सहस्त्रनामस्तोत्र,(Sahasranama Stotra) हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में परिचित है जिसमें हजारों नामों का समर्पण एक विशिष्ट देवता को किया जाता है।यह विशेष विवरण आपको बताएगा कि सहस्त्रनामस्तोत्र (Sahasranama Stotra) का पाठ करने से कैसे हम आत्मा के साथ जुड़ सकते हैं और इससे हमारे जीवन में कैसे सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। इसमें हम देखेंगे कि कैसे हर नाम एक विशेष गुण या आराध्य देवता का प्रतिष्ठान करता है और इसके आध्यात्मिक महत्व को समझते हैं। सहस्त्रनामस्तोत्र (Sahasranama Stotra)का यह आध्यात्मिक सफर हमें दिखाता है कि जीवन को कैसे सुंदर और पूर्ण बनाया जा सकता है।
What Is Sahasranama Stotra सहस्रनामस्तोत्र, क्या है
प्रारम्भ से ही भगवान् के अर्चन-पूजनमें सहस्रनाम (Sahasranama Stotra) का अत्यधिक महत्त्व माना जाता है। सहस्रनाम-जप और सहस्रनामार्चन पूजा-पद्धति में विशेष महत्त्व रखता है। इसमें पंचदेवों की उपासना पूर्ण रूप से ब्रह्म के रूप में प्रस्तुत की गई है। गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा और सूर्य - इन पंचदेवताओं में से कोई एक को अपना इष्ट मानकर व्यक्ति आराधना करता है, इसलिए इन देवताओं के 'सहस्रनामस्तोत्र' भक्तजनों के कल्याण के लिए अपने आर्ष साहित्य में प्राप्त होते हैं, जिनका पाठ भी किया जाता है और इनकी नामावली से अर्चा-पूजा भी की जाती है।
इन देवताओं का सहस्रनामाचन (Sahasranama Stotra)विशिष्ठ सामग्रीदारा करने का अपने शास्त्रों में विधान मिलता है और उसकी विशेष महिमा भी बताई गई है। उदाहरणस्वरूप, गणपति के लिए लवा, मोदक, और बिल्वपत्र के साथ सहस्रनामार्चन का विधान है। विष्णु के लिए तुलसीदल के साथ सहस्त्रनामार्चन को विशेष महत्त्व दिया गया है। सदाशिव का सहस्रनामार्चन विल्वपत्र और दूवारा किया जाता है, सूर्यनारायण का सहस्त्रनामार्चन कमलपुष्प से किया जाता है और दुर्गा के लिए जपापुष्प, कुकुम, और अक्षतादि के साथ सहस्त्रनामार्चन से प्रसन्नता होती है।
इन देवताओं के विभिन्न अवतारों ने भी अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया है और उनके नाम-रूपों की उपासना करने की विधि बताई गई है। जैसे, भगवती दुर्गा की आराधना गायत्री, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, ललिता, भवानी, राधा, और सीता आदि अनेक नाम-रूपों में की जा सकती है। गणेश, सूर्य, शिव, और विष्णु के भी अनेक नाम और स्वरूप शास्त्रों में प्राप्त हैं, और इसलिए सभी के सहस्रनाम ग्रंथों में उपलब्ध हैं।
इस प्रकार, सहस्त्रनाम के पठन और आराधना से भक्ति, श्रद्धा, और आत्मिक उन्नति में वृद्धि होती है, जिससे भक्त अपने आत्मा के साथ संबंधित होता है और धार्मिकता की दिशा में प्रगट होता है।
भगवान् का नाम स्वयंमें परात्पर परब्रह्म सच्चिदानन्दविग्रह है -
रामस्यनाम रूपंच लीलाधाम परात्परम् ।
एतच्यतुष्टयं सर्व सच्विदानन्दविग्रहम् ॥
( बसिष्ठसंहिता)
सर्वप्रथम स्नान आदिसे पवित्र हो जाय । जिन देवताके सहस्रनामस्तोत्रका पाठ करना हो अथवा सहस्त्रार्चन करना हो, उनकी प्रतिमाको अपने सम्मुख किसी काष्ठपीठ (लकड़ी का पीठ) आदिपर यथाविधि स्थापित कर ले, अपने बेठनेका आसन भी लगा ले। पूजन आदिको सभी सामग्रियोको यथास्थान रखकर अपने आसनपर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बेठ जाय। दीपक जलाकर पूर्वाभिमुख रख दे ओर हाथ धो ले। 'दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते' कहकर पुष्प अर्पित कर कर्मसाक्षी दीपकका पूजन कर ले। तिलक लगा ले तथा निम्र मन्त्रोंसे आचमन करे
' ॐ केशवाय नमः 1 ॐ नारायणाय नमः! ॐ माधवाय नमः ।' ॐ हषीके्ाय नमः'
कहकर हाथ धो ले। निम्र मन्त्रसे अपने ऊपर जल छिड़क कर मार्जन कर ले-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐपुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरोकाक्षः पुनातु ।
तदनन्तर दाहिने हाथमें जल, पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्र संकल्प करे-
ॐ विष्णार्विष्णार्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोर्या प्रवतेमानस्य
ब्रह्मणः द्वितीयपराधं श्रीश्चेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे
कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवषं आर्यावतैकदेशे “-नगरे/ग्रामे,,,,,,,,,,,,वेक्रमाब्दे
संवत्सरे पासे -पक्चे तिथौ --वासरे "गोत्र शर्मा वमा /गुसोऽहं श
देवप्रीत्यर्थः सहस्रनामस्तोत्रपाठं करिष्ये।
यदि सहस्रार्चन करना हो तो 'सहस्रनामार्चनं करिष्ये -ऐसा बोलना चाहिये ।) हाथका जलाक्षत छोड दे। कार्यकी निर्विघ्न सिद्धिके लिये श्रीगणेशजीकास्मरण कर ले।