगा का निवास स्थान), योगियों के ध्यान का विषय, असुरों को निर्मूलन करने वाली, सरस्वती (सभी विद्याओं की देवी), जगत की ज्येष्ठा, और सुमङ्गला हैं।"

वाग्देवी वरदा वर्या कीर्तिः सर्वार्थसाधिका ।
वागीश्वरी ब्रह्मविद्या महाविद्या सुशोभना ॥
 
 इस मंत्र का अर्थ है:
"वाग्देवी, वरदा, वर्या, कीर्ति, सर्वार्थ साधने वाली, वागीश्वरी, ब्रह्मविद्या की देवी, महाविद्या, और सुशोभना हैं।"
 
ग्राह्यविद्या वेदविद्या धर्मविद्याऽऽत्मभाविता ।
स्वाहा विश्वम्भरा सिद्धिः साध्या मेधा धृतिः कृतिः ॥
सुनीतिः संकृतिश्चैव कीर्तिता नरवाहिनी ।
पूजाविभाविनी सौम्या भोग्यभाग् भोगदायिनी ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:

"ग्राह्य विद्या, वेद विद्या, धर्म विद्या, आत्मा की ज्ञान विद्या, स्वाहा, विश्व धारण करने वाली, सिद्धि, साधने योग्य, मेधा, धृति, कृति, सुनीति, संकृति, और मानव समाज में प्रसिद्ध वाहनी, पूजनीय, सौम्य, भोग के अधिकारी, और भोग देने वाली हैं।"

शोभावती शाङ्करी च लोला मालाविभूषिता ।
परमेष्ठिप्रिया चैव त्रिलोकीसुन्दरी माता ॥
नन्दा सन्ध्या कामधात्री महादेवी सुसात्त्विका ।
महामहिषदर्पघ्नी पद्ममालाऽघहारिणी ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:

"शोभावती, शाङ्करी, लोला, माला अभूषित, परमेष्ठि प्रिया, त्रिलोकीसुंदरी माता, नन्दा, संध्या, कामधात्री, महादेवी, सुसात्त्विका, महामहिषा के गर्व को नष्ट करने वाली, और पद्ममाला के घर को नष्ट करने वाली हैं।"
 
विचित्रमुकुटा रामा कामदाता प्रकीर्तिता ।
पिताम्बरधरा दिव्यविभूषण विभूषिता ॥
दिव्याख्या सोमवदना जगत्संसृष्टिवर्जिता ।
निर्यन्त्रा यन्त्रवाहस्था नन्दिनी रुद्रकालिका ॥

 इस मंत्र का अर्थ है:

"विचित्रमुकुट धारी, रामा, कामदा, प्रकीर्तिता, पिताम्बर पहनने वाली, दिव्य आभूषणों से युक्त, दिव्य नामा सहित चंद्रमुखी, जो संसार के सृजन से बर्जित है, नियंत्रण में न आने वाली, यंत्रों पर बैठी, नन्दिनी और रुद्रकालिका हैं।"
 
आदित्यवर्णा कौमारी मयूरवरवाहिनी ।
पद्मासनगता गौरी महाकाली सुरार्चिता ॥
अदितिर्नियता रौद्री पद्मगर्भा विवाहना ।
विरूपाक्षा केशिवाहा गुहापुरनिवासिनी ॥

इस मंत्र का अर्थ है:

"आदित्यवर्णा, कौमारी, मयूरवरवाहिनी, पद्मासन पर बैठी हुई गौरी, महाकाली, सुरों की पूजा की जाने वाली, अदिति की संतान, रौद्री, पद्मगर्भा, विवाहिनी, विरूपाक्षा, केशिवाहिनी, और गुहापुर में निवास करने वाली हैं।"
 
महाफलाऽनवद्याङ्गी कामरूपा सरिद्वरा ।
भास्वद्रूपा मुक्तिदात्री प्रणतक्लेशभञ्जना ॥
कौशिकी गोमिनी रात्रिस्त्रिदशारिविनाशिनी ।
बहुरूपा सुरूपा च विरूपा रूपवर्जिता ॥

 इस मंत्र का अर्थ है:

"महाफलांशु, अनवद्याङ्गी, कामरूपा, सरिद्वरा, भास्वद्रूपा, मुक्तिदात्री, प्रणतक्लेशभञ्जना, कौशिकी, गोमिनी, रात्रि, त्रिदशा शत्रु विनाशिनी, बहुरूपा, सुरूपा, और विरूपा रूप से वर्जित हैं।"
 
भक्तार्तिशमना भव्या भवभावविनाशिनी ।
सर्वज्ञानपरीताङ्गी सर्वासुरविमर्दिका ॥
पिकस्वनी सामगीता भवाङ्कनिलया प्रिया ।
दीक्षा विद्याधरी दीप्ता महेन्द्राहितपातिनी ॥
 
 इस मंत्र का अर्थ है:

"भक्तों के दुःख को दूर करने वाली, भव्य, भवभाव का नाश करने वाली, सर्वज्ञान की परीक्षा करने वाली, सर्व आसुरों को पराजित करने वाली, पिकस्वनी, सामगीता, भवाङ्कनिलया, प्रिया, दीक्षा, विद्याधरी, दीप्ता, महेन्द्र पर आश्रित, और पातिनी हैं।"

सर्वदेवमया दक्षा समुद्रान्तरवासिनी ।
अकलङ्का निराधारा नित्यसिद्धा निरामया ॥
कामधेनुबृहद्गर्भा धीमती मौननाशिनी ।
निःसङ्कल्पा निरातङ्का विनया विनयप्रदा ॥
 
इस मंत्र का अर्थ है:

"सर्वदेवमयी, दक्षा, समुद्रकिनारे वास करने वाली, अकलङ्का, निराधारा, नित्यसिद्धा, निरामया, कामधेनु, बृहद्गर्भा, धीमती, मौन को नष्ट करने वाली, निःसङ्कल्पा, निरातङ्का, विनयपूर्ण, और विनय प्रदायिनी हैं।"

ज्वालामाला सहस्राढ्या देवदेवी मनोमया ।
सुभगा सुविशुद्धा च वसुदेवसमुद्भवा ॥
महेन्द्रोपेन्द्रभगिनी भक्तिगम्या परावरा ।
ज्ञानज्ञेया परातीता वेदान्तविषया मतिः ॥
 
"श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम्" के इस मंत्र का अर्थ है:

"ज्वालामाला सहस्राढ़्या, देवदेवी, मनोमया, सुभगा, सुविशुद्धा, वसुदेव से उत्पन्न, महेन्द्रपुत्री, भक्तिगम्या, परावरा, ज्ञानज्ञेया, और वेदान्त के विषय में मति रखने वाली हैं।"

दक्षिणा दाहिका दह्या सर्वभूतहृदिस्थिता ।
योगमाया विभागज्ञा महामोहा गरीयसी ॥
सन्ध्या सर्वसमुद्भूता ब्रह्मवृक्षाश्रियाऽदितिः ।
बीजाङ्कुरसमुद्भूता महाशक्तिर्महामतिः ॥
 
"दक्षिणा दाहिका दह्या, सर्वभूतों के हृदय में स्थित, योगमाया को जानने वाली, महामोह से बड़ी, सन्ध्या, सब जीवों से उत्पन्न होने वाली, ब्रह्मवृक्ष की आश्रय लेने वाली, बीजों के अंकुर से उत्पन्न होने वाली, महाशक्ति और महामति हैं।"

ख्यातिः प्रज्ञावती संज्ञा महाभोगीन्द्रशायिनी ।
हींकृतिः शङ्करी शान्तिर्गन्धर्वगणसेविता ॥
वैश्वानरी महाशूला देवसेना भवप्रिया ।
महारात्री परानन्दा शची दुःस्वप्ननाशिनी ॥
 
"ख्याति, प्रज्ञावती, संज्ञा, महाभोगींद्रशायिनी, हींकृति, शङ्करी, शान्ति, गन्धर्व गणों की पूजा की जाने वाली, वैश्वानरी, महाशूला, देवसेना की प्रिय, महारात्री, परानन्दा, शची, और दुःस्वप्न का नाश करने वाली हैं।"

ईड्या जया जगद्धात्री दुर्विज्ञेया सुरूपिणी।
गुहाम्बिका गणोत्पन्ना महापीठा मरुत्सुता॥
हव्यवाहा भवानन्दा जगद्योनिः प्रकीर्तिता।
जगन्माता जगन्मृत्युर्जरातीता च बुद्धिदा॥


**अर्थ:**
ईड्या - वह देवी जो पूज्य हैं, जया - वह जो विजयी हैं, जगद्धात्री - वह जगत की माता हैं, दुर्विज्ञेया - जिनका गहरे अर्थ कठिन है, सुरूपिणी - वह जो सुंदर रूपवाली हैं, गुहाम्बिका - वह गुहाओं की माता है, गणोत्पन्ना - वह जिनसे देवगण उत्पन्न हुए हैं, महापीठा - वह जो महापीठ पर आसीन हैं, मरुत्सुता - वह मरुत पुत्र हनुमान की पत्नी हैं, हव्यवाहा - वह हवन करने वाली हैं, भवानन्दा - वह जगत के आनंद हैं, जगद्योनिः - वह जगत की उत्पत्ति का स्रोत हैं, प्रकीर्तिता - वह प्रसिद्ध हैं, जगन्माता - वह जगत की माता हैं, जगन्मृत्युर - वह मृत्यु के परे हैं, जरातीता - वह जरा के परे हैं, बुद्धिदा - वह बुद्धि देने वाली हैं।

सिद्धिदात्री रत्नगर्भा रत्नगर्भाश्रया परा ।
दैत्यहन्त्री स्वेष्टदात्री मङ्गलैकसुविग्रहा ॥
पुरुषान्तर्गता चैव समाधिस्था तपस्विनी ।
दिविस्थिता त्रिणेत्रा च सर्वेन्द्रियमनाधृतिः ॥
 
श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र के इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का महत्वपूर्ण संक्षेप मिलता है। वह सिद्धिदात्री हैं, जो सिद्धियों को प्रदान करती हैं, रत्नगर्भा हैं जिनमें धन का अद्भुत स्रोत छिपा है, रत्नगर्भाश्रया हैं, जिनके आश्रय में धन की रक्षा होती है, और परा हैं, यानी श्रेष्ठ और परम। वे दैत्यों का हनन करने वाली, स्वेष्टदात्री हैं, जो अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं, और मङ्गलैकसुविग्रहा हैं, जो मंगल के कष्ट को दूर करने में मदद करती हैं। वे पुरुष के अंदर निवास करने वाली हैं, समाधान में स्थित, तपस्विनी हैं, और दिव्य लोक में स्थित त्रिणेत्रा हैं, जिनकी तीन नेत्रे हैं, और सर्व इंद्रियों का नियंत्रण करने वाली सर्वेन्द्रियमनाधृतिः हैं।

सर्वभूतहृदिस्था च तथा संसारतारिणी ।
वेद्या ब्रह्मविवेद्या च महालीला प्रकीर्तिता ॥
ब्राह्मणिबृहती ब्राह्मी ब्रह्मभूताऽघहारिणी ।
हिरण्मयी महादात्री संसारपरिवर्तिका ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के महत्वपूर्ण गुणों का वर्णन किया गया है। वह सभी प्राणियों के हृदय में निवास करने वाली हैं और संसार के बंधन से मुक्ति दिलाने वाली हैं। माँ दुर्गा ज्ञान के योग्य हैं और आत्मा को परमात्मा से मिलने की क्षमता वाली हैं। उनकी लीलाएँ महान हैं और वे ब्राह्मणों की बड़ी संख्या में होने वाली हैं, वेदों के अध्ययन और अनुष्ठान करने की प्रतिष्ठा हैं। माँ दुर्गा ब्रह्म की प्रतिनिधि हैं और वेदों के अध्ययन के माध्यम से परमात्मा को पहचानने में सहायक हैं। वे आत्मा को ब्रह्म में लीन करने और पापों को नष्ट करने की शक्ति हैं, और उनकी महादान करने वाली शक्ति संसार की चक्रवृद्धि में भी भूमिका निभाती हैं।

सुमालिनी सुरूपा च भास्विनी धारिणी तथा ।
उन्मूलिनी सर्वसभा सर्वप्रत्ययसाक्षिणी ॥
सुसौम्या चन्द्रवदना ताण्डवासक्तमानसा ।
सत्त्वशुद्धिकरी शुद्धा मलत्रयविनाशिनी ॥
 
माँ दुर्गा के इस श्लोक में उनके गुणों का वर्णन है, जिनसे वे अपने भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होती हैं। वे सुमालिनी, अर्थात् सुंदर मालाओं से अलंकृत हैं, सुरूपा, यानी सुंदर रूप धारण करने वाली हैं, और भास्विनी, यानी चमकदार और प्रकाशमान हैं। वे धारिणी हैं, यानी सभी स्थितियों में निरंतर बनी रहती हैं, और उन्मूलिनी, यानी सभी संकटों को मूल से निकालने वाली हैं। वे सर्वसभा में विराजमान हैं, सर्वप्रत्यय का साक्षी हैं, सुसौम्या हैं और चंद्रवदना, ताण्डव में आसक्त मानसिकता वाली हैं। वे सत्त्वशुद्धि करने वाली हैं, शुद्धा हैं, और मलत्रय को नष्ट करने वाली हैं, जो भक्तों के जीवन में शुद्धता और सफाई का सूचक होती है।

जगत्त्त्रयी जगन्मूर्तिस्त्रिमूर्तिरमृताश्रया ।
विमानस्था विशोका च शोकनाशिन्यनाहता ॥
हेमकुण्डलिनी काली पद्मवासा सनातनी ।
सदाकीर्तिः सर्वभूतशया देवी सतांप्रिया ॥
 
माँ दुर्गा के इस श्लोक में उनकी महिमा का गुणगान किया गया है, जो तीनों लोकों में व्याप्त हैं और जो अमृत का आश्रय हैं। वे विमानों में स्थित हैं, भवर्ग की मूर्ति हैं, और शोक को नष्ट करने वाली हैं, जो हमारे दुखों को हरती हैं और हमारे मन को शान्ति देती हैं। माँ दुर्गा हेमकुण्डलिनी हैं, काली हैं, पद्मवासा हैं, सनातनी हैं, सदा कीर्ति हैं, सर्वभूतों के अधिष्ठान हैं, और देवों के प्रिय हैं। वे सब भक्तों की कृपा करती हैं और सत्य का पालन करने वाली हैं।

ब्रह्ममूर्तिकला चैव कृत्तिका कञ्जमालिनी ।
व्योमकेशा क्रियाशक्तिरिच्छाशक्तिः परागतिः ॥
क्षोभिका खण्डिकाभेद्या भेदाभेदविवर्जिता ।
अभिन्ना भिन्नसंस्थाना वशिनी वंशधारिणी ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो उन्हें ब्रह्मा की मूर्ति, कृत्तिका नक्षत्र की रानी, कंजमालिनी, व्योमकेशा, क्रियाशक्ति, इच्छाशक्ति, परागति, क्षोभिका, खण्डिकाभेद्या, भेदाभेदविवर्जिता, अभिन्ना, भिन्नसंस्थाना, वशिनी, और वंशधारिणी के रूप में प्रकट करते हैं। माँ दुर्गा ब्रह्मा की मूर्ति हैं, जिनका रूप ब्रह्माजी के समान है। वे कृत्तिका नक्षत्र की रानी हैं और कंजमाला धारण करती हैं, जो उनकी गौरवशाली प्रतीति को दर्शाती है। वे व्योमकेशा हैं, अर्थात् आकाश में विराजमान हैं, और सब क्रियाओं की शक्ति हैं, जो जीवों को उनके कर्मों के अनुसार फल देती है। उन्हें इच्छाशक्ति और परागति के रूप में भी देखा जा सकता है, जो जीवों के इच्छाशक्ति और परमात्मा की इच्छा का प्रतीक हैं। माँ दुर्गा को क्षोभिका भी कहा जाता है, जो उनके क्रोध का प्रतीक होती है, और वे खण्डिकाभेद्या हैं, जिन्हें किसी भी अच्छे और बुरे भावनाओं का भेद करने की क्षमता होती है। वे भेदाभेदविवर्जिता हैं, जिनके रूप में भेद और अभेद का अभिन्न अनुभव होता है, और वे अभिन्ना हैं, जिनका स्वरूप हमेशा अच्छे और बुरे के बीच समान रहता है। वे भिन्नसंस्थाना हैं, यानी सभी जगह विराजमान होती हैं, और वे वशिनी हैं, जो अपने भक्तों को अपने वश में करती हैं और वंशधारिणी हैं, जिन्होंने वंशों का सृजन किया है और परम्परागत ज्ञान की रक्षा की है।

गुह्यशक्तिर्गुह्यतत्त्वा सर्वदा सर्वतोमुखी ।
भगिनी च निराधारा निराहारा प्रकीर्तिता ॥
निरङ्कुशपदोद्भूता चक्रहस्ता विशोधिका ।
स्रग्विणी पद्मसम्भेदकारिणी परिकीर्तिता ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जिनसे वे अपने भक्तों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे गुह्यशक्ति हैं, जिनकी शक्तियाँ गुप्त रूप से कार्य करती हैं, और गुह्यतत्त्वा, जिनका रहस्यमय सत्त्व है, जो सब तत्त्वों के आधार है। वे सर्वदा सर्वतोमुखी हैं, यानी हमेशा सभी दिशाओं में उपस्थित रहती हैं, और भगिनी हैं, जो सभी की बहन हैं, और निराधारा, जो किसी से आश्रय नहीं लेती। वे निराहारा हैं, यानी उन्हें भोजन की आवश्यकता नहीं होती, और प्रकीर्तिता हैं, यानी उनकी महिमा विशेष रूप से प्रशंसा की जाती है। वे निरङ्कुशपदोद्भूता हैं, जिनके हाथ में निरङ्कुश, यानी नियंत्रणकी छड़ी है, और चक्रहस्ता, जिन्हें चक्र (सुदर्शन चक्र) के साथ दिखाया जाता है, जो दुष्टों का नाश करता है। वे विशोधिका हैं, यानी असुध को दूर करने वाली, स्रग्विणी, जिनकी गर्मी से स्रग, यानी जल की बूँदें, बर्फ में बदल जाती हैं, और पद्मसम्भेदकारिणी, जो पद्म की सम्भेदना करने वाली हैं, यानी प्रकृति की सृजनात्मक शक्ति को प्रकट करने वाली। इन गुणों के साथ, माँ दुर्गा हमारे जीवन में समृद्धि और सुख की प्राप्ति में सहायक होती हैं।

परावरविधानज्ञा महापुरुषपूर्वजा ।
परावरज्ञा विद्या च विद्युज्जिह्वा जिताश्रया ॥
विद्यामयी सहस्राक्षी सहस्रवदनात्मजा ।
सहस्ररश्मिःसत्वस्था महेश्वरपदाश्रया ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे परावर विधानज्ञा हैं, यानी परमात्मा के विधान को जानने वाली, महापुरुषों की पूर्वजा हैं, जिन्होंने बड़े महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। वे परावरज्ञा हैं, यानी सब कुछ जानने वाली, और विद्या, यानी ज्ञान, उनकी शक्ति है, जो सब ज्ञान का स्रोत है। वे विद्युज्जिह्वा हैं, जिनकी जिह्वा ज्ञान का प्रतीक है, और जिताश्रया, यानी विजयी, क्योंकि वे सभी दुश्मनों को जीतती हैं। वे विद्यामयी हैं, जिनकी आत्मा ज्ञान से भरपूर है, सहस्राक्षी, जिनकी हजार आँखें हैं, सहस्रवदनात्मजा, जो हजार मुखों वाली हैं, सहस्ररश्मिःसत्वस्था, जिनकी हजारों किरणें हैं, और महेश्वरपदाश्रया, जो महेश्वर के पादों में आश्रय लेती हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को ज्ञान और आत्मा की उन्नति में सहायक होते हैं।

ज्वालिनी सन्मया व्याप्ता चिन्मया पद्मभेदिका ।
महाश्रया महामन्त्रा महादेवमनोरमा ॥
व्योमलक्ष्मीः सिंहरथा चेकितानाऽमितप्रभा ।
विश्वेश्वरी भगवती सकला कालहारिणी ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे ज्वालिनी हैं, यानी अग्नि की तरह ज्वाला फूँकने वाली, सन्मया, जिनका रूप सत्य से भरपूर है, व्याप्ता, यानी सर्वव्यापी, चिन्मया, जिनकी आत्मा चैतन्य से पूर्ण है, पद्मभेदिका, जिनका रूप पद्म के बिना अभेद है। वे महाश्रया हैं, यानी महादेव का शरण लेने वाली, महामन्त्रा, जिनका महत्वपूर्ण मंत्र है, महादेवमनोरमा, जिनकी ध्यान में मन रमता है। व्योमलक्ष्मीः, यानी आकाश की लक्ष्मी, सिंहरथा, जिनकी रथ में सिंह होता है, चेकिताना, यानी सर्वज्ञ, अमितप्रभा, जिनकी प्रकाश अमित है। वे विश्वेश्वरी हैं, यानी सम्पूर्ण विश्व की ईश्वरी, भगवती, जिनकी महिमा सबको प्रशंसा देने वाली है, और सकला कालहारिणी, यानी समय का हारण करने वाली, क्योंकि वे समय के सर्वाधिकारिणी हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को उनके भगवन् महेश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति में सहायक होते हैं।

सर्ववेद्या सर्वभद्रा गुह्या दूढा गुहारणी ।
प्रलया योगधात्री च गङ्गा विश्वेश्वरी तथा ॥
कामदा कनका कान्ता कञ्जगर्भप्रभा तथा ।
पुण्यदा कालकेशा च भोक्त्त्री पुष्करिणी तथा ॥
 
 इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे ज्वालिनी हैं, यानी अग्नि की तरह ज्वाला फूँकने वाली, सन्मया, जिनका रूप सत्य से भरपूर है, व्याप्ता, यानी सर्वव्यापी, चिन्मया, जिनकी आत्मा चैतन्य से पूर्ण है, पद्मभेदिका, जिनका रूप पद्म के बिना अभेद है। वे महाश्रया हैं, यानी महादेव का शरण लेने वाली, महामन्त्रा, जिनका महत्वपूर्ण मंत्र है, महादेवमनोरमा, जिनकी ध्यान में मन रमता है। व्योमलक्ष्मीः, यानी आकाश की लक्ष्मी, सिंहरथा, जिनकी रथ में सिंह होता है, चेकिताना, यानी सर्वज्ञ, अमितप्रभा, जिनकी प्रकाश अमित है। वे विश्वेश्वरी हैं, यानी सम्पूर्ण विश्व की ईश्वरी, भगवती, जिनकी महिमा सबको प्रशंसा देने वाली है, और सकला कालहारिणी, यानी समय का हारण करने वाली, क्योंकि वे समय के सर्वाधिकारिणी हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को उनके भगवन् महेश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति में सहायक होते हैं।

सुरेश्वरी भूतिदात्री भूतिभूषा प्रकीर्तिता ।
पञ्चब्रह्मसमुत्पन्ना परमार्थाऽर्थविग्रहा ॥
वर्णोदया भानुमूर्तिर्वाग्विज्ञेया मनोजवा ।
मनोहरा महोरस्का तामसी वेदरूपिणी ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे ज्वालिनी हैं, यानी अग्नि की तरह ज्वाला फूँकने वाली, सन्मया, जिनका रूप सत्य से भरपूर है, व्याप्ता, यानी सर्वव्यापी, चिन्मया, जिनकी आत्मा चैतन्य से पूर्ण है, पद्मभेदिका, जिनका रूप पद्म के बिना अभेद है। वे महाश्रया हैं, यानी महादेव का शरण लेने वाली, महामन्त्रा, जिनका महत्वपूर्ण मंत्र है, महादेवमनोरमा, जिनकी ध्यान में मन रमता है। व्योमलक्ष्मीः, यानी आकाश की लक्ष्मी, सिंहरथा, जिनकी रथ में सिंह होता है, चेकिताना, यानी सर्वज्ञ, अमितप्रभा, जिनकी प्रकाश अमित है। वे विश्वेश्वरी हैं, यानी सम्पूर्ण विश्व की ईश्वरी, भगवती, जिनकी महिमा सबको प्रशंसा देने वाली है, और सकला कालहारिणी, यानी समय का हारण करने वाली, क्योंकि वे समय के सर्वाधिकारिणी हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को उनके भगवन् महेश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति में सहायक होते हैं।

वेदशक्तिर्वेदमाता वेदविद्याप्रकाशिनी ।
योगेश्वरेश्वरी माया महाशक्तिर्महामयी ॥
विश्वान्तःस्था वियन्मूर्तिर्भार्गवी सुरसुन्दरी ।
सुरभिर्नन्दिनी विद्या नन्दगोपतनूद्भवा ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे वेदशक्ति हैं, जो वेदों की शक्ति हैं, वेदमाता, जो वेदों की माता हैं, वेदविद्याप्रकाशिनी, जो वेदज्ञान का प्रकाशक हैं। वे योगेश्वरेश्वरी हैं, जो योग की ईश्वरी हैं, माया, जो सृष्टि की माया हैं, महाशक्ति, जो महाशक्ति हैं, और महामयी, जो महामाया हैं। वे विश्वान्तःस्था हैं, जो सम्पूर्ण विश्व के अंतर्गत हैं, वियन्मूर्ति, जिनका रूप अद्वितीय है, भार्गवी, जो सूर्य की किरणों की तरह चमकती हैं, सुरसुन्दरी, जो सुरों की सुंदरता हैं, सुरभि, जो सुगंधित हैं, नन्दिनी, जो सभी को आनंदित करती हैं, विद्या, जो ज्ञान हैं, और नन्दगोपतनूद्भवा, जो नंद के पुत्र कृष्ण की अवतार हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को विश्वास और ज्ञान में सहायक होते हैं।

भारती परमानन्दा परावरविभेदिका ।
सर्वप्रहरणोपेता काम्या कामेश्वरेश्वरी ॥
अनन्तानन्दविभवा हृल्लेखा कनकप्रभा ।
कूष्माण्डा धनरत्नाढ्या सुगन्धा गन्धदायिनी ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे भारती हैं, जो परमानंद स्वरूपा हैं, परावरविभेदिका, जो दिव्य और मानवीय को एक करने में सहायक होती हैं। वे सर्वप्रहरणोपेता हैं, जो समय के हर पहरे में उपस्थित हैं, काम्या, जो सभी कामनाओं को पूरा करने वाली हैं, कामेश्वरेश्वरी, जो कामेश्वर की पराभूति हैं। वे अनन्तानन्दविभवा हैं, जो अनन्त आनंद की विभूति हैं, हृल्लेखा, जिनकी हरिण के रूप में छाया हुआ है, कनकप्रभा, जिनकी चमक सोने की तरह है, कूष्माण्डा, जो कूष्माण्ड देवी की रूप में प्रकट होती हैं, धनरत्नाढ्या, जो धन और रत्नों के आढ़िया हैं, सुगन्धा, जो सुगंधित हैं, और गन्धदायिनी, जो गंध का दान करती हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को समृद्धि और सुख की प्राप्ति में सहायक होते हैं।

त्रिविक्रमपदोद्भूता चतुरास्या शिवोदया ।
सुदुर्लभा धनाध्यक्षा धन्या पिङ्गललोचना ॥
शान्ता प्रभास्वरूपा च पङ्कजायतलोचना ।
इन्द्राक्षी हृदयान्तःस्था शिवा माता च सत्क्रिया ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे त्रिविक्रमपदोद्भूता हैं, जो त्रिविक्रम के पादों की उत्पत्ति हैं, चतुरास्या, जो चतुर्मुख ब्रह्मा की पत्नी हैं, शिवोदया, जो शिव की उत्थान की रूप में प्रकट होती हैं। वे सुदुर्लभा हैं, जिन्हें पाना बहुत कठिन है, धनाध्यक्षा, जो धन के प्रभाव का ध्यान रखती हैं, धन्या, जो सुखमय और धन्य हैं, पिङ्गललोचना, जिनकी आंखें लाल हैं। वे शान्ता हैं, जो शांति की प्रतिष्ठा हैं, प्रभास्वरूपा, जिनकी महिमा चमकदार है, पङ्कजायतलोचना, जिनकी आंखों का उत्पत्ति स्थल कमल की तरह है। वे इन्द्राक्षी हैं, जो इंद्र की आंख की भाषा हैं, हृदयान्तःस्था, जो हृदय के अंदर स्थित हैं, शिवा माता, जो शिव की माता हैं, और सत्क्रिया, जो सभी क्रियाओं में सत्कारी हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को सम्पूर्णता और ध्यान में सहायक होते हैं।

गिरिजा च सुगूढा च नित्यपुष्टा निरन्तरा ।
दुर्गा कात्यायनी चण्डी चन्द्रिका कान्तविग्रहा ॥
हिरण्यवर्णा जगती जगद्यन्त्रप्रवर्तिका ।
मन्दराद्रिनिवासा च शारदा स्वर्णमालिनी ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे गिरिजा हैं, जो हिमालय की पुत्री हैं, सुगूढा, जिनका रूप गुप्त और गूढ़ है, नित्यपुष्टा, जो हमेशा पुष्ट रहती हैं, निरन्तरा, जो सदैव उपस्थित रहती हैं। वे दुर्गा हैं, जो दुर्ग में निवास करती हैं, कात्यायनी, जो महिषासुर की सवारीका थी, चण्डी, जो अत्यंत उत्कृष्ट हैं, चन्द्रिका, जिनका चेहरा चंद्रमा की तरह चमकता है, कान्तविग्रहा, जो सुंदरता की मूर्ति हैं। वे हिरण्यवर्णा हैं, जिनका रंग सोने के बराबर है, जगती, जो सम्पूर्ण जगत का स्वामिनी हैं, जगद्यन्त्रप्रवर्तिका, जो सम्पूर्ण जगत के यंत्र का प्रवर्तिका हैं। वे मन्दराद्रिनिवासा हैं, जो मन्दराचल पर विराजमान हैं, शारदा, जो विद्या की देवी हैं, और स्वर्णमालिनी, जिनकी माला सोने की है। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को साहस और सौन्दर्य में सहायक होते हैं।

रत्नमाला रत्नगर्भा व्युष्टिर्विश्वप्रमाथिनी ।
पद्मानन्दा पद्मनिभा नित्यपुष्टा कृतोद्भवा ॥
नारायणी दुष्टशिक्षा सूर्यमाता वृषप्रिया ।
महेन्द्रभगिनी सत्या सत्यभाषा सुकोमला ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे रत्नमाला हैं, जो रत्नों की माला हैं, रत्नगर्भा, जो रत्नों के गर्भ में स्थित हैं, व्युष्टिर्विश्वप्रमाथिनी, जो विश्व के प्रमाथन का नाश करने वाली हैं। वे पद्मानंदा हैं, जिनका आनंद पद्म की तरह है, पद्मनिभा, जिनकी नासिका पद्म की भाँति है, नित्यपुष्टा, जो हमेशा पुष्ट रहती हैं, कृतोद्भवा, जो समय के साथ उत्पन्न होती हैं। वे नारायणी हैं, जो भगवान नारायण की स्वरूपा हैं, दुष्टशिक्षा, जो दुष्टों को शिक्षा देती हैं, सूर्यमाता, जो सूर्य की माता हैं, वृषप्रिया, जो वृषभ की प्रिय हैं। वे महेन्द्रभगिनी हैं, जो हिमालय की पुत्री हैं, सत्या, जो सत्य हैं, सत्यभाषा, जो सच्चाई बोलती हैं, और सुकोमला, जो बहुत ही कोमल स्वभाव वाली हैं। माँ दुर्गा के ये गुण भक्तों को समृद्धि और सत्य में सहायक होते हैं।

वामा च पञ्चतपसां वरदात्री प्रकीर्तिता ।
वाच्यवर्णेश्वरी विद्या दुर्जया दुरतिक्रमा ॥
कालरात्रिर्महावेगा वीरभद्रप्रिया हिता ।
भद्रकाली जगन्माता भक्तानां भद्रदायिनी ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे वामा हैं, जिन्होंने पञ्चतपसों को दिया वरदान, वरदात्री, जो वरदानों की माता हैं, प्रकीर्तिता, जिनकी महिमा प्रकट की गई है। वे वाच्यवर्णेश्वरी हैं, जिनकी वाचा का ईश्वर है, विद्या, जो सब ज्ञानों की देवी है, दुर्जया, जिन्हें परास्त्रीय शक्तियों के साथ पाना कठिन है, और दुरतिक्रमा, जिनको पार करना मुश्किल है। वे कालरात्रि हैं, जो रात्रि का समय हैं, महावेगा, जिनकी गति अत्यंत तेज है, वीरभद्रप्रिया, जो वीरभद्र की प्रिय हैं, हिता, जो भक्तों के लिए हितकारक हैं। वे भद्रकाली हैं, जो सम्पूर्ण जगत की माता हैं, और भक्तों के लिए भद्र देने वाली हैं।

कराला पिङ्गलाकारा कामभेत्त्री महामनाः ।
यशस्विनी यशोदा च षडध्वपरिवर्तिका ॥
शङ्खिनी पद्मिनी संख्या सांख्ययोगप्रवर्तिका ।
चैत्रादिर्वत्सरारूढा जगत्सम्पूरणीन्द्रजा ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे कराला हैं, जिनका रूप भयंकर है, पिङ्गलाकारा, जिनकी त्वचा पीली है, कामभेत्त्री, जो कामनाओं को नष्ट करने वाली हैं, महामनाः, जिनके मन अत्यंत महान है। वे यशस्विनी हैं, जिनकी महिमा अत्यधिक है, यशोदा, जो यश की प्राप्ति करने वाली हैं, और षडध्वपरिवर्तिका, जो षडध्वानों के परिवर्तन का कारण हैं। वे शङ्खिनी हैं, जिनके हाथ में शंख हैं, पद्मिनी, जिनके हाथ में पद्म हैं, संख्या, जो बीना हैं, सांख्ययोगप्रवर्तिका, जो संख्या और योग का प्रवर्तक हैं। वे चैत्रादिर्वत्सरारूढ़ा हैं, जो चैत्रादि महीनों में वत्सरूप में आती हैं, जगत्सम्पूरणीन्द्रजा, जो सम्पूर्ण जगत की संपूरणता की प्रतीक हैं।

शुम्भघ्नी खेचराराध्या कम्बुग्रीवा बलीडिता ।
खगारूढा महैश्वर्या सुपद्मनिलया तथा ॥
विरक्ता गरुडस्था च जगतीहृद्गुहाश्रया ।
शुम्भादिमथना भक्तहृद्गह्वरनिवासिनी ॥
 
इस श्लोक में माँ दुर्गा के गुणों का वर्णन किया गया है, जो वे अपने भक्तों के जीवन में प्रकट करती हैं। वे शुम्भघ्नी हैं, जो शुम्भ आदि असुरों का नाश करने वाली हैं, खेचराराध्या, जिन्हें खेचर यानी गरुड़ द्वारा पूजा जाता है, कम्बुग्रीवा, जिन्होंने कम्बुकर्ण को वध किया, बलीडिता, जिन्होंने बलि आसुर को मार दिया। वे खगारूढा हैं, जिन्होंने अपने वाहन के रूप में खग (गरुड़) को चुना है, महैश्वर्या, जिनकी महाशक्ति है, सुपद्मनिलया, जो सुन्दर पद्म के वास स्थली है। वे विरक्ता हैं, जिन्होंने संसार से विरक्ति प्राप्त की हैं, गरुड़स्था, जो गरुड़ के साथ विराजमान हैं, च जगतीहृद्गुहाश्रया, जो जगत के हृदय में आश्रय हैं, शुम्भादिमथना, जो शुम्भ आदि असुरों का संहार करने वाली हैं, और भक्तों के हृदय के गुहा में निवास करने वाली हैं।

जगत्त्त्रयारणी सिद्धसङ्कल्पा कामदा तथा ।
सर्वविज्ञानदात्री चानल्पकल्मषहारिणी ॥
सकलोपनिषद्गम्या दुष्टदुष्प्रेक्ष्यसत्तमा ।
सद्वृता लोकसंव्याप्ता तुष्टिः पुष्टिः क्रियावती ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है कि यह देवी जगत् की तीनों लोकों की रानी हैं, जिनके संकल्प सफल होते हैं और सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं। वे सभी ज्ञान का प्रदाता हैं और सभी दोषों को हरती हैं। यह देवी सभी उपनिषदों में प्राप्त होती हैं, और वे बुराइयों को देखने में भी श्रेष्ठ होती हैं, हमेशा धार्मिक जीवन जीती हैं, सम्पूर्ण लोकों को व्याप्त करती हैं, संतुष्टि प्रदान करती हैं, पुष्टि देती हैं, और क्रियाशील रहती हैं।

विश्वामरेश्वरी चैव भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
शिवाधृता लोहिताक्षी सर्पमालाविभूषणा ॥
निरानन्दा त्रिशूलासिधनुर्बाणादिधारिणी ।
अशेषध्येयमूर्तिश्च देवतानां च देवता ॥
 
इस श्लोक में कहा गया है कि देवी जगत् के संपूर्ण ईश्वर हैं और वह अपने भक्तों को भुक्ति और मुक्ति का आशीर्वाद देती हैं। वे भगवान शिव के साथ हैं और उनकी लाल आंखों वाली हैं। उनके गले पर सर्प की माला है, जो उनके आभूषण के रूप में है। वे सुखमय रहती हैं और त्रिशूल, धनुष, और बाण को धारण करती हैं। वे सभी देवताओं की देवता हैं और उनका सर्वदिक्पालन करती हैं, जो सम्पूर्ण देवताओं की देवता हैं।

वराम्बिका गिरेः पुत्री निशुम्भविनिपातिनी ।
सुवर्णा स्वर्णलसिताऽनन्तवर्णा सदाधृता ॥
शाङ्करी शान्तहृदया अहोरात्रविधायिका ।
विश्वगोप्त्री गूढरूपा गुणपूर्णा च गार्ग्यजा ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"वराम्बिका गिरेः पुत्री निशुम्भविनिपातिनी" - वह गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं और निशुम्भ और शुम्भ के वध करने वाली हैं।
"सुवर्णा स्वर्णलसिताऽनन्तवर्णा सदाधृता" - उनकी त्वचा सुवर्ण की तरह होती है, वे सदैव शोभा पाती हैं और अनन्त वर्णवाली हैं।
"शाङ्करी शान्तहृदया अहोरात्रविधायिका" - वे शिव की पत्नी हैं, जिनका हृदय सदैव शांति में होता है और वे रात्रि और दिन की सुरक्षा करने वाली हैं।
"विश्वगोप्त्री गूढरूपा गुणपूर्णा च गार्ग्यजा" - वे सम्पूर्ण विश्व की सुरक्षा करने वाली हैं, उनका रूप गूढ़ है, और वे गुणों से पूर्ण हैं, जो गार्ग्य ऋषि की पुत्री हैं।

गौरी शाकम्भरी सत्यसन्धा सन्ध्यात्रयीधृता ।
सर्वपापविनिर्मुक्ता सर्वबन्धविवर्जिता ॥
सांख्ययोगसमाख्याता अप्रमेया मुनीडिता ।
विशुद्धसुकुलोद्भूता बिन्दुनादसमादृता ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"गौरी शाकम्भरी सत्यसन्धा सन्ध्यात्रयीधृता" - वह गौरी (पार्वती) है, जो शाकम्भरी नामक भगवान शिव की पत्नी है, वह सदैव सत्य में स्थित रहती है और सन्ध्या काल की पूजा को धारण करती है।
"सर्वपापविनिर्मुक्ता सर्वबन्धविवर्जिता" - वे सभी पापों से मुक्त हैं और सभी बंधनों से विमुक्त हैं।
"सांख्ययोगसमाख्याता अप्रमेया मुनीडिता" - वे सांख्य और योग के साक्षात्कार की आद्य शिक्षिका हैं, और उनकी महिमा मुनियों द्वारा गाई गई है।"विशुद्धसुकुलोद्भूता बिन्दुनादसमादृता" - वे शुद्ध सुकुलों से उत्पन्न हुई हैं और बिन्दुनाद नाद की समाधि में रहती हैं।

शम्भुवामाङ्कगा चैव शशितुल्यनिभानना ।
वनमालाविराजन्ती अनन्तशयनादृता ॥
नरनारायणोद्भूता नारसिंही प्रकीर्तिता ।
दैत्यप्रमाथिनी शङ्खचक्रपद्मगदाधरा ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"शम्भुवामाङ्कगा चैव शशितुल्यनिभानना" - वह शम्भु (भगवान शिव) के आंगन में रहने वाली हैं, उनके चेहरे के चंद्रमा के समान हैं।
"वनमालाविराजन्ती अनन्तशयनादृता" - वे एक वनमाला पहनती हैं और अनंतशयन (विष्णु) के साथ विराजमान हैं।
"नरनारायणोद्भूता नारसिंही प्रकीर्तिता" - वे नर और नारायण के समान हैं और नारसिंही (दुर्गा) के रूप में प्रसिद्ध हैं।"दैत्यप्रमाथिनी शङ्खचक्रपद्मगदाधरा" - वे दैत्यों की प्रमाथिनी (विनाशक) हैं और शंख, चक्र, पद्म, और गदा धारण करती हैं।

सङ्कर्षणसमुत्पन्ना अम्बिका सज्जनाश्रया ।
सुवृता सुन्दरी चैव धर्मकामार्थदायिनी ॥
मोक्षदा भक्तिनिलया पुराणपुरुषादृता ।
महाविभूतिदाऽऽराध्या सरोजनिलयाऽसमा ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"सङ्कर्षणसमुत्पन्ना अम्बिका सज्जनाश्रया" - वह अम्बिका (मां दुर्गा) हैं, जिन्होंने सङ्कर्षण (भगवान विष्णु) को जन्म दिया है और जो सज्जनों का आश्रय हैं।
"सुवृता सुन्दरी चैव धर्मकामार्थदायिनी" - वे सुव्रता (धर्मपालन करने वाली) हैं और सुंदरी भी, और वे धर्म, काम, और अर्थ की प्राप्ति में मदद करने वाली हैं।
"मोक्षदा भक्तिनिलया पुराणपुरुषादृता" - वे मोक्ष प्रदान करने वाली हैं, भक्तों का निवास स्थान हैं, और पुराणों के पुरुषों द्वारा प्रमाणित की जाती हैं।
"महाविभूतिदाऽऽराध्या सरोजनिलयाऽसमा" - वे महाविभूतियों की आराध्या हैं और उनका निवास स्थान एक समुद्र की तरह अद्वितीय है।

अष्टादशभुजाऽनादिर्नीलोत्पलदलाक्षिणी ।
सर्वशक्तिसमारूढा धर्माधर्मविवर्जिता ॥
वैराग्यज्ञाननिरता निरालोका निरिन्द्रिया ।
विचित्रगहनाधारा शाश्वतस्थानवासिनी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"अष्टादशभुजाऽनादिर्नीलोत्पलदलाक्षिणी" - वह मां दुर्गा, जिनकी अष्टादश (अठारह) हाथ हैं, उनमें से एक अनादि (आदिकाल से अब तक) हैं, और उनकी आँखों का रंग नीलोत्पल के पत्तों के समान है।
"सर्वशक्तिसमारूढा धर्माधर्मविवर्जिता" - वे सभी शक्तियों से युक्त हैं और धर्म और अधर्म से विमुक्त हैं।
"वैराग्यज्ञाननिरता निरालोका निरिन्द्रिया" - वे वैराग्य (आसक्ति से विमुक्ति) और ज्ञान (आत्मा के ज्ञान) में रत हैं, और वे किसी लोक में नहीं हैं, और वे इंद्रियों से परे हैं।
"विचित्रगहनाधारा शाश्वतस्थानवासिनी" - उनकी गहना और रहस्यमयी है, और वे शाश्वत स्थान में वास करती हैं।

ज्ञानेश्वरी पीतचेला वेदवेदाङ्गपारगा ।
मनस्विनी मन्युमाता महामन्युसमुद्भवा ॥
अमन्युरमृतास्वादा पुरन्दरपरिष्टुता ।
अशोच्या भिन्नविषया हिरण्यरजतप्रिया ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"ज्ञानेश्वरी पीतचेला वेदवेदाङ्गपारगा" - वह ज्ञान की देवी हैं, जिनकी शराबी चेला हैं, और वे वेद और वेदाङ्गों के पारग हैं।
"मनस्विनी मन्युमाता महामन्युसमुद्भवा" - वे मानसिक शक्ति की धारण करने वाली हैं, मन्यु (क्रोध) की माता हैं, और महामन्यु के उत्पन्न होने की शक्ति हैं।
"अमन्युरमृतास्वादा पुरन्दरपरिष्टुता" - वे अमन्यु (क्रोध) से अमृतरूप सुआदने वाली हैं और पुरन्दर (इंद्र) के प्रशंसा में हैं।
"अशोच्या भिन्नविषया हिरण्यरजतप्रिया" - वे अशोकी हैं, और हीरा और चांदी के प्रति प्रिय हैं।

हिरण्यजननी भीमा हेमाभरणभूषिता ।
विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया ज्योतिष्टोमफलप्रदा ॥
महानिद्रासमुत्पत्तिरनिद्रा सत्यदेवता ।
दीर्घा ककुद्मिनी पिङ्गजटाधारा मनोज्ञधीः ॥
 
 इस श्लोक का अर्थ है:

"हिरण्यजननी भीमा हेमाभरणभूषिता" - वह भगवान शिव की पत्नी भीमा हैं, और वे सोने के आभूषणों से युक्त हैं।
"विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया ज्योतिष्टोमफलप्रदा" - वे प्रकट होती हैं, लेकिन उनकी परमात्मा की अद्भुतता को समझना दुष्कर है, और वे ज्योतिष्टोम यज्ञ के फल को प्रदान करती हैं।
"महानिद्रासमुत्पत्तिरनिद्रा सत्यदेवता" - उनका महत् समुद्र से उत्पत्ति हुआ है, और वे सत्य की देवी अनिद्रा हैं।
"दीर्घा ककुद्मिनी पिङ्गजटाधारा मनोज्ञधीः" - वे लम्बी केशवाली हैं, ककुद्मिनी हैं (केशों का एक बांधन), पीटवर्णिनी हैं (पीट का पहनना), पिङ्गजटाधारण (सुरक्षा के लिए अपने बालों को एक सटीक तरीके से बाँधने वाली) हैं, और मनोज्ञधी (मनोज्ञता से युक्त बुद्धि) हैं।
 
महाश्रया रमोत्पन्ना तमःपारे प्रतिष्ठिता ।
त्रितत्त्वमाता त्रिविधा सुसूक्ष्मा पद्मसंश्रया ॥
शान्त्यतीतकलाऽतीतविकारा श्वेतचेलिका ।
चित्रमाया शिवज्ञानस्वरूपा दैत्यमाथिनी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"महाश्रया रमोत्पन्ना तमःपारे प्रतिष्ठिता" - वह महालक्ष्मी के आश्रय में हैं, और वे तमः (अज्ञान) के पार हैं और प्रतिष्ठित हैं।
"त्रितत्त्वमाता त्रिविधा सुसूक्ष्मा पद्मसंश्रया" - वे तीन परमात्मा की माता हैं, त्रिविधा हैं, और सूक्ष्म रूप से पद्म (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का आश्रय हैं।
"शान्त्यतीतकलाऽतीतविकारा श्वेतचेलिका" - वे शान्ति के परे हैं, विकाररहित हैं, और वे श्वेतचेलिका (गोरी रंग की) हैं।
"चित्रमाया शिवज्ञानस्वरूपा दैत्यमाथिनी" - वे चित्रमाया (माया की रूप में) हैं, शिवज्ञान की स्वरूप हैं, और दैत्यों को मारने वाली हैं।

काश्यपी कालसर्पाभवेणिका शास्त्रयोनिका ।
त्रयीमूर्तिः क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गा च दर्शिनी ॥
नारायणी नरोत्पन्ना कौमुदी कान्तिधारिणी ।
कौशिकी ललिता लीला परावरविभाविनी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"काश्यपी कालसर्पाभवेणिका शास्त्रयोनिका" - वह काश्यप ऋषि की पत्नी हैं, कालसर्प के वेणी विधान से प्राप्त हुईं हैं, और वे शास्त्रों के योनि हैं।
"त्रयीमूर्तिः क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गा च दर्शिनी" - वे त्रयीमूर्ति हैं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पत्नी), क्रियामूर्ति हैं (क्रियाओं की मूर्ति), और वे चार वर्गों को देखती हैं।
"नारायणी नरोत्पन्ना कौमुदी कान्तिधारिणी" - वे नारायण की पत्नी हैं, नरोत्पन्ना हैं (मनुष्यों की उत्पत्ति वाली), कौमुदी हैं (पूर्णिमा की देवी), और कान्ति को धारण करती हैं।
"कौशिकी ललिता लीला परावरविभाविनी" - वे कौशिकी हैं (कौशिक ऋषि की पत्नी), ललिता हैं (ललिता देवी की अवतार), लीला करती हैं (दिव्य लीला विभाग), और परमात्मा की अद्वितीय शक्ति हैं।

वरेण्याऽद्भुतमहात्म्या वडवा वामलोचना ।
सुभद्रा चेतनाराध्या शान्तिदा शान्तिवर्धिनी ॥
जयादिशक्तिजननी शक्तिचक्रप्रवर्तिका ।
त्रिशक्तिजननी जन्या षट्सूत्रपरिवर्णिता ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"वरेण्याऽद्भुतमहात्म्या वडवा वामलोचना" - वह वडवा (अद्भुत महात्मा) हैं, जिनकी अद्वितीय महिमा है, और वे वामलोचना (वाम मुखवाली) हैं।
"सुभद्रा चेतनाराध्या शान्तिदा शान्तिवर्धिनी" - वे सुभद्रा (भगवान कृष्णा की बहन) हैं, चेतना की पूजा करने वाली हैं, और वे शान्ति प्रदान करने वाली हैं और शान्ति को बढ़ाती हैं।
"जयादिशक्तिजननी शक्तिचक्रप्रवर्तिका" - वे जया (विजया), आदि शक्तियों की जननी हैं, और शक्तिचक्र को प्रवर्तित करने वाली हैं।
"त्रिशक्तिजननी जन्या षट्सूत्रपरिवर्णिता" - वे त्रिशक्तियों की माता हैं, और षट्सूत्र (षट् शक्तियों के सूत्र) के विवरण के साथ जन्य हुई हैं।

सुधौतकर्मणाऽऽराध्या युगान्तदहनात्मिका ।
सङ्कर्षिणी जगद्धात्री कामयोनिः किरीटिनी ॥
ऐन्द्री त्रैलोक्यनमिता वैष्णवी परमेश्वरी ।
प्रद्युम्नजननी बिम्बसमोष्ठी पद्मलोचना ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"सुधौतकर्मणाऽऽराध्या युगान्तदहनात्मिका" - वे सुधौत कर्मों की पूजा करने वाली हैं, और युगांत के अंतर्गत होने वाली दहनरूपी शक्ति हैं।
"सङ्कर्षिणी जगद्धात्री कामयोनिः किरीटिनी" - वे सङ्कर्षणी (संकर्षण की पत्नी) हैं, जगद्धात्री (जगत की पालक) हैं, कामयोनि (कामदेव की उत्पत्ति स्थल) हैं, और किरीटिनी (मुकुट पहनने वाली) हैं।
"ऐन्द्री त्रैलोक्यनमिता वैष्णवी परमेश्वरी" - वे ऐन्द्री (इंद्र की पत्नी) हैं, त्रैलोक्यनमिता (तीनों लोकों की मालिका) हैं, वैष्णवी (विष्णु की पत्नी) हैं, और परमेश्वरी (सर्वों की मालिका) हैं।
"प्रद्युम्नजननी बिम्बसमोष्ठी पद्मलोचना" - वे प्रद्युम्न (भगवान कृष्णा के पुत्र) की माता हैं, बिम्बसमोष्ठी (चुम्बकाकार होंठों वाली) हैं, और पद्मलोचना (पद्म की आंखों वाली) हैं।

मदोत्कटा हंसगतिः प्रचण्डा चण्डविक्रमा ।
वृषाधीशा परात्मा च विन्ध्या पर्वतवासिनी ॥
हिमवन्मेरुनिलया कैलासपुरवासिनी ।
चाणूरहन्त्री नीतिज्ञा कामरूपा त्रयीतनुः ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"मदोत्कटा हंसगतिः प्रचण्डा चण्डविक्रमा" - वह मदोत्कटा (मद को नष्ट करने वाली) हैं, हंसगति (हंस की चाल) हैं, प्रचण्डा (भयंकर) हैं, और चण्डविक्रमा (चण्ड के वीर) हैं।
"वृषाधीशा परात्मा च विन्ध्या पर्वतवासिनी" - वे वृषाधीशा (दुर्गा का पति महिषासुर के रूप में) हैं, परात्मा हैं (परमात्मा की स्वरूप), और विन्ध्या (विन्ध्य पर्वत की वासिनी) हैं।
"हिमवन्मेरुनिलया कैलासपुरवासिनी" - वे हिमवन (हिमालय पर्वत) में निवास करती हैं, मेरु पर्वत में निवास करती हैं, और कैलास पर्वत के पुर में वासिनी हैं।
"चाणूरहन्त्री नीतिज्ञा कामरूपा त्रयीतनुः" - वे चाणूरहन्त्री (चाणूर और मुण्ड जैसे दानवों को मारने वाली) हैं, नीतिज्ञा (नीति की ज्ञानी) हैं, कामरूपा (कामना के अनुसार रूप धारण करने वाली) हैं, और त्रयीतनुः (त्रयी शास्त्र की माता) हैं।

व्रतस्नाता धर्मशीला सिंहासननिवासिनी ।
वीरभद्रादृता वीरा महाकालसमुद्भवा ॥
विद्याधरार्चिता सिद्धसाध्याराधितपादुका ।
श्रद्धात्मिका पावनी च मोहिनी अचलात्मिका ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"व्रतस्नाता धर्मशीला सिंहासननिवासिनी" - वे व्रतों को पालन करने वाली हैं, धर्मशील हैं, और सिंहासन पर निवास करती हैं।
"वीरभद्रादृता वीरा महाकालसमुद्भवा" - वे वीरभद्र के आदर्श के अनुसार हैं, और महाकाल (शिव) से उत्पन्न हुई हैं।
"विद्याधरार्चिता सिद्धसाध्याराधितपादुका" - वे विद्याधरों द्वारा पूजित होती हैं, सिद्धों और साध्यों द्वारा पूजित होती हैं, और उनकी पादुकाएं भी पूजित होती हैं।
"श्रद्धात्मिका पावनी च मोहिनी अचलात्मिका" - वे श्रद्धा की आत्मा हैं, पावनी (शुद्धि का स्रोत) हैं, मोहिनी (मोहकर्षण करने वाली) हैं, और अचल (स्थिर) आत्मा हैं।

महाद्भुता वारिजाक्षी सिंहवाहनगामिनी ।
मनीषिणी सुधावाणी वीणावादनतत्परा ॥
श्वेतवाहनिषेव्या च लसन्मतिररुन्धती ।
हिरण्याक्षी तथा चैव महानन्दप्रदायिनी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"महाद्भुता वारिजाक्षी सिंहवाहनगामिनी" - वे महान आदर्श हैं, जिनके द्वारा वारिजाक्षी (वारुणी, समुद्र की देवी) की सेवा की जाती है, और जिनकी वाहन सिंह (शेर) है।
"मनीषिणी सुधावाणी वीणावादनतत्परा" - वे मनने वाली हैं, सुधा को पाने की तव में विशेष रूप से रुचि है, और वीणा की मधुर ध्वनि को सुनने के लिए तत्पर हैं।
"श्वेतवाहनिषेव्या च लसन्मतिररुन्धती" - वे श्वेतवाहन (सफेद हाथी) को पूजने में लगी हुई हैं, और लसन (लहसुन) की माला पहनती हैं।
"हिरण्याक्षी तथा चैव महानन्दप्रदायिनी" - वे हिरण्याक्षी (सोने की आंखों वाली) हैं, और महानंद (अत्यधिक आनंद) प्रदान करने वाली हैं।

वसुप्रभा सुमाल्याप्तकन्धरा पङ्कजानना ।
परावरा वरारोहा सहस्रनयनार्चिता ॥
श्रीरूपा श्रीमती श्रेष्ठा शिवनाम्नी शिवप्रिया ।
श्रीप्रदा श्रितकल्याणा श्रीधरार्धशरीरिणी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"वसुप्रभा सुमाल्याप्तकन्धरा पङ्कजानना" - वे वसुप्रभा (अमृत की धारा) हैं, सुमाल्याप्तकन्धरा (कण्ठ में माला पहनने वाली) हैं, और पद्मकानना (कमल के समान विशेष आकृति वाली) हैं।
"परावरा वरारोहा सहस्रनयनार्चिता" - वे परावरा (सर्वों की ऊपरी आदर्शा) हैं, वरारोहिणी (वरों के बीच चढ़ने वाली) हैं, और सहस्रनयनार्चिता (हजारों आंखों से पूजित) हैं।
"श्रीरूपा श्रीमती श्रेष्ठा शिवनाम्नी शिवप्रिया" - वे श्रीरूपा (श्री की रूप) हैं, श्रीमती (धनवान) हैं, श्रेष्ठा (उत्कृष्ट) हैं, शिवनाम्नी (शिव के नाम की पूजा करने वाली) हैं, और शिवप्रिया (शिव की प्रिय) हैं।
"श्रीप्रदा श्रितकल्याणा श्रीधरार्धशरीरिणी" - वे श्रीप्रदा (श्री की दानी) हैं, श्रितकल्याणा (भक्तों के कल्याण की प्राप्ति करने वाली) हैं, और श्रीधरार्धशरीरिणी (श्रीधर के अर्धशरीरी रूप में) हैं।

श्रीकलाऽनन्तदृष्टिश्च ह्यक्षुद्राऽऽरातिसूदनी ।
रक्तबीजनिहन्त्री च दैत्यसङ्गविमर्दिनी ॥
सिंहारूढा सिंहिकास्या दैत्यशोणितपायिनी ।
सुकीर्तिसहिताच्छिन्नसंशया रसवेदिनी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"श्रीकलाऽनन्तदृष्टिश्च ह्यक्षुद्राऽऽरातिसूदनी" - वे श्रीकला (आदिशक्ति का प्रतीक) हैं, और वे अक्षुद्रा (अन्न का अभाव दूर करने वाली) हैं, आरातिसूदनी (दुखों को दूर करने वाली) हैं।
"रक्तबीजनिहन्त्री च दैत्यसङगविमर्दिनी" - वे रक्तबीजों को नष्ट करने वाली हैं, और दैत्यों के संग संघर्ष करने वाली हैं।
"सिंहारूढा सिंहिकास्या दैत्यशोणितपायिनी" - वे सिंह (शेर) के वाहन पर सवार हैं, और दैत्यों के रक्त को नष्ट करने वाली हैं।
"सुकीर्तिसहिताच्छिन्नसंशया रसवेदिनी" - वे सुकीर्ति (अच्छे नाम और यश) के साथ हैं, और संशयों को दूर करने वाली हैं, जो रस (आनंद) को जानने वाली हैं।

गुणाभिरामा नागारिवाहना निर्जरार्चिता ।
नित्योदिता स्वयंज्योतिः स्वर्णकाया प्रकीर्तिता ॥
वज्रदण्डाङ्किता चैव तथाऽमृतसञ्जीविनी ।
वज्रच्छन्ना देवदेवी वरवज्रस्वविग्रहा ॥
 
 इस श्लोक का अर्थ है:

"गुणाभिरामा नागारिवाहना निर्जरार्चिता" - वे गुणों के साथ रमणी हैं, और नाग (सांप) के वाहन पर सवार हैं, निर्जरा (जरा-मरा नहीं होने वाला) हैं, और अर्चिता (पूजने योग्य) हैं।
"नित्योदिता स्वयंज्योतिः स्वर्णकाया प्रकीर्तिता" - वे हमेशा उदित (चमकीली) हैं, स्वयं ज्योति (स्वयं प्रकाशमान) हैं, स्वर्णकाया (सोने के शरीरवाली) हैं, और प्रकीर्तिता (प्रशंसित) हैं।
"वज्रदण्डाङ्किता चैव तथाऽमृतसञ्जीविनी" - वे वज्रदण्ड (वज्र की छड़ी) से आज्ञापित हैं, और वे अमृतसञ्जीविनी (अमृत को प्राप्त करने वाली) हैं।
"वज्रच्छन्ना देवदेवी वरवज्रस्वविग्रहा" - वे वज्रच्छन्ना (वज्र से काटी गई) हैं, देवदेवी (देवों की देवी) हैं, और वरवज्रस्वविग्रहा (वरवज्र के समान शरीर वाली) हैं।

माङ्गल्या मङ्गलात्मा च मालिनी माल्यधारिणी ।
गन्धर्वी तरुणी चान्द्री खड्गायुधधरा तथा ॥
सौदामिनी प्रजानन्दा तथा प्रोक्ता भृगूद्भवा ।
एकानङ्गा च शास्त्रार्थकुशला धर्मचारिणी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"माङ्गल्या मङ्गलात्मा च मालिनी माल्यधारिणी" - वे माङ्गल्या (मांगल्य देवता) हैं, मङ्गलात्मा (मांगल्य के आत्मरूप में) हैं, मालिनी (माला पहनने वाली) हैं, और माल्यधारिणी (माला को धारण करने वाली) हैं।
"गन्धर्वी तरुणी चान्द्री खड्गायुधधरा तथा" - वे गन्धर्वी (गन्धर्वों की रूप में) हैं, तरुणी (युवती) हैं, चान्द्री (चंद्रमा की तरह चमकने वाली) हैं, और खड्गायुधधरा (खड्ग को धारण करने वाली) हैं।
"सौदामिनी प्रजानन्दा तथा प्रोक्ता भृगूद्भवा" - वे सौदामिनी (सौदामिनी नक्षत्र की देवी) हैं, प्रजानंदा (प्रजा का आनंद देने वाली) हैं, और भृगूद्भवा (भृगु ऋषि की पुत्री) हैं।
"एकानङ्गा च शास्त्रार्थकुशला धर्मचारिणी" - वे एकानङ्गा (एकांगी, शिव के प्रति विशेष प्रेम रखने वाली) हैं, शास्त्रार्थकुशला (शास्त्रों के अर्थ को जानने वाली) हैं, और धर्मचारिणी (धर्म का पालन करने वाली) हैं।

धर्मसर्वस्ववाहा च धर्माधर्मविनिश्चया ।
धर्मशक्तिर्धर्ममया धार्मिकानां शिवप्रदा ॥
विधर्मा विश्वधर्मज्ञा धर्मार्थान्तरविग्रहा ।
धर्मवर्ष्मा धर्मपूर्वा धर्मपारङ्गतान्तरा ॥
 
 इस श्लोक का अर्थ है:

"धर्मसर्वस्ववाहा च धर्माधर्मविनिश्चया" - वे धर्मसर्वस्ववाहा (सबकुछ धर्म को अपनाने वाली) हैं, और धर्म और अधर्म के विचार में निश्चित (निर्णय करने वाली) हैं।
"धर्मशक्तिर्धर्ममया धार्मिकानां शिवप्रदा" - वे धर्म की शक्ति (सारे धर्मों की शक्ति) हैं, धर्ममया (धर्मरूपी) हैं, और धार्मिकों को शिव (भगवान शिव) की प्राप्ति में मदद करती हैं और उन्हें शिव की कृपा प्रदान करती हैं।
"विधर्मा विश्वधर्मज्ञा धर्मार्थान्तरविग्रहा" - वे विधर्मा (अधर्म को जानने वाली) हैं, विश्वधर्मज्ञा (सभी धर्मों का ज्ञान रखने वाली) हैं, और धर्म और अर्थ के बीच के विवाद को नियंत्रित करने वाली हैं।
"धर्मवर्ष्मा धर्मपूर्वा धर्मपारङ्गतान्तरा" - वे धर्म का वर्ष्मा (केंद्र), धर्मपूर्वा (धर्म के प्रारंभ से ही पुरानी) हैं, और धर्म को पूर्व से ही परंगत (अधिकारी) हैं।

धर्मोपदेष्ट्री धर्मात्मा धर्मगम्या धराधरा ।
कपालिनी शाकलिनी कलाकलितविग्रहा ॥
सर्वशक्तिविमुक्ता च कर्णिकारधराऽक्षरा।
कंसप्राणहरा चैव युगधर्मधरा तथा ॥
 
 इस श्लोक का अर्थ है:

"धर्मोपदेष्ट्री धर्मात्मा धर्मगम्या धराधरा" - वे धर्म का उपदेष्टा (शिक्षक) हैं, धर्मात्मा (धर्म के आत्मरूप में) हैं, धर्म को प्राप्त करने योग्य हैं, और धराधरा (धरा के सारे भार को धारण करने वाली) हैं।
"कपालिनी शाकलिनी कलाकलितविग्रहा" - वे कपालिनी (कपाल धारण करने वाली) हैं, शाकलिनी (शाकल की रूप में) हैं, और कलाकलितविग्रहा (कला के रूपों में विभूषित रहने वाली) हैं।
"सर्वशक्तिविमुक्ता च कर्णिकारधराऽक्षरा" - वे सर्वशक्तिविमुक्ता (सभी शक्तियों से मुक्त) हैं, कर्णिकारधरा (कर्णिकार को धारण करने वाली) हैं, और अक्षरा (अक्षर, अविनाशी) हैं।
"कंसप्राणहरा चैव युगधर्मधरा तथा" - वे कंस प्राण (कंस राक्षस की प्राण) को हरने वाली हैं, और युगधर्म (युग के धर्म का पालन करने वाली) और धराधरा हैं।

युगप्रवर्तिका प्रोक्ता त्रिसन्ध्या ध्येयविग्रहा ।
स्वर्गापवर्गदात्री च तथा प्रत्यक्षदेवता ॥
आदित्या दिव्यगन्धा च दिवाकरनिभप्रभा ।
पद्मासनगता प्रोक्ता खड्गबाणशरासना ॥
 
 इस श्लोक का अर्थ है:

"युगप्रवर्तिका प्रोक्ता त्रिसन्ध्या ध्येयविग्रहा" - वे युगों को प्रवर्तित (चलाने वाली) कही गई हैं, त्रिसन्ध्या में ध्येय (ध्यान के योग्य विग्रह) हैं।
"स्वर्गापवर्गदात्री च तथा प्रत्यक्षदेवता" - वे स्वर्ग और मोक्ष की प्रदाता हैं, और साक्षात देवी भगवान की प्रत्यक्ष (दिखाई देने वाली) देवता हैं।
"आदित्या दिव्यगन्धा च दिवाकरनिभप्रभा" - वे आदित्या (सूर्य के समक्ष आदित्य रूपी) हैं, और उनकी प्रकृति दिव्यगन्ध (दिव्य गंध की) सी है, और उनकी प्रकाश दिवाकर (सूर्य की तरह) है।
"पद्मासनगता प्रोक्ता खड्गबाणशरासना" - वे पद्मासन में बैठी हुई हैं और खड्ग, बाण, और शर जैसे आयुधों को धारण करती हैं।

शिष्टा विशिष्टा शिष्टेष्टा शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता ।
शतरूपा शतावर्ता वितता रासमोदिनी ॥
सूर्येन्दुनेत्रा प्रद्युम्नजननी सुष्ठुमायिनी ।
सूर्यान्तरस्थिता चैव सत्प्रतिष्ठतविग्रहा ॥
 
 इस श्लोक का अर्थ है:

"शिष्टा विशिष्टा शिष्टेष्टा शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता" - वे शिष्टा (सज्जनों के बीच प्रसिद्ध) हैं, विशिष्टा (विशेष रूप से अत्यंत प्रमुख) हैं, शिष्टेष्टा (सज्जनों के उत्तम आदरणीय) हैं, और शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता (सज्जनों के उत्तम पूज्य) हैं।
"शतरूपा शतावर्ता वितता रासमोदिनी" - वे शतरूपा (शत रूपों की धारणा करने वाली) हैं, शतावर्ता (शत युगों में विचरणे वाली) हैं, और रासमोदिनी (रासलीला का आनंद लेने वाली) हैं।
"सूर्येन्दुनेत्रा प्रद्युम्नजननी सुष्ठुमायिनी" - वे सूर्य और चंद्रमा के नेत्र (आँखों) वाली हैं, प्रद्युम्न की माता (जननी) हैं, और सुष्ठुमा (सुखमयी) हैं।
"सूर्यान्तरस्थिता चैव सत्प्रतिष्ठतविग्रहा" - वे सूर्य के अंदरस्थिता हैं और सत्प्रतिष्ठा के विग्रह (रूप) हैं।

निवृत्ता प्रोच्यते ज्ञानपारगा पर्वतात्मजा ।
कात्यायनी चण्डिका च चण्डी हैमवती तथा ॥
दाक्षायणी सती चैव भवानी सर्वमङ्गला ।
धूम्रलोचनहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"निवृत्ता प्रोच्यते" - वे निवृत्ता नामकी हैं, "ज्ञानपारगा" - ज्ञान की परम आवश्यकता हैं, "पर्वतात्मजा" - पर्वतराज हिमाचल की पुत्री हैं, "कात्यायनी" - कात्यायनी हैं, "चण्डिका" - चण्डिका हैं, "चण्डी" - चण्डी हैं, "हैमवती" - हिमाचल की बेटा हैं, "दाक्षायणी" - दाक्षायणी हैं, "सती" - सती हैं, "भवानी" - भवानी हैं, "सर्वमङ्गला" - सभी मङ्गलों का कारण हैं, "धूम्रलोचनहन्त्री" - धूम्रलोचन का वध करने वाली हैं, "चण्डमुण्डविनाशिनी" - चण्डमुण्ड का विनाश करने वाली हैं।

योगनिद्रा योगभद्रा समुद्रतनया तथा ।
देवप्रियङ्करी शुद्धा भक्तभक्तिप्रवर्धिनी ॥
त्रिणेत्रा चन्द्रमुकुटा प्रमथार्चितपादुका ।
अर्जुनाभीष्टदात्री च पाण्डवप्रियकारिणी ॥
 
इस श्लोक का अर्थ है:

"योगनिद्रा" - योगनिद्रा हैं, "योगभद्रा" - योग का भलाई देने वाली हैं, "समुद्रतनया" - समुद्र की पुत्री हैं, "देवप्रियङ्करी" - देवताओं की प्रिय हैं, "शुद्धा" - शुद्ध हैं, "भक्तभक्तिप्रवर्धिनी" - भक्तों की भक्ति को बढ़ाने वाली हैं। "त्रिणेत्रा" - तीन आँखों वाली हैं, "चन्द्रमुकुटा" - चंद्रमुकुट पहनती हैं, "प्रमथार्चितपादुका" - प्रमथ देवताओं की पूजा करती हैं, "अर्जुनाभीष्टदात्री" - अर्जुन के इच्छित वरदान देने वाली हैं, "पाण्डवप्रियकारिणी" - पाण्डवों के प्रिय कारणी हैं।
 
कुमारलालनासक्ता हरबाहूपधानिका ।
विघ्नेशजननी भक्तविघ्नस्तोमप्रहारिणी ॥
सुस्मितेन्दुमुखी नम्या जयाप्रियसखी तथा ।
अनादिनिधना प्रेष्ठा चित्रमाल्यानुलेपना ॥


इस श्लोक का अर्थ है:

"कुमारलालनासक्ता" - कुमारलाल के बिना निरंतर खिलवाड़ा करने वाली हैं, "हरबाहूपधानिका" - हरबाहूपधानि हैं, "विघ्नेशजननी" - विघ्नेश की माता हैं, "भक्तविघ्नस्तोमप्रहारिणी" - भक्तों के विघ्नों को हरने वाली और विघ्नस्तोत्र का प्रहार करने वाली हैं, "सुस्मितेन्दुमुखी" - सुंदर हँसी वाली हैं, "नम्या" - नमनीय हैं, "जयाप्रियसखी" - जया की प्रिय सखी हैं, "अनादिनिधना" - आदि और अनंत हैं, "प्रेष्ठा" - प्रिय हैं, "चित्रमाल्यानुलेपना" - चित्र माल्या का अनुलेपन करने वाली हैं।
 
कोटिचन्द्रप्रतीकाशा कूटजालप्रमाथिनी ।
कृत्याप्रहारिणी चैव मारणोच्चाटनी तथा ॥
सुरासुरप्रवन्द्याङ्घ्रिर्मोहघ्नी ज्ञानदायिनी ।
षड्वैरिनिग्रहकरी वैरिविद्राविणी तथा ॥

इस श्लोक का अर्थ है:

"कोटिचन्द्रप्रतीकाशा" - लाखों चंद्रमाओं की तरह चमकने वाली हैं, "कूटजालप्रमाथिनी" - कूटजाल के रक्षक हैं, "कृत्याप्रहारिणी" - कार्यों की उपेक्षा नहीं करने वाली हैं, और दुष्टों को प्रहार करने वाली हैं, "मारणोच्चाटनी" - मरने और उच्चाटने वाली हैं, "सुरासुरप्रवन्द्याङ्घ्रिर्मोहघ्नी" - देवताओं और आसुरों के प्रणामी चरणों को छूकर मोह दूर करने वाली हैं, "ज्ञानदायिनी" - ज्ञान की प्राप्ति कराने वाली हैं, "षड्वैरिनिग्रहकरी" - छः दुश्मनों को निग्रह करने वाली हैं, "वैरिविद्राविणी" - वैरियों को भगाने वाली हैं।
 
भूतसेव्या भूतदात्री भूतपीडाविमर्दिका ।
नारदस्तुतचारित्रा वरदेशा वरप्रदा ॥
वामदेवस्तुता चैव कामदा सोमशेखरा ।
दिक्पालसेविता भव्या भामिनी भावदायिनी ॥

इस श्लोक का अर्थ है:

संपूर्ण पञ्चदेव पूजन विधि,मंत्र

"भूतसेव्या" - भूतों की पूज्या, "भूतदात्री" - भूतों को देने वाली, "भूतपीडाविमर्दिका" - भूत पीड़ा को नष्ट करने वाली, "नारदस्तुतचारित्रा" - नारद ऋषि द्वारा स्तुत, "वरदेशा" - वरदेश की निवासी, "वरप्रदा" - वरदेने वाली, "वामदेवस्तुता" - वामदेव ऋषि द्वारा स्तुत, "कामदा" - कामनाओं को पूरा करने वाली, "सोमशेखरा" - सोमशेखर भगवान की पत्नी, "दिक्पालसेविता" - दिक्पालों की पूज्य, "भव्या" - भव्य, "भामिनी" - भामिनी (महिला श्रीरुपा), "भावदायिनी" - भावना प्रदान करने वाली।

स्त्रीसौभाग्यप्रदात्री च भोगदा रोगनाशिनी ।
व्योमगा भूमिगा चैव मुनिपूज्यपदाम्बुजा ।
वनदुर्गा च दुर्बोधा महादुर्गा प्रकीर्तिता ॥
 
इस श्लोक में कहा गया है कि माँ दुर्गा को स्त्रियों के सौभाग्य को प्रदान करने वाली, भोगों की प्राप्ति करवाने वाली, रोगों को नष्ट करने वाली, आकाश में व्याप्त होने वाली, पृथ्वी को प्राप्त करने वाली, मुनियों द्वारा पूज्य मानी जाने वाली, वनों में विराजमान, दुर्बुद्धि को दूर करने वाली, और महादुर्गा कही जाती है।
 
Shri-Durga-Sahastranam-Stotram-श्री-दुर्गा-सहस्त्रनाम-स्तोत्रम्-अर्थ-साहित

 

फलश्रुति

इतीदं कीर्तिदं भद्र दुर्गानामसहस्रकम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत् ॥
ग्रहभूतपिशाचादिपीडा नश्यत्यसंशयम् ।
बालग्रहादिपीडायाः शान्तिर्भवति कीर्तनात् ॥
 
 इस मंत्र का अर्थ है:

"इस भद्र दुर्गानाम सहस्रनाम स्तोत्र का नित्य त्रिसंध्या में पाठ करने वाले व्यक्ति के लिए लक्ष्मी स्थिर रहती है। बिना किसी संदेह के, ग्रह, भूत, पिशाच, और अन्य पीड़ाएँ नष्ट हो जाती हैं। बच्चों के ग्रहों और पीड़ाओं से होने वाली परेशानियों का शांति मिलता है, यह स्तोत्र की चौपाईयों की रचना से होता है।"

मारिकादिमहारोगे पठतां सौख्यदं नृणाम् ।
व्यवहारे च जयदं शत्रुबाधानिवारकम् ॥
दम्पत्योः कलहे प्राप्ते मिथः प्रेमाभिवर्धकम् ।
आयुरारोग्यदं पुंसां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥

इस श्लोक में कहा गया है कि माँ दुर्गा के सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से महारोगों का नाश होता है और लोगों को स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र व्यवहार में जीत दिलाने में भी सहायक होता है और शत्रुओं के प्रति रक्षा करने में भी मदद करता है। दम्पत्यों के बीच जब कलह होती है, तो यह स्तोत्र प्रेम को बढ़ावा देता है और जीवन में खुशियों को बढ़ावा देता है। यह भी बताया गया है कि यह स्तोत्र व्यक्ति को दीर्घायु और आरोग्य प्रदान करता है, और सम्पूर्ण संपत्ति का प्रदान करने वाला है।
 
विद्याभिवर्धकं नित्यं पठतामर्थसाधकम् ।
शुभदं शुभकार्येषु पठतां शृणुतामपि ॥
यः पूजयति दुर्गां तां दुर्गानामसहस्रकैः ।
पुष्पैः कुङ्कुमसम्मिश्रैः स तु यत्काङ्क्षते हृदि ॥
 
 इस श्लोक में कहा गया है कि माँ दुर्गा के सहस्त्रनाम स्तोत्र का नित्य पाठ करने से विद्या की वृद्धि होती है और इसके साथ ही समस्त साधनाओं का सिद्ध होने में सहायक होता है। यह स्तोत्र शुभ फल प्रदान करने में भी सहायक होता है और शुभ कार्यों के लिए भी पठन किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति माँ दुर्गा की पूजा दुर्गा अष्टोत्तर शतनामावली के साथ करता है और उन्हें सुपुष्प, कुङ्कुम आदि से अर्चना करता है, तो माँ दुर्गा वह सब कुछ जो वह चाहता है, उसके हृदय में प्रसन्न करती हैं।

तत्सर्वं समवाप्नोति नास्ति नास्त्यत्र संशयः ।
यन्मुखे ध्रियते नित्यं दुर्गानामसहस्रकम् ॥
किं तस्येतरमन्त्रौघैः कार्यं धन्यतमस्य हि ।
दुर्गानामसहस्रस्य पुस्तकं यद्गृहे भवेत् ॥
 
 इस श्लोक में कहा गया है कि माँ दुर्गा के सहस्त्रनाम स्तोत्र का नित्य पाठ करने से सभी अर्थ (सांसारिक और आध्यात्मिक) को प्राप्त किया जा सकता है, और इसमें कोई संशय नहीं होता। इस स्तोत्र का पठन अत्यंत पुण्यकारी है और यदि कोई व्यक्ति इसे नित्य अथवा योग्य व्रत के साथ पढ़ता है, तो उसके लिए यह सबसे धन्यकर्म होता है। माँ दुर्गा के सहस्त्रनाम स्तोत्र को एक पुस्तक के रूप में गृह में रखने के अर्थ में भी कहा गया है कि इसका पठन बहुत महत्वपूर्ण होता है।

न तत्र ग्रहभूतादिबाधा स्यान्मङ्गलास्पदे ।
तद्गृहं पुण्यदं क्षेत्रं देवीसान्निध्यकारकम् ॥
एतस्य स्तोत्रमुख्यस्य पाठकः श्रेष्ठमन्त्रवित् ।
देवतायाः प्रसादेन सर्वपूज्यः सुखी भवेत् ॥
 
 इस श्लोक में कहा गया है कि माँ दुर्गा के सहस्त्रनाम स्तोत्र का पठन करते समय वहाँ कोई भी ग्रह, भूत, या किसी प्रकार की कठिनाइयाँ नहीं आ सकती हैं, और यह स्थान शुभ फल प्रदान करने वाला होता है। इस गृह को "पुण्यदं क्षेत्र" कहा गया है, और यह वह स्थान होता है जहाँ माँ दुर्गा की सानिध्यकारकता होती है। इसके अलावा, इस श्लोक में यह भी कहा गया है कि माँ दुर्गा के सहस्त्रनाम स्तोत्र का मुख्य पाठक वह व्यक्ति होता है जिसे यह स्तोत्रमंत्र का अध्ययन करने का अधिकार होता है, और माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है, जिससे वह सभी देवताओं के प्रसाद से युक्त होकर सुखी रहता है।

इत्येतन्नगराजेन कीर्तितं मुनिसत्तम ।
गुह्याद्गुह्यतरं स्तोत्रं त्वयि स्नेहात् प्रकीर्तितम् ॥
भक्ताय श्रद्धधानाय केवलं कीर्त्यतामिदम् ।
हृदि धारय नित्यं त्वं देव्यनुग्रहसाधकम् ॥
 
इस श्लोक में कहा गया है कि यह स्तोत्र नगराज द्वारा कीर्तित है, और यह गुह्यतम स्तोत्र है, जिसका प्रकीर्तन तुम्हारे स्नेह से किया गया है। इस स्तोत्र को भक्ति और श्रद्धा से पढ़ने वाले भक्तों के लिए ही कीर्तन करने का योग्य है, और यह आपको देवी की कृपा का अनुभव करने में मदद करेगा। इसलिए, इस स्तोत्र को हमेशा अपने हृदय में धारण करें और देवी के आनुग्रह की प्राप्ति के लिए इसे नित्य पढ़ें।

॥इति श्रीस्कंदपुराणे स्कंदनारदसंवादे दुर्गासहस्त्रनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम ॥
 

श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् के  प्रमुख प्रश्न और उनके उत्तर:


1. प्रथम प्रश्न: श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र क्या है?

उत्तर: श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र एक पूजन पाठ है जिसमें भगवती दुर्गा के 1000 नामों की महिमा गुणगान की गई है.

2. दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का महत्व क्या है?

उत्तर: इस स्तोत्र का पाठ करने से माता दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और सुख-शांति की प्राप्ति होती है.

3. कैसे श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाता है?

उत्तर: यह स्तोत्र पूजा के समय या भक्ति भाव से पढ़ा जा सकता है. ध्यान और श्रद्धा के साथ पाठ करना चाहिए.

4. कितने बार दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाता है?

उत्तर: यह आपकी भक्ति और समय के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है, लेकिन अधिकांश लोग इसे दैनिक या नित्य पाठ करते हैं.

5. दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र के क्या लाभ हैं?

उत्तर: इस स्तोत्र का पाठ करने से माता दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और भक्त को रक्षा की देवी माना जाता है. यह सुख, समृद्धि, और सांत्वना प्रदान करता है.

6. क्या इस स्तोत्र को किसी विशेष अवस्था में ही पढ़ा जा सकता है?

उत्तर: नहीं, आप इस स्तोत्र को किसी भी सामय या अवस्था में पढ़ सकते हैं, लेकिन यह पूजा और भक्ति के साथ पढ़ने के लिए अधिक उपयुक्त होता है.

7. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से कोई नियम और आवश्यकताएँ हैं?

उत्तर: इसके पाठ के लिए कोई विशेष नियम नहीं हैं, लेकिन पवित्रता और आदर के साथ पढ़ना बेहद महत्वपूर्ण है.

8. दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का विचार और उपासना कैसे करें?

उत्तर: विचार और उपासना के लिए ध्यान, मनन, और जप का अभ्यास किया जा सकता है. इसके बाद, दुर्गा माता के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण का आदर्श दिखाना चाहिए.

9. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से शत्रुओं पर प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: जी हां, दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र के पाठ से शत्रुओं पर प्रभाव पड़ सकता है और उन्हें परास्त करने में मदद कर सकता है.

10. इस स्तोत्र का पाठ करने से कौन-कौन से समस्याओं का समाधान हो सकता है?

उत्तर: इस स्तोत्र के पाठ से सार्वजनिक समस्याओं के साथ-साथ व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान भी हो सकता है, जैसे कि स्वास्थ्य, धन, और परिवारिक सुख-शांति की प्राप्ति.

11. इस स्तोत्र को किस तरह की भक्ति में पढ़ा जा सकता है?

उत्तर: यह स्तोत्र ध्यान, जप, और आराधना के रूप में पढ़ा जा सकता है. आप इसे अपनी अधिकारिक भक्ति विधि के अनुसार पढ़ सकते हैं.

12. इस स्तोत्र को पढ़ने के लिए किसी विशेष समय या दिन का चयन करना चाहिए?

उत्तर: दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र को दुर्गा अष्टमी, नवरात्रि, और माता के पूजा उत्सवों में विशेष रूप से पढ़ा जाता है, लेकिन आप इसे अन्य समय भी पढ़ सकते हैं.

13. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से माता की कृपा प्राप्त होती है?

उत्तर: हां, दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से माता की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है.

14. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से मनोबल और आत्मविश्वास में सुधार हो सकता है?

उत्तर: जी हां, यह स्तोत्र मानसिक शक्ति को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है और आत्मविश्वास को मजबूत कर सकता है.

15. क्या इस स्तोत्र को पढ़ने से साधक को आत्मा का साक्षात्कार हो सकता है?

उत्तर: यह स्तोत्र भक्ति में वृद्धि कर सकता है और आत्मा का साक्षात्कार में मदद कर सकता है, लेकिन यह आपके साधना और ध्यान के साथ होता है।

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