श्रीदुर्गातोत्तरशतनामस्तोत्रम् अर्थ सहित:

 



श्रीदुर्गातोत्तरशतनामस्तोत्रम्" (Sri durga atstushatnam stotram)एक भजन है जिसमें देवी दुर्गा के 108 नाम शामिल हैं। स्तोत्रम में प्रत्येक नाम देवी के एक अद्वितीय गुण या पहलू से जुड़ा हुआ है। आइए इन नामों के अर्थों की विस्तृत व्याख्या करें:


श्रीदुर्गातोत्तरशतनामस्तोत्रम् अर्थ सहित:


Sri durga atstushatnam stotram:श्रीदुर्गातोत्तरशतनामस्तोत्रम्


शतनाम प्रवक्ष्यामि, शृणुष्व कमलानने।
यस्य प्रसादमात्रेण, दुर्गा प्रीता भवेत् सती॥


इस श्लोक में कहा गया है कि मैं श्रीदुर्गा के सौ नामों का पाठ करूंगा, कृपया सुनिए, हे कमलानने। जिसके प्रसाद से ही दुर्गा सती प्रीति से भर जाएं॥

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचन।
आर्यां दुर्गा जया चादा त्रिनेत्रा शूलधारिणी॥

- ॐ: यह ब्रह्म की प्रतिष्ठा को दर्शाता है, यहां पर दुर्गा माता का स्वरूप है।
- सती: वह जो सती स्वभाव धारण करती है, पतिव्रता।
- साध्वी: जो धर्मपरायण और सजीवता का आदर्श है।
- भवप्रीता: जो संसार में भगवान की प्रेमभावना से युक्त है।
- भवानी: जो संसार की रक्षा करने वाली है, दुर्गा माता का एक नाम।
- भवमोचन: जो संसार के बंधनों से मुक्ति प्रदान करने वाली है।
- आर्यां: जो श्रेष्ठतमा है, मानवता की उच्चता की प्रतीक।
- दुर्गा: यह शब्द दुर्गामा अर्थात "अस्त्र-शस्त्र से सुरक्षित" को दर्शाता है।
- जया: जो सदैव विजयी है, विजय की प्रतीक।
- चादा: जिसने विजय प्राप्त की है, जीत का आदान-प्रदान करने वाली।
- त्रिनेत्रा: जिनके तीन नेत्र हैं, शिव की भारतीय परंपरा में एक चिन्ह।
- शूलधारिणी: जिनके हाथ में त्रिशूल हैं, महाकाली का एक रूप।

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातफाः।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः॥


- पिनाकधारिणी: जो पिनाक (शिव का धनुष) धारण करती है, एक शिव अवतार।
- चित्रा: जो चमत्कारी और सुंदर है, इसका रूप।
- चण्डघण्टा: जो चमकीली घंटा धारण करती है, इसे पूजा जाने वाला शक्ति रूप।
- महातफाः: जिसकी ताकत बहुत अद्भुत है, या जो बहुत विशाल रूप से युक्त है।
- मन: मन, व्यक्ति की भावनाओं और अनुभवों का केंद्र।
- बुद्धि: बुद्धि, विचार और बुद्धिमत्ता का स्रोत।
- अहंकार: अहंकार, आत्मा के अपने आत्म-सम्मान और अपने आत्म-अभिमान का अभिव्यक्ति।
- चित्तरूपा: जो चित्त की रूप है, जो भावनाओं, भावनाओं, और अनुभवों का एक रूप है।
- चिता: जो अंतिम अद्भुतता और मोक्ष का प्रतीक है, अंतिम क्रियाओं की जगह।
- चितिः: जो सर्वव्यापी चेतना और ब्रह्म का स्वरूप है।

सर्वमन्त्रमयी सत्ता पत्यानन्दस्वरूपिणी।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सटदागतिः॥

- सर्वमन्त्रमयी: जो सम्पूर्ण मन्त्रों में समाहित है, सभी मन्त्रों की साकार स्वरूपिणी।
- सत्ता: जो सत्ता (शक्ति) की पूर्णता है।
- पत्यानन्दस्वरूपिणी: जो पति (भगवान) के आनंद की स्वरूप है, पतिव्रता।
- अनन्ता: जो अनंत (अनंतकल्पों तक) है, अनंत गुणों वाली।
- भाविनी: जो सत्य स्वरूप में है, भाववती।
- भाव्या: जो भविष्य में आवश्यक है, भविष्यवान है।
- भव्याभव्या: जो भूत, भविष्य, और वर्तमान सभी काल में साकार और निराकार है।
- सटदागतिः: जो सट (सबका स्थान) में स्थित है, सभी धरोहरों की गति है।

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रल्रप्रिया खदा।
सर्वविद्या दश्चकन्या क्षयस्षविनाशिनी॥


- शाम्भवी: जो शम्भु (भगवान शिव) की सन्तान है, देवी पार्वती।
- देवमाता: जो देवता की माता है, देवी पार्वती का एक नाम।
- चिन्ता: जो भक्तों की चिंता दूर करने वाली है।
- रल्रप्रिया: जो रल्र (रसिकता) में प्रिय है, भक्तों को अपनी प्रेमभावना से भरी रसिकता प्रदान करने वाली।
- खदा: जो भक्तों को बचाने में तत्पर है, सुरक्षित करने वाली।
- सर्वविद्या: जो सम्पूर्ण विद्याओं को जानती है, समस्त ज्ञान की रूप है।
- दश्चकन्या: दश (10) कन्याएँ, दशमहाविद्याओं की प्रतीक हैं, जिनमें भगवती का अद्भुत स्वरूप है।
- क्षयस्षविनाशिनी: जो सम्पूर्ण क्षय और नाश को नष्ट करने वाली है, सर्वदा निर्मल और अविनाशी है।

अपर्णानेकवर्णा च पाताला पाटलावती।
पलैताम्बरपरिधाना कलमञ्जिररञ्जिनी।


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- अपर्णानेकवर्णा: जो अपर्णा नामक देवी है और जिनके विभिन्न रंग हैं, विभिन्न रंगों में रूप धारण करने वाली।
- च: और
- पाताला: जो पाताल (नीचे) की तरह गहरे हैं, महाकाली का एक रूप।
- पाटलावती: जो पाटला की तरह सुंदर है, सुंदरता में समृद्धि करने वाली।
- पलैताम्बरपरिधाना: जो पलैताम्बर (परिधान) पहने हुए है, भगवती का एक नाम जिससे उनकी परिधानशक्ति का बोध होता है।
- कलमञ्जिररञ्जिनी: जो कलम (कला) और मञ्जिर (बेल) से सजीव है, सुंदर शृंगार और सुरमा बेलों के साथ रंगी हुई।


अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी,
वनदुर्गा च मातङ्गी मतद्कमुनिपूजिता॥


- अमेयविक्रमा: जो अपनी अमित वीरता के लिए प्रसिद्ध है, जिसकी वीरता अव्यापक है।
- क्रूरा: जो क्रूर (कठिन) है, भयानक रूप से युक्त है।
- सुन्दरी सुरसुन्दरी: जो सुन्दरी और देवों को भी सुन्दर लगने वाली है, सुन्दरता का सबसे सुंदर स्वरूप।
- वनदुर्गा: जो वन में निवास करने वाली है, वन दुर्गा कहलाती है।
- मातङ्गी: जो मातङ्गी रूप में पूजित होती है, महाकाली की एक रूप।
- मतद्कमुनिपूजिता: जो मतद्क (मत्स्य) के स्थान पर विराजमान है, जिसे मुनियों द्वारा पूजित किया जाता है॥

ब्राही माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।
चामुण्डा चेव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- ब्राही: जो ब्रह्मा रूप है, ब्रह्माणी या सरस्वती देवी।
- माहेश्वरी: जो महेश्वर (शिव) की शक्ति है, पार्वती देवी।
- चैन्द्री: जो चन्द्रमा की रूपवती है, चांदनी देवी।
- कौमारी: जो कुमार की रूप में है, स्कंदमाता या कार्तिकेय माता।
- वैष्णवी: जो विष्णु की शक्ति है, लक्ष्मी देवी।
- चामुण्डा: जो चमुण्डा रूप है, दुर्गा देवी का एक उपासनीय स्वरूप।
- चेव: और
- वाराही: जो वाराह (भगवान विष्णु के अवतार) की शक्ति है, वाराही देवी।
- लक्ष्मीश्च: और लक्ष्मीपति, श्रीनाथ (विष्णु)।
- पुरुषाकृतिः: जो पुरुष की रूप है, शक्ति के साथ पुरुष का सम्बंध।

विमलोत्कषिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- विमलोत्कषिणी: जो नीरमिष (शुद्ध) और उत्कृष्ट नेत्रों वाली है, जो सब प्रकार से पवित्र और स्पष्ट दृष्टि वाली है।
- ज्ञाना: जो ज्ञान की रूप में है, ज्ञान स्वरूपिणी।
- क्रिया: जो सदैव क्रियाशील है, सकारात्मक क्रियाएं करने वाली।
- नित्या च: और सदैव ऐसी है, सदा के लिए अस्तित्व में रहने वाली।
- बुद्धिदा: जो बुद्धि का दाता है, ज्ञान और बुद्धि में सुदृढ़ता प्रदान करने वाली।
- बहुला: जो बहुता से युक्त है, जिनमें अनगिनत गुण हैं।
- बहुलप्रेमा: जो अनगिनत प्रेम से युक्त है, बहुता से प्रेम करने वाली।
- सर्ववाहनवाहना: जो सम्पूर्ण वाहनों की वाहना है, सभी यातायात साधनों की प्रेरणा करने वाली।

निशम्भशुम्भहननी महिषासुरमदिनी।
मधुकेटभहन्तरी च वण्डमुण्डविनाशिनी॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- निशम्भशुम्भहननी: जो निशम्भ और शुम्भ को हनन करने वाली है, महिषासुरमर्दिनी देवी।
- महिषासुरमदिनी: जो महिषासुर को मारने वाली है, दुर्गा देवी।
- मधुकेटभहन्तरी: जो मधुकेट (शुद्धि का प्रतीक) को हंता है, सरस्वती देवी।
- च: और
- वण्डमुण्डविनाशिनी: जो वण्ड (शंबर और निशुम्भ के साथ) और मुण्ड (महिषासुर के साथ) को नाश करने वाली है, दुर्गा देवी।

सर्वासुरविनाश्ना च सर्वदानवघातिनी
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास््रधारिणी तथा॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- सर्वासुरविनाश्ना: जो सम्पूर्ण असुरों को नष्ट करने वाली है, भगवती दुर्गा।
- च: और
- सर्वदानवघातिनी: जो सम्पूर्ण दानवों को मारने वाली है, असुरों का विनाश करने वाली।
- सर्वशास्त्रमयी: जो सम्पूर्ण शास्त्रों में बनी हुई है, सभी शास्त्रों का ज्ञान रखने वाली।
- सत्या: जो सत्य स्वरूपी है, सत्य की प्रतिष्ठा करने वाली।
- सर्वास््रधारिणी: जो सम्पूर्ण सृष्टि का सार है, सभी धाराओं को समर्थित करने वाली।

अनेकञ्ञस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी।
कुमारी चैककन्या च केशोरी युवती यतिः॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- अनेकञ्ञस्त्रहस्ता: जो अनेक ज्ञान के अस्त्रों के साथ है, अनगिनत शस्त्रों के हाथों वाली। - च: और - अनेकास्त्रस्य धारिणी: जो अनेक शस्त्रों का धारण करने वाली है, बहुतायत शस्त्रों का धारण करने वाली। - कुमारी: जो कुमारी रूप में है, युवा कन्या या युवती जो अभी युवा है। - चैककन्या च: और एकाकन्या भी, एक ही कन्या जो अद्वितीय है। - केशोरी: जो केशरी (विशालकाय) रूप में है, भगवान शिव की पत्नी, पार्वती देवी। - युवती: जो युवता (युवा वय) में है, युवा महिला या युवती।
- यतिः: जो योगी या सन्यासी है, जो त्याग और आत्मसंयम में निष्ठावान है।

अप्रोढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- अप्रोढा: जो अप्रोढ (असीम) है, अतीत, भविष्य और वर्तमान को समझने में सक्षम है। - चैव: और - प्रौढा: जो प्रौढ (सुदृढ़ और स्थिर) है, स्थिरता और बल का स्रोत है। - च: और - वृद्धमाता: जो वृद्ध (बुढ़ापे) की अवस्था में भी मातृस्वरूप है, जीवन को परिपूर्ण करने वाली। - बलप्रदा: जो बल (शक्ति) प्रदान करने वाली है, शक्ति का स्रोत है। - महोदरी: जो महान उदार और विशाल दृष्टि वाली है, जो समृद्धि और प्रचुरता की ओर संकेत करती है। - मुक्तकेशी: जो मुक्तकेश (मुक्त बालों वाली) है, जो नीति, सत्य और सरलता का प्रतीक है। - घोररूपा: जो भयंकर रूप में है, जो उग्र और भयंकर रूप में प्रकट होती है।
- महाबला: जो महान बल (शक्ति) से युक्त है, जो अद्भुत शक्ति का स्रोत है।

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- अग्निज्वाला: जो अग्नि की तरह तेजस्वी है, जो ज्ञान और उत्साह की अग्नि को प्रतिष्ठित करती है। - रौद्रमुखी: जो रौद्र (भयंकर) मुखवाली है, भयानक स्वरूप में प्रकट होने वाली है। - कालरात्रिस्तपस्विनी: जो कालरात्रि रूप में है, जो तपस्विनी है और रात्रि की देवी है। - नारायणी: जो नारायणी रूप में है, भगवान विष्णु की शक्ति और स्वरूप में है। - भद्रकाली: जो भद्रकाली रूप में है, भक्तों की रक्षा करने वाली देवी। - विष्णुमाया: जो विष्णुमाया रूप में है, भगवान विष्णु की शक्ति।
- जलोदरी: जो जल (पानी) की तरह विशाल पेटवाली है, समृद्धि और समृद्धि का प्रतीक है॥

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रहावादिनी॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- शिवदूती: जो शिव की दूता है, भगवान शिव की शक्ति और उनकी वाहिनी।
- कराली च: और कराली भी, जो भयंकर रूप में है, भयानक स्वरूप में प्रकट होने वाली है।
- अनन्ता: जो अनंत (अनंत गुणों से युक्त) है, जो अनंत लोकों की सृष्टि करने वाली है।
- परमेश्वरी: जो सर्वोच्च ईश्वरी है, सर्वशक्तिमान परमेश्वरी देवी।
- कात्यायनी: जो कात्यायनी रूप में है, भगवान कात्यायनी की शक्ति और स्वरूप में है।
- च: और
- सावित्री: जो सावित्री रूप में है, सावित्री देवी की शक्ति और स्वरूप में है।
- प्रत्यक्षा: जो प्रत्यक्ष (साक्षात्कार का कारण) है, सबको प्रत्यक्ष दर्शन कराने वाली है।
- ब्रहावादिनी: जो ब्रहा (ब्रह्मा) आदि देवताओं का वाद और ब्रह्मवाद (ब्रह्म का ज्ञान) करने वाली है॥

य॒ इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।
नासाध्यं विद्टाते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति॥


- य॒ इदं प्रपठेन्नित्यं: जो व्यक्ति या भक्त नित्य पठता है, वह यह मंत्र।
- दुर्गानामशताष्टकम्: दुर्गा के एकशत् ताष्टक (108) नामों का समूह।
- नासाध्यं: जिसे साधा नहीं जा सकता, जिसका साधन असम्भव है।
- विद्टाते: जो विजयी है, जो जीता गया है।
- देवि: हे देवी, भगवती दुर्गा।
- त्रिषु लोकेषु: तीनों लोकों में।
- पार्वति: हे पार्वती, शिव की पत्नी, जिनका दूसरा नाम पार्वती है॥

इस मंत्र का अर्थ है कि जो व्यक्ति या भक्त नित्य इस दुर्गा के एकशत् ताष्टक नामों का पाठ करता है, वह दुर्गा देवी की कृपा से सभी लोकों में विजयी होता है और किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है।

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।
चतुर्वर्ग तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्चतीम्॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- धनं: धन, समृद्धि और संपत्ति। - धान्यं: धान्य, सुखद और शुभ। - सुतं: पुत्र, संतान। - जायां: पत्नी, सती। - हयं: घोड़ा, शक्तिशाली और गतिशीलता। - हस्तिनमेव च: हाथी, बलशाली और प्रबलता। - चतुर्वर्ग: चार वर्ग, अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। - तथा चान्ते: और अन्य क्षेत्रों में भी। - लभेन्मुक्तिं च शाश्चतीम्: मुक्ति (मोक्ष) और शाश्वती धर्म (भगवान की अच्युत शक्ति)।
इस मंत्र का अर्थ है कि जो व्यक्ति या भक्त धन, सुख, संतान, शक्ति, बल, चार वर्गों में सम्मान, मुक्ति, और अच्युत धर्म को प्राप्त करता है, वह जीवन में पूर्णता की प्राप्ति करता है।


कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्ठः


- कुमारीं पूजयित्वा तु: कुमारी रूप में पूजन करके,
- ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्: ध्यान में लेकर शक्ति की पूजा करने वाली देवी को,
- पूजयेत् परया भक्त्या: परम भक्ति से पूजन करे,
- पठेन्नामशताष्ठः: इस मंत्र को पठने से 108 बार,

इस मंत्र का अर्थ है कि जो भक्त परम भक्ति और श्रद्धा के साथ कुमारी रूप में शक्ति की पूजा करता है और इस मंत्र को 108 बार पठता है, वह देवी सुरेश्वरी की कृपा से समृद्धि, सुख, और मोक्ष को प्राप्त करता है।

तस्य सिद्धिभवेद् देवि स्वैः सुरवैरपि।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात्॥


- तस्य: उसके,
- सिद्धिभवेद्: सिद्धि हो,
- देवि: हे देवी,
- स्वैः सुरवैरपि: अपने सुर और देवता साथ हो या न हो,
- राजानो: राजा,
- दासतां यान्ति: सेवा में जुटते हैं,
- राज्यश्रियमवाप्नुयात्: राज्य और श्री (समृद्धि) प्राप्त होती है।

इस मंत्र का अर्थ है कि हे देवी, जिसका सेवन सुरों या देवताओं से साथ हो या न हो, उसकी सिद्धि होती है और राजा दासों के सेवा में जुटता है और राज्य और श्री को प्राप्त होता है।

गोरोचनालक्तककुङ्कमेन सिन्दूरकपुंरमधुत्रयेण ।
विलिख्य यत्र विधिना विधिस्रो भवेत्सदाधारयते पुरारिः ॥


- गोरोचना: गौ की चर्मनिर्मित,
- लक्तककुङ्कमेन: लाल पिगमेंट (कुङ्कुम) से युक्त,
- सिन्दूरकपुंरमधुत्रयेण: सिन्दूर, कपूर और मधु द्वारा,
- विलिख्य: लिखकर,
- यत्र: जहां,
- विधिना: विधि के अनुसार,
- विधिस्रो भवेत्: विधि परिपालन करने वाला,
- सदा धारयते: सदा धारण करता है,
- पुरारिः: शिव (पुरारी, पुरमेवारी)।

इस मंत्र का अर्थ है कि जहां गौ में से निकली गोरोचना, लाल पिगमेंट, सिन्दूर, कपूर, और मधु को विधि के अनुसार लिखकर रखा जाता है, वहां शिव सदा धारण करते हैं और उस स्थान में शिव शक्ति का आवास होता है।

भोमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते,
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पटम् ॥


इस मंत्र का अर्थ सहित विवरण:

- भोमावास्यानिशामग्रे: भूमि (भूमंडल) के अवास में और रात्रि के समय, - चन्द्रे शतभिषां गते: चंद्रमा की शत-बिशा (विशेष प्रकार से योग्यता) के समय, - विलिख्य: लिखकर, - प्रपठेत् स्तोत्रं: स्तोत्र पठे, - स भवेत् सम्पदां पटम्: वह धन, समृद्धि और सुख का पट (सम्पदा) होता है।
इस मंत्र का अर्थ है कि जो व्यक्ति भूमि पर रात्रि के समय चंद्रमा की शत-बिशा के समय इस मंत्र को लिखकर और पठकर पूजा करता है, वह धन, समृद्धि, और सुख का प्राप्ति करता है।

॥ इति श्रीकिशखारतन्त्रे श्रीद्गणटित्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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