श्रीसूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित



"श्रीसूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्" एक प्रमुख हिन्दू स्तोत्र है जो सूर्य देव की महिमा को गाता है। यह स्तोत्र सूर्य भगवान के 108 नामों की स्तुति करता है, जिससे उनकी पूजा और स्मरण होता है। इसमें सूर्य के गुण, शक्तियाँ और कृपाएँ उदाहरणों के साथ दी गई हैं, जिससे भक्त उनके प्रति अपनी श्रद्धा बढ़ाता है। श्रीसूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति में शांति, समृद्धि, और आत्मिक समृप्ति की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र सूर्य पूजन में विशेष महत्त्वपूर्ण है और उन भक्तों द्वारा प्रेमपूर्वक रटा जाता है जो सूर्य देव की कृपा को प्राप्त करना चाहते हैं।

श्रीसूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् :Sri Surya Ashtottara Shatnam Stotram




श्रीसूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् :Sri Surya Ashtottara Shatnam Stotram


सूर्योऽर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्कः सविता रविः।
गभस्तिमानजः कालो मृत्युर्धाता प्रभाकरः॥

इस स्तुति में सूर्य और उनके सप्त पुत्रों के नामों का स्मरण है, जो अर्यमा, भग, त्वष्टा, पूषा, अर्क, सविता, और रवि हैं। यह स्तुति सूर्य के गुण, शक्तियों, और महत्त्व को व्यक्त करती है, जिनमें उनका रूप, कार्य, और सृष्टि के प्रक्रियाओं का विवेचन शामिल है। इसके अंत में सूर्य को मृत्युहारी और प्रभाकर कहकर उनके महत्त्व की भी रूपरेखा है।

पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वायुश्च परायणम् ।
सोमो वृहस्पतिः शुक्रो बुधोऽङ्गारक एव च॥

इस स्तुति में पृथ्वी, आकाश, अग्नि, वायु, सोम, बृहस्पति, शुक्र, बुध, और मंगल - इन नौ ग्रहों की पूजा है। यह बताती है कि ये ग्रह पृथ्वी पर अपनी शक्तियों को वितरित करते हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं।
इन्द्रो विवस्वान् दीप्तांशुः श॒चिः शौरिः छनैश्चरः।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वैश्रवणो यमः॥

वैद्युतो जाटरश्चाग्निरेन्धनस्तेजसां पतिः।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाङ्ो वेदवाहनः॥

इस स्तुति में वैद्युत, जातर, अग्नि, इन्धन, तेजस्वी, धर्मध्वज, वेदकर्ता, वेद, और वेदवाहन - इन विभिन्न अस्त्रों, ग्रहों, और देवताओं की महत्ता का स्वरूप है। यह बताता है कि इनका समर्थन विभिन्न शक्तियों और विद्याओं के साथ कैसे होता है और इनका धन्यवाद कैसे किया जाता है।

कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिः सर्वामराश्रयः,
कला काष्ठा मुहूर्तश्च क्षपा यामस्तथा श्षणः॥

इस स्तुति में कृत, त्रेता, द्वापर, और कलियुग को सर्वविधा में उपस्थित बताया गया है। यह बताता है कि युगों के परिवर्तन के साथ ही कलियुग अभी तक आश्रय लेने वाला है और उसकी अनुपस्थिति के साथ कृत, त्रेता, और द्वापर भी गुजर गए हैं। साथ ही, समय की गणना के रूप में कला, काष्ठा, मुहूर्त, क्षपा, याम, और श्षण को बताया गया है।

संवत्सरकरोऽश्वत्थः कालचक्रो विभावसुः ।
पुरुषः शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्तः सनातनः ॥

इस स्तुति में संवत्सरकर, अश्वत्थ वृक्ष, कालचक्र, विभावसु, पुरुष, शाश्वत योगी, व्यक्त और अव्यक्त, सनातन - इन महत्त्वपूर्ण तत्वों की उपासना की जा रही है। यह बताता है कि यह तत्व समय, शक्ति, और अनन्तता के प्रति हमारी श्रद्धाभक्ति का विषय हैं।

कालाध्यक्षः प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मां तमोनुदः,
वरुणः सागरोऽशश्च जीमूतो जीवनोऽरिहा॥

इस स्तुति में कालाध्यक्ष, प्रजाध्यक्ष, विश्वकर्मा, तमोनुद, वरुण, सागर, अशश, जीमूत, और जीवनहारा - इन देवताओं की महत्ता का वर्णन है। यह स्तुति इन देवताओं की स्तुति करती है और उनकी उपासना को महत्त्वपूर्ण बताती है।

भूताश्रयो भूतपतिः स्व॑लोकनमस्कृतः।
सषा संवर्तको वद्धिः सर्वस्यादिरलोलुपः॥

इस स्तुति में भूताश्रय, भूतपति, स्वलोकनमस्कृत, सषा, संवर्तक, वद्धि, सर्वस्यादि, और अलोलुप - इन देवताओं की महिमा गाई गई है। यह स्तुति इन देवताओं की पूजा और उनके समर्पण की महत्ता को बताती है।

अनन्तः कपिलो भानुः कामदः सर्वतोमुखः ।
जयो विशालो वरदः सर्वभूतनिषेवितः

इस स्तुति में अनन्त, कपिल, भानु, कामद, सर्वतोमुख, जय, विशाल, वरद, और सर्वभूतनिषेवित - इन देवताओं की महत्ता की बड़ी है। यह स्तुति इन देवताओं की पूजा और महिमा का वर्णन करती है, जो सभी दिशाओं से प्रकट होने वाले, जीते हुए, विशाल, वरदानशील, और सभी प्राणियों द्वारा सेवित हैं।

मनः सुपणां भूतादिः शीघ्रगः प्राणधारणः।
धन्वन्तरिधुप्रकेतुरादिदेवोऽदितेः सुतः॥

इस स्तुति में मनः, सुपणां, भूतादि, शीघ्रग, प्राणधारण, धन्वन्तरिधुप्रकेतु, आदिदेव, और अदिति के पुत्र - इन देवताओं की पूजा की जा रही है। यह स्तुति इन देवताओं की महत्ता और उनकी आराधना को बताती है।

दरादज्ञात्मारविन्दाक्चषः पिता माता पितामहः)
प्रजाद्वारं स्वर्गद्वारं सोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ॥

इस स्तुति में दरा, अज्ञा, आत्मा, अरविन्द, चषः, पिता, माता, पितामह, प्रजा, द्वार, स्वर्गद्वार, सोक्षद्वार, और त्रिविष्टप - इन तत्वों की महत्ता और उनकी उपासना है। यह स्तुति इन देवताओं की पूजा को महत्त्वपूर्ण बताती है, जो सभी सुख-साधनों के द्वारपथ के प्रमुख हैं।

दाहक्तां प्रजान्तात्मा विश्वात्मा विश्चतोमुखः।
चराचरात्मा सृक्ष्मात्मा मैत्रेयः करुणान्वितः ॥

इस स्तुति में दाहक्ता, प्रजान्ता, आत्मा, विश्वात्मा, विश्चतोमुख, चराचरात्मा, सृक्ष्मात्मा, मैत्रेय, और करुणान्वित - इन गुणों वाली देवताओं की स्तुति है। यह स्तुति इन देवताओं की महत्ता को बताती है, जो सभी प्राणियों के अंतरात्मा, उनके सारे रूपों में स्थित, और सभी पर करुणामय हैं।

एतद् वै कोर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजसः।
नापा्टशतकं चेदं प्रोक्तमेतत् स्वयम्भुवा ॥

इस स्तुति में यह कहा गया है कि इस सूर्य देवता की अमित तेजस्वी प्रकृति को समझने के लिए यह सौ श्लोक पठना चाहिए। यह स्वयंभू ऋषि द्वारा प्रोक्त है।

सुरगणपितृयक्चसेवितं ह्यसुरनिशाचरसिद्धवन्दितम् ।
वरकनकहुताशनप्रभं प्रणिपतितोऽस्मि हिताय भास्करम् ॥

इस स्तुति में सूर्य देवता को सुरगण, पितृ, और यक्षों की पूजा के योग्य माना गया है, जो असुरों और निशाचरों के लिए सिद्धि वर्णन करने वाले हैं। इसके साथ ही, उनकी आराधना करने से हम वर, कनक, हवन और अग्निप्रकाश के समान प्रकाशमान भास्कर के प्रति भक्ति और प्रणाम करते हैं।

सूयोदये यः सुसमाहितः पठेत्स प ुत्रदारान् धनरतरसंचयान् ।
लभेत जातिस्परतान्तरः सदा धृतिं च मेधां च स विन्दते पुमान् ॥
डमं स्तवं देववरस्य यो नरः प्रकीर्तयेच्छुद्धमनाः समाहितः ।

जो व्यक्ति सूर्योदय के समय इस स्तवन को सुसमाहित मन से पढ़ता है, उसे पुत्र, धन, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। वह सदा जातिस्पर्शी होता है और सदैव धैर्य और मेधा का आनंद लेता है। इससे व्यक्ति का मन शुद्ध होता है और उसे भगवान सूर्य की पूजा करने का समर्थन मिलता है।


विमुच्यते शोकदवाग्निसागराल्लभत कामान् मनसा यथेप्सितान् ॥

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