हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को सबसे पहले पूजने वाले देवता के रूप में माना जाता है। उनकी विशेषता और महिमा को व्यक्त करने वाला एक अद्वितीय स्तोत्र है "गणेशाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र"। इस स्तोत्र में भगवान गणेश के 108 नामों की स्तुति है, जो हमें उनके विभिन्न स्वरूपों और गुणों के प्रति भक्ति और श्रद्धा का आदान-प्रदान करती है।
Ganesha Ashtottara Shatnam Stotra:श्रीगणपत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को एक अद्वितीय और प्रमुख देवता माना जाता है, जिन्हें सबसे पहले पूजा जाता है। इस दिव्य देवता की विशेषता और महिमा को अभिव्यक्त करने के लिए हमारे पास "गणेशाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र" नामक एक अद्वितीय स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान गणेश के 108 नामों की स्तुति करता है, जिससे हमें उनके विभिन्न स्वरूपों और गुणों के प्रति भक्ति और श्रद्धा का आदान-प्रदान होता है।
गणेशाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र में इन 108 नामों के माध्यम से हम भगवान के अनगिनत पहलुओं को समझते हैं और उनकी अनंत कला की पूजा करते हैं। इसके पाठ से हम गणेश भगवान के प्रति अपनी भक्ति को सुधारते हैं और उनकी कृपा से जीवन को सफलता और सुख-शांति से भर देते हैं। इस स्तोत्र का पाठ हमें आध्यात्मिक सुन्दरता और मानवता के प्रति कर्तव्य का आदान-प्रदान करता है।
Ganesha Ashtottara Shatnam Stotra:श्रीगणपत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्स्तोत्र के लाभ
गणेशाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ करने से अनगिनत आध्यात्मिक और भौतिक लाभ होता है। इस प्राचीन स्तोत्र का महत्वपूर्ण स्थान है और इसके प्रति भक्तों का आदर आता है।
1. आत्म-विकास: गणेशाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ करने से आत्मा में सकारात्मक बदलाव होता है और व्यक्ति आत्म-विकास की ऊंचाइयों को छूने के लिए प्रेरित होता है।
2.बुद्धिमत्ता और बुद्धिदत्ता:गणेश भगवान को बुद्धि और विद्या के प्रतीक के रूप में माना जाता है, इसलिए स्तोत्र का पाठ करने से विद्या और बुद्धिमत्ता में वृद्धि होती है।
3.शुभ आरंभ:नए कार्यों की शुरुआत में गणेशाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ करने से शुभ आरंभ होता है और समस्त परिस्थितियों में सहारा मिलता है।
4. शांति और सुख: स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में शांति और सुख-शांति का अनुभव होता है, जो मानव जीवन की सर्वांगीण समृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है।
5. बच्चों के लिए शिक्षा:गणेशाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र को बच्चों को सिखाया जा सकता है, जिससे उनमें सद्गुण और आदर्श विचार विकसित होते हैं।
सार्थक स्तोत्र के आदान-प्रदान से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है और भक्ति के माध्यम से भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Ganesha Ashtottara Shatnam Stotra:श्रीगणपत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् पाठ करने का तरीका
श्रीगणपत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् पाठ कैसे करे इसके जानकारी के लिए निचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करे
सहस्त्रनामस्तोत्र का पाठ कैसे करें
ॐ गणेश्वरो गणक्रीडो महागणपतिस्तथा।
विश्चकतां विश्वमुखो दुर्जयो धूर्जयो जयः॥
सुरूपः सर्वनेत्राधिवासो वीरासनाश्रयः।
योगाधिपस्तारकस्थः पुरुषो गजकर्णकः ॥
चिव्राङ्ः शयामदशनो भालचन्द्रश्चतुर्भुजः।
शम्भुतेजा यज्ञकायः सर्वात्मा सामवृंहितः॥
कुलाचलांसो व्योमनाभिः कल्पद्रुमवनालयः।
निप्ननाभिः स्थूलकुश्चिः पीनवक्षा बृहद् भुजः ॥
कुलाचल पर्वतों के शील से सुसज्जित, व्योमनाभि (अकाश के सारे दिशाएँ) से युक्त,कल्पद्रुमों के वन का निवासी, अपने नाभि से सम्बंधित, स्थूलकुश (बड़े घास के छोटे-छोटे टुकड़े) से धारित,कमजोर को आश्रय देने वाली छाती वाला, बड़े भुजाओं वाला है॥
पीनस्कन्धः कम्बुकण्ठो लम्बोष्ठो लम्बनासिकः |
सर्वावयवसम्पूर्णः सर्वलक्षणलक्षितः ॥
इक्षुचापधरः ग्रूली कान्तिकन्दलिताश्रयः।
अक्षमालाधरो ज्ञानमुद्रावान् विजयावहः ॥
कामिनि कामना काममालिनी केलिलालितः।
अमोधसिद्धिराधार आधाराधेयवर्जितः॥
इन्दीवरदलश्याम इन्दुमण्डलनिर्मलः।
कमसाक्षी कर्मकर्ता कर्माकर्मफलप्रदः॥
कमण्डलुधरः कल्पः कपदीं कटिसूत्रभ॒त् ।
कारुण्यदेहः कपिलो गुह्यागमनिरूपितः ॥
गुहाशयो गुहाब्धिस्थो घटकुम्भो घटोदरः |
पूर्णानन्दः परानन्दो धनदो धरणीधरः ||
बृहत्तमो ब्रह्मपरो ब्रह्मण्यो ब्रहावित्प्रियः।
भव्यो भूतालयो भोगदाता चैव महामनाः ॥
वरेण्यो वामदेवश्च वन्द्यो वजरनिवारणः।
विश्चकतां विश्चचक्षुहं वनं हव्यकव्यभुक् ॥
स्वतन्त्रः सत्यस्ंकल्पस्तथा सोभाग्यवर्धनः।
कोतिंदः शोकहारी च त्रिवर्गफलदायकः॥
चतुर्बाहुश्चतुर्दन्तश्चतुथीतिथिसम्भवः ।
सहस्रशीषां पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥
कामरूपः क्ामगतिद्धिरदो दरीपरश्चकः।
श्षेत्राधिपः क्षमाभतां लयस्थो लडडुकप्रियः ॥
प्रतिवादिमुखस्तम्भो ट्ष्टचित्तप्रसादनः।
भगवान् भक्तिसुलभो याक्ञिको याजकप्रियः॥
इत्येवं देवदेवस्य गणराजस्य धीमतः।
शतमष्टोत्तरं नानां सारभूतं प्रकोतितम् ॥
सहस्ननाम्नामाकृष्य मया प्रोक्तं मनोहरम्
ब्राह्मो मुहूर्ते चोत्थाय स्मृत्वा देवं गणेश्वरम् !
पठेत्स्तोत्रमिदं भक्त्या गणराजः प्रसीदति॥
॥ इति श्रीगणेशपुराणे उपासनाखण्डे श्रीगणपत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥