नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, हम भक्ति और साधना के माध्यम से माँ दुर्गा के दिव्य स्वरूप को समझने और उनके शरण में समर्पित होने का अद्वितीय अवसर प्राप्त करते हैं। इस समय, हम उनकी अद्भुत महिमा का गुणगान करते हैं, और "श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" का पाठ करके उनकी शक्ति का अनुभव करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम जानेंगे कि श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र क्या (Durga Sahastranam Stotram)है, इसका महत्व क्या है, और इसके पाठ के माध्यम से हम कैसे अपने आध्यात्मिक और भौतिक जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
Shri Durga Sahastranam Stotram:श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम्
"श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" (Durga Sahastranam Stotram) केवल नामों का संग्रह नहीं है बल्कि देवी के आशीर्वाद और कृपा का एक शक्तिशाली आह्वान है। यह अपने रचनाकारों की गहन भक्ति का प्रमाण है और सदियों से अनगिनत भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह दिव्य भजन आशा की किरण, शक्ति का स्रोत और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली सर्वोच्च स्त्री ऊर्जा से जुड़ने के साधन के रूप में कार्य करता है।
निम्नलिखित अनुभागों में, हम "श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" (Durga Sahastranam Stotram) के ऐतिहासिक संदर्भ में गहराई से उतरेंगे, इसकी प्राचीन जड़ों और पौराणिक प्रासंगिकता की खोज करेंगे। हम एक हजार नामों के पीछे की शक्ति को समझते हुए, इस भजन की संरचना और महत्व को भी समझेंगे। इसके अतिरिक्त, हम भक्ति और आध्यात्मिकता के बीच गहरे संबंध, इस भजन के जाप के परिवर्तनकारी लाभों और इससे जुड़े अनुष्ठानों और प्रथाओं का पता लगाएंगे। अंत में, हम "श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र" के वैश्विक प्रभाव और समकालीन प्रासंगिकता की जांच करेंगे, जिसका समापन आधुनिक दुनिया में इसके स्थायी महत्व पर विचार के साथ होगा।
Importance of Shri Durga Sahastranam Stotra:श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का महत्व
2. आध्यात्मिक संबंध: स्तोत्र का जाप देवी दुर्गा द्वारा अवतरित दिव्य ऊर्जा के साथ एक गहरा आध्यात्मिक संबंध स्थापित करता है।
3. सुरक्षा: री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् का नियमित रूप से पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जाओं और प्रतिकूलताओं से सुरक्षा मिल सकती है।
4. आंतरिक शक्ति: यह आंतरिक शक्ति के स्रोत के रूप में कार्य करता है, चुनौतीपूर्ण समय के दौरान साहस और लचीलापन प्रदान करता है।
5. दैनिक अनुष्ठान: कई हिंदू सौहार्दपूर्ण दिन के लिए देवी का आशीर्वाद पाने के लिए इस स्तोत्र के पाठ को अपने दैनिक आध्यात्मिक अनुष्ठानों में शामिल करते हैं।
6. त्यौहार का महत्व: नवरात्रि जैसे त्योहारों के दौरान, स्तोत्र का सामूहिक रूप से जाप किया जाता है, जिससे भक्ति और उत्सव का माहौल बनता है।
7. नकारात्मकता को दूर करने वाला: ऐसा माना जाता है कि भक्तिपूर्वक इसका जाप करने पर इसमें नकारात्मकता को दूर करने और बुरी शक्तियों को दूर करने की शक्ति होती है।
8. ध्यान सहायता: स्तोत्र का उपयोग ध्यान सहायता के रूप में किया जाता है, जो अभ्यासकर्ताओं को ध्यान की स्थिति, आंतरिक शांति और मानसिक स्पष्टता प्राप्त करने में मदद करता है।
9. प्राचीन परंपरा: यह स्तोत्र हिंदू परंपराओं की समृद्ध परंपरा का एक हिस्सा है और पीढ़ियों से चला आ रहा है।
10. आध्यात्मिक विकास: श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ आध्यात्मिक विकास के मार्ग के रूप में देखा जाता है, जो आध्यात्मिक यात्रा पर सांत्वना और मार्गदर्शन प्रदान करता है।
श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से लाभ : Benefits of reciting Shri Durga Sahastranam Stotra
1. दिव्य आशीर्वाद: स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करने से देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे साधक को उनकी दिव्य कृपा प्राप्त होती है।
2. नकारात्मकता से सुरक्षा: माना जाता है कि स्तोत्र पाठ करने वाले के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाता है, जो नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी ताकतों को दूर रखता है।
3. आध्यात्मिक विकास: नियमित पाठ आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है, व्यक्ति का परमात्मा के साथ संबंध गहरा करता है और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाता है।
4. आंतरिक शांति: हजार नामों का जाप करने से ध्यान की स्थिति बनती है, जिससे आंतरिक शांति, मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन को बढ़ावा मिलता है।
5. साहस और लचीलापन: चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, स्तोत्र का पाठ लचीलेपन के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए आंतरिक शक्ति और साहस प्रदान करता है।
6. बाधाओं को दूर करना: भक्तों का मानना है कि स्तोत्र किसी के जीवन पथ से बाधाओं और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है।
7. सकारात्मक ऊर्जा: यह अभ्यासकर्ता को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है, दैनिक जीवन में कल्याण और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देता है।
8. शुभ शुरुआत: कई लोग अपने दिन की शुरुआत इस स्तोत्र के पाठ से करते हैं, शुभ शुरुआत और आशीर्वाद से भरे दिन की तलाश में।
9. उन्नत भक्ति: यह अभ्यास देवी दुर्गा द्वारा प्रस्तुत दिव्य स्त्री ऊर्जा के प्रति व्यक्ति की भक्ति और संबंध को गहरा करता है।
10. सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व: यह सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है, विभिन्न हिंदू अनुष्ठानों, त्योहारों और समारोहों में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
11. उद्देश्य की भावना: हजार नामों का पाठ करने से किसी की आध्यात्मिक यात्रा में उद्देश्य और स्पष्टता की भावना पैदा होती है।
12. स्त्री ऊर्जा का उत्सव: यह लैंगिक समानता और सम्मान को बढ़ावा देते हुए, दिव्य स्त्री की शक्ति और अनुग्रह का सम्मान और जश्न मनाता है।
13. तनाव में कमी: नियमित जप से तनाव और चिंता कम हो सकती है, जिससे समग्र मानसिक और भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
14. सामुदायिक और अनुष्ठान बंधन: त्योहारों के दौरान समूह पाठ में भाग लेने से भक्तों के बीच समुदाय और अनुष्ठान बंधन की भावना को बढ़ावा मिलता है।
15. आत्म-खोज का मार्ग: कई लोगों के लिए, स्तोत्र आत्म-खोज के मार्ग के रूप में कार्य करता है, जिससे व्यक्तियों को अपनी आंतरिक आध्यात्मिकता और परमात्मा से संबंध का पता लगाने की अनुमति मिलती है
Method of chanting Shri Durga Sahastranam Stotram Mantra : श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् मंत्र जाप करने का तरीका
1. तैयारी:अपने अभ्यास के लिए एक शांत और साफ जगह ढूंढें, आदर्श रूप से अपने पूजा स्थल या अपने घर के एक शांतिपूर्ण कोने में।आरामदायक मुद्रा में बैठें,। पवित्रता और भक्ति के प्रतीक के रूप में एक दीया या धूप जलाएं।
2. अपना इरादा निर्धारित करें: शुरू करने से पहले, अपने पाठ के लिए एक स्पष्ट इरादा निर्धारित करें। चाहे वह सुरक्षा, आध्यात्मिक विकास, या आंतरिक शांति की तलाश हो, एक विशिष्ट लक्ष्य रखने से आपके अभ्यास की प्रभावशीलता बढ़ जाएगी।
3. एकाग्रता और फोकस: अपने मन को शांत करने और अपने विचारों को केंद्रित करने के लिए अपनी आंखें बंद करें और कुछ गहरी सांसें लें। यदि आपके पास देवी दुर्गा की छवि या मूर्ति है तो उस पर ध्यान केंद्रित करें, या बस अपने मन की आंखों में उनके दिव्य रूप की कल्पना करें।
4. जप प्रारंभ करें:शुरुआत दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र मंत्र के जाप से करें.प्रत्येक नाम का जप धीरेधीरे और स्पष्ट रूप से, पूरी श्रद्धा और एकाग्रता के साथ करें।गिनती बनाए रखने के लिए आप माला (प्रार्थना माला) का उपयोग कर सकते हैं, मंत्र की प्रत्येक पुनरावृत्ति के लिए एक मनका घुमा सकते हैं।
5. उच्चारण:सुनिश्चित करें कि आप प्रत्येक नाम का सही उच्चारण करें। यदि आप सही उच्चारण के बारे में अनिश्चित हैं, तो किसी जानकार स्रोत या आध्यात्मिक शिक्षक से मार्गदर्शन लेने पर विचार करें।
6. सहस्त्र नाम का जाप करें:श्रद्धा और ईमानदारी से सहस्त्र नामों का पाठ करते रहें। दोहराव में समय लग सकता है, इसलिए धैर्य रखें और ध्यान केंद्रित रखें।
7. स्थिर गति बनाए रखें:स्थिर गति से जप करने से एकाग्रता बनाए रखने में मदद मिलती है और आप मंत्र के कंपन में डूब जाते हैं।
8. प्रसाद और भक्ति:आप अपनी भक्ति और कृतज्ञता के संकेत के रूप में देवी दुर्गा की छवि पर फूल, फल या अन्य प्रतीकात्मक प्रसाद चढ़ा सकते हैं।
9. समापन और आभार: सभी हजार नामों का पाठ पूरा करने के बाद, देवी के आशीर्वाद के लिए उनका आभार व्यक्त करने के लिए कुछ समय निकालें।अपने अभ्यास की शुरुआत में आपने जो इरादा निर्धारित किया था उस पर विचार करें।
10. दैनिक अभ्यास: पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए, श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र के जाप को अपने दैनिक आध्यात्मिक अभ्यास का हिस्सा बनाने पर विचार करें।
11। समापन:कुछ क्षणों के मौन और चिंतन के साथ अपना अभ्यास समाप्त करें।श्रद्धा से अपना सिर झुकाएं और देवी दुर्गा को उनकी दिव्य उपस्थिति के लिए धन्यवाद दें।
12. नियमितता और भक्ति: इस अभ्यास के आध्यात्मिक लाभों का अनुभव करने के लिए निरंतरता और हार्दिक भक्ति महत्वपूर्ण है।
श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्र मंत्र का जाप परमात्मा से जुड़ने और देवी दुर्गा के आशीर्वाद और सुरक्षा का उपयोग करने का एक शक्तिशाली तरीका है। यह एक अभ्यास है जो आपके जीवन में शांति, शक्ति और आध्यात्मिक विकास ला सकता है।
Shri Durga Sahastranam Stotram : श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम् अर्थ साहित
ॐ अस्य श्री दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्र महामंत्रस्य
हिमवान् ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः दुर्गाभगवती देवता
श्रीदुर्गाप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
यह मंत्र श्री दुर्गा के सहस्रनाम स्तोत्र का महामंत्र है। इसके ऋषि हैं हिमवान, छंद है अनुष्टुप, और देवता है दुर्गा भगवती। इस मंत्र का जप करते समय, श्री दुर्गा की कृपा प्राप्त करने और उनके प्रसाद को प्राप्त करने के लिए इसका विनियोग किया जाता है।
ध्यानम्
ॐ ह्रीं कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥
। श्री दुर्गायै नमः।
शान्ता माहेश्वरी नित्या शाश्वता परमा क्षमा ॥
अनादिरव्यया शुद्धा सर्वज्ञा सर्वगाऽचला ॥
एकानेकविभागस्था मायातीता सुनिर्मला ।
महामाहेश्वरी सत्या महादेवी निरञ्जना ॥
काष्ठा सर्वान्तरस्थाऽपि चिच्छक्तिश्चात्रिलालिता ।
सर्वा सर्वात्मिका विश्वा ज्योतीरूपाऽक्षराऽमृता ॥
व्योममूर्तिर्व्योमसंस्था व्योमधाराऽच्युताऽतुला ॥
अनादिनिधनाऽमोघा कारणात्मकलाकुला ।
ऋतुप्रथमजाऽनाभिरमृतात्मसमाश्रया ॥
प्राणेश्वरी प्राणरूपा प्रधानपुरुषेश्वरी ॥
सर्वशक्तिकलाऽकामा महिषेष्टविनाशिनी ।
सर्वकार्यनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरेश्वरी ॥
अङ्गदादिधरा चैव तथा मुकुटधारिणी ।
सनातनी महानन्दाऽऽकाशयोनिस्तथेच्यते ॥
चित्प्रकाशस्वरूपा च महायोगेश्वरेश्वरी ।
महामाया सदुष्पारा मूलप्रकृतिरीशिका ॥
संसारयोनिः सकला सर्वशक्तिसमुद्भवा ।
संसारपारा दुर्वारा दुर्निरीक्षा दुरासदा ॥
प्राणशक्तिश्च सेव्या च योगिनी परमाकला ।
महाविभूतिर्दुर्दर्शा मूलप्रकृतिसम्भवा ॥
अनाद्यनन्तविभवा परार्था पुरुषारणिः ।
सर्गस्थित्यन्तकृच्चैव सुदुर्वाच्या दुरत्यया ॥
शब्दगम्या शब्दमाया शब्दाख्यानन्दविग्रहा ।
प्रधानपुरुषातीता प्रधानपुरुषात्मिका ॥
पुराणी चिन्मया पुंसामिष्टदा पुष्टिरूपिणी ।
पूतान्तरस्था कूटस्था महापुरुषसंज्ञिता ॥
जन्ममृत्युजरातीता सर्वशक्तिस्वरूपिणी ।
वाञ्छाप्रदाऽनवच्छिन्नप्रधानानुप्रवेशिनी ॥
मलापवर्जिताऽऽनादिमाया त्रितयतत्त्विका ॥
प्रीतिश्च प्रकृतिश्चैव गुहावासा तथोच्यते ।
महामाया नगोत्पन्ना तामसी च ध्रुवा तथा ॥"
इस श्लोक का अर्थ है कि क्षेत्रज्ञ, जो सभी क्षेत्रों को जानने वाला है, अचिन्त्य शक्तियों से युक्त होता है और वह अव्यक्त के लक्षण होते हैं। वह मल से मुक्त होता है और वादियों के अनादि माया के त्रितय तत्त्व से युक्त होता है। प्रीति और प्रकृति वहीं गुहावासिनी कहलाती हैं। महामाया और तामसी माया भी वहीं हैं, और ध्रुव तत्त्व भी वहीं हैं।
प्रोच्यते कार्यजननी नित्यप्रसवधर्मिणी ॥
सर्गप्रलयमुक्ता च सृष्टिस्थित्यन्तधर्मिणी ।
ब्रह्मगर्भा चतुर्विंशस्वरूपा पद्मवासिनी ॥
"व्यक्त और अव्यक्त स्वरूप वाली, जिनका रंग रक्त और शुक्ल है, और जो अकारण कहलाती है, वह कार्य की जननी मानी जाती है, जो हमेशा प्रसव धारण करने वाली है। वह सर्ग (सृष्टि), प्रलय (संहार), और मुक्ति (ब्रह्म के साथ मिलन) से मुक्त है, और वह सृष्टि, स्थिति, और संहार के सभी धर्मों को धारण करने वाली है। वह चौबीस स्वरूपों में से एक ब्रह्मगर्भा कहलाती है, और पद्मवासिनी है।"
अच्युताह्लादिका विद्युद्ब्रह्मयोनिर्महालया ।
महालक्ष्मी समुद्भावभावितात्मामहेश्वरी ॥
महाविमानमध्यस्था महानिद्रा सकौतुका ।
सर्वार्थधारिणी सूक्ष्मा ह्यविद्धा परमार्थदा ॥
अनन्तरूपाऽनन्तार्था तथा पुरुषमोहिनी ।
अनेकानेकहस्ता च कालत्रयविवर्जिता ॥
ब्रह्मजन्मा हरप्रीता मतिर्ब्रह्मशिवात्मिका ।
ब्रह्मेशविष्णुसम्पूज्या ब्रह्माख्या ब्रह्मसंज्ञिता ॥
"अनन्त रूप और अनन्त अर्थ की, पुरुष को मोहित करने वाली, अनगिनत हाथों वाली, और काल के तीनों अवस्थाओं से विरक्त होने वाली है। वह ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के रूप में जन्मती है, और उसकी प्रेम ब्रह्म, शिव, और आत्मा में होती है। वह ब्रह्म, ईश्वर, और विष्णु द्वारा पूज्य होती है, और वह ब्रह्म और अक्षर के रूप में जानी जाती है।"
व्यक्ता प्रथमजा ब्राह्मी महारात्रीः प्रकीर्तिता ।
ज्ञानस्वरूपा वैराग्यरूपा ह्यैश्वर्यरूपिणी ॥
धर्मात्मिका ब्रह्ममूर्तिः प्रतिश्रुतपुमर्थिका ।
अपांयोनिः स्वयम्भूता मानसी तत्त्वसम्भवा ॥
"व्यक्ता, प्रथमजा, ब्राह्मी, महारात्री, जिसका स्वरूप ज्ञान है, वैराग्य की स्वरूप, और ईश्वरी रूप में होती है। वह धर्म की स्वरूप, ब्रह्म की मूर्ति, प्रतिश्रुति के पुमार्थ की स्वरूप, अपांयोनि, स्वयम्भू, मानसी, और तत्त्व से उत्पन्न होती है।"
ईश्वरस्य प्रिया प्रोक्ता शङ्करार्धशरीरिणी ।
भवानी चैव रुद्राणी महालक्ष्मीस्तथाऽम्बिका ॥
महेश्वरसमुत्पन्ना भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी ।
सर्वेश्वरी सर्ववन्द्या नित्यमुक्ता सुमानसा ॥
"ईश्वर की प्रिया कहलाने वाली, जिसे शङ्कर के अर्धशरीरी रूप में प्रकटित किया गया है, भवानी, रुद्राणी, महालक्ष्मी, और अंबिका कहा जाता है। वह महेश्वर से उत्पन्न होती है और भुक्ति और मुक्ति की प्रदान करने वाली है, इसलिए वह सर्वेश्वरी, सर्ववन्द्या, नित्यमुक्ता, और सुमानसा कहलाती है।"
ईश्वरार्धासनगता माहेश्वरपतिव्रता ॥
"महेन्द्र और उपेन्द्र के नाम से जानी जाने वाली, शाङ्कर के पति के अनुसरण करने वाली, ईश्वर के अर्धासन पर बैठने वाली, और माहेश्वर की पत्नी के रूप में प्रसिद्ध हैं।"
संसारशोषिणी चैव पार्वती हिमवत्सुता ।
परमानन्ददात्री च गुणाग्र्या योगदा तथा ॥
"संसार को सूखा देने वाली, हिमाचल की पुत्री, परमानंद का दात्री, गुणों की श्रेष्ठ, योगदेवी।"
ज्ञानमूर्तिश्च सावित्री लक्ष्मीः श्रीः कमला तथा ।
अनन्तगुणगम्भीरा ह्युरोनीलमणिप्रभा ॥
सरोजनिलया गङ्गा योगिध्येयाऽसुरार्दिनी ।
सरस्वती सर्वविद्या जगज्ज्येष्ठा सुमङ्गला ॥
"ज्ञान की मूर्ति, सावित्री, लक्ष्मी, श्री, कमला, अनन्त गुणों की गहराई वाली, उरोनीलमणि की तरह चमकने वाली, सरोजनीलया (गंगा का निवास स्थान), योगियों के ध्यान का विषय, असुरों को निर्मूलन करने वाली, सरस्वती (सभी विद्याओं की देवी), जगत की ज्येष्ठा, और सुमङ्गला हैं।"
वाग्देवी वरदा वर्या कीर्तिः सर्वार्थसाधिका ।
वागीश्वरी ब्रह्मविद्या महाविद्या सुशोभना ॥
"वाग्देवी, वरदा, वर्या, कीर्ति, सर्वार्थ साधने वाली, वागीश्वरी, ब्रह्मविद्या की देवी, महाविद्या, और सुशोभना हैं।"
स्वाहा विश्वम्भरा सिद्धिः साध्या मेधा धृतिः कृतिः ॥
पूजाविभाविनी सौम्या भोग्यभाग् भोगदायिनी ॥
"ग्राह्य विद्या, वेद विद्या, धर्म विद्या, आत्मा की ज्ञान विद्या, स्वाहा, विश्व धारण करने वाली, सिद्धि, साधने योग्य, मेधा, धृति, कृति, सुनीति, संकृति, और मानव समाज में प्रसिद्ध वाहनी, पूजनीय, सौम्य, भोग के अधिकारी, और भोग देने वाली हैं।"
शोभावती शाङ्करी च लोला मालाविभूषिता ।
परमेष्ठिप्रिया चैव त्रिलोकीसुन्दरी माता ॥
महामहिषदर्पघ्नी पद्ममालाऽघहारिणी ॥
"शोभावती, शाङ्करी, लोला, माला अभूषित, परमेष्ठि प्रिया, त्रिलोकीसुंदरी माता, नन्दा, संध्या, कामधात्री, महादेवी, सुसात्त्विका, महामहिषा के गर्व को नष्ट करने वाली, और पद्ममाला के घर को नष्ट करने वाली हैं।"
पिताम्बरधरा दिव्यविभूषण विभूषिता ॥
निर्यन्त्रा यन्त्रवाहस्था नन्दिनी रुद्रकालिका ॥
इस मंत्र का अर्थ है:
"विचित्रमुकुट धारी, रामा, कामदा, प्रकीर्तिता, पिताम्बर पहनने वाली, दिव्य आभूषणों से युक्त, दिव्य नामा सहित चंद्रमुखी, जो संसार के सृजन से बर्जित है, नियंत्रण में न आने वाली, यंत्रों पर बैठी, नन्दिनी और रुद्रकालिका हैं।"
पद्मासनगता गौरी महाकाली सुरार्चिता ॥
विरूपाक्षा केशिवाहा गुहापुरनिवासिनी ॥
इस मंत्र का अर्थ है:
"आदित्यवर्णा, कौमारी, मयूरवरवाहिनी, पद्मासन पर बैठी हुई गौरी, महाकाली, सुरों की पूजा की जाने वाली, अदिति की संतान, रौद्री, पद्मगर्भा, विवाहिनी, विरूपाक्षा, केशिवाहिनी, और गुहापुर में निवास करने वाली हैं।"
भास्वद्रूपा मुक्तिदात्री प्रणतक्लेशभञ्जना ॥
इस मंत्र का अर्थ है:
"महाफलांशु, अनवद्याङ्गी, कामरूपा, सरिद्वरा, भास्वद्रूपा, मुक्तिदात्री, प्रणतक्लेशभञ्जना, कौशिकी, गोमिनी, रात्रि, त्रिदशा शत्रु विनाशिनी, बहुरूपा, सुरूपा, और विरूपा रूप से वर्जित हैं।"
सर्वज्ञानपरीताङ्गी सर्वासुरविमर्दिका ॥
दीक्षा विद्याधरी दीप्ता महेन्द्राहितपातिनी ॥
"भक्तों के दुःख को दूर करने वाली, भव्य, भवभाव का नाश करने वाली, सर्वज्ञान की परीक्षा करने वाली, सर्व आसुरों को पराजित करने वाली, पिकस्वनी, सामगीता, भवाङ्कनिलया, प्रिया, दीक्षा, विद्याधरी, दीप्ता, महेन्द्र पर आश्रित, और पातिनी हैं।"
सर्वदेवमया दक्षा समुद्रान्तरवासिनी ।
अकलङ्का निराधारा नित्यसिद्धा निरामया ॥
निःसङ्कल्पा निरातङ्का विनया विनयप्रदा ॥
"सर्वदेवमयी, दक्षा, समुद्रकिनारे वास करने वाली, अकलङ्का, निराधारा, नित्यसिद्धा, निरामया, कामधेनु, बृहद्गर्भा, धीमती, मौन को नष्ट करने वाली, निःसङ्कल्पा, निरातङ्का, विनयपूर्ण, और विनय प्रदायिनी हैं।"
ज्वालामाला सहस्राढ्या देवदेवी मनोमया ।
सुभगा सुविशुद्धा च वसुदेवसमुद्भवा ॥
ज्ञानज्ञेया परातीता वेदान्तविषया मतिः ॥
"ज्वालामाला सहस्राढ़्या, देवदेवी, मनोमया, सुभगा, सुविशुद्धा, वसुदेव से उत्पन्न, महेन्द्रपुत्री, भक्तिगम्या, परावरा, ज्ञानज्ञेया, और वेदान्त के विषय में मति रखने वाली हैं।"
दक्षिणा दाहिका दह्या सर्वभूतहृदिस्थिता ।
योगमाया विभागज्ञा महामोहा गरीयसी ॥
बीजाङ्कुरसमुद्भूता महाशक्तिर्महामतिः ॥
ख्यातिः प्रज्ञावती संज्ञा महाभोगीन्द्रशायिनी ।
हींकृतिः शङ्करी शान्तिर्गन्धर्वगणसेविता ॥
महारात्री परानन्दा शची दुःस्वप्ननाशिनी ॥
ईड्या जया जगद्धात्री दुर्विज्ञेया सुरूपिणी।
गुहाम्बिका गणोत्पन्ना महापीठा मरुत्सुता॥
हव्यवाहा भवानन्दा जगद्योनिः प्रकीर्तिता।
जगन्माता जगन्मृत्युर्जरातीता च बुद्धिदा॥
**अर्थ:**
ईड्या - वह देवी जो पूज्य हैं, जया - वह जो विजयी हैं, जगद्धात्री - वह जगत की माता हैं, दुर्विज्ञेया - जिनका गहरे अर्थ कठिन है, सुरूपिणी - वह जो सुंदर रूपवाली हैं, गुहाम्बिका - वह गुहाओं की माता है, गणोत्पन्ना - वह जिनसे देवगण उत्पन्न हुए हैं, महापीठा - वह जो महापीठ पर आसीन हैं, मरुत्सुता - वह मरुत पुत्र हनुमान की पत्नी हैं, हव्यवाहा - वह हवन करने वाली हैं, भवानन्दा - वह जगत के आनंद हैं, जगद्योनिः - वह जगत की उत्पत्ति का स्रोत हैं, प्रकीर्तिता - वह प्रसिद्ध हैं, जगन्माता - वह जगत की माता हैं, जगन्मृत्युर - वह मृत्यु के परे हैं, जरातीता - वह जरा के परे हैं, बुद्धिदा - वह बुद्धि देने वाली हैं।
सिद्धिदात्री रत्नगर्भा रत्नगर्भाश्रया परा ।
दैत्यहन्त्री स्वेष्टदात्री मङ्गलैकसुविग्रहा ॥
दिविस्थिता त्रिणेत्रा च सर्वेन्द्रियमनाधृतिः ॥
सर्वभूतहृदिस्था च तथा संसारतारिणी ।
वेद्या ब्रह्मविवेद्या च महालीला प्रकीर्तिता ॥
हिरण्मयी महादात्री संसारपरिवर्तिका ॥
सुमालिनी सुरूपा च भास्विनी धारिणी तथा ।
उन्मूलिनी सर्वसभा सर्वप्रत्ययसाक्षिणी ॥
सत्त्वशुद्धिकरी शुद्धा मलत्रयविनाशिनी ॥
जगत्त्त्रयी जगन्मूर्तिस्त्रिमूर्तिरमृताश्रया ।
विमानस्था विशोका च शोकनाशिन्यनाहता ॥
सदाकीर्तिः सर्वभूतशया देवी सतांप्रिया ॥
ब्रह्ममूर्तिकला चैव कृत्तिका कञ्जमालिनी ।
व्योमकेशा क्रियाशक्तिरिच्छाशक्तिः परागतिः ॥
अभिन्ना भिन्नसंस्थाना वशिनी वंशधारिणी ॥
गुह्यशक्तिर्गुह्यतत्त्वा सर्वदा सर्वतोमुखी ।
भगिनी च निराधारा निराहारा प्रकीर्तिता ॥
स्रग्विणी पद्मसम्भेदकारिणी परिकीर्तिता ॥
परावरविधानज्ञा महापुरुषपूर्वजा ।
परावरज्ञा विद्या च विद्युज्जिह्वा जिताश्रया ॥
सहस्ररश्मिःसत्वस्था महेश्वरपदाश्रया ॥
ज्वालिनी सन्मया व्याप्ता चिन्मया पद्मभेदिका ।
महाश्रया महामन्त्रा महादेवमनोरमा ॥
विश्वेश्वरी भगवती सकला कालहारिणी ॥
सर्ववेद्या सर्वभद्रा गुह्या दूढा गुहारणी ।
प्रलया योगधात्री च गङ्गा विश्वेश्वरी तथा ॥
पुण्यदा कालकेशा च भोक्त्त्री पुष्करिणी तथा ॥
सुरेश्वरी भूतिदात्री भूतिभूषा प्रकीर्तिता ।
पञ्चब्रह्मसमुत्पन्ना परमार्थाऽर्थविग्रहा ॥
मनोहरा महोरस्का तामसी वेदरूपिणी ॥
वेदशक्तिर्वेदमाता वेदविद्याप्रकाशिनी ।
योगेश्वरेश्वरी माया महाशक्तिर्महामयी ॥
सुरभिर्नन्दिनी विद्या नन्दगोपतनूद्भवा ॥
भारती परमानन्दा परावरविभेदिका ।
सर्वप्रहरणोपेता काम्या कामेश्वरेश्वरी ॥
कूष्माण्डा धनरत्नाढ्या सुगन्धा गन्धदायिनी ॥
त्रिविक्रमपदोद्भूता चतुरास्या शिवोदया ।
सुदुर्लभा धनाध्यक्षा धन्या पिङ्गललोचना ॥
इन्द्राक्षी हृदयान्तःस्था शिवा माता च सत्क्रिया ॥
गिरिजा च सुगूढा च नित्यपुष्टा निरन्तरा ।
दुर्गा कात्यायनी चण्डी चन्द्रिका कान्तविग्रहा ॥
मन्दराद्रिनिवासा च शारदा स्वर्णमालिनी ॥
रत्नमाला रत्नगर्भा व्युष्टिर्विश्वप्रमाथिनी ।
पद्मानन्दा पद्मनिभा नित्यपुष्टा कृतोद्भवा ॥
महेन्द्रभगिनी सत्या सत्यभाषा सुकोमला ॥
वामा च पञ्चतपसां वरदात्री प्रकीर्तिता ।
वाच्यवर्णेश्वरी विद्या दुर्जया दुरतिक्रमा ॥
भद्रकाली जगन्माता भक्तानां भद्रदायिनी ॥
कराला पिङ्गलाकारा कामभेत्त्री महामनाः ।
यशस्विनी यशोदा च षडध्वपरिवर्तिका ॥
चैत्रादिर्वत्सरारूढा जगत्सम्पूरणीन्द्रजा ॥
शुम्भघ्नी खेचराराध्या कम्बुग्रीवा बलीडिता ।
खगारूढा महैश्वर्या सुपद्मनिलया तथा ॥
शुम्भादिमथना भक्तहृद्गह्वरनिवासिनी ॥
जगत्त्त्रयारणी सिद्धसङ्कल्पा कामदा तथा ।
सर्वविज्ञानदात्री चानल्पकल्मषहारिणी ॥
सद्वृता लोकसंव्याप्ता तुष्टिः पुष्टिः क्रियावती ॥
विश्वामरेश्वरी चैव भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
शिवाधृता लोहिताक्षी सर्पमालाविभूषणा ॥
अशेषध्येयमूर्तिश्च देवतानां च देवता ॥
वराम्बिका गिरेः पुत्री निशुम्भविनिपातिनी ।
सुवर्णा स्वर्णलसिताऽनन्तवर्णा सदाधृता ॥
विश्वगोप्त्री गूढरूपा गुणपूर्णा च गार्ग्यजा ॥
"सुवर्णा स्वर्णलसिताऽनन्तवर्णा सदाधृता" - उनकी त्वचा सुवर्ण की तरह होती है, वे सदैव शोभा पाती हैं और अनन्त वर्णवाली हैं।
"शाङ्करी शान्तहृदया अहोरात्रविधायिका" - वे शिव की पत्नी हैं, जिनका हृदय सदैव शांति में होता है और वे रात्रि और दिन की सुरक्षा करने वाली हैं।
"विश्वगोप्त्री गूढरूपा गुणपूर्णा च गार्ग्यजा" - वे सम्पूर्ण विश्व की सुरक्षा करने वाली हैं, उनका रूप गूढ़ है, और वे गुणों से पूर्ण हैं, जो गार्ग्य ऋषि की पुत्री हैं।
गौरी शाकम्भरी सत्यसन्धा सन्ध्यात्रयीधृता ।
सर्वपापविनिर्मुक्ता सर्वबन्धविवर्जिता ॥
विशुद्धसुकुलोद्भूता बिन्दुनादसमादृता ॥
"गौरी शाकम्भरी सत्यसन्धा सन्ध्यात्रयीधृता" - वह गौरी (पार्वती) है, जो शाकम्भरी नामक भगवान शिव की पत्नी है, वह सदैव सत्य में स्थित रहती है और सन्ध्या काल की पूजा को धारण करती है।
"सर्वपापविनिर्मुक्ता सर्वबन्धविवर्जिता" - वे सभी पापों से मुक्त हैं और सभी बंधनों से विमुक्त हैं।
"सांख्ययोगसमाख्याता अप्रमेया मुनीडिता" - वे सांख्य और योग के साक्षात्कार की आद्य शिक्षिका हैं, और उनकी महिमा मुनियों द्वारा गाई गई है।"विशुद्धसुकुलोद्भूता बिन्दुनादसमादृता" - वे शुद्ध सुकुलों से उत्पन्न हुई हैं और बिन्दुनाद नाद की समाधि में रहती हैं।
शम्भुवामाङ्कगा चैव शशितुल्यनिभानना ।
वनमालाविराजन्ती अनन्तशयनादृता ॥
दैत्यप्रमाथिनी शङ्खचक्रपद्मगदाधरा ॥
"शम्भुवामाङ्कगा चैव शशितुल्यनिभानना" - वह शम्भु (भगवान शिव) के आंगन में रहने वाली हैं, उनके चेहरे के चंद्रमा के समान हैं।
"वनमालाविराजन्ती अनन्तशयनादृता" - वे एक वनमाला पहनती हैं और अनंतशयन (विष्णु) के साथ विराजमान हैं।
"नरनारायणोद्भूता नारसिंही प्रकीर्तिता" - वे नर और नारायण के समान हैं और नारसिंही (दुर्गा) के रूप में प्रसिद्ध हैं।"दैत्यप्रमाथिनी शङ्खचक्रपद्मगदाधरा" - वे दैत्यों की प्रमाथिनी (विनाशक) हैं और शंख, चक्र, पद्म, और गदा धारण करती हैं।
सङ्कर्षणसमुत्पन्ना अम्बिका सज्जनाश्रया ।
सुवृता सुन्दरी चैव धर्मकामार्थदायिनी ॥
महाविभूतिदाऽऽराध्या सरोजनिलयाऽसमा ॥
"सङ्कर्षणसमुत्पन्ना अम्बिका सज्जनाश्रया" - वह अम्बिका (मां दुर्गा) हैं, जिन्होंने सङ्कर्षण (भगवान विष्णु) को जन्म दिया है और जो सज्जनों का आश्रय हैं।
"सुवृता सुन्दरी चैव धर्मकामार्थदायिनी" - वे सुव्रता (धर्मपालन करने वाली) हैं और सुंदरी भी, और वे धर्म, काम, और अर्थ की प्राप्ति में मदद करने वाली हैं।
"मोक्षदा भक्तिनिलया पुराणपुरुषादृता" - वे मोक्ष प्रदान करने वाली हैं, भक्तों का निवास स्थान हैं, और पुराणों के पुरुषों द्वारा प्रमाणित की जाती हैं।
"महाविभूतिदाऽऽराध्या सरोजनिलयाऽसमा" - वे महाविभूतियों की आराध्या हैं और उनका निवास स्थान एक समुद्र की तरह अद्वितीय है।
अष्टादशभुजाऽनादिर्नीलोत्पलदलाक्षिणी ।
सर्वशक्तिसमारूढा धर्माधर्मविवर्जिता ॥
विचित्रगहनाधारा शाश्वतस्थानवासिनी ॥
"अष्टादशभुजाऽनादिर्नीलोत्पलदलाक्षिणी" - वह मां दुर्गा, जिनकी अष्टादश (अठारह) हाथ हैं, उनमें से एक अनादि (आदिकाल से अब तक) हैं, और उनकी आँखों का रंग नीलोत्पल के पत्तों के समान है।
"सर्वशक्तिसमारूढा धर्माधर्मविवर्जिता" - वे सभी शक्तियों से युक्त हैं और धर्म और अधर्म से विमुक्त हैं।
"वैराग्यज्ञाननिरता निरालोका निरिन्द्रिया" - वे वैराग्य (आसक्ति से विमुक्ति) और ज्ञान (आत्मा के ज्ञान) में रत हैं, और वे किसी लोक में नहीं हैं, और वे इंद्रियों से परे हैं।
"विचित्रगहनाधारा शाश्वतस्थानवासिनी" - उनकी गहना और रहस्यमयी है, और वे शाश्वत स्थान में वास करती हैं।
ज्ञानेश्वरी पीतचेला वेदवेदाङ्गपारगा ।
मनस्विनी मन्युमाता महामन्युसमुद्भवा ॥
अशोच्या भिन्नविषया हिरण्यरजतप्रिया ॥
"ज्ञानेश्वरी पीतचेला वेदवेदाङ्गपारगा" - वह ज्ञान की देवी हैं, जिनकी शराबी चेला हैं, और वे वेद और वेदाङ्गों के पारग हैं।
"मनस्विनी मन्युमाता महामन्युसमुद्भवा" - वे मानसिक शक्ति की धारण करने वाली हैं, मन्यु (क्रोध) की माता हैं, और महामन्यु के उत्पन्न होने की शक्ति हैं।
"अमन्युरमृतास्वादा पुरन्दरपरिष्टुता" - वे अमन्यु (क्रोध) से अमृतरूप सुआदने वाली हैं और पुरन्दर (इंद्र) के प्रशंसा में हैं।
"अशोच्या भिन्नविषया हिरण्यरजतप्रिया" - वे अशोकी हैं, और हीरा और चांदी के प्रति प्रिय हैं।
हिरण्यजननी भीमा हेमाभरणभूषिता ।
विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया ज्योतिष्टोमफलप्रदा ॥
दीर्घा ककुद्मिनी पिङ्गजटाधारा मनोज्ञधीः ॥
"हिरण्यजननी भीमा हेमाभरणभूषिता" - वह भगवान शिव की पत्नी भीमा हैं, और वे सोने के आभूषणों से युक्त हैं।
"विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया ज्योतिष्टोमफलप्रदा" - वे प्रकट होती हैं, लेकिन उनकी परमात्मा की अद्भुतता को समझना दुष्कर है, और वे ज्योतिष्टोम यज्ञ के फल को प्रदान करती हैं।
"महानिद्रासमुत्पत्तिरनिद्रा सत्यदेवता" - उनका महत् समुद्र से उत्पत्ति हुआ है, और वे सत्य की देवी अनिद्रा हैं।
"दीर्घा ककुद्मिनी पिङ्गजटाधारा मनोज्ञधीः" - वे लम्बी केशवाली हैं, ककुद्मिनी हैं (केशों का एक बांधन), पीटवर्णिनी हैं (पीट का पहनना), पिङ्गजटाधारण (सुरक्षा के लिए अपने बालों को एक सटीक तरीके से बाँधने वाली) हैं, और मनोज्ञधी (मनोज्ञता से युक्त बुद्धि) हैं।
त्रितत्त्वमाता त्रिविधा सुसूक्ष्मा पद्मसंश्रया ॥
चित्रमाया शिवज्ञानस्वरूपा दैत्यमाथिनी ॥
"महाश्रया रमोत्पन्ना तमःपारे प्रतिष्ठिता" - वह महालक्ष्मी के आश्रय में हैं, और वे तमः (अज्ञान) के पार हैं और प्रतिष्ठित हैं।
"त्रितत्त्वमाता त्रिविधा सुसूक्ष्मा पद्मसंश्रया" - वे तीन परमात्मा की माता हैं, त्रिविधा हैं, और सूक्ष्म रूप से पद्म (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का आश्रय हैं।
"शान्त्यतीतकलाऽतीतविकारा श्वेतचेलिका" - वे शान्ति के परे हैं, विकाररहित हैं, और वे श्वेतचेलिका (गोरी रंग की) हैं।
"चित्रमाया शिवज्ञानस्वरूपा दैत्यमाथिनी" - वे चित्रमाया (माया की रूप में) हैं, शिवज्ञान की स्वरूप हैं, और दैत्यों को मारने वाली हैं।
काश्यपी कालसर्पाभवेणिका शास्त्रयोनिका ।
त्रयीमूर्तिः क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गा च दर्शिनी ॥
कौशिकी ललिता लीला परावरविभाविनी ॥
"काश्यपी कालसर्पाभवेणिका शास्त्रयोनिका" - वह काश्यप ऋषि की पत्नी हैं, कालसर्प के वेणी विधान से प्राप्त हुईं हैं, और वे शास्त्रों के योनि हैं।
"त्रयीमूर्तिः क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गा च दर्शिनी" - वे त्रयीमूर्ति हैं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पत्नी), क्रियामूर्ति हैं (क्रियाओं की मूर्ति), और वे चार वर्गों को देखती हैं।
"नारायणी नरोत्पन्ना कौमुदी कान्तिधारिणी" - वे नारायण की पत्नी हैं, नरोत्पन्ना हैं (मनुष्यों की उत्पत्ति वाली), कौमुदी हैं (पूर्णिमा की देवी), और कान्ति को धारण करती हैं।
"कौशिकी ललिता लीला परावरविभाविनी" - वे कौशिकी हैं (कौशिक ऋषि की पत्नी), ललिता हैं (ललिता देवी की अवतार), लीला करती हैं (दिव्य लीला विभाग), और परमात्मा की अद्वितीय शक्ति हैं।
वरेण्याऽद्भुतमहात्म्या वडवा वामलोचना ।
सुभद्रा चेतनाराध्या शान्तिदा शान्तिवर्धिनी ॥
त्रिशक्तिजननी जन्या षट्सूत्रपरिवर्णिता ॥
"वरेण्याऽद्भुतमहात्म्या वडवा वामलोचना" - वह वडवा (अद्भुत महात्मा) हैं, जिनकी अद्वितीय महिमा है, और वे वामलोचना (वाम मुखवाली) हैं।
"सुभद्रा चेतनाराध्या शान्तिदा शान्तिवर्धिनी" - वे सुभद्रा (भगवान कृष्णा की बहन) हैं, चेतना की पूजा करने वाली हैं, और वे शान्ति प्रदान करने वाली हैं और शान्ति को बढ़ाती हैं।
"जयादिशक्तिजननी शक्तिचक्रप्रवर्तिका" - वे जया (विजया), आदि शक्तियों की जननी हैं, और शक्तिचक्र को प्रवर्तित करने वाली हैं।
"त्रिशक्तिजननी जन्या षट्सूत्रपरिवर्णिता" - वे त्रिशक्तियों की माता हैं, और षट्सूत्र (षट् शक्तियों के सूत्र) के विवरण के साथ जन्य हुई हैं।
सुधौतकर्मणाऽऽराध्या युगान्तदहनात्मिका ।
सङ्कर्षिणी जगद्धात्री कामयोनिः किरीटिनी ॥
प्रद्युम्नजननी बिम्बसमोष्ठी पद्मलोचना ॥
"सुधौतकर्मणाऽऽराध्या युगान्तदहनात्मिका" - वे सुधौत कर्मों की पूजा करने वाली हैं, और युगांत के अंतर्गत होने वाली दहनरूपी शक्ति हैं।
"सङ्कर्षिणी जगद्धात्री कामयोनिः किरीटिनी" - वे सङ्कर्षणी (संकर्षण की पत्नी) हैं, जगद्धात्री (जगत की पालक) हैं, कामयोनि (कामदेव की उत्पत्ति स्थल) हैं, और किरीटिनी (मुकुट पहनने वाली) हैं।
"ऐन्द्री त्रैलोक्यनमिता वैष्णवी परमेश्वरी" - वे ऐन्द्री (इंद्र की पत्नी) हैं, त्रैलोक्यनमिता (तीनों लोकों की मालिका) हैं, वैष्णवी (विष्णु की पत्नी) हैं, और परमेश्वरी (सर्वों की मालिका) हैं।
"प्रद्युम्नजननी बिम्बसमोष्ठी पद्मलोचना" - वे प्रद्युम्न (भगवान कृष्णा के पुत्र) की माता हैं, बिम्बसमोष्ठी (चुम्बकाकार होंठों वाली) हैं, और पद्मलोचना (पद्म की आंखों वाली) हैं।
मदोत्कटा हंसगतिः प्रचण्डा चण्डविक्रमा ।
वृषाधीशा परात्मा च विन्ध्या पर्वतवासिनी ॥
चाणूरहन्त्री नीतिज्ञा कामरूपा त्रयीतनुः ॥
"मदोत्कटा हंसगतिः प्रचण्डा चण्डविक्रमा" - वह मदोत्कटा (मद को नष्ट करने वाली) हैं, हंसगति (हंस की चाल) हैं, प्रचण्डा (भयंकर) हैं, और चण्डविक्रमा (चण्ड के वीर) हैं।
"वृषाधीशा परात्मा च विन्ध्या पर्वतवासिनी" - वे वृषाधीशा (दुर्गा का पति महिषासुर के रूप में) हैं, परात्मा हैं (परमात्मा की स्वरूप), और विन्ध्या (विन्ध्य पर्वत की वासिनी) हैं।
"हिमवन्मेरुनिलया कैलासपुरवासिनी" - वे हिमवन (हिमालय पर्वत) में निवास करती हैं, मेरु पर्वत में निवास करती हैं, और कैलास पर्वत के पुर में वासिनी हैं।
"चाणूरहन्त्री नीतिज्ञा कामरूपा त्रयीतनुः" - वे चाणूरहन्त्री (चाणूर और मुण्ड जैसे दानवों को मारने वाली) हैं, नीतिज्ञा (नीति की ज्ञानी) हैं, कामरूपा (कामना के अनुसार रूप धारण करने वाली) हैं, और त्रयीतनुः (त्रयी शास्त्र की माता) हैं।
व्रतस्नाता धर्मशीला सिंहासननिवासिनी ।
वीरभद्रादृता वीरा महाकालसमुद्भवा ॥
श्रद्धात्मिका पावनी च मोहिनी अचलात्मिका ॥
"व्रतस्नाता धर्मशीला सिंहासननिवासिनी" - वे व्रतों को पालन करने वाली हैं, धर्मशील हैं, और सिंहासन पर निवास करती हैं।
"वीरभद्रादृता वीरा महाकालसमुद्भवा" - वे वीरभद्र के आदर्श के अनुसार हैं, और महाकाल (शिव) से उत्पन्न हुई हैं।
"विद्याधरार्चिता सिद्धसाध्याराधितपादुका" - वे विद्याधरों द्वारा पूजित होती हैं, सिद्धों और साध्यों द्वारा पूजित होती हैं, और उनकी पादुकाएं भी पूजित होती हैं।
"श्रद्धात्मिका पावनी च मोहिनी अचलात्मिका" - वे श्रद्धा की आत्मा हैं, पावनी (शुद्धि का स्रोत) हैं, मोहिनी (मोहकर्षण करने वाली) हैं, और अचल (स्थिर) आत्मा हैं।
महाद्भुता वारिजाक्षी सिंहवाहनगामिनी ।
मनीषिणी सुधावाणी वीणावादनतत्परा ॥
हिरण्याक्षी तथा चैव महानन्दप्रदायिनी ॥
"महाद्भुता वारिजाक्षी सिंहवाहनगामिनी" - वे महान आदर्श हैं, जिनके द्वारा वारिजाक्षी (वारुणी, समुद्र की देवी) की सेवा की जाती है, और जिनकी वाहन सिंह (शेर) है।
"मनीषिणी सुधावाणी वीणावादनतत्परा" - वे मनने वाली हैं, सुधा को पाने की तव में विशेष रूप से रुचि है, और वीणा की मधुर ध्वनि को सुनने के लिए तत्पर हैं।
"श्वेतवाहनिषेव्या च लसन्मतिररुन्धती" - वे श्वेतवाहन (सफेद हाथी) को पूजने में लगी हुई हैं, और लसन (लहसुन) की माला पहनती हैं।
"हिरण्याक्षी तथा चैव महानन्दप्रदायिनी" - वे हिरण्याक्षी (सोने की आंखों वाली) हैं, और महानंद (अत्यधिक आनंद) प्रदान करने वाली हैं।
वसुप्रभा सुमाल्याप्तकन्धरा पङ्कजानना ।
परावरा वरारोहा सहस्रनयनार्चिता ॥
श्रीप्रदा श्रितकल्याणा श्रीधरार्धशरीरिणी ॥
"वसुप्रभा सुमाल्याप्तकन्धरा पङ्कजानना" - वे वसुप्रभा (अमृत की धारा) हैं, सुमाल्याप्तकन्धरा (कण्ठ में माला पहनने वाली) हैं, और पद्मकानना (कमल के समान विशेष आकृति वाली) हैं।
"परावरा वरारोहा सहस्रनयनार्चिता" - वे परावरा (सर्वों की ऊपरी आदर्शा) हैं, वरारोहिणी (वरों के बीच चढ़ने वाली) हैं, और सहस्रनयनार्चिता (हजारों आंखों से पूजित) हैं।
"श्रीरूपा श्रीमती श्रेष्ठा शिवनाम्नी शिवप्रिया" - वे श्रीरूपा (श्री की रूप) हैं, श्रीमती (धनवान) हैं, श्रेष्ठा (उत्कृष्ट) हैं, शिवनाम्नी (शिव के नाम की पूजा करने वाली) हैं, और शिवप्रिया (शिव की प्रिय) हैं।
"श्रीप्रदा श्रितकल्याणा श्रीधरार्धशरीरिणी" - वे श्रीप्रदा (श्री की दानी) हैं, श्रितकल्याणा (भक्तों के कल्याण की प्राप्ति करने वाली) हैं, और श्रीधरार्धशरीरिणी (श्रीधर के अर्धशरीरी रूप में) हैं।
श्रीकलाऽनन्तदृष्टिश्च ह्यक्षुद्राऽऽरातिसूदनी ।
रक्तबीजनिहन्त्री च दैत्यसङ्गविमर्दिनी ॥
सुकीर्तिसहिताच्छिन्नसंशया रसवेदिनी ॥
"श्रीकलाऽनन्तदृष्टिश्च ह्यक्षुद्राऽऽरातिसूदनी" - वे श्रीकला (आदिशक्ति का प्रतीक) हैं, और वे अक्षुद्रा (अन्न का अभाव दूर करने वाली) हैं, आरातिसूदनी (दुखों को दूर करने वाली) हैं।
"रक्तबीजनिहन्त्री च दैत्यसङगविमर्दिनी" - वे रक्तबीजों को नष्ट करने वाली हैं, और दैत्यों के संग संघर्ष करने वाली हैं।
"सिंहारूढा सिंहिकास्या दैत्यशोणितपायिनी" - वे सिंह (शेर) के वाहन पर सवार हैं, और दैत्यों के रक्त को नष्ट करने वाली हैं।
"सुकीर्तिसहिताच्छिन्नसंशया रसवेदिनी" - वे सुकीर्ति (अच्छे नाम और यश) के साथ हैं, और संशयों को दूर करने वाली हैं, जो रस (आनंद) को जानने वाली हैं।
गुणाभिरामा नागारिवाहना निर्जरार्चिता ।
नित्योदिता स्वयंज्योतिः स्वर्णकाया प्रकीर्तिता ॥
वज्रच्छन्ना देवदेवी वरवज्रस्वविग्रहा ॥
"गुणाभिरामा नागारिवाहना निर्जरार्चिता" - वे गुणों के साथ रमणी हैं, और नाग (सांप) के वाहन पर सवार हैं, निर्जरा (जरा-मरा नहीं होने वाला) हैं, और अर्चिता (पूजने योग्य) हैं।
"नित्योदिता स्वयंज्योतिः स्वर्णकाया प्रकीर्तिता" - वे हमेशा उदित (चमकीली) हैं, स्वयं ज्योति (स्वयं प्रकाशमान) हैं, स्वर्णकाया (सोने के शरीरवाली) हैं, और प्रकीर्तिता (प्रशंसित) हैं।
"वज्रदण्डाङ्किता चैव तथाऽमृतसञ्जीविनी" - वे वज्रदण्ड (वज्र की छड़ी) से आज्ञापित हैं, और वे अमृतसञ्जीविनी (अमृत को प्राप्त करने वाली) हैं।
"वज्रच्छन्ना देवदेवी वरवज्रस्वविग्रहा" - वे वज्रच्छन्ना (वज्र से काटी गई) हैं, देवदेवी (देवों की देवी) हैं, और वरवज्रस्वविग्रहा (वरवज्र के समान शरीर वाली) हैं।
माङ्गल्या मङ्गलात्मा च मालिनी माल्यधारिणी ।
गन्धर्वी तरुणी चान्द्री खड्गायुधधरा तथा ॥
एकानङ्गा च शास्त्रार्थकुशला धर्मचारिणी ॥
"माङ्गल्या मङ्गलात्मा च मालिनी माल्यधारिणी" - वे माङ्गल्या (मांगल्य देवता) हैं, मङ्गलात्मा (मांगल्य के आत्मरूप में) हैं, मालिनी (माला पहनने वाली) हैं, और माल्यधारिणी (माला को धारण करने वाली) हैं।
"गन्धर्वी तरुणी चान्द्री खड्गायुधधरा तथा" - वे गन्धर्वी (गन्धर्वों की रूप में) हैं, तरुणी (युवती) हैं, चान्द्री (चंद्रमा की तरह चमकने वाली) हैं, और खड्गायुधधरा (खड्ग को धारण करने वाली) हैं।
"सौदामिनी प्रजानन्दा तथा प्रोक्ता भृगूद्भवा" - वे सौदामिनी (सौदामिनी नक्षत्र की देवी) हैं, प्रजानंदा (प्रजा का आनंद देने वाली) हैं, और भृगूद्भवा (भृगु ऋषि की पुत्री) हैं।
"एकानङ्गा च शास्त्रार्थकुशला धर्मचारिणी" - वे एकानङ्गा (एकांगी, शिव के प्रति विशेष प्रेम रखने वाली) हैं, शास्त्रार्थकुशला (शास्त्रों के अर्थ को जानने वाली) हैं, और धर्मचारिणी (धर्म का पालन करने वाली) हैं।
धर्मसर्वस्ववाहा च धर्माधर्मविनिश्चया ।
धर्मशक्तिर्धर्ममया धार्मिकानां शिवप्रदा ॥
धर्मवर्ष्मा धर्मपूर्वा धर्मपारङ्गतान्तरा ॥
"धर्मसर्वस्ववाहा च धर्माधर्मविनिश्चया" - वे धर्मसर्वस्ववाहा (सबकुछ धर्म को अपनाने वाली) हैं, और धर्म और अधर्म के विचार में निश्चित (निर्णय करने वाली) हैं।
"धर्मशक्तिर्धर्ममया धार्मिकानां शिवप्रदा" - वे धर्म की शक्ति (सारे धर्मों की शक्ति) हैं, धर्ममया (धर्मरूपी) हैं, और धार्मिकों को शिव (भगवान शिव) की प्राप्ति में मदद करती हैं और उन्हें शिव की कृपा प्रदान करती हैं।
"विधर्मा विश्वधर्मज्ञा धर्मार्थान्तरविग्रहा" - वे विधर्मा (अधर्म को जानने वाली) हैं, विश्वधर्मज्ञा (सभी धर्मों का ज्ञान रखने वाली) हैं, और धर्म और अर्थ के बीच के विवाद को नियंत्रित करने वाली हैं।
"धर्मवर्ष्मा धर्मपूर्वा धर्मपारङ्गतान्तरा" - वे धर्म का वर्ष्मा (केंद्र), धर्मपूर्वा (धर्म के प्रारंभ से ही पुरानी) हैं, और धर्म को पूर्व से ही परंगत (अधिकारी) हैं।
धर्मोपदेष्ट्री धर्मात्मा धर्मगम्या धराधरा ।
कपालिनी शाकलिनी कलाकलितविग्रहा ॥
कंसप्राणहरा चैव युगधर्मधरा तथा ॥
"धर्मोपदेष्ट्री धर्मात्मा धर्मगम्या धराधरा" - वे धर्म का उपदेष्टा (शिक्षक) हैं, धर्मात्मा (धर्म के आत्मरूप में) हैं, धर्म को प्राप्त करने योग्य हैं, और धराधरा (धरा के सारे भार को धारण करने वाली) हैं।
"कपालिनी शाकलिनी कलाकलितविग्रहा" - वे कपालिनी (कपाल धारण करने वाली) हैं, शाकलिनी (शाकल की रूप में) हैं, और कलाकलितविग्रहा (कला के रूपों में विभूषित रहने वाली) हैं।
"सर्वशक्तिविमुक्ता च कर्णिकारधराऽक्षरा" - वे सर्वशक्तिविमुक्ता (सभी शक्तियों से मुक्त) हैं, कर्णिकारधरा (कर्णिकार को धारण करने वाली) हैं, और अक्षरा (अक्षर, अविनाशी) हैं।
"कंसप्राणहरा चैव युगधर्मधरा तथा" - वे कंस प्राण (कंस राक्षस की प्राण) को हरने वाली हैं, और युगधर्म (युग के धर्म का पालन करने वाली) और धराधरा हैं।
युगप्रवर्तिका प्रोक्ता त्रिसन्ध्या ध्येयविग्रहा ।
स्वर्गापवर्गदात्री च तथा प्रत्यक्षदेवता ॥
पद्मासनगता प्रोक्ता खड्गबाणशरासना ॥
"युगप्रवर्तिका प्रोक्ता त्रिसन्ध्या ध्येयविग्रहा" - वे युगों को प्रवर्तित (चलाने वाली) कही गई हैं, त्रिसन्ध्या में ध्येय (ध्यान के योग्य विग्रह) हैं।
"स्वर्गापवर्गदात्री च तथा प्रत्यक्षदेवता" - वे स्वर्ग और मोक्ष की प्रदाता हैं, और साक्षात देवी भगवान की प्रत्यक्ष (दिखाई देने वाली) देवता हैं।
"आदित्या दिव्यगन्धा च दिवाकरनिभप्रभा" - वे आदित्या (सूर्य के समक्ष आदित्य रूपी) हैं, और उनकी प्रकृति दिव्यगन्ध (दिव्य गंध की) सी है, और उनकी प्रकाश दिवाकर (सूर्य की तरह) है।
"पद्मासनगता प्रोक्ता खड्गबाणशरासना" - वे पद्मासन में बैठी हुई हैं और खड्ग, बाण, और शर जैसे आयुधों को धारण करती हैं।
शिष्टा विशिष्टा शिष्टेष्टा शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता ।
शतरूपा शतावर्ता वितता रासमोदिनी ॥
सूर्यान्तरस्थिता चैव सत्प्रतिष्ठतविग्रहा ॥
"शिष्टा विशिष्टा शिष्टेष्टा शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता" - वे शिष्टा (सज्जनों के बीच प्रसिद्ध) हैं, विशिष्टा (विशेष रूप से अत्यंत प्रमुख) हैं, शिष्टेष्टा (सज्जनों के उत्तम आदरणीय) हैं, और शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता (सज्जनों के उत्तम पूज्य) हैं।
"शतरूपा शतावर्ता वितता रासमोदिनी" - वे शतरूपा (शत रूपों की धारणा करने वाली) हैं, शतावर्ता (शत युगों में विचरणे वाली) हैं, और रासमोदिनी (रासलीला का आनंद लेने वाली) हैं।
"सूर्येन्दुनेत्रा प्रद्युम्नजननी सुष्ठुमायिनी" - वे सूर्य और चंद्रमा के नेत्र (आँखों) वाली हैं, प्रद्युम्न की माता (जननी) हैं, और सुष्ठुमा (सुखमयी) हैं।
"सूर्यान्तरस्थिता चैव सत्प्रतिष्ठतविग्रहा" - वे सूर्य के अंदरस्थिता हैं और सत्प्रतिष्ठा के विग्रह (रूप) हैं।
निवृत्ता प्रोच्यते ज्ञानपारगा पर्वतात्मजा ।
कात्यायनी चण्डिका च चण्डी हैमवती तथा ॥
धूम्रलोचनहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥
इस श्लोक का अर्थ है:
"निवृत्ता प्रोच्यते" - वे निवृत्ता नामकी हैं, "ज्ञानपारगा" - ज्ञान की परम आवश्यकता हैं, "पर्वतात्मजा" - पर्वतराज हिमाचल की पुत्री हैं, "कात्यायनी" - कात्यायनी हैं, "चण्डिका" - चण्डिका हैं, "चण्डी" - चण्डी हैं, "हैमवती" - हिमाचल की बेटा हैं, "दाक्षायणी" - दाक्षायणी हैं, "सती" - सती हैं, "भवानी" - भवानी हैं, "सर्वमङ्गला" - सभी मङ्गलों का कारण हैं, "धूम्रलोचनहन्त्री" - धूम्रलोचन का वध करने वाली हैं, "चण्डमुण्डविनाशिनी" - चण्डमुण्ड का विनाश करने वाली हैं।
योगनिद्रा योगभद्रा समुद्रतनया तथा ।
देवप्रियङ्करी शुद्धा भक्तभक्तिप्रवर्धिनी ॥
अर्जुनाभीष्टदात्री च पाण्डवप्रियकारिणी ॥
"योगनिद्रा" - योगनिद्रा हैं, "योगभद्रा" - योग का भलाई देने वाली हैं, "समुद्रतनया" - समुद्र की पुत्री हैं, "देवप्रियङ्करी" - देवताओं की प्रिय हैं, "शुद्धा" - शुद्ध हैं, "भक्तभक्तिप्रवर्धिनी" - भक्तों की भक्ति को बढ़ाने वाली हैं। "त्रिणेत्रा" - तीन आँखों वाली हैं, "चन्द्रमुकुटा" - चंद्रमुकुट पहनती हैं, "प्रमथार्चितपादुका" - प्रमथ देवताओं की पूजा करती हैं, "अर्जुनाभीष्टदात्री" - अर्जुन के इच्छित वरदान देने वाली हैं, "पाण्डवप्रियकारिणी" - पाण्डवों के प्रिय कारणी हैं।
विघ्नेशजननी भक्तविघ्नस्तोमप्रहारिणी ॥
सुस्मितेन्दुमुखी नम्या जयाप्रियसखी तथा ।
अनादिनिधना प्रेष्ठा चित्रमाल्यानुलेपना ॥
इस श्लोक का अर्थ है:
"कुमारलालनासक्ता" - कुमारलाल के बिना निरंतर खिलवाड़ा करने वाली हैं, "हरबाहूपधानिका" - हरबाहूपधानि हैं, "विघ्नेशजननी" - विघ्नेश की माता हैं, "भक्तविघ्नस्तोमप्रहारिणी" - भक्तों के विघ्नों को हरने वाली और विघ्नस्तोत्र का प्रहार करने वाली हैं, "सुस्मितेन्दुमुखी" - सुंदर हँसी वाली हैं, "नम्या" - नमनीय हैं, "जयाप्रियसखी" - जया की प्रिय सखी हैं, "अनादिनिधना" - आदि और अनंत हैं, "प्रेष्ठा" - प्रिय हैं, "चित्रमाल्यानुलेपना" - चित्र माल्या का अनुलेपन करने वाली हैं।
कृत्याप्रहारिणी चैव मारणोच्चाटनी तथा ॥
सुरासुरप्रवन्द्याङ्घ्रिर्मोहघ्नी ज्ञानदायिनी ।
षड्वैरिनिग्रहकरी वैरिविद्राविणी तथा ॥
इस श्लोक का अर्थ है:
"कोटिचन्द्रप्रतीकाशा" - लाखों चंद्रमाओं की तरह चमकने वाली हैं, "कूटजालप्रमाथिनी" - कूटजाल के रक्षक हैं, "कृत्याप्रहारिणी" - कार्यों की उपेक्षा नहीं करने वाली हैं, और दुष्टों को प्रहार करने वाली हैं, "मारणोच्चाटनी" - मरने और उच्चाटने वाली हैं, "सुरासुरप्रवन्द्याङ्घ्रिर्मोहघ्नी" - देवताओं और आसुरों के प्रणामी चरणों को छूकर मोह दूर करने वाली हैं, "ज्ञानदायिनी" - ज्ञान की प्राप्ति कराने वाली हैं, "षड्वैरिनिग्रहकरी" - छः दुश्मनों को निग्रह करने वाली हैं, "वैरिविद्राविणी" - वैरियों को भगाने वाली हैं।
नारदस्तुतचारित्रा वरदेशा वरप्रदा ॥
वामदेवस्तुता चैव कामदा सोमशेखरा ।
दिक्पालसेविता भव्या भामिनी भावदायिनी ॥
इस श्लोक का अर्थ है:
"भूतसेव्या" - भूतों की पूज्या, "भूतदात्री" - भूतों को देने वाली, "भूतपीडाविमर्दिका" - भूत पीड़ा को नष्ट करने वाली, "नारदस्तुतचारित्रा" - नारद ऋषि द्वारा स्तुत, "वरदेशा" - वरदेश की निवासी, "वरप्रदा" - वरदेने वाली, "वामदेवस्तुता" - वामदेव ऋषि द्वारा स्तुत, "कामदा" - कामनाओं को पूरा करने वाली, "सोमशेखरा" - सोमशेखर भगवान की पत्नी, "दिक्पालसेविता" - दिक्पालों की पूज्य, "भव्या" - भव्य, "भामिनी" - भामिनी (महिला श्रीरुपा), "भावदायिनी" - भावना प्रदान करने वाली।
स्त्रीसौभाग्यप्रदात्री च भोगदा रोगनाशिनी ।
व्योमगा भूमिगा चैव मुनिपूज्यपदाम्बुजा ।
वनदुर्गा च दुर्बोधा महादुर्गा प्रकीर्तिता ॥
फलश्रुति
इतीदं कीर्तिदं भद्र दुर्गानामसहस्रकम् ।त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत् ॥
बालग्रहादिपीडायाः शान्तिर्भवति कीर्तनात् ॥
"इस भद्र दुर्गानाम सहस्रनाम स्तोत्र का नित्य त्रिसंध्या में पाठ करने वाले व्यक्ति के लिए लक्ष्मी स्थिर रहती है। बिना किसी संदेह के, ग्रह, भूत, पिशाच, और अन्य पीड़ाएँ नष्ट हो जाती हैं। बच्चों के ग्रहों और पीड़ाओं से होने वाली परेशानियों का शांति मिलता है, यह स्तोत्र की चौपाईयों की रचना से होता है।"
मारिकादिमहारोगे पठतां सौख्यदं नृणाम् ।
व्यवहारे च जयदं शत्रुबाधानिवारकम् ॥
आयुरारोग्यदं पुंसां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥
इस श्लोक में कहा गया है कि माँ दुर्गा के सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से महारोगों का नाश होता है और लोगों को स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र व्यवहार में जीत दिलाने में भी सहायक होता है और शत्रुओं के प्रति रक्षा करने में भी मदद करता है। दम्पत्यों के बीच जब कलह होती है, तो यह स्तोत्र प्रेम को बढ़ावा देता है और जीवन में खुशियों को बढ़ावा देता है। यह भी बताया गया है कि यह स्तोत्र व्यक्ति को दीर्घायु और आरोग्य प्रदान करता है, और सम्पूर्ण संपत्ति का प्रदान करने वाला है।
शुभदं शुभकार्येषु पठतां शृणुतामपि ॥
पुष्पैः कुङ्कुमसम्मिश्रैः स तु यत्काङ्क्षते हृदि ॥
तत्सर्वं समवाप्नोति नास्ति नास्त्यत्र संशयः ।
यन्मुखे ध्रियते नित्यं दुर्गानामसहस्रकम् ॥
दुर्गानामसहस्रस्य पुस्तकं यद्गृहे भवेत् ॥
न तत्र ग्रहभूतादिबाधा स्यान्मङ्गलास्पदे ।
तद्गृहं पुण्यदं क्षेत्रं देवीसान्निध्यकारकम् ॥
देवतायाः प्रसादेन सर्वपूज्यः सुखी भवेत् ॥
इत्येतन्नगराजेन कीर्तितं मुनिसत्तम ।
गुह्याद्गुह्यतरं स्तोत्रं त्वयि स्नेहात् प्रकीर्तितम् ॥
हृदि धारय नित्यं त्वं देव्यनुग्रहसाधकम् ॥
॥इति श्रीस्कंदपुराणे स्कंदनारदसंवादे दुर्गासहस्त्रनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम ॥