आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये


आरती, भक्ति और आध्यात्मिकता का अभिन्न हिस्सा है जो हमारे सांस्कृतिक विरासत में गहरे रूप से प्रदर्शित होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हम अपने ईश्वर के साथ एक साकार और आध्यात्मिक संबंध की अनुभूति करते हैं। इस लेख में, हम जानेंगे कि आरती क्या है, इसका महत्व क्या है और इसे कैसे किया जाता है। हम आरती के प्रमुख आधारभूत सिद्धांतों, धार्मिक महत्व, और इसके प्रभावों की विस्तृत चर्चा करेंगे।


आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये


आरती क्या है (What is aarti)

आरती, 'आरात्रिक' या 'आरार्तिक' और 'नीराजन' के नाम से भी जानी जाती है, जो साधना या पूजा के अंत में की जाती है। इसमें विभिन्न प्रकार के धूप, दीप, और वन्यबहुल्य से इस्तुति दी जाती है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिससे जीवन की अंतिम क्रिया के दौरान जो त्रुटिएँ बच जाती हैं, उनकी पूर्ति होती है। स्कन्दपुराण में इसे बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, जो कहता है कि पूजा मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी आरती से सारी पूर्णता मिलती है।

आरती करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि पूजन में कोई भी त्रुटि नहीं रही है, और इसके बाद देवता की पूजा शुरू होती है। आरती करने का ही नहीं, बल्कि उसे देखने का भी बड़ा पुण्य माना गया है, जैसा कि हरिभक्तिविलासमें एक श्लोक में कहा गया है।

"नीराजनं च यः पश्येद्‌ देवदेवस्य चक्रिणः।
सप्तजन्मनि विप्रः स्यादन्ते च परमं पदम्‌॥"

इस श्लोक के अर्थ है कि जो देवदेव चक्रधारी श्रीविष्णुभगवान की आरती सदा देखता है, वह सात जन्मों तक ब्राह्मण होकर अंत में परमपद को प्राप्त होता है। यह एक अत्यधिक पुन्यप्रद अनुभव की बात है जो हर भक्त के लिए महत्वपूर्ण है।


आरती  कैसे करनी चाहिये आरती की विधि और अंग

.आरती में कई अंग होते हैं, जिनमें मुख्य हैं:

  1. प्रथम दीपमाला: जिसमें मूलमंत्र के साथ जलयुक्त शंख रखा जाता है।
  2. जलयुक्त शंख: आरती के दौरान इसका उपयोग होता है और इसे दूसरा अंग माना जाता है।
  3. धुले हुए वस्त्र: तीसरा अंग, जिसमें विशेष धुला हुआ वस्त्र पहना जाता है।
  4. आम और पीपल के पत्ते: चौथा अंग, जिसमें आम और पीपल के पत्तों का उपयोग होता है।
  5. साष्टांग दण्डवत्‌: पाँचवां और मुख्य अंग, जिसमें सात बार साष्टांग दण्डवत्‌ किया जाता है।

आरती के समय देवता की प्रतिमा केचरणों में चार बार घुमाया जाता है, दो बार नाभि देश में, एक बार मुखमण्डल पर, और सात बार समस्त अंगों पर घुमाया जाता है। यह विधि आरती के अद्वितीय और प्राचीन रूप को बखूबी व्यक्त करती है और भक्तों को इस अनूठे अनुभव में ले जाती है

आरती का धार्मिक महत्व

यथार्थ में, आरती पूजन के अंत में इष्टदेवता की प्रसन्नता के लिए की जाती है। इसमें इष्टदेव को दीपक से दर्शन कराए जाते हैं और उनका स्तवन और गुणगान किया जाता है। आरती के दो भाव 'नीराजन' और 'आरती' से निकले हैं। 'नीराजन' का अर्थ है विशेष रूप से, निःशेष रूप से प्रकाशित करना, जो आरती के दीपकों के माध्यम से किया जाता है। यह दीपकों को विग्रह के चारों ओर घुमाने का अभिप्रेत है, ताकि विग्रह पूरे के पूरे प्रकाशित हो जाए और उसमें देवता की सजीव रूप में उपस्थिति महसूस हो सके। यह धार्मिक रीति दीपकों को आर्ति का प्रतीक मानती है और उन्हें देवता की आराधना के लिए स्वीकृति देती है।

दूसरा 'आरती' शब्द, जो संस्कृत के 'आर्तिका' प्राकृतिक रूप है, विशेषत: माधुर्य उपासना से संबंधित है। 'आरती वारना' का अर्थ है आर्ति-निवारण, अनिष्ट से अपने प्रियतम प्रभु को बचाना। इसके माध्यम से दीपक प्रज्वलित होकर अपने ईष्टदेव के चारों ओर घूमता है, जिससे सभी विघ्न टाले जाते हैं और भक्त देवता की रूप-छवि को स्पष्ट रूप से देख सकता है। इससे साधक 'आर्ति' यानी कष्ट को अपने ऊपर लेता है और उनके जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करता है। बलैया लेना, बलिहारी जाना, बलि जाना, वारी जाना, न्योछावर होना, ये सभी प्रयोग इस भाव के द्योतक हैं। इस तरीके से आरती न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव का भी माध्यम है, जो साधक को देवता के साथ एक सांगत्य और एकाग्रता में ले जाता है।
आरती की अनूठी शक्ति और महत्वपूर्णता से भरा हुआ है। इसे केवल धार्मिक क्रिया के रूप में देखना एक सीमित दृष्टिकोण है, जबकि इसका असली रूप आध्यात्मिक उन्नति और एकाग्रता में छिपा होता है। आरती के माध्यम से हम अपने ईष्टदेवता के साथ एक विशेष संबंध बना सकते हैं जो हमें जीवन के समुद्र में सहारा प्रदान करता है। इसे सीधे शब्दों में कहें तो, आरती हमें अपने आत्मा की परमात्मा से मिलाने की ओर एकाग्र करती है, जो सच्चे सुख और शांति का स्रोत है। इसलिए, हर आरती एक अद्वितीय अनुभव का प्रमाण है, जो सीधे हमारे दिल और आत्मा से जुड़ा होता है।

आरती करने के नियम और सावधानी

1. पहला नियम: दीपक की स्थान और सावधानी

  •  उत्तर: आरती के समय या आरती के बाद दीपक को कभी भी भूमि पर नहीं रखना चाहिए। उसे थाली, पाट या आसन पर ही रखना चाहिए।

2. दूसरा नियम: दीपक में उपयोगित तेल और घी

  • उत्तर: दीपक में शुद्ध घी या तेल डालकर दीप प्रज्वलित कर सकते हैं। सरसों और नारियल के तेल का उपयोग विशेष परिस्थिति में ही करते हैं।

3. तीसरा नियम: दीपक की स्थिति का महत्व

  • उत्तर: घी का दीपक भगवान के दक्षिण की ओर अर्थात सीधे हाथ की ओर, तेल का दीपक वाम भाग अर्थात बाईं ओर लगाना चाहिए।

4. चौथा नियम: दीपक का मिश्रित उपयोग

  • उत्तर: तेल और घी का मिश्रित दीपक नहीं चलाना चाहिए।

5. पांचवां नियम: दीपक की स्थिति के अनुसार प्रभाव

  • उत्तर: दीपक का मुख पूर्व दिशा में रखने पर आयु में वृद्धि, उत्तर में रखने पर धन धान्य में वृद्धि, पश्चिम में रखने पर दु:ख और दक्षिण में रखने पर हानि देने वाला होता है।

6. छठा नियम: दीपक की बनावट

  • उत्तर: घी के दीपक में कपास की बत्ती और तेल के दीपक में लाल मौली की बाती होना चाहिए।

7. सातवां नियम: अखंड जलाए गए दीपक से आरती

  • उत्तर: आरती कभी भी अखंड जलाए गए दीपक से नहीं करना चाहिए।

8. आठवां नियम: आरती का बैठकर अदानप्रदान

  • उत्तर: आरती कभी भी बैठकर नहीं करना चाहिए।

9. नौवां नियम: आरती के दौरान हाथ का उपयोग

  • उत्तर: आरती के बीच में उस पर से हाथ नहीं घुमाना चाहिए। पूरी आरती होने के बाद उसे जल के छींटे लगाकर ठंडा करना चाहिए और फिर भगवान को समर्पित करना चाहिए। इसके बाद ही सभी को आरती लेना करना चाहिए।

10. दसवां नियम: आरती के दौरान सावधानियाँ

  • उत्तर: आरती के बीच में बोलना, चीखना या अन्य कोई दूसरा कार्य नहीं करना चाहिए। इससे आरती खंडित मानी जाती है।

11. ग्यारहवां नियम: आरती का प्राण वायु

  • उत्तर: आरती कभी भी बीच में बुझे नहीं, इस प्रकार की व्यवस्था करना चाहिए।

12. बारहवां नियम: आरती का मुख और दिशा

  • उत्तर: आरती को कभी भी उल्टा नहीं घुमाना चाहिए।

13. तेरहवां नियम: पूजा उपासना के बिना आरती

  • उत्तर: बिना पूजा उपासना या भजन के आरती नहीं की जाती।

14. चौदहवां नियम: ऊर्जा संरक्षण का सोच

  • उत्तर: आरती से ऊर्जा लेते समय सिर अवश्य ढक लेना चाहिए। खासकर महिलाओं को ऐसा करना चाहिए।

15. पंध्रवां नियम: हाथों की स्थिति और प्राण वायु

  • उत्तर: दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सिर के मध्य भाग पर लगाना चाहिए।

16. सोलहवां नियम: आरती लेने के बाद का ध्यान

  • उत्तर: आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट हाथ नहीं धोने चाहिए।

आरती FAQ

1. सवाल: आरती क्या है?

 उत्तर: आरती एक धार्मिक प्रक्रिया है जिसमें ईष्टदेवता के सामने प्रार्थना, गान, और धूपदीपों का आदर किया जाता है।

2. सवाल: आरती कैसे होती है?

 उत्तर: आरती में धूप, दीप, और श्रद्धाभावपूर्ण गाने का समाहित रूप से किया जाता है, जिससे ईष्टदेवता के साथ एक सांगत्य बनता है।

3. सवाल: आरती के कितने प्रकार हैं?

  उत्तर: आरती विभिन्न धार्मिक संस्कृतियों और देवताओं के अनुसार कई प्रकार की होती हैं।

4. सवाल: आरती किसके लिए की जाती है?

    उत्तर: आरती किसी भी देवता या देवी के लिए की जा सकती है, जो व्यक्ति का ईष्टदेव होता है।

5. सवाल: आरती का महत्व क्या है?

 उत्तर: आरती का महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक सांदर्भिकता में है, जो व्यक्ति को ईष्टदेवता के साथ जोड़ता है और आत्मिक उन्नति में सहायक होता है।

6. सवाल: आरती के पौराणिक संदेश क्या हैं?

 उत्तर: आरती के पौराणिक संदेश में यह बताया गया है कि आरती से किसी भी त्रुटि या अपूर्णता का समापन होता है।

7. सवाल: आरती के उद्दीपन के लिए सही समय क्या है?

उत्तर: आरती का उद्दीपन सुबह और शाम में होता है, जो धार्मिक पारंपरिक परंपराओं के अनुसार निर्धारित होता है।

8. सवाल: आरती के अनुष्ठान कैसे करें?

उत्तर: आरती के अनुष्ठान के लिए व्यक्ति को पूजनीय उपकरणों का सही तरीके से उपयोग करना चाहिए और धार्मिक नियमों का पालन करना चाहिए।

9. सवाल: आरती के मंत्रों का अर्थ क्या है?

उत्तर: आरती के मंत्रों का अर्थ व्याख्यान और उनका धार्मिक संदेश होता है।

10. सवाल: आरती के रस्मी उपकरण क्या होते हैं?

 उत्तर: आरती के रस्मी उपकरण में धूप, दीप, कपूर, और फूल शामिल हो सकते हैं।

11. सवाल: आरती के साथ संगीत का महत्व क्या है?

     उत्तर: आरती के संगीत में रौंगत और आत्मिक भावना को व्यक्त करने का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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