श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित


वैदिक  शास्त्रों के अद्भुत समुद्र में, श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (Shri Krishna Ashtottara Shatnam Stotram)एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो भगवान कृष्ण के 108 नामों में उनकी दिव्य गुणों को वर्णन करता है। यह पवित्र स्तुति भक्तों को आध्यात्मिक क्षेत्र से जोड़ने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करती है, हर नाम के पीछे छिपे अर्थों की गहराईयों को खोलती है। इस लेख में, हम श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (Shri Krishna Ashtottara Shatnam Stotram)को एक व्यापक हिंदी टिप्पणी के साथ जांचेंगे, इसके ज्ञान की गहराई को खोलते हुए।


श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित


Shri Krishna Ashtottara Shatnam Stotram :श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् हिंदी व्याख्या के साथ 


श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (Shri Krishna Ashtottara Shatnam Stotram) भगवान कृष्ण के 108 नामों को समर्पित है, प्रत्येक नाम में उसके दिव्य पर्सोना के एक विशेष पहलुओं को हाइलाइट करता है। हम इस आध्यात्मिक यात्रा पर चलते हैं, तो इन नामों के पीछे छिपे अर्थों और महत्व की गहराई में खोदना अत्यंत आवश्यक है। ये श्लोक न केवल भगवान कृष्ण की विभिन्न गुणों की सूची देते हैं, बल्कि भक्तों को दिव्य से गहरा संबंध स्थापित करने का एक मार्ग भी प्रदान करते हैं।

श्रीकृष्णः कमलानाथो वासुदेवः सनातनः।
वासुदेवात्मजः पुण्यो लीलामानुषविग्रहः॥ १ ॥


इसका अर्थ है:
श्रीकृष्ण, जो कमलानाथ हैं और वासुदेव, वह सनातन हैं।
वासुदेव के पुत्र, पुण्यमय हैं और उनकी लीलाएँ मानव रूप में होती हैं॥ १ ॥

श्रीवत्सकौस्तुभधरो यशोदावत्सलो हरिः।
चतुर्भुजात्तचक्रसिगदाशंखाद्युदायुधः॥ २ ॥


इसका अर्थ है:
श्रीवत्स-चिह्न और कौस्तुभ मणि को धारण करने वाले, यशोदा के प्रति प्रेमी, हरि।
चार हाथी वाले, चक्र, गदा, शंख आदि युद्ध-उपकरणों के साथ युक्त॥ २ ॥

देवकीनंदनः श्रीशो नंदगोपप्रियात्मजः।
यमुनावेगसंहारी बलभद्रप्रियानुजः॥ ३ ॥


इसका अर्थ है:
देवकी के पुत्र, श्रीश, नंदगोप के प्रिय पुत्र।
यमुना के तेज से समर्थ, बलभद्र के प्रिय भाई॥ ३ ॥

पूतनाजीवितहरः शकटासुरभंजनः।
नंदव्रजजनानंदी सच्चिदानंदविग्रहः॥ ४ ॥


इसका अर्थ है:
पूतना की जीवन हरण करने वाले, शकटासुर का वध करने वाले।
नंदग्राम के जनों का आनंदित करने वाले, सच्चिदानंद स्वरूप।॥ ४ ॥

नवनीतनवाहारी मुचुकंदप्रसादकः।
षोडशस्त्रीसहस्त्रेशस्त्रिभंगी मधुराकृतिः॥ ५ ॥

इसका अर्थ है: नवनीत (मक्खन) को लेकर खेलने वाले, मुचुकंद को आशीर्वाद देने वाले। षोडश शस्त्रों के सहस्त्रेश, त्रिभुज में नाट्य करने वाले, मधुर स्वरूप।॥ ५ ॥

शुकवागमृताब्धींदुर्गोविंदो गोविंदां पतिः।
वत्सपालनसंचारी धेनुकासुरभंजनः॥ ६ ॥

इसका अर्थ है: शुकवाक्य से अमृत समुद्र में व्याप्त, गोविंद, गोपियों का पति। वत्सों का पालन करने वाला, धेनुकासुर का वध करने वाला॥ ६ ॥

तृणीकृततृणावर्तो यमलार्जुनभंजनः।
उत्तालतालभेत्ता च तमालश्यामलाकृतिः॥ ७ ॥

इसका अर्थ है:
तृणी का रूप धारण करने वाले, यमुना के तीर में अर्जुन बन तोड़ने वाले।
ऊँची ताल के भेदक, तमाल वृक्ष की श्यामल आकृति वाले॥ ७ ॥

गोपगोपीश्वरो योगी सूर्यकोटिसमप्रभः।
इलापतिः परं ज्योतिर्यादवेंद्रो यदूद्वहः॥ ८ ॥


इसका अर्थ है:
गोपों और गोपियों का स्वामी, योगी, सूर्य को भी प्रकाशित करने वाले।
इला के स्वामी, परम ज्योति, यादवों के राजा, यदू वंश के वाहक॥ ८ ॥

वनमाली पीतवासाः पारिजातापहारकः।
गोवर्धनाचलोद्धर्ता गोपालः सर्वपालकः॥ ९ ॥


इसका अर्थ है:
वनमाला धारण करने वाले, पीताम्बर धारी, पारिजात के फूल चुराने वाले।
गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले, गोपाल, सभी का पालन करने वाले॥ ९ ॥

अजो निरंजनः कामजनकः कञ्जलोचनः।
मधुहा मथुरा नाथो द्वारका नायको बली॥ १० ॥


इसका अर्थ है:
अजन्मा, निर्मल, कामों का नाश करने वाले, कमल की आँखों वाले।
मथुरा के मधुनाथ, द्वारका के नायक, बलवान॥ १० ॥

वृन्दावनांतःसंचारी तुलसीदामभूषणः।
स्यमंतकमणेर्हर्ता नरनारायणात्मकः॥ ११ ॥


इसका अर्थ है:
वृन्दावन में विचरने वाले, तुलसीदामा का श्रृंगार करने वाले।
स्यमंतक मणि के मालिक, नर-नारायण के स्वरूप॥ ११ ॥


कुब्जाकृष्णांबरधरो मायी परमपूरुषः।
मुष्टिकासुरचाणूरमल्लयुद्धविशारदः॥ १२ ॥


इसका अर्थ है:
कुब्जा को उपहार देने वाले, कृष्ण रूप धारण करने वाले, मायावी, परमपुरुष।
मुष्टिक और चाणूर के साथ लड़ाई में निपुण, युद्ध में विशारद।॥ १२ ॥

संसारवैरी कंसारिर्मुररिर्नरकांतकः।
अनादिर्ब्रह्मचारी च कृष्णाव्यसनकर्षकः॥ १३ ॥


इसका अर्थ है:
संसार का शत्रु, कंस का संहार करने वाले, नरक के विनाशकारी।
अनादि और ब्रह्मचारी, कृष्ण का अवसान करने वाले॥ १३ ॥

शिशुपालशिरश्छेत्ता दुर्योधनकुलांतकृत्।
विदुराक्रूरवरदो विश्वरूपप्रदर्शकः॥ १४ ॥


इसका अर्थ है:
शिशुपाल के शिर को काटने वाले, दुर्योधन के कुल को संहार करने वाले।
विदुर को क्रूरता से मुक्त करने वाले, विश्वरूप का प्रदर्शन करने वाले॥ १४ ॥

सत्यवाक् सत्यसंकल्पः सत्यभामारतो जयी।
सुभद्रापूर्वजो विष्णुर्भीष्ममुक्तिप्रदायकः॥ १५ ॥


इसका अर्थ है:
सत्यवादी, सत्यसंकल्पी, सत्यभामा के साथ रत, जयशाली।
सुभद्रा के पूर्वज, विष्णु, भीष्म को मोक्ष प्रदाने वाले॥ १५ ॥

जगद्‌गुरुर्जगन्नाथो वेणुवाद्यविशारदः।
वृषभासुरविध्वंसी बाणासुरबलांतकृत्॥ १६ ॥


इसका अर्थ है:
जगत के गुरु, जगन्नाथ, वेणु (बाँसुरी) वादन में निपुण।
वृषभासुर का संहार करने वाले, बाणासुर को बलात्कारी बनाने वाले॥ १६ ॥

युधिष्ठिरप्रतिष्ठाता बर्हिबर्हावतंसकः।
पार्थसारथिरव्यक्तो गीतामृतमहोदधिः॥ १७ ॥


इसका अर्थ है:
युधिष्ठिर की स्थिति स्थापित करने वाले, बर्हि युग (त्रेता युग) में अवतंसक।
पार्थ (अर्जुन) के सारथि, अव्यक्त, गीता अमृत महासागर।॥ १७ ॥

कालीयफणिमाणिक्यरंजितश्रीपदांबुजः।
दामोदर यज्ञभोक्ता दानवेन्द्राविनाशनः॥ १८ ॥


इसका अर्थ है:
कालीय नाग की फणियों से रंजित, श्रीपद और अंबुज से सुशोभित।
दामोदर, यज्ञों का भोक्ता, दानवराजों का विनाशकारी॥ १८ ॥

नारायणः परब्रह्म पन्नगाशनवाहनः।
जलक्रिडासमासक्तगोपीवस्त्रापहारकः॥ १९ ॥


इसका अर्थ है:
नारायण, परम ब्रह्म, पन्नग (नाग) को भोजन देने वाले, वाहन रूप में गरुड़।
जलक्रीडा में लिप्त, गोपियों के वस्त्र चुराने वाले॥ १९ ॥

पुण्यश्लोकस्तीर्थकरो वेदवेद्यो दयानिधिः।
सर्वतीर्थात्मकः सर्वग्रहरूपः परात्परः॥ २० ॥


इसका अर्थ है:
पुण्यश्लोक, तीर्थात्मक, वेदों को जानने वाले, दयानिधि।
सभी तीर्थों के आत्मरूपी, सभी ग्रहों का स्वामी, परमपरायण।॥ २० ॥

इत्येवं कृष्णदेवस्य नाम्नमष्टोत्तरं शतम्।
कृष्णेन कृष्णभक्तेन श्रुत्वा गीतामृतं पुरा॥ २१ ॥


इसका अर्थ है:
इस प्रकार, श्रीकृष्ण देव के इस नामों का आठ सौ या उससे अधिक, कृष्ण भक्ति से युक्त, पूर्व में गीतामृत का श्रवण किया गया था॥ २१ ॥

स्तोत्रं कृष्णप्रियकरं कृतं तस्मान्मया पुरा।
कृष्णनामामृतं नाम परमानंददायकम्॥ २२ ॥


इसका अर्थ है:
इस प्रकार, मैंने पहले ही श्रीकृष्णप्रिय स्तोत्र का रचना किया है।
कृष्ण नाम का अमृत, परमानंद को प्रदान करने वाला है॥ २२ ॥

अत्युपद्रवदुःखघ्नं परमायुष्यवर्धनम्।
दानं श्रुतं तपस्तीर्थं यत्कृतं त्विह जन्मनि॥ २३ ॥


इसका अर्थ है:
अत्यंत परेशानीदायक, दुःखनाशक, अत्यंत आयु वृद्धि करने वाला।
दान, श्रुति, तपस्या, तीर्थ इस प्रदान किये गए हैं, जो मैंने इस जन्म में किए हैं॥ २३ ॥

पठतां श्रृण्वतां चैव कोटिकोटिगुणं भवेत् 
पुत्रप्रदमपुत्राणामगतीनं गतिप्रदम् ॥ २४ ॥


इसका अर्थ है:
जो भी इसे पढ़ें या सुनें, उन्हें कोटि-कोटि गुण मिलेंगे।
पुत्रप्रदान करने वाला और पुत्रहीनों को गति प्रदान करने वाला होगा॥ २४ ॥

धनावहं दरिद्राणां जयेच्छूनां जयावहम्।
शिशूनां गोकुलानां च पुष्टिदंपुष्टिवर्धनम्॥ २५ ॥


इसका अर्थ है:
धन को लेकर दरिद्रा लोगों का सहारा, जय को लेकर शूरा लोगों का सहारा।
शिशुओं का और गोकुल के निवासियों का सुरक्षा और पुष्टि देने वाला हूँ॥ २५ ॥

वातग्रहज्वरदीनां शमनं शांतिमुक्तिदम्।
समस्तकामदं सद्यः कोतिजन्माघनाशनम्॥ २६ ॥


इसका अर्थ है:
वात, ग्रह, ज्वर आदि की रोगों का शमन, शांति, मुक्ति प्रदान करने वाला हूँ।
सभी कामनाएँ सीधे हो जाती हैं, कोटि जन्मों के पापों का नाशक हूँ॥ २६ ॥

अन्ते कृष्णस्मरणदं भवताभयापहम्।
कृष्णाय यादवेंद्राय ज्ञानमुद्राय योगिने।
नाथाय रुक्मिणीशाय नमो वेदांतवेदिने॥ २७ ॥


इसका अर्थ है:
आखिर में, जो भी मुझे ध्यान करके कृष्ण की स्मृति देता है, भय को हरने वाला है।
कृष्ण, यादवों के राजा, ज्ञान के सारथि, योगी को, नाथ, रुक्मिणी के पति, वेदांत के ज्ञानी, हे नमन करता हूँ॥ २७ ॥

इम मन्त्रं महादेव जपन्नेव दिवानिशम्।
सर्वग्रहानुग्रहभाक् सर्वप्रियतमो भवेत्॥ २८ ॥


इसका अर्थ है:
यह महादेव मंत्र, दिन-रात जपने से, सभी ग्रहों की कृपा होती है और सभी प्रिय होता है॥ २८ ॥

पुत्रपौत्रैः परिवृतः सर्वसिद्धिसमृद्धिमान्।
निविश्य भोगानंतेऽपि कृष्णसायुज्यमाप्नुयात्॥ २९ ॥


इसका अर्थ है:
पुत्र-पौत्रों से घिरा हुआ, सम्पूर्ण सिद्धियों और समृद्धि से युक्त।
भोगों में रहकर भी कृष्ण के साथ एकीभाव (सायुज्य) को प्राप्त करता है॥ २९ ॥


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