पंचदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प


पंचदेव-पूजा (Panchdev Dev) में गणपति, गौरी, विष्णु, सूर्य और शिवकी पूजा की जाती है । यहाँ इन देवी-देवताओंके लिये विहित और निषिद्ध पत्र-पुष्प आदिका उल्लेख किया जा रहा है


पञ्चदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प


 Panchdev Dev:पञ्चदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प

पञ्चदेव देव-पूजा में विहित पत्र-पुष्प विभिन्न धार्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण हैं। इन पत्र-पुष्पों का उपयोग पञ्चदेव के पूजा-अर्चना में भगवान विष्णु, शिव, देवी, सूर्य और गणेश को समर्पित किया जाता है। 

विष्णु की पूजा में तुलसी, कमल, शंखपुष्प, अष्टपत्र, अपराजिता, इत्यादि पुष्प प्रयोग किए जाते हैं, जबकि शिव की पूजा में बेलपत्र, धातकी, केवड़ा,चमेली  नागकेशर, गुलाब, चम्पा आदि पुष्प चढ़ाए जाते हैं। 

देवी के पूजा में कमल, चमेली, जास्मीन, गुलाब, धातकी, अपराजिता इत्यादि पुष्पों का उपयोग होता है। सूर्य की पूजा में सूर्यकान्ति, सूर्यकमल, गुलाब, चमेली, कनेर, अखण्ड, इत्यादि पुष्प उपयोगी होते हैं। 

गणेश की पूजा में दूर्वा, कमल, चमेली, जास्मीन, रोज़ आदि पुष्पों का उपयोग किया जाता है। यह पुष्पों का उपयोग भक्ति और पूजा के अद्वितीय अनुभव को और भी गहरा और सात्त्विक बनाता है। 

हालांकि, कुछ पत्र-पुष्पों का उपयोग निषिद्ध माना जाता है जैसे काला तुलसी, अपमार्ग, अकबर, अर्क, अकौंड, शिरीष, रोहितक, आदि। ये पुष्प निषिद्ध माने जाते हैं क्योंकि इन्हें धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग करना अनुचित माना जाता है। 

गणपतिके लिये  विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प 

गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं। अतः सभी अनिषिद्ध पत्र-पुष्प इनपर चढ़ाये जाते हैं? । 


पंचदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प


  • गणपतिको दूर्वा अधिक प्रिय है। अतः इन्हें सफेद या हरी दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिये ।दूर्वाकी फुनगीमें तीन या पाँच पत्ती होनी चाहिये। 
  • गणपतिपर तुलसी कभी न चढाये । पद्मपुराण, आचाररलमें लिखा है कि “न तुलस्या गणाधिपम' अर्थात्‌ तुलसीसे गणेशजीकी पूजा कभी न की जाय । कार्तिक-माहात्म्यमें भी कहा है कि “गणेश तुलसीपत्रदुर्गा चैव तु दूर्वया' अर्थात्‌ गणेशजीकी तुलसीपत्रसे और दुर्गाकी दूर्वासे पूजा न करे।


देवीके लिये विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प 

  • गवान्‌ शङ्करकी पूजामें जो पत्र-पुष्प विहित हैं, वे सभी भगवती को भी प्रिय हैं। अपामार्ग उन्हें विशेष प्रिय है । शङ्करपर चढ़ानेके लिये जिन फूलोंका निषेध है तथा जिन फूलोंका नाम नहीं लिया गया है वे भी भगवतीपर चढ़ाये जाते हैं\।
  •  जितने लाल फूल हैं वे सभी भगवतीको अभीष्ट हैं तथा सुगन्धित समस्त श्वेत फूल भी भगवतीको विशेष प्रिय हें? ।

भगवती को 

  • बेला, 
  • चमेली, 
  • केसर, 
  • श्वेत और लाल फूल
  • श्वेत कमल, 
  • पलाश, 
  • तगर, 
  • अशोक, 
  • चंपा, 
  • मौलसिरी, 
  • मदार, 
  • कुंद, 
  • लोध, 
  • कनेर, 
  • आक, 
  • शीशम 
  • अपराजित (शंखपुष्पी) आदिके फूलोंसे देवीकी भी पूजा की जाती है ।

पंचदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प



इन फूलोंमें आक और मदार- इन दो फूलोंका निषेध भी मिलता है--'देवीनामर्कमन्दारौ..... (वर्जयेत) ' (शातातप) । अतः ये दोनों विहित भी हैं और प्रतिषिद्ध भी हें । जब अन्य विहित फूल न मिलें तब इन दोनोंका उपयोग करे। दुर्गासे भिन्न देवियोंपर इन दोनोंको न चढ़ाये । किंतु दुर्गाजीपर चढ़ाया जा सकता है, क्योंकि दुर्गाकी पूजामें इन दोनों विधान है" ।

शमी, अशोक, कर्णिकार (कनियार या अमलतास), गूमा, दोपहरिया, अगस्त्य, मदन, सिन्दुवार, शल्लकी, माधवी आदि लताएँ, कुशकी मंजरियाँ, बिल्वपत्र, केवड़ा, कदम्ब, भटकटैया, कमल*--ये फूल भगवतीको प्रिय हैं।

देवीके लिये विहित-प्रतिषिद्ध पत्र-पुष्प

आक और मदारकी तरह दूर्वा, तिलक, मालती, तुलसी, भंगरैया और तमाल विहित-प्रतिषिद्ध हैं अर्थात्‌ ये सभी  विहित भी हैं और निषिद्ध भी हैं?। विहित-प्रतिषिद्धके सम्बन्धमें तत्वसागरसंहिताका कथन है जब  विहित फूल न मिल पायें तो विहित-प्रतिषिद्ध फूलोंसे पूजा कर लेनी चाहिये! ।

शिव -पूजनके लिये विहित पत्र-पुष्प

भगवान्‌ शंकर पर फूल चढ़ानेका बहुत अधिक महत्त्व है । बतलाया जाता है कि तपःशील सर्वगुणसम्पन्न वेदमें निष्णात किसी ब्राह्मणको सौ सुवर्ण दानः करनेपर जो फल प्राप्त होता है, वह भगवान्‌ झंकरपर सौ फूल चढ़ा देनेसे प्राप्त हो जाता हैर । कौन-कौन पत्र-पुष्प शिवके लिये विहित हैं और कौन-कौन निषिद्ध हैं, इनकी जानकारी अपेक्षित है । अतः उनका उल्लेख यहाँ किया जाता है पहली बात यह है कि भगवान्‌ विष्णुके लिये जो-जो पत्र और पुष्प विहित हैं, वे सब भगवान्‌ झंकरपर भी चढ़ाये जाते हैं। केवल केतकी--केवड़ेका निषेध हैं ।

शास्त्रोने कुछ फूलोंके चढ़ानेसे मिलनेवाले फलका तारतम्य बतलाया है, जैसे दस सुवर्ण-मापके बराबर सुवर्ण-दानका फल एक आकके फूलको चढ़ानेसे मिल जाता है । हजार आकके फूलोंकी अपेक्षा एक कनेरका फूल, हजार कनेरके फूलोंके चढ़ानेकी अपेक्षा एक बिल्व पत्रसे फल मिल जाता है और हजार बिल्वपत्रोंकी अपेक्षा एक गूमाफूल (द्रोण-पुष्प) होता है। इस तरह हजार गूमासे बढ़कर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ों (अपामार्गो) से बढ़कर एक कुशका फूल, हजार कुश-पुष्पोंसे बढ़कर एक शमीका पत्ता, हजार शामीके पत्तोंसे बढ़कर एक नीलकमल, हजार नीलकमलोंसे बढ़कर एक धतूरा, हजार धतूरोंसे बढ़कर एक शमीका फूल होता है। अन्तमें बतलाया है कि समस्त फूलोंकी जातियोंमें सबसे बढ़कर नीलकमल होता है' ।


पंचदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प


भगवान्‌ व्यासने कनेरकी कोटिमें चमेली, मोलसिरी, पाटला, मदार, श्वेतकमल, शमीके फूल और बड़ी भटकटैयाको रखा है। इसी तरह धतूरेकी कोटिमें नागचम्पा और पुनागको माना है ।

शास्त्रोने भगवान्‌ शिव की पूजामें मौलसिरी (बक-बकुल) के फूलको ही अधिक महत्त्व दिया हैः |

भविष्यपुराणने भगवान्‌ शंकरपर चढानेयोग्य ओर भी फूलोंके नाम गिनाये हैं-

करवीर (कनेर), मौलसिरी, धतूरा, पाढर', बड़ी करेरी,कुरैया, कास, मन्दार, अपराजिता, शमीका फूल, कुब्जक, शंखपुष्पी, चिचिड़ा, कमल, चमेली, नागचम्पा', चम्पा, खस, तगर, नागकेसर, किकिरात (करंटक अर्थात्‌ पीले फूलवाली कटसरैया) , गूमा, शीशम, गूलर, जयन्ती, बेला, पलाश, बेलपत्ता, कुसुम्भ-पुष्प, कुङ्कम' अर्थात्‌ केसर, नीलकमल और लाल कमल । जल एवं स्थलमें उत्पन्न जितने सुगन्धित फूल हैं, सभी भगवान्‌ शंकरको प्रिय हैं?।

भगवान शिव के पूजा नमे  निषिद्ध पत्र-पुष्प 

कदम्ब, सारहीन फूल या कठूमर, केवडा, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल (मौलसिरी), कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेडा, कपास, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, केतकी, वसंत ऋतुमें खिलनेवाला कंद-विशेष, कुंद, जूही, मदन्ती, शिरीष सर्ज और दोपहरियाके फूल भगवान्‌ शंकरपर नहीं चढ़ाने चाहिये ।

वीरमित्रोदयमें इनका संकलन किया गया है*कदम्ब, बकुल ओर कुन्दपर विशेष विचार इन पुष्पोंका कहीं विधान और कहीं निषेध मिलता है। अतः विशेष विचारद्वारा निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है कदम्ब--शास्रका एक वचन है--“कदम्बकुसुमैः शम्भुमुन्मत्तैः सर्वसिद्धिभाक्‌ ।' अर्थात्‌ कदम्ब और धतूरेके फूलोंसे पूजा करनेसे सारी सिद्धियाँ मिलती हैं । शास्त्रका दूसरा वचन मिलता है-अत्यन्तप्रतिषिद्धानि कुसुमानि शिवार्चने । कदम्बं फल्गुपुष्पं च केतकं च शिरीषकम्‌॥ अर्थात्‌ कदम्ब तथा फल्गु (गन्धहीन आदि) के फूल शिवके पूजनमें अत्यन्त निषिद्ध हैं। इस तरह एक वचनसे कदम्बका शिवपूजनमें विधान और दूसरे वचनसे निषेध मिलता है, जो परस्पर विरुद्ध प्रतीत होता है।इसका परिहार वीरमित्रोदयकारने कालविशेषके द्वारा इस प्रकार किया है । इनके कथनका तात्पर्य यह है कि कदम्बका जो विधान किया गया है, वह केवल भाद्रपदमास--मास-विशेषमें । इस पुष्प-विशेषका महत्त्व बतलाते हुए देवीपुराणमें लिखा है— 'कदम्बैश्चम्पकैरेवं नभस्ये सर्वकामदा ।' अर्थात्‌ “भाद्रपदमासमें कदम्ब और चम्पासे शिवकी पूजा करनेसे सभी इच्छाएँ. पूरी होती हैं ।' इस प्रकार भाद्रपदमासमें “विधि चरितार्थ हो जाती है और भाद्रपदमाससे भिन्न मासोंमें निषेध चरितार्थ हो जाता है । दोनों वचनोंमें कोई विरोध नहीं रह जाता | “सामान्यतः कदम्बकुसुमार्चनं यत्तद्‌ वर्षरतुविषयम्‌। अन्यदा तुनिषेध: । तेन न पूरवोत्तरवाक्यविरोबकुल (मौलसिरी) 

यही बात बकुल-सम्बन्धी विधिनिषेधपर भी लागू होती है। आचारेन्दुमें 'बक' का अर्थ 'बकुल' किया गया है और 'बकुल' का अर्थ है--'मौलसिरी' । शास्त्रका एक वचन है--

'बकपुष्पेण चैकेन शैवमर्चनमुत्तमम्‌ ।' दूसरा वचन है 'बकुलैर्नार्चयेद्‌ देवम्‌।'

पहले वचनमें मौलसिरीका शिवपूजनमें विधान है और दूसरे वचनमें निषेध । इस प्रकार आपाततः पूर्वापर-विरोध प्रतीत होता है। इसका भी परिहार कालविरोषद्वारा हो जाता है, क्योंकि मौलसिरी चढ़ानेका विधान सायंकाल किया गया है— 'सायाह्ने बकुलं शुभम्‌।' इस तरह सायंकालमें विधि चरितार्थ हो जाती है और भिन्न समयमें निषेध चरितार्थ हो जाता है।

कुन्द--कुन्द-फूलके लिये भी उपर्युक्त पद्धति व्यबहरणीय है। माघ महीनेमें भगवान्‌ शंकरपर कुन्द चढ़ाया जा सकता है, शेष  महीनोंमें नहीं । वीरमित्रोदयने लिखा है--

कुन्दपुष्पस्य निषेधेऽपि माघे निषेधाभावः । 

विष्णु-पूजनमें विहित पत्र-पुष्प

भगवान्‌ विष्णुको तुलसी बहुत ही प्रिय है! । एक ओर रत्न, मणि तथा स्वर्णनिर्मित बहुत-से फूल चढ़ाये जाय और दूसरी ओर तुलसीदल चढ़ाया जाय तो भगवान्‌ तुलसीदलको ही पसंद करेंगे । सभगवान्‌को कौस्तुभ भी उतना प्रिय नहीं है, जितना कि तुलसीपत्रमंजरीर । काली तुलसी तो प्रिय है ही किंतु गौरी तुलसी तो और भी अधिक प्रिय है* । भगवानने श्रीमुखसे कहा है कि यदि तुलसीदल न हो तो कनेर, बेला, चम्पा, कमल और मणि आदिसे निर्मित फूल भी मुझे नहीं सुहाते । तुलसीसे पूजित शिवलिङ्ग या विष्णुकी प्रतिमाके दर्शनमात्रसे ब्रह्महत्या भी दूर हो जाती है“। एक ओर मालती आदिकी ताजी मालाएँ हों और दूसरी ओर बासी तुलसी हो तो भगवान्‌ बासी तुलसीको ही अपनायेंगे€ ।

शास्त्रने भगवानपर चढ़ानेयोग्य पत्रोंका भी परस्पर तारतम्य बतलाकर तुलसीकी सर्वातिशायिता बतलायी है, जैसे कि चिचिड़ेकी पत्तीसे भैंगरैयाकी पत्ती अच्छी मानी गयी है तथा उससे अच्छी खैरकीऔर उससे अच्छी शमीकी । शमीसे दूर्वा, उससे अच्छा कुश, उससे अच्छी दौनाकी, उससे अच्छी बेलकी पत्तीको और उससे भी अच्छा तुलसीदल होता है! ।


पंचदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प


नरसिंहपुराणमें फूलोंका तारतम्य बतलाया गया है । कहा गया है कि दस स्वर्ण-सुमनोंका दान करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वह एक गूमाके फूल चढानेसे प्राप्त हो जाता है । इसके बाद उन फूलोंके नाम गिनाये गये हैं, जिनमें पहलेकी अपेक्षा अगला उत्तरोत्तर हजार गुना अधिक फलप्रद होता जाता है, जैसे--गूमाके फूलसे हजार गुना बढ़कर एक खैर, हजारों खैरके फूलोंसे बढ़कर एक शमीका फूल, हजारों शमीके फूलोंसे बढ़कर एक मौलसिरीका फूल, हजारों मौलसिरी पुष्पोंसे बढ़कर एक नन्द्यावर्त, हजारों नन्द्यावर्तोसे बढ़कर एक कनेर, हजारों कनेरके फूलोंसे बढ़कर एक सफेद कनेर, हजारों सफेद कनेरसे बढ़कर कुशका फूल, हजारों कुशके फूलोंसे बढ़कर वनवेला, हजारों | बनवेलाके फूलोंसे एक चम्पा, हजारों चम्पाओंसे बढ़कर एक अशोक, हजारों अशोकके पुष्पोंसे बढ़कर एक माधवी, हजारों वासन्तियोंसे बढ़कर एक गोजटा, हजारों गोजटाओंके फूलोंसे बढ़कर एक मालती, हजारों मालती फूलोंसे बढ़कर एक लाल त्रिसंधि (फगुनिया), हजारों लाल त्रिसंधि फूलोंसे बढ़कर एक सफेद त्रिसंधि, हजारों सफेद त्रिसंधि फूलोंसे बढ़कर एक कुन्दका फूल, हजारों कुन्द-पुष्पॉसे बढ़कर एककमल-फूल, हजारों कमल-पुष्पोंसे बढ़कर एक बेला और हजारों बेला-फूलोंसे बढ़कर एक चमेलीका फूल होता है१ |

निम्नलिखित फूल भगवानको लक्ष्मीकी तरह प्रिय हैं । इस बातको उन्होंने स्वयं श्रीमुखसे कहा है-- | मालती, मोलसिरी, अशोक, कालीनेवारी (शेफालिका), बसंतीनेवारी (नवमल्लिका), आम्रात (आमड़ा), तगर, आस्फोत, बेल, मधुमल्लिका, जूही (यूथिका), अष्ट्रपद, स्कन्द, कदम्ब, मधुपिङ्गल, पाटला, चम्पा, हृद्य, लवंग, अतिमुक्तक (माधवी),केवड़ा, कुरब, बेल, सायंकालमें फूलनेवाला श्वेत कमल (कहार) और अडूसा' ।

कमलका फूल तो भगवानूको बहुत ही प्रिय है । विष्णुरहस्यमें बतलाया गया है कि कमलका एक फूल चढ़ा देनेसे करोड़ों वर्षके पापोंका भगवान्‌ नाश कर देते हैं' । कमलके अनेक भेद हैं । उन भेदोंके फल भी भिन्न-भिन्न हैं । बतलाया गया है कि सौ लाल कमल चढ़ानेका फल एक श्वेत कमलके चढ़ानेसे मिल जाता है तथा लाखों श्वेत कमलोंका फल एक नीलकमलसे और करोड़ों नीलकमलोंका फल एक पद्मसे प्राप्त हो जाता है। यदि कोई भी किसी प्रकार एक भी पदा चढ़ा दे, तो उसके लिये विष्णुपुरीकी प्राप्ति सुनिश्चित हैर।बलिके द्वारा पूछे जानेपर भक्तराज प्रह्वादने विष्णुके प्रिय कुछ फूलोंके नाम बतलाये हैं--'“सुवर्णजाती (जाती), शतपुष्पा (शताह्वा), चमेली (सुमनाः), कुंद, कठचेपा (चारुपुट), बाण, चम्पा, अशोक, कनेर, जूही, पारिभद्र, पाटला, मौलसिरी, अपराजिता (गिरिशालिनी), तिलक, अड़हुल, पीले रंगके समस्त फूल (पीतक) ओर तगर' |


पुराणोंने कुछ नाम और गिनाये हैं, जो नाम पहले आ गये हैं, उनको छोड़कर शेष नाम इस प्रकार हैं

अगस्त्य) आमकी मंजरीर, मालती, बेला, जूही, (माधवी) अतिमुक्तक, यावन्ति, कुब्जई, करण्टक (पीली कटसरैया), धव (धातक), वाण (काली कटसंरैया), बर्बरमल्लिका (बेलाका भेद) और अङ्सा*।विष्णुधमोंत्तरमें बतलाया गया है कि भगवान्‌ विष्णुको श्वेतः पीले? फूलकी प्रियता प्रसिद्ध है, फिर भी लाल फूलोंमें दोपहरियाः (बन्धूक), केसर कुङ्कुम और अड़हुलके फूल उन्हें प्रिय हैं, अतः इन्हें अर्पित करना चाहिये । लाल कनेर और बरें भी भगवानको प्रिय हैं*। बरका फूल पीला-लाल होता है।

इसी तरह कुछ सफेद फूलोंको वृक्षायुर्वेद लाल उगा देता है। लाल रंग होनेमात्रसे वे अप्रिय नहीं हो जाते, उन्हें भगवानको अर्पण करना चाहिये"। इसी प्रकार कुछ सफेद फूलोंके बीच भिन्न-भिन्न वर्ण होते हैं। जैसे पारिजातके बीचमें लाल वर्ण । बीचमें भिन्न वर्ण होनेसे भी उन्हें सफेद फूल माना जाना चाहिये और वे भगवानके अर्पण योग्य हैं °।

विष्णुधर्मोत्तरके द्वारा प्रस्तुत नये नाम ये हैं--तीसी“, भूचम्पकपुरन्ध्रि» गोकर्ण, और नागकर्ण ।

अन्तमें विष्णुधर्मोत्तरने पुष्पोंके चयनके लिये एक उपाय बतलाया है । कहा है कि जो फूल शास्त्रसे निषिद्ध न हों और गन्ध तथा रंग-रूपसे संयुक्त हों उन्हें विष्णुभगवान्‌को अर्पण करना चाहियेर ।

विष्णुके लिये निषिद्ध फूल

विष्णु भगवानपर नीचे लिखे फूलोंको चढ़ाना मना है--

आक, धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, कुरैया, सेमल, शिरीष, चिचिड़ा (कोशातकी), कैथ, लाङ्गुली, सहिजन, कचनार, बरगद, गूलर, पाकर, पीपर और अमडा (कपीतन) * 

घरपर रोपे गये कनेर और दोपहरियाके फूलका भी निषेध है“ 

सूर्य के अर्चनके लिये विहित पत्र-पुष्प

भविष्यपुराणमें बतलाया गया है कि सूर्यभगवानको यदि एक आकका फूल अर्पण कर दिया जाय तो सोनेकी दस आशर्फियाँ चढ़ानेका फल मिल जाता है!। फूलोंका तारतम्य इस प्रकार बतलाया गया है--

हजार अड़हुलके फूलोंसे बढ़कर एक कनेरका फूल होता है, हजार कनेरके फूलोंसे बढ़कर एक बिल्वपत्र, हजार बिल्वपत्रोंसे बढ़कर एक 'पद्म' (सफेद रंगसे भिन्न रंगवाला), हजारों रंगीन पद्म-पुष्पोंसे बढ़कर एक मौलसिरी, हजारों मौलसिरियोंसे बढ़कर एक कुशका फूल, हजार कुशके फूलोंसे बढ़कर एक शमीका फूल, हजार शमीके फूलोंसे बढ़कर एक नीलकमल, हजारों नील एवं रक्त कमलोंसे बढ़कर “केसरऔर लाल कनेर' का फूल होता है*।

यदि इनके फूल न मिलें तो बदलेमें पत्ते चढ़ाये ओर पत्ते भी न मिलें तो इनके फल चढ्वायेर ।


पंचदेव देव-पूजा में विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प


फूलकी अपेक्षा मालामें दुगुना फल प्राप्त होता है ।

रातमें कदम्बके फूल और मुकुरको अर्पण करे और दिनमें शेष समस्त फूल। बेला दिनमें और रातमें भी चढ़ाना चाहिये ।

सूर्यभगवानपर चढ़ाने योग्य कुछ फूल ये हैं--बेला, मालती, काश, माधवी, पाटला, कनेर, जपा, यावन्ति, कुब्जक, कर्णिकार, पीली कटसरैया (कुरण्टक) , चम्पा, रोलक, कुन्द, काली कटसरैया (वाण), बर्बरमल्लिका, अशोक, तिलक, लोध, अरूषा, कमल, मोलसिरी, अगस्त्य और पलाशके फूल तथा दूर्वा" ।कुछ समकक्ष पुष्प शमीका फूल और बड़ी कटेरीका फूल एक समान माने जाते हैं। करवीरकी कोटिमें चमेली, मौलसिरी और पाटला आते हैं । श्वेत कमल और मन्दारकी श्रेणी एक है। इसी तरह नागकेसर, चम्पा, पुन्नाग और मुकुर एक समान माने जाते हैँ। विहित पत्र 3 बेलका पत्र, शमीका पत्ता, भँगरैयाकी पत्ती, तमालपत्र, तुलसी और काली तुलसीके पत्ते तथा कमलके पत्ते सूर्यभगवानकी पूजामें गृहीत हैं? । 

सूर्यके लिये निषिद्ध फूल

 गुंजा (कृष्णला), धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकरैया, तगर और अमड़ा--इन्हें सूर्यपर न चढ़ाये । 'वीरमित्रोदय' ने इन्हें सूर्यपर चढ़ानेका स्पष्ट निषेध किया है, यथा-कृष्णलोन्पत्तक काञ्जी तथा च गिरिकर्णिका । न कण्टकारिपुष्पं च तथान्यद्‌ गन्धवर्जितम्‌॥ देवीनामर्कमन्दारौ सूर्यस्य तगरं तथा। न चाम्रातकजैः पुष्पैरर्चनीयो दिवाकरः ॥ फूलोंके चयनकी कसोटी-सभी फूलोंका नाम गिनाना कठिन है । सब फूल सब जगह मिलते भी नहीं । अतः शास्त्रने योग्य फूलोंके चुनावके लिये हमें एक कसौटी दी है कि जो फूल निषेध कोटिमें नहीं हैं और रंग-रूप तथा सुगन्धसे युक्त हैं उन सभी फूलोंको भगवानको चढ़ाना चाहिये । येषां न प्रतिषेधोऽस्ति गन्धवर्णान्वितानि च। तानि पुष्पाणि देयानि भानवे लोकभानवे ॥


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