शिव पंचाक्षर स्तोत्र,(Shiv Panchakshar Stotra) जिन्हें हम सामान्यत: 'ॐ नमः शिवाय' कहते हैं, के रचियता अदि गुरु शंकराचार्य हैं शिव पंचाक्षर स्तोत्र हिन्दू (Shiv Panchakshar Stotra) धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस स्तोत्र में पाँच अक्षरों का जाप करने से साधक अपने मार्ग पर सजग रहता है और मोक्ष की प्राप्ति की प्रार्थना करता है। इस लेख में, हम इस प्राचीन स्तोत्र की शास्त्रीय और आध्यात्मिक महत्वपूर्णता पर गहराई से चर्चा करेंगे।
Shiv Panchakshar Stotra, श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र का रहस्य
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र का महत्वपूर्ण रहस्य यह है कि इसमें प्रत्येक अक्षर का अपना अद्भुत महत्व है।
ॐ - ब्रह्मा का प्रतिष्ठान- पहला अक्षर 'ॐ' ब्रह्मा को सिंबोलिज़ करता है और इसका जाप करने से आत्मा को ब्रह्मा के साथ जोड़ा जा सकता है।
नमः - विष्णु का स्मरण -दूसरा अक्षर 'नमः' विष्णु को दर्शाता है और इसका उच्चारण करने से आत्मा को विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
शिवाय - शिव का समर्पण - तीसरा और चौथा अक्षर 'शिवाय' हमें शिव के समर्पित होने का संकेत देते हैं और इससे साधक शिव के साथ एकाग्र होकर अपने मार्ग को प्राप्त कर सकता है।
आध्यात्मिक फल
इस महामंत्र का जाप करने से आत्मा में शांति और संतुलन होता है। साधक अपने आत्मिक ऊर्जा को शिव की ओर मोड़कर उच्च आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करता है।
मन्त्र का जाप
मन्त्र का नियमित जाप करने से शक्ति का संचार होता है और साधक को अद्वितीय ब्रह्मा का अनुभव होता है।
यहाँ एक सूची है जो शिव पंचाक्षर स्तोत्र के नियमित जाप के प्रमाण को दर्शाती है:
1. प्रतिदिन सुबह और शाम को १०८ बार मन्त्र का जाप करें।
2. ध्यान में रहकर मन्त्र का उच्चारण करने से अध्यात्मिक सफलता होती है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र का महत्व
शिव पंचाक्षर स्तोत्र का जाप करने से मन की शुद्धि होती है और साधक अपने आत्मा की गहराईयों में गुहा बोध करता है। इससे जीवन में स्थिरता और आनंदकी भावना होती है।
Shiv Panchakshar Stotra, श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै ' न' काराय नमः शिवाय ॥
जिनका गले में सर्प है, जिनके तीन नेत्र हैं, जो भस्म रूप से आभूषित हैं और महेश्वर हैं। जो हमेशा पवित्र हैं, दिगम्बर हैं और जिनका नाम 'न' से है, उनको नमस्कार है - शिवाय।"
मन्दाकिनी सलिल चन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दार पुष्य बहुपुष्य सुपूजिताय, तस्मै 'म' काराय नमः शिवाय ॥
जिनकी पूजा मंदाकिनी (गंगा जल ) नदी के जल, चन्दन और से की जाती है, जो नन्दीश्वर और प्रमथनाथ हैं, जो महेश्वर हैं। जिनका पूजन मन्दार फूल, पुष्य नक्षत्र और अनेक पुष्यों द्वारा किया जाता है, उनको नमस्कार है - शिवाय।"
शिवाय गौरी वदजान्नं वृन्द, सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय।
श्री नीलकण्ठाय वृष ध्वजाय, तस्मै शि ' काराय नमः शिवाय ॥
वशिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य, मुनीन्द्र देवर्चचित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय, तस्मै ' व' कराय नमः शिवाय ॥।
मुनीन्द्र देवर्चचित शेखराय" - जो सभी मुनियों के इश्वर, देवों की सबसे श्रेष्ठ शिरोमणि हैं
चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय" - जो चंद्रमा और सूर्य, जगत के प्रकाशक, की तरह हैं
तस्मै ' व' कराय नमः शिवाय" - जिनका नाम 'व' से शुरू होता है, उनको मैं नमस्कार करता हूँ, भगवान शिव को
यश्च स्वरूपाय जटाधराय, पिनाक हस्ताय सनातनाय।दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मे “य ' काराय नमः शिवाय ॥
पिनाक हस्ताय सनातनाय" - जो पिनाक धनुष (धनुष्य) धारी हैं और सनातन अर्थात शाश्वत हैं
दिव्याय देवाय दिगम्बराय" - जो दिव्य हैं, देवों के सम्माननीय, और दिगम्बर अर्थात आकाश में नग्न हैं
तस्मे 'य' काराय नमः शिवाय" - जिनका नाम 'य' से शुरू होता है, उनको मैं नमस्कार करता हूँ, भगवान शिव को
पचाक्षरमिंद पुण्यं, यः पठेच्छिवसन्िधो ।
शिवलोकमवाप्नोति, शिवेन सहमोदते ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति इस पञ्चाक्षर मंत्र को भगवान शिव की सामीप्य में पढ़ता है, वह पुण्यमय होता है। इससे उसे भगवान शिव का दर्शन होता है और वह शिवलोक को प्राप्त होता है। इस प्रकार, वह भक्त भगवान शिव के साथ आनंदित होता है।
इस श्लोक में पञ्चाक्षर मंत्र के पुण्य को महत्वपूर्णता पूर्वक बताया गया है और इसका जाप शिव सन्निधान में किया जाना चाहिए। यह मंत्र भक्त को शिवलोक की प्राप्ति में सहायक होता है और उसे शिव के साथ आनंदित करता है।
ॐ दौ जूं सः भूर्भवः स्वः
तर्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिम्पुष्टिवरद्धनम्।
उर्व्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योमुक्षीय माऽमृतात्
ॐ भूर्भवः स्वः ज दौ ॐ॥
FAQ
Q: क्या शिव पंचाक्षर स्तोत्र का जाप करने से हमें कोई विशेष लाभ होता है?
A: हाँ, शिव पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित जाप करने से आत्मा की ऊर्जा में वृद्धि होती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है।
Q: क्या इसे किसी भी समय जप किया जा सकता है?
A: हाँ, शिव पंचाक्षर स्तोत्र को किसी भी समय जप किया जा सकता है, लेकिन सबसे शुभ समय सुबह और शाम होता है।