श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित


विष्णु स्तोत्रम् का हिंदी अर्थ सहित विस्तार से समझें! यह एक अद्वितीय सागर है जिसमें भगवान के नामों का रहस्य छुपा है। इस स्तोत्रम् में हर शब्द भगवान की महिमा को छूने का प्रयास करता है, हर सूक्ति भक्ति और समर्पण का अर्थ समझाती है। इस अद्भुत यात्रा में हिंदी में उन शब्दों के अर्थ को खोजें, जो आपके जीवन को परिपूर्ण बना सकते हैं। विशेषज्ञता के साथ लिपटा यह स्तोत्र आपको भगवान के साथ गहरे संवाद में ले जाएगा, आपको एक नए सत्य की ओर मोड़ने का अनुभव कराएगा। इस अद्वितीय सागर का सारांश हिंदी में उपलब्ध है, जो आपको एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव में ले जाएगा। 


श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित



🌟श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् :Shri Vishnu Ashtottara Shatnam Stotram🌟


अष्टोत्तरशतं नाम्नां विष्णोरतुलतेजसः ।
यस्य श्रवणमात्रेण नरो नारायणो भवेत् ॥


अष्टोत्तरशतं नामों का विष्णु के अत्यंत तेजस्वी (तेजसवंत) नाम है। जिसको सुनने से ही मनुष्य नारायण बन जाता है।

विष्णुजिष्णुर्वषट्कारो देवदेवो वृषाकपिः ।
दामोदरो दीनबन्धुरादिदेवोऽदितेः सुतः॥


विष्णुजिष्णु, जो वृषाकपि (मत्स्य रूपी) हैं, वषट्कार (वषट्+कार) हैं, देवदेव हैं, दामोदर हैं, दीनबन्धु हैं, आदिदेव (सूर्यपुत्र) हैं।

पुण्डरीकः परानन्दः परमात्मा परात्परः।
परशुधारी विश्वात्मा कृष्णः काली मलापहः ।


पुण्डरीक, परमानंद, परमात्मा, परात्पर, परशुधारी, विश्वात्मा, कृष्ण, काली, मलापह। ये विष्णु के सम्बंधित नाम हैं जो उसकी अद्भुतता, पूर्णता और लोकों के रक्षण की शक्ति को संकेत करते हैं। वे सर्वशक्तिमान और सभी का उत्पत्तिस्थान हैं।

कोस्तुभोद्धासितोरस्को नरो नारायणो हरिः)
हरो हरप्रियः स्वामी वैकुण्ठो विश्वतोमुखः।॥


कोस्तुभ, उद्धासित, ऊरुशक्ति धारी, नारायण का भक्त व्यक्ति, हरि, हर प्रिय, स्वामी, वैकुण्ठ में निवास करने वाला और सभी दिशाओं में मुख रखने वाला है। इसका अर्थ है कि नारायण, जो विश्वको पालने वाला और सभी का मुख रखने वाला है, उसका सच्चा भक्त होना हरी की कृपा को प्राप्त करने का साधन है और ऐसा व्यक्ति वैकुण्ठ में आनंदित होता है।

हृषीके श्‌श्रोऽप्रमेयात्मा वराहो धरणीधरः ।
वामनो वेदवक्ता च वासुदेवः सनातनः


हृषीकेश, जिनके शिरोंजेष्ठ रत्न हैं, अप्रमेय आत्मा हैं, वराह रूपी भगवान धरणीधर हैं, वामन रूपी भगवान वेदवक्ता हैं और सनातन वासुदेव हैं। ये भगवान जगत के धरोहर हैं, सब प्रकार के पापों को नष्ट करने वाले हैं, सभी सुखों का स्रष्टा हैं, राधिका के प्रिय स्वामी हैं, और वैकुण्ठ स्वरूपी विश्वतोमुख हैं। इनके पवित्र नामों का श्रवण मात्र से व्यक्ति नारायण के समान हो जाता है।

रामो विरामो विरजो रावणारी रमापतिः,
वैकुण्ठवासी वसुमान् धनदो धरणीधरः॥


अष्टोत्तरशत नामों में विष्णु के सुप्रतिष्ठित एवं शक्तिशाली नामों का संग्रह है। जिन्हें सुनने से ही व्यक्ति को नारायण की उपासना में समर्थन मिलता है। यह नामों का जाप विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है, जैसे कि पापों का नाश, भक्ति में वृद्धि, शांति, सुख और मोक्ष की प्राप्ति। इन नामों का पाठ करने से व्यक्ति नारायण के प्रति देवोत्तम भाव पैदा कर सकता है और अपने जीवन को उद्दीपित कर सकता है।

धर्म॑शञो धरणीनाथो ध्येयो धर्मभृतां वरः,
सहस्रग्नीषां पुरुषः सहस््राक्च सहस्रपात् ।


धर्मराज और पृथ्वीपति, धर्म का पालनकर्ता और धर्मयोगी, धर्मिक लोगों का आदर्श, हजारों अग्नियों का स्वामी, विश्व के सहस्रों पुरुषों का आदिकारण, सहस्राक्ष और सहस्रपाद, इस प्रभावशाली नाम के साथ विष्णु भगवान की महिमा और शक्ति का स्वरूप हैं।

सर्वग सर्ववित् स्व॑ः शरण्य साधुवल्लभ
कौसल्यानन्दनः श्रीमान् रक्ष:कुलविनाशक ॥


सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ, स्वर्ग स्वरूप और सभी का शरण, भक्तों का सजीवनहार, सत्य और धर्म का पालनकर्ता, सुदर्शन चक्रधारी, सजग, शान्तिदाता, साधुओं का प्रिय, कौशल्या माता के पुत्र, श्रीराम, रक्षक और कुल का संरक्षक हैं।

जगत्कतां जगद्धर्ता जगजेता जनार्तिहा
जानकावल्लभो देवो जयरूपो जलेश्वरः ॥


वह जगत् का निर्माता, सभी लोकों का पालनहार, जगत् का जीतने वाला, भक्तों के दुःखों का नाशक, जानकी के प्रिय, देवता, विजय के रूप में प्रकट होने वाला, जल के स्वामी और ईश्वर है।

धीरावधिवासंी कषीरावधितनयावल्लभस्तथा
ग्रेष्णायी पन्नगारिवाहनोविष्ठरश्रवाः ॥

वह धीर, अधिवासु, काशीराज, ब्रज की रानी के पुत्र, आकर्षणीय, पन्नग (नाग) की रूप में बैठने वाला, शेषनाग के साथ युक्त, विष्ठराशि (धन) के स्वामी, और श्रवा के पति है।


माधवो पमधुरानाथो मोहदो मोहनाशनः।
दैत्यारिः प॒ण्डरीकाक्षो हाच्युतो मधुसूदनः॥


सूर्योपस्थे सवे देवाः सदात्मानं प्रकाशयन्ति, तस्य तेजः समुद्रस्याग्नेश्चेन्दुसर्शकौ यः। तस्य यत्र सर्वमेतत्कर्म क्षीयते, तस्य सूक्ष्मात् सूक्ष्मतरं किञ्चित् विद्यते। योऽयं वेद, स वेदयाम्यहम्। सूर्यस्य स्थानमात्रेण सर्वदेवताग्रहणं कारणमिति तत्र श्रुतिः—तेजस्तस्य तेजोऽयं तमसस्तस्य तमः। स य एको वेद सर्वं व्याप्य भूतान्याचारयति। स तप्त्वा सुरुचिर्बभूव। स विजिज्ञासितव्यः। स तस्मात्सर्वव्यापिनात्मनः सर्वमीश्वराय परमात्मने ब्रह्मणे ब्रह्मपरमात्मने श्रीविष्णवे प्रणमामि।

सोमसूर्याग्निनियनो न॒सिंहो भक्तवत्सलः।
नित्यो निरामयः शुद्धो नरदेवो जगत्प्रभुः ॥

सोमसूर्याग्निनियनों का पूज्य नृसिंह, भक्तों के प्रिय, सदैव स्वस्थ, शुद्ध रूप में स्थित, नरलोक के ईश्वर हैं। वह सदैव अपने भक्तों की कारण, नित्य स्वस्थ, पवित्र और जगत के प्रभु हैं। उनका ध्यान करने से भक्त निरामय होता है और उन्हें जगत के प्रभु की सर्वोत्तम भावना होती है। इस प्रकार, भक्त नित्य सच्चे और निर्मल प्रेम के साथ नरदेव श्री विष्णु की भक्ति करता है।

हयग्रीवो जितरिपुरुपेन्द्रो रुक्मिणीपतिः।
सर्वदेवमयः श्रीशः सर्वाधारः सनातनः॥

हयग्रीव, जितके शत्रुओं का समर्थन करने वाले, रुक्मिणीपति, सम्पूर्ण देवताओं में पूर्ण, श्रीमान, सबका आधार और सनातन श्रीविष्णु कहलाते हैं। वह हयग्रीव स्वरूप में, जिसने वेदों का ज्ञान शिखाया था, सब प्राणियों के प्राणस्वरूप और सर्वशक्तिमान रूप में विख्यात हैं। रुक्मिणीपति के रूप में, जो श्रीकृष्ण के पति थे, वे परम प्रेमभाव से परिपूर्ण थे। सम्पूर्ण देवताओं के समृद्धि का आधार, वह श्रीशा और सनातन हैं, जो हमेशा बना रहता है।

सौम्यः सौम्यप्रदः स्रष्टा विष्वक्सेनो जनादनः।
यशोदातनयो योगी योगजास््रपरायणः ॥

सौम्य, उपहारों का प्रदाता, संसार के सृष्टिकर्ता, सम्पूर्ण विश्व के सेनापति, जनार्दन - यह सब श्रीकृष्ण के नाम हैं। वह योगी हैं, जो योग के अतीत और अन्यन्त में स्थित हैं, और उनका परायण है। श्रीकृष्ण, यशोदा की संतान, जो योगियों का सर्वोत्तम है और उनके भक्तों को सुख प्रदान करने में सक्षम हैं। वे सौम्य और सौम्यप्रद हैं, जो अपने भक्तों को शान्ति और आनंद प्रदान करते हैं।

सद्रात्मको सुद्रमूतीं राघवो पधुसूदनः।
इति ते कथितं दिव्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥


राम, सदात्मा, सुदर्मा, मधुसूदन - इन सुप्रसिद्ध नामों का सद्रात्मक वर्णन है, जिससे उनकी अनंत गुणगान होती है। इसमें विभिन्न रूपों, गुणों, लीलाओं की महिमा है जो उन्हें दिव्य बनाती है। यह नामसंग्रह, भक्तों को दिव्य शक्तियों के साथ जोड़कर उन्हें सद्गति और शांति प्रदान करने का संकेत करता है।

सर्वपापहरं पुण्यं विष्णोरमिततेजसः।
दुःखदारिद्यदौ भाग्यनारटनं सुखवर्धनम् ॥


यह श्लोक विष्णु भगवान की महत्त्वपूर्णता को वर्णित करता है और उनकी अद्वितीय तेजस्विता को स्पष्ट करता है। भगवान विष्णु सभी पापों को हरने वाले हैं, उनकी ज्यों की ज्यों अज्ञेय चमक में दुःख और दरिद्रता का अंत होता है और भक्तों के जीवन में सुख का वृद्धि होती है। यह भगवान की कृपा और आशीर्वाद की महत्त्वपूर्णता को प्रमोट करता है।

सर्वसम्पत्करं सोम्यं महापातकनाशनम्
प्रातरुथाय विप्रेन्द्र पठेदेकाग्रमानसः।
तस्य नश्यन्ति विपदां राशयः सिद्धिमाप्नुयात् ॥


यह श्लोक सूर्य भगवान की पूजा एवं आराधना के महत्त्व को बताता है। इसमें कहा गया है कि सूर्य भगवान सभी सम्पत्तियों का कारण हैं और उनकी पूजा से महापातकों का नाश होता है। सूर्य की पूजा करने से भक्त को सभी संघर्षों से मुक्ति मिलती है और उसे सिद्धियां प्राप्त होती हैं। एकाग्र मन से सूर्य भगवान की आराधना करने से व्यक्ति को अनेक प्रकार के विपदाओं से निवृत्ति होती है और सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

॥ इति श्रीपदरपृराणे उत्तरखण्डे श्रीविष्णोरष्टत्तर्तनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने