श्री शिव अष्टोत्तर नाम स्तोत्रम हिंदी अर्थ सहित


भगवान शिव, जिन्हे  देवों का देव माना जाता है।  उन्हें 'स्वयंभू' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे स्वयं जन्मित नहीं हुए हैं, बल्कि उनका अस्तित्व निरंतर रहेगा। इससे हमें यह पता चलता है कि भगवान शिव अनन्त और अविनाशी हैं।भगवान शिव की नियमित पूजा के लिए चालीसा, मंत्रों का जाप करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनमें से एक महत्वपूर्ण भाग हैं भगवान शिव के 108 नाम, जिन्हें श्री शिव अष्टोत्तर नाम स्तोत्रम कहा जाता है। इन नामों का जाप करने से भक्त भगवान के साथ एकात्मता की प्राप्ति करते हैं और उनकी कृपा से सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।
मान्यता है कि शिव जी के इन नामों का पाठ करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। इससे जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति होती है। अगर हम नियमित रूप से इन नामों का जाप करते हैं, तो हम अपने आत्मिक और धार्मिक विकास में सफल हो सकते हैं। इसलिए, भगवान शिव के इन 108 नामों का समर्पण करके हम अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।


श्री शिव अष्टोत्तर नाम स्तोत्रम



श्री शिव अष्टोत्तर नाम स्तोत्रम की उत्पत्ति Origin of Shri Shiva Ashtottara Naam Stotram



भगवान शिव के 108 नामों की उत्पत्ति के पीछे एक प्राचीन कथा है, जो हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में प्रमुख है। इस कथा के अनुसार, किसी समय ब्रह्मा, विष्णु, और महेश (शिव) त्रिमूर्ति योगनिद्रा में लिपटे हुए थे। इस समय, श्रीविष्णु के नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ, जिसमें ब्रह्मा जी अवतार लेकर उत्पन्न हुए।

ब्रह्मा और विष्णु जी उत्पन्न होने के बाद, उनमें एक विवाद उत्पन्न हुआ कि कौन उन दोनों का प्रमुख है। इस विवाद के कारण भगवान शिव अग्निज्वाला स्वरूप में प्रकट हो गए, और उन्होंने दोनों को अपने आत्मरूप में दिखाया।

इस अद्वितीय दृश्य के समय, ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने अपनी असमर्थता का अनुभव किया और वे भगवान शिव से क्षमा मांगने लगे। भगवान शिव ने उन्हें क्षमा दी और उन्हें सृष्टि के कार्य का उत्तरदाता बनाया।

इसके पश्चात्, ब्रह्मा और विष्णु जी तपस्या में लिपटे और तप करते हुए भगवान शिव से ब्रह्मा जी को सृष्टि के प्रथम रचना का कार्यभार देने का निर्णय लिया। इसके परिणामस्वरूप, शिव जी के शरीर से एक बालक रूप में विराजमान हुए, जिन्हें 'रुद्र' नाम मिला। ब्रह्मा जी ने उन्हें आदित्य, शर्व, भव, उग्र, पशुपति, ईशान, और महादेव इन नामों से विशिष्ट किया।

तब शिव जी के रोने का कारण समझकर ब्रह्मा जी ने 108 नामों का उत्पत्ति और स्तुति का कार्य किया। इस प्रकार, भगवान शिव के 108 नाम प्रकट हुए, जिनका जाप भक्तों को अपनी कृपा से संतुष्ट करने में सहायक होता है।

श्री शिव अष्टोत्तर नाम स्तोत्रम हिंदी अर्थ सहित Shri Shiv Ashtottara Name Stotram with Hindi Meaning


शिवो महेश्वरः शम्भुः पिनाकी शशिशेखरः ।
 वामदेवो विरूपाक्षः कपर्दी नीललोहितः ॥१॥


इस श्लोक में भगवान शिव के विभिन्न रूपों का सुंदर वर्णन किया गया है। महेश्वर, शम्भु, पिनाकी, शशिशेखर, वामदेव, विरूपाक्ष, कपर्दी, नीललोहित इन नामों से उनके आभूषण, वस्त्र, मुकुट, और रंग का वर्णन किया गया है। यह श्लोक भगवान शिव की अद्वितीयता और आकारशक्ति को प्रस्तुत करता है और उनकी अनंत गुणों की महिमा को वर्णित करता है।

शङ्करः शूलपाणिश्च खट्वाङ्गी विष्णुवल्लभः । 
शिपिविष्टोऽम्बिकानाथः श्रीकण्ठो भक्तवत्सलः ॥२॥  


इस श्लोक में श्रीकण्ठ, शंकर, शूलपाणि, खट्वाङ्गी, विष्णुवल्लभ, शिपिविष्ट, अम्बिकानाथ, और भक्तवत्सल आदि नामों से भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों और गुणों का सुंदर वर्णन किया गया है। इसमें भगवान की अनन्त कल्याणकारी गुणों, भक्तों के प्रति कृपाशीलता, और पूर्णता का स्तुति गीत है। यह श्लोक भक्तिभाव से भरपूर है और भगवान की अपार महिमा को व्यक्त करता है।

भवः शर्वस्त्रिलोकेशः शितिकण्टः शिवाप्रियः ।
उग्रः कपाली कामारिरन्धकासुरसूदनः ॥3॥


इस श्लोक में महादेव, शिवजी के विभिन्न रूपों का सुंदर वर्णन है। "भवः" के रूप में उन्हें सृष्टिकर्ता बताया गया है, "शर्व" रूप में उनका शरणागतों के प्रति सौहार्द दिखाया गया है, "त्रिलोकेश" कहकर उन्हें त्रिलोकनाथ बताया गया है, "शितिकण्ट" के रूप में उनका क्रूर स्वरूप प्रकट हुआ है, "शिवाप्रिय" से उनकी पतिव्रता पार्वती के प्रति प्रेम दिखाया गया है, "उग्र" कहकर उनका उग्र स्वरूप बताया गया है, "कपाली" के रूप में उनकी भूत-प्रेत-पिशाच बाधा से निपटने की शक्ति को दर्शाया गया है, और "कामारि" कहकर उनका कामदेव को मारने वाला स्वरूप प्रकट हुआ है। "अंधकासुरसूदन" कहकर उनके असुरों को मारने वाले स्वरूप का वर्णन किया गया है।

गङ्गाधरो ललाटाक्षः कालकालः कृपानिधिः । 
भीमः परशुहस्तश्च मृगपाणिर्जटाधरः ॥४॥  



"गङ्गाधर" कहकर उन्हें गंगा को अपने जटाओं में धारण करने वाला बताया गया है, "ललाटाक्ष" से उनकी आंखों के बीच ब्रह्मांड का निर्माण करने की शक्ति का स्वरूप प्रकट हुआ है, "कालकालः" कहकर उनका समय के सर्वाधिक अधिपति होने का वर्णन किया गया है, "कृपानिधिः" से उनकी अनन्त कृपा का वर्णन है, "भीमः" कहकर उनका भयंकर स्वरूप प्रकट हुआ है, "परशुहस्तः" से उनके हाथ में परशु धारण करने का वर्णन किया गया है, "मृगपाणिः" से उनके हाथ में हिरण जैसी धारा धारित करने का वर्णन है, और "जटाधरः" से उनके जटाओं को धारण करने का वर्णन किया गया है।

कैलासवासी कवची कठोरस्त्रिपुरान्तकः ।
वृषाङ्की वृषभारूढो भस्मोद्धूलितविग्रहः ॥५॥ 


"कैलासवासी" से महादेव को कैलास पर्वत पर वास करने वाला बताया गया है, "कवची" से उनके कवचों का वर्णन है जो उन्हें सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सुरक्षा में सहायक हैं, "कठोरस्त्रिपुरान्तकः" से उनकी कठोर और त्रिपुरान्तक स्वरूप सामर्थ्य का वर्णन है, "वृषाङ्की" से उनके शिवधर्म को अच्छी तरह से बनाए रखने का वर्णन है, "वृषभारूढो" से उन्हें वृषभ वाहन पर बैठे हुए बताया गया है, "भस्मोद्धूलितविग्रहः" से उनके शरीर को भस्मीकृत होते दिखाने का वर्णन है।

वृषाङ्को वृषभारूढो भस्मो द्ूलितविग्रहः
सामप्रियः स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वरः ॥६ ॥ 


"वृषाङ्को" से महादेव को वृषभ की भांति कठोर और साहसी बताया गया है, "वृषभारूढो" से उन्हें वृषभ वाहन पर बैठे हुए दिखाने का वर्णन है, "भस्मोद्धूलितविग्रहः" से उनके शरीर को भस्मीकृत होते दिखाने का वर्णन है, "सामप्रियः" से उन्हें सामा गायन में प्रिय माना गया है, "स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वरः" से उन्हें तीनों वेदों की मूर्ति और सबका नियंत्रण करने वाले बताया गया है।

सर्वज्ञः परमात्मा च सोमसूर्याग्निलोचनः   
हविर्यज्ञमयः सोमः पञ्चवक्त्रः सदाशिवः ॥७ ॥


"सर्वज्ञः" से भगवान को सब कुछ जानने वाला बताया गया है, "परमात्मा च" से उन्हें परमात्मा कहा गया है, "सोमसूर्याग्निलोचनः" से उनकी आंखों में सोम, सूर्य, और अग्नि का प्रकाश है, "हविर्यज्ञमयः" से उन्हें हवन का रूप धारण करने वाला बताया गया है, "सोमः पञ्चवक्त्रः" से उनके पाँच मुखों का वर्णन है, "सदाशिवः" से उन्हें हमेशा शिव कहा गया है।

विश्वेश्वरो वीरभद्रो गणनाथः प्रजापतिः ॥ 
हिरण्यरेता दुर्धर्षो गिरीशो गिरिशोऽनघः ।८ ॥ 


"विश्वेश्वरो" से श्री विश्वेश्वर, "वीरभद्रो" से वीरभद्र, "गणनाथः" से गणनाथ, "प्रजापतिः" से प्रजापति, "हिरण्यरेता" से हिरण्यरेता, "दुर्धर्षो" से दुर्धर्ष, "गिरीशो" से गिरीश, "गिरिशोऽनघः" से अनघ भगवान का वर्णन किया गया है।

भुजङ्गभूषणो भर्गो गिरिधन्वा गिरिप्रियः   
कृत्तिवासाः पुरारातिर्भगवान प्रमथाधिपः । ९ ॥


"भुजङ्गभूषणो" से भुजङ्गभूषण, "भर्गो" से भर्ग, "गिरिधन्वा" से गिरिधन्वा, "गिरिप्रियः" से गिरिप्रिय, "कृत्तिवासाः" से कृत्तिवासा, "पुरारातिर्भगवान" से पुराराति भगवान, "प्रमथाधिपः" से प्रमथाधिप भगवान का वर्णन किया गया है।

"मृत्युञ्जयः सूक्ष्मतनुर्जगद्व्यापी जगद्गुरुः ।
व्योमकेशो महासेनजनकश्चारुविक्रमः ॥९॥"
  


इस श्लोक में भगवान शिव का विविध रूपों का वर्णन है। मृत्युञ्जय भगवान की जय है, जो मृत्यु को जीतते हैं। सूक्ष्मतनु का अर्थ है अत्यन्त सूक्ष्म और सुक्ष्म। जगद्व्यापी जगत को व्यापित करने वाले हैं, जगद्गुरु जगत के गुरु हैं, व्योमकेश आकाश में विराजमान हैं, महासेन भगवान के महासेना के सेनापति हैं, जनक भगवान शिव की सहज रूप में जन्म लेने वाले हैं, और चारुविक्रम उनके सुंदर और प्रभावशाली विक्रम हैं।

रुद्रो भूतपतिः स्ताणुरहिर्बुध्न्यो दिगम्बरः ।
अष्टमूर्तिरनेकात्मा सात्विकः शुद्धविग्रहः ॥१०॥  
शाश्वतः खण्डपरशू रजःपाशविमोचनः ॥११॥  
मृडः पशुपतिदेवो महादेवोऽव्ययः प्रभुः ।"


इस श्लोक में भगवान शिव के विभिन्न रूपों का वर्णन है। रुद्र हे भूतपति, स्ताणु हे स्थूल रूप, अहिः हे अमोघ, बुध्न्यः हे शरणागतों की रक्षा करने वाले, दिगम्बर हे आकाश में निर्वासित होने वाले, अष्टमूर्ति हे अनेक रूपों वाले, अनेकात्मा हे एक होकर भी सभी जीवों के आत्मा, सात्विक हे शुद्ध सत्ता से युक्त, शुद्धविग्रह हे शुद्ध स्वरूप के साथ, शाश्वत हे नित्य, खण्डपरशु हे जो संसार को भेदने वाले खण्डपरशु धारी, रजःपाशविमोचन हे संसार के बंधनों को मोक्ष करने वाले, मृडः हे क्षमाशील, पशुपतिदेव हे सभी जीवों के पति और देवता, महादेव हे महान देवता, अव्यय हे अविनाशी, प्रभु हे सर्वोपरि प्रभु।

"पूषदन्तभिदव्यग्रो दक्षाध्वरहरो हरः ॥१२॥ 
भगनेत्रभिदव्यक्तः सहस्राक्षः सहस्रपात ।
अपवर्गप्रदोऽनन्तस्तारकः परमेश्वरः ॥१३॥ 
इमानि दिव्यनामानि जप्यन्ते सर्वदा मया।"


इन श्लोकों में भगवान शिव के और कुछ नामों का वर्णन है। पूषदन्तभिदव्यग्र हे पूषदन्त को भक्षित करने वाले, दक्षाध्वरहर हे दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले, हर हे सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट करने वाले, भगनेत्रभिदव्यक्त हे भगाने के लिए भूतों को भगाने वाले, सहस्राक्ष हे अनेक आँखों वाले, सहस्रपात हे अनेक पाँचों वाले, अपवर्गप्रद हे मोक्ष का प्रदान करने वाले, अनन्त हे अनंत, तारक हे तारक, परमेश्वर हे सर्वोच्च ईश्वर। ये नाम जप्यन्ते सर्वदा भक्तों द्वारा।


"नामकल्पलतेयं मे सवांभीष्टप्रदायिनी ॥
नामान्येतानि सुभगे शिवदानि न संशयः
वेदसव॑स्वभूतानि नामान्येतानि वस्तुतः ॥
एतानि यानि नामानि तानि सर्वार्थदान्यतः।१४"


इस श्लोक में शिवजी के नामों की महिमा का वर्णन है। इसके अनुसार, इन नामों का जाप करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं और व्यक्ति को आपत्तियों से मुक्ति मिलती है। शिवजी के नाम वेदों में सवा सौ भूतों के नामों से सर्वोत्तम हैं और इन नामों का जाप सभी वस्तुओं की प्राप्ति कराता है। इन नामों की पूजा भक्ति के अधिक प्रभावी होती है।

"जप्यन्ते सादरं नित्यं मया नियमपूर्वकम् ॥
वेदेषु शिवनामानि श्रष्ठान्यघहराणि च।१५ 
सन्त्यनन्तानि सुभगे वेदेषु विविधेष्वपि॥
तेभ्यो नामानि संगृह्य कुमाराय महेश्वरः।१६ 
अष्टोत्तरसहस्रं तु नाम्नामुपदिशत् पुरा॥"


इस श्लोक में शिवजी के नामों की महत्ता और उनके जाप की महिमा का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि इन नामों का नियमित जाप सादरपूर्वक रोज़ किया जाना चाहिए और इन नामों को वेदों में श्रेष्ठ माना गया है। यहां बताया गया है कि इन नामों का जाप करने से विविध वेदों में समाहित सर्वोत्तम नाम होते हैं और महेश्वर इन नामों को कुमाराय (कार्तिकेय) को उपदिशित करते हैं। इस पूरे स्तोत्र का जाप शिवभक्तों को आनंद, शांति और सुख प्रदान करता है।




 इति श्रीशिवाष्टोत्तरशतनामावळिस्तोत्रं संपूर्णम ॥


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