Panch Dev : संपूर्ण पञ्चदेव पूजन विधि,मंत्र


हिन्दू धर्म के प्रत्येक मांगलिक कार्य या पूजा आदि में पंच देव की पूजा का विधान है। इनके बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है। इन पंचदेवों की पूजा जानिए पंचदेव (Panch Dev) पूजन विधि, मंत्र और महत्व, अपनाएं धार्मिकता का अनुभव।

Panch Dev : पञ्चदेव पूजन विधि,मंत्र,महत्व


Panch Dev : पञ्चदेव कौन है

सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु—ये पंचदेव कहे गए हैं। इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिए। प्रतिदिन पंचदेव-पूजा अवश्य करनी चाहिए। यदि वेदों के मन्त्र अभ्यस्त न हों, तो आगमोक्त मन्त्रों से, यदि वे भी अभ्यस्त न हों तो नाम-मन्त्रों से और यदि यह भी संभव न हो तो बिना मन्त्र के ही जल, चन्दन आदि चढ़ाकर पूजा करनी चाहिए।यहाँ सामान्यरूपसे पूजाकी विधि दी जा रही है। साथ-साथ नाम-मन्त्र भी हें । जो श्लोकोंका उच्चारण न कर सकें, वे नाममन्त्रसे षोडशोपचार पूजन करें ।

Panch Dev : पञ्चदेव पूजन विधि,मंत्र,महत्व

निचे  सामान्यरूपसे पूजाकी विधि दी जा रही है। साथ-साथ नाम-मन्त्र भी हें । जो श्लोकोंका उच्चारण न कर सकें, वे नाममन्त्रसे षोडशोपचार पूजन करें ।  

गणेश-स्मरण

हाथ में पुष्प-अक्षत आदि लेकर प्रारम्भमें भगवान्‌ गणेशजीका स्मरण करना चाहिये तथा निचे दिए गए मंत्र को पढ़े


सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो . गजकर्णकः। 
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥ 

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । 
द्वादशैतानि नामानि यः पटेच्छुणुयादपि ॥ 

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। 
संग्रामे संकटे चैव विज्नस्तस्य न जायते॥ 

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। 
उमामहेश्वराभ्यां नमः। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। 
शचीपुरन्दराभ्यां नमः। मातृपितृचरणकमलेभ्यो नम: ।
इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । 
ग्रामदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः।
 स्थानदेवताभ्यो नमः। एतत्कर्मप्रधानदेवताभ्यो नम: ।
 सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः

फिर सर्वप्रथम पूजनका संकल्प ले फिर उसके बाद घंटा का पूजन करते हुए इस मंत्र का उपयोग करे 

आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं च रक्षसाम्‌। कुरु घण्टे बरं नादं देवतास्थानसंनिधो ॥

प्रार्थना के  बाद घण्टाको बजाये और यथास्थान रख दे। 

घण्टास्थिताय गरुडाय नमः ।' 

इस नाममन्त्रसे घण्टेमें स्थित गरुडदेवका भी पूजन करे।

शङ्कपूजन--

शङ्कमें दो दर्भ या दूब, तुलसी और फूल डालकर “ओम' कहकर उसे सुवासित जलसे भर दे । इस जलको गायत्री-मन्त्रसे अभिमन्त्रित कर दे।

पृथिव्यां यानि तीर्थानि स्थावराणि चराणि च । तानि तीर्थानि शङ्खेऽस्मिन्‌ विशन्तु ब्रह्मशासनात्‌ ॥ 

तब “शङ्काय नमः, चन्दनं समर्पयामि’ कहकर चन्दन लगाये और “शङ्खाय नमः, पुष्पं समर्पयामि’ कहकर फूल चढ़ाये। 

इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर शङ्खको प्रणाम करे 

त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधूतः करे । 
निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य ! नमोऽस्तु ते॥


 प्रोक्षण- शङ्खमेँ रखी हुई पवित्रीसे निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर अपने ऊपर तथा पूजाकी सामग्रियोंपर जल छिड़के-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। 
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

कलश की पूजा--

सुवासित जलसे भरे हुए उदकुम्भ (कलश) की 'उदकुम्भाय नमः? इस मन्त्रसे चन्दन, फूल आदिसे पूजा कर इसमें तीर्थोका आवाहन करे 

श्री कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥ 
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः॥
कुक्षो तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा । 
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री शांति पुष्टिकरी तथा।॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीथर्यानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम कामस्य दुरितक्षयकारकाः॥
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन्‌ सन्निधिं कुरु।

इसके बाद निम्नलिखित मन्त्रसे उदकुम्भ (कलश) की प्रार्थना 

देबदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ । 
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ ! विधृतो विष्णुना स्वयम्‌ ॥ 
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः । 
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ॥ 
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः ।
 आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः ॥ 
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः ।
 त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं कर्तुमीही जलोद्भव ! 
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ॥' 

अब पञ्चदेवोंकी पूजा करे | सबसे पहले ध्यान करे

विष्णुका ध्यान


उद्यत्कोटिदिवाकराभमनिशं शङ्खं गदां पङ्कजं
चक्र बरिश्रतमिन्दिरावसुमतीसंशोभिपार्श्वदह्य
कोटीराङ्गदहारकुण्डलधरं पीताम्बरं कौस्तुभै
दीप्तं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छीवत्सचिह्णं भजे ॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ विष्णवे न


उदीयमान करोड़ों सूर्यके समान प्रभातुल्य, अपने चारों हाथोंमें शङ्क, गदा, पद्म तथा चक्र धारण किये हुए एवं दोनों भागोंमें भगवती लक्ष्मी ओर पथ्वीदेवीसे सुशोभित, किरीट, मुकुट, केयूर, हार और कुण्डलोंसे समलङ्ककौस्तुभमणि तथा पीताम्बरसे देदीप्यमान विग्रहयुक्त एवं वक्षःस्थलपर श्रीवत्सचिह्व धारण किये हुए भगवान्‌ विष्णुका मैं निरन्तर स्मरण-ध्यान करता हूँ।

शिवका ध्यान

ध्यानेनित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं 
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गै परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌। 
पद्मासीनं समन्तात्‌ स्तुतममरगणैर्व्याध्कृत्तिं वसानं 
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥ 
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ शिवाय नमः ।


चाँदीके पर्वतके समान जिनकी श्वेत कान्ति है, जो सुन्दर चन्द्रमाको आभूषण-रूपसे धारण करते हैं, रत्ममय अलङ्कारोंसे जिनका शरीर उज्ज्वल है, जिनके हाथोंमें परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा है, जो प्रसन्न हैं, पदके आसनपर विराजमान हैं, देवतागण जिनके चारों ओर खड़े होकर स्तुति करते हैं, जो बाघकी खाल पहनते हैं, जो विश्वके आदि जगत्की उत्पत्तिके बीज और समस्त भयोंको हरनेवाले हैं, जिनके पाँच मुख और तीन नेत्र हैं, उन महेश्वरका प्रतिदिन ध्यान करे 

गणेशका ध्यान

खर्व स्थूलतनुँ, गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं, सुन्दरं प्रस्यन्द्न्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्‌। दन्ताघातवरिदारितारिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरं। बन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्‌॥ ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। ॐ श्रीगणेशाय।


अर्थ: जो बड़े शारीरिक रूप में हैं, गज के समान वदनवाले, बड़े पेट वाले और सुंदर, जिनका मुख प्रसन्नता से भरा हुआ है, जिनकी गंध से भरी हुई है और जो मधुप और व्याली के समान पुंडरीक गण्ड स्थल पर विराजमान हैं। जिनके दाँत अच्छे तरह से बड़े हैं, और जिनका मुख रक्त से सिंदूर भरा हुआ है। मैं शैलसुत के सुत गणपति की पूजा करता हूँ, जो सिद्धि और कामना प्रदान करने वाले हैं। ध्यानार्थ अच्छे से अक्षतपुष्पों को समर्पित करता हूँ। ॐ श्रीगणेशाय।

सूर्यका ध्यान

क्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं भानु समस्तजगतामधिषं भजामि। पद्मदयाभयवरान्‌ दधतं कराब्जैमाणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्‌॥ ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्रीसूर्याय नमः।


लाल कमलके आसनपर समासीन, सम्पूर्ण गुणोंके रत्नाकर, अपने दोनों हाथोंमें कमल और अभयमुद्रा धारण किये हुए, पद्मराग तथा मुक्ताफलके समान सुशोभित शरीरवाले, अखिल जगतके स्वामी, तीन नेत्रोंसे युक्त भगवान्‌ सूर्यका मैं ध्यान करता हूँ।

दुर्गाका ध्यान

सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः शङ्कं चक्रधनुःशरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता। आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्जीरणन्नूपुरा दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्मोल्लसत्कुण्डला। ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्रीदुर्गायै नमः।


जो सिंहकी पीठपर विराजमान हैं, जिनके मस्तकपर चन्द्रमाका मुकुट है, जो मरकतमणिके समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओंमें शङ्क, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, तीन नेत्रॉसे सुशोभित होती हैं, जिनके भिन्न-भिन्न अङ्ग बाँधे हुए बाजूबंद, हार, कङ्कण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरोंसे विभूषित हैं तथा जिनके कानोंमें रत्मजटित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं, वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करनेवाली हों। अब हाथमें फूल लेकर आवाहनके लिये पुष्पाञ्जलि दे।

 पुष्पाञ्जलि मंत्र - ॐ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गाभ्यो नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।


सन मंत्र   कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम्‌ ॥ । ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आसनार्थे तुलसीदलं ` समर्पयामि । (तुलसीदल समर्पण करे |)

पाद्य मंत्र (चरण वंदना मंत्र )-- गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम्‌। पाद्यार्थं सम्प्रदास्यामि गृह्वन्तु परमेश्वराः ॥ ॐविष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि । ` (जल अर्पण करे |)


अर्घ्य मंत्र --गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्ध्य सम्पादितं मया। गृह्नन्त्वर्घ्यं॑ महादेवा: प्रसन्नाश्च भवन्तु मे॥ ` ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि । (गन्ध, पुष्प, अक्षत मिला हुआ अर्घ्य अर्पण करे |) 


आचमन--कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्‌ । तोयमाचमनीयार्थ गृह्णन्तु परमेश्वराः ॥ ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि । (कर्पूरसे सुवासित सुगन्धित शीतल जल समर्पण करे |)


 स्नान--मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागुरुवासितैः । स्नानं कुर्वन्तु देवेशा जलैरेभिः सुगन्धिभिः ॥ ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि । (शुद्ध जलसे स्नान कराये |) 

आचमन --स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (स्नान करानेके बाद आचमनके लिये जल दे |) 


पञ्चामृत-स्नान--पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्‌। पञ्चामृत मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्णताम्‌॥ ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि । (पञ्चामृतसे स्नान कराये ।)


गान्धोदकस्नान--मलयाचलसम्भूतचन्दनेन विमिश्रितम्‌। इदं गन्धोदकं स्नानं कुङ्कमाक्तं नु गृह्यताम्‌ ॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, गन्धोदकं समर्पयामि । (मलय चन्दनसे सुवासित जलसे स्नान कराये ।)गन्धोदकस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानम्‌ (गन्धोदक-स्नानके बाद शुद्ध जलसे स्नान कराये ।) 

शुद्धोदकस्नान-मलयाचलसम्भूतचन्दनाऽगरुमिश्रितम्‌ ।सलिलं देवदेवेश ! शुद्धस्नानाय गृह्यताम्‌ ॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

 (शुद्धोदकसे स्नान करानेके बाद आचमन करनेके लिये पुनः जल चढ़ाये ।) 

आचमन--शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । वस्त्र और उपवस्त्र--शीतवातोष्णसंत्राणे लोकलज्जानिवारणे ।देहालङ्करणे वस्त्रे भवद्भ्यो वाससी शुभे ॥ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, वस्त्रमुपवस्त्रं च समर्पयामि ।

(वस्त्र और उपवस्त्र चढ़ानेके बाद आचमनके लिये जल चढ़ाये।)

आचमन--वस्त्रोपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । यज्ञोपबीत--नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्‌ ।उपवीतं मया दत्तं गृह्णन्तु परमेश्वराः ॥ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि । 

(यज्ञोपवीत चढ़ानेके बाद आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)

आचमन --यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । चन्दन --श्रीर्रण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्‌।विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्‌॥ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, चन्दनानुलेपनं समर्पयामि ।

(सुगन्धित मलयं चन्दन लगाये |)

पुष्पमाला माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः । मयाऽऽहतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्णताम्‌॥ॐ
 विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, पुष्पाणि (पुष्पमालाम्‌) समर्पयामि ।

 (मालती आदिके पुष्प चढ़ाये ।) 

तुलसीदल और मञ्जरी--तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम्‌ ।
भवमोक्षप्रदां रम्यामर्पयामि हरिप्रियाम्‌॥ॐ  विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः,
 तुलसीदलं मञ्जरीं च समर्पयामि ।

 (तुलसीदल और तुलसी-मञ्जरी समर्पण करे |)
(भगवानके आगे चौकोर जलका घेरा डालकर उसमें नैवेद्यकी वस्तुओंको रखे तब धूप-दीप निवेदन करे |)

धूप वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ  विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, धृपमाघ्रापयामि । ( धूपदिखाये) 

दीप-साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृह्णन्तु देवेशास्रेलोक्यतिमिरापहम्‌॥
ॐ बिष्णुपञ्जायतनदेवताभ्यो नमः , दीपं दर्शयामि । (दीप 

हांथ धोकर नैवेद्य निवेदन करे

नैवेद्य--शर्कराखण्डखाद्यानि दधषिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नेवेद्य प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
३% विष्णुपञ्जायतनदेवताभ्यो नमः, नैवेद्यं निवेदयामि। (नैवेद्य निवेदित करे |)
नैवेद्यान्ते ध्यानं ध्यानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थ मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि

नैवेद्य देनेके बाद भगवानका ध्यान करे (मानो भगवान्‌ भोग लगा रहे हैं) । ध्यानके बाद आचमन करनेके लिये जल चढ़ाये और मुखप्रक्षालनके लिये तथा हस्त-प्रक्षालनके लिये जल दे।

ऋतुफल--इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव । तेन मै सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥
ॐ  विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि । मध्ये आचमनीयं उत्तरापोऽशनं च जलं समर्पयामि । (ऋतुफल अर्पण करे इसके बाद आचमन तथा उत्तरापोऽशनके लिये जल दे ।)

ताम्बूल--पूगीफलं महद्‌ दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्‌ ।
एलालवंगसंयुक्तं ताम्तूलं प्रतिगृह्णताम्‌ ॥ | ३% विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि ।

 (सुपारी, इलायची, लवंगके साथ पान चढ़ाये ।)
दक्षिणा--हिरण्यगर्भगर्भस्थ॑ हेमबीजं विभावसोः । अनन्तपुण्यफलदमतः शान्ति प्रयच्छ मे॥
ॐ  विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।

(दक्षिणा चढ़ाये) 

आरती--कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्‌ । | आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदो भव ॥ | ॐ  विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आरार्तिकं समर्पयामि 

(कर्पूरकी आरती करे और आरतीके बाद जल गिरा दे ।)

शङ्क-श्रामण--शङ्खमध्ये स्थितं तोयं भ्रामितं केशवोपरि । | अङ्गलग्नं मनुष्याणां ब्रह्महत्यां व्यपोहति ॥

जलसे भरे शङ्खको पाँच बार भगवानके चारों ओर घुमाकर शङ्खको | यथास्थान रख दे । भगवानका अंगोछा भी घुमा दे । अब दोनों हथेलियोंसे |+ आरती ले। हाथ धो ले। शङ्खके जलको अपने ऊपर तथा उपस्थित लोगोंपर छिड़क दे ।
निम्नलिखित मन्त्रसे चार बार परिक्रमा 'करे (परिक्रमाका स्थान न हो तो अपने आसनपर ही चार बार घूम जाय) ।

प्रदक्षिणा -यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।


तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥ | ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि

 । (मन्त्र पढ़कर प्रदक्षिणा करे |)

मन्त्रपुष्पाञ्लि श्रद्धया सिक्तया भक्त्या हार्दप्रेम्णा समर्पितः । मन्त्रपुष्पाञ्जलिश्चायं कृपया प्रतिगृह्यताम्‌॥ ३ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।

 (पुष्पाञ्जलि भगवानके सामने अर्पण कर दे |) 

नमस्कार नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस््रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्त्रकोटीयुगधारिणे नमः ॥ ॐ विष्णुपञ्जायतनदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान्‌ समर्पयामि । (नमस्कार करे |)

चरणामृत-पान--अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्‌। विष्णुपादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ॥ (चरणामृतको पात्रमें लेकर ग्रहण करे | सिरपर भी चढ़ा ले ।) क्षमा-याचना मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । यत्पूजितं मया देव ! परिपूर्ण तदस्तु मे ॥ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥ अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । तस्मात्‌ कारुण्यभावेनः रक्ष मां परमेश्वर ॥

(इन मन्त्रोका श्रद्धापूर्वक उच्चारण कर अपनी विवशता एवं त्रुटियॉके लिये क्षमा-याचना करे ।)

प्रसाद-अ्हण--भगवानपर चढ़े फूलको सिरपर धारण करे। पूजासे बचे चन्दन आदिको प्रसादरूपसे ग्रहण करे । अन्तमें निम्नलिखित वाक्य पढ़कर समस्त कर्म भगवानको समर्पित कर दे-ॐ  तत्सद्‌ ब्रह्मार्पणमस्तु । ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ  विष्णवे नमः ।

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