Shri Ramraksha Stotram:श्रीराम रक्षास्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित


इस ब्लोग  में हम श्रीरामरक्षास्तोत्रम् (Shri Ramraksha Stotram) के शक्तिशाली शब्दों को महसूस कर सकते हैं, जो श्रीराम की आध्यात्मिक सुरक्षा का उच्चारण करते हैं। यह स्तोत्र भक्ति और आध्यात्मिकता की ऊँचाईयों को छूने का एक माध्यम है और इसका पाठन आत्मा को शांति और समृद्धि की अनुभूति कराता है। यह ब्लोगहमें एक ऊँचे आध्यात्मिक स्थान की अनुभूति कराता है जो हमें शांति और आनंद की ओर मार्गदर्शन करता है।

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित



क्या है श्रीरामरक्षास्तोत्रम्  :What is Shriramrakshastotram?

श्री रामरक्षा स्तोत्रम्  बुधकौशिक ऋषि द्वारा रचित है जिन्होंने भगवान शिव के आदेश पर इसे लिखा है बुधकौशिक ऋषि को भगवान विश्वामित्र के शिष्यों में से एक माना जाता है। विश्वामित्र ऋषि के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने अपने शिष्यों को विभिन्न विद्याओं और तपस्याओं का उपदेश दिया था। बुधकौशिक ऋषि का नाम मुख्यत: रामायण और महाभारत के कई स्थानों पर मिलता है, जहां उनका उल्लेख उनके गुरु विश्वामित्र के सम्बंध में है।

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के लाभ Benefits of Shriramrakshastotram

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का प्रचुर पाठन करने से मानसिक चिंता और अस्तित्व की समस्याएं कम होती हैं, जिससे मानसिक शांति का अनुभव होता है।

इस स्तोत्रम् के माध्यम से हम भगवान राम के प्रति भक्ति में वृद्धि करते हैं, जो आत्मा को उदार और प्रेमपूर्ण बनाता है।

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के पाठ से आत्मा में ऊर्जा का संचार होता है, जिससे कार्यों में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।
यह स्तोत्रम् दुर्भाग्य और कठिनाइयों से निपटने में सहायक है, जिससे हम जीवन के प्रति उत्साही रहते हैं।

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ करके हम अपने आत्मसमर्पण की अद्वितीयता को समझते हैं और आत्मनिरीक्षण में समर्थ होते हैं।
इस स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से परिवार में सद्गुण संबंध बनते हैं और सभी सदस्यों के बीच सामंजस्य बना रहता है।
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का अध्ययन करने से शारीरिक और मानसिक रोगों का निवारण होता है, जिससे आरोग्य में सुधार होता है।
इस प्राचीन स्तोत्रम् के पाठ से हम अपनी आत्मशक्ति और साहस में वृद्धि करते हैं, जिससे हम किसी भी परिस्थिति में आत्मनिर्भर रह सकते हैं।
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का प्रतिदिन का पाठ करने से हमें देवता की भावना से भरा हुआ, सच्चे मित्र का अनुभव होता है।
इस स्तोत्रम् का नियमित पाठ हमें धर्मिकता का पालन करने के लिए प्रेरित करता है और जीवन को सद्गुण से भर देता है।

 श्रीरामरक्षास्तोत्रम् को सिद्ध करने का तरीका

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् को सिद्ध करने का तरीका बहुत ही सरल और आसान है। इस अद्भुत स्तोत्रम् को सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन करें:

सबसे पहले, एक शांत और पवित्र स्थान पर बैठें। ध्यान को धारण करें और अपने मन को श्रीराम के प्रति श्रद्धाभाव से भरें।

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् को ध्यानपूर्वक और विधिवत पढ़ें। प्रत्येक श्लोक को समझकर और भावना से पठें। 

इस स्तोत्रम् को नियमित रूप से पढ़ने में निरंतर रहें। यदि संभव हो, तो प्रतिदिन एक स्थिर समय निर्धारित करें और उसी समय पर स्तोत्रम् का पाठ करें। ११, २१, या १०१ बार 

प्रतिदिन के पाठ के समय, श्रद्धाभाव से भरा हुआ रहें और श्रीराम की आराधना में निरंतरता बनाए रखें। 

स्तोत्रम् का पाठ करते समय, अपनी सम्पूर्ण भावना और भक्ति को श्रीराम को समर्पित करें। अपनी समस्त क्रियाएँ उन्हें समर्पित करें।

प्रतिदिन कुछ समय ध्यान बैठें और श्रीराम के चिन्हों का ध्यान करें। इससे आपका मानसिक और आत्मिक विकास होगा।

सिद्धि के लिए, स्तोत्रम् का नियमित रूप से पठन जारी रखें। यह निरंतरता और स्थिरता के साथ ही प्रभाव दिखाएगा।

इस रूप में, श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ सिद्धि के लिए एक अत्यंत प्रभावी तरीका है। यह न केवल आत्मिक शक्ति को बढ़ावा देता है, बल्कि जीवन को भी सुख-शांति से भर देता है।

Shri Ramraksha Stotram:श्रीरामरक्षास्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित 


ॐ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकोरिक ऋषिः श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप्‌ छन्दः सीता राक्तिः श्रीमान्‌ हनुमान्‌ कीलकः श्रीरामचन्द्रघरीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।


इस रामरक्षास्तोत्र-मन्त्रके बुधकौशिक ऋषि हे । सीता ओर रामचन्द्र देवता दै, अनुष्टुप्‌ छन्द है, सीता शक्ति है, श्रीमान्‌ हनुमानजी कीकक है तथा श्रीरामचन्द्रनीकी प्रसन्नताके लिये रामरक्षास्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता हैं ।

अथ ध्यानम्‌

ध्यायेदाजानुबाह धृतदारधनुषं बद्धपदासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रे प्रसन्नम्‌ । वामाड्कारूढसीतामुखकमलमिलल्त्लोचनः नीरदाभं नानालद्कारदीप्रं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम्‌ ॥

इस रामरक्षास्तोत्र-मन्त्रके बुधकौशिक ऋषि हे । सीता ओर रामचन्द्र देवता दै, अनुष्टुप्‌ छन्द है, सीता शक्ति है, श्रीमान्‌ हनुमानजी कीकक है तथा श्रीरामचन्द्रनीकी प्रसन्नताके लिये रामरक्षास्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता े।

ध्यान--जो धनुष-बाण धारण किये हुए दै, बद्धपद्मासनसे विराजमान है, पीताम्बर पहने हए हैँ, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदलसे स्पर्धा करते तथा वामभागे विराजमान श्रीसीताजीके मुखकमलसे मिले हुए हैँ उन आजानुबाहु, मेघरुयाम, नाना प्रकारके अल्कारोसे विभूषित तथा विरार जटाजूटधारी श्रीरामचन्रजीका ध्यान करे ।

स्तोत्रम्‌ चरितं रघुनाथस्य सातकोटिप्रविस्तरम्‌ । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाडानम्‌ ॥ 1॥ 
ध्यात्वा नीलोत्पलरयामं रामं राजीवलोचनम्‌ । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ।। २ ॥ 
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तचरान्तकम्‌ ।स्वलीलया जगत््रातुमाविभूतमजं विभुम्‌ ॥ 3॥
 रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्ीं सर्वकामदाम्‌ । शिरो मे राघवः पातु भालं दरारथात्पजः ॥ ४ ॥ 
कोसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती । घ्राण पातु मखत्राता सुखं सोमित्रिवत्सलः ॥ ५ ॥
जिह्वांविद्यानिधिः पातुकण्ठेभरतवन्दितिःस्कन्धो दिव्यायुधःपातु भुजो भयरेहाकार्मुकः॥६
करो सीतापतिः पातु हदयं जामदग्न्यजित्‌ । मध्य पातु खरध्वसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥ ७ ॥ 
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी . हनुमत्प्रभुः । ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाराकृत्‌ ॥ ८ ॥
 
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दरामुखान्तकः । पादो विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥ ९ ॥ 
एता रामबलोपेतां रक्षं यः सुकृती पठेत्‌ । स चिरायुः सुखी पुगी विजयी विनयी भवेत्‌ ॥ १०॥
 पातालभूतक्छव्योमचारिणरखदाचारिणः । न द्रष्टुमपि राक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः । ११ ॥


श्रीरघुनाथजीका चरित्र सो करोड़ विस्तारवाला है ओर उसका एक-एक अक्षर भी मनुष्योकि महान्‌ पापोको नष्ट करनेवाला है ॥ १  ॥ जो नीरकमलदलके समान कयामवर्ण, कमलनयन, जटाओकि मुकुटसे सुरोभित, हाथोमे खड्ग, तूणीर, धनुष ओर बाण धारण करनेवाले, राक्षसोके संहारकारी तथा संसारकी रक्षाके ल्य अपनी लीलासे ही अवतीर्ण हुए दै, उन अजन्मा ओर सर्वव्यापक भगवान्‌ रामका जानकी ओर रक््मणजीके सहित स्मरणकर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा ओर पापविनारिनी रामरक्षाका पाठ करे । मेरे सिरकी राघव ओर रलायकी दङारथात्मज रक्षा करं ॥ २--४॥ कौसल्यानन्दन नेत्रोकी रक्षा कर, विश्वामित्रप्रिय कानोको सुरक्षित रखें तथा यज्ञरक्षक प्राणकी ओर सोमित्रिवत्सरु मुखकी रक्षा कर ॥ ५॥ मेरी जिह्वाकी विद्यानिधि, कण्ठकी भरतवन्दित, कर्धोकी दिव्यायुध ओर भुजाओंकी भयरेराकार्मुक (महादेवजीका धनुष तोड्नेवके) रक्षा करें ।। ६ ॥ हाथोकी सीतापति, हदयकी जामदग्न्यजित्‌ (परशुरामजीको जीतनेवाठे), मध्य भागकी खरध्वसी (खर नामके राश्षसका नाडा करनेवाले) ओर नाभिकी जाम्बवदाश्रय (जाम्बवानके आश्रयस्वरूप) रक्षा कर ॥ ७ ॥ कमरकी सुगरीवेडा (सुम्रीवके स्वामी), सविथर्योकी हनुमत्रभु ओर ऊरुओंकी राक्षसकुरविनाराक रघुश्रेष्ठ रक्षा कर ॥ ८ ॥ जानुओंकी सेतुकृत्‌, जङ्खाओंकी दङामुखान्तक (रावणको मारनेवाठे), चरणोंकी विभीषणश्रीद (विभीषणको पर्य प्रदान करनेवाले) ओर सम्पूर्ण डारीरकी श्रीराम रक्षा करे ॥ ९ ॥ जो पुण्यवान्‌ पुरुष रामबलसे सम्पन्न इस रश्षाका पाठ करता है वह दीर्घायु, सुखी, पत्रवान्‌. विजयी ओर विनयसम्पन्न हो जाता हे ॥ १० ॥ जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकारामें विचरते हे ओर जो छदवेङसे घूमते रहते है वे रामनामसे सुरक्षित पुरुषको देख भी नहीं सकते ॥ ११ ॥

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌ । नरो न किप्यते ` पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥ १२  ॥
जगज्जेत्रेकमनत्रेण रामनाम्राथिरक्षितम्‌ । यः कण्ठे धारयेत्तस्य ` करस्थाः सर्वसिद्धयः । १३  ॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ । अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्कलम्‌ ॥ १४  ॥ 
आदिष्टवान्यथा स्वप्रे रामरक्षामिमां हरः । तथा किखितवाग्प्रातः प्रलुद्धो बुधकोिकः ।। १५  ॥ 
आरामः कल्यवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌ । अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ।१६ ॥
तरुणौ रूपसम्पन्नो सुकुमारो महाबलो । पुण्डरीकविशालाक्षो चीरकृष्णाजिनाम्बरो।१७
  फलमूलाशिनो दान्तो तापसो ब्रहमाचारिणो । पुत्रो दरारथस्यैतो भ्रातरो रामलक्ष्मण ।॥ १८ ॥
 ङारण्यो सर्वसत्त्वानां श्रेष्टो सर्वधनुष्मताम्‌ । रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमो ॥। १९ ॥
आत्तसजधनुषाविषुस्पृशावक्षयाद्युगनिषद्गसङ्किनो । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतःपथि सदैव गच्छताम्‌ ॥ २० ॥ 
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥ २९ ॥
 रामो दाशरथिः शुरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कोसल्येयो रघूत्तमः ॥ २२ ॥

“रामः, "रामभद्र, "रामचन्द्र! इन नामका स्मरण करनेसे मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता तथा^भोग ओर मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ १२ ॥ जो पुरुष जगत्को विजय करनेवाठे एकमात्र म्र रामनामसे सुरक्षित इस स्तोत्रको कण्ठमें धारण करता है (अर्थात्‌ इसे कण्ठस्थ कर ठेता है) सम्पूर्णं सिद्धियां उसके हस्तगत हो जाती हैँ ॥ १३ ॥ जो मनुष्य वज्रपञ्जर नामक इस रामकवचका स्मरण करता है उसकी आज्ञाका कहीं उल्लद्न नहीं होता ओर उसे सर्वत्र जय ओर मङ्गलकी प्राति होती है ॥ ९४ ॥ श्रीडाङ्करने रात्रिके समय खप्रमे इस रामरश्षाका जिस प्रकार आदेडा दिया था उसी प्रकार प्रातःकारु जागनेपर, बुधकोशिकने इसे किख दिया ॥ १५॥ जो मानो कल्पवृक्षोके बगीचे हँ तथा समस्त आपत्तियोका अन्त करनेवाले है, जो तीनों छोकोमिं परम सुन्दर हैँ वे श्रीमान्‌ राम हमारे प्रभु हं ॥ १६॥ जो तरुण अवस्थावाटे, रूपवान्‌, सुकुमार, महाबली, कमलकेसमान विदार नेत्रवाले, चीरवसख्र ओर कृष्णमृगचर्मधारे, फल-मूल आहार करनेवाठे, संयमी, तपस्वी, ब्रह्मचारी, सम्पूर्णं जीवको डारण देनेवाले, समस्त धनुर्धारियोमें श्रेष्ठ ओर राक्षसकु्का नाड कसनेवाठे हैँ वे रघुशरष्ठ दडारथकुमार राम ओर लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ॥ १७-- १९ ॥ जिन्होनि सन्धान किया हुआ धनुष ठे रखा है, जो बाणका स्प कर रहे हं तथा अक्षय बाणेसे युक्त तूणीर च्वि हुए हे वे राम ओर लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके ल्य मार्गमे सदा ही मेरे आगे चले ॥ २०॥ सर्वदा उद्यत, कवचधारी, हाथमे खड्ग लिये, धनुष-बाण धारण किये तथा युवा अवस्थावाठे भगवान्‌ राम लक्ष्मणजीके सहित आगे-आगे चरुकर हमारे मनोरथोंकी रक्षा करे ॥ २९१॥ (भगवानक्ता कथन है कि) राम, दाडारथि, रुर, ठक्ष्मणानुचर, बी, काकुत्स्थ, . पुरुष, पूर्ण, कोसल्येय, रघूत्तम

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः । जानकीवल्लभः श्रीमानपरमेयपराक्रमः ॥ २३ ॥
इत्येतानि जपन्नित्यं मक्त: श्रद्धयान्वितः । अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संदाय: ॥ २४॥
 राम॑दूर्वादलङ्यामं पद्याक्षं॑ पीतवाससम्‌ । स्तुवन्ति नामभिर्िव्यर्न ते संसारिणो नराः ॥ २५॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापति सुन्दरंकाकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्पिकम्‌।राजेन्द्र सत्यसन्धं दडारथतनयं शयामलं शान्तमूर्तिंवन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ।॥ २६ ॥ 
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥ २७ ॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम। श्रीराम राम रणकर्करा राम रामश्रीराम राम रारणं भव राम राम।॥२८॥ 
श्रीरामचन्द्रचरणोौ मनसा स्मरामिश्रीरामचन्द्रचरणो वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणोौ रिरसा नमामिश्रीरामचन्द्रचरणो हइारणं प्रपद्ये ।॥ २९ ॥
 माता रामो मत्पिता रामचन्द्रःस्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु-नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥ ३०॥ 
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्‌ ॥ ३९ ॥


वेदान्तवेद्य, यज्ञदा, पुरुषोत्तम, जानकीवल्छभ, श्रीमान्‌ ओर अप्रमेयपरक्रम-इन नामोका नित्यप्रति श्रद्धापूर्वकं जप करनेसे मेरा भक्त अश्वमेध-यज्ञसे भी अधिक फल प्राप्न करता है, इसमे कोई सन्देह नहीं ॥ २२--२४॥ जो लोग दर्वादरूके समान उयामवर्ण, कमलनयन, पीताम्बरधारी, भगवान्‌ रामका इन दिव्य नामोँसे स्तवन करते हैँ वे संसारचक्रे नहीं पडते ॥ २५॥ ठक्ष्मणजीके पूर्वज, रघुकुले श्रेष्ठ, सीताजीके स्वामी, अति सुन्दर, ककुत्स्थकुरनन्दन, करुणासागर, गुणनिधान, ब्राह्यणभक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, ददारथपुत्र, याम ओर शान्तमूर्ति, सम्पूर्णं लोकोमिं सुन्दर.रघुकुरतिरुक, राघव ओर रावणारि भगवान्‌ रामकी मेँ वन्दना करता हू॥ २६॥ राम, रामभद्र, रामचन्द्र, विधातुस्वरूप, रघुनाथ प्रभु सीतापतिको नमस्कार टै ॥ २७॥हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान्‌ राम हे रणधीर प्रभु राम ! आपमेरे आश्रय होडये ॥ २८ ॥ गै श्रीरामचन्द्रके चरणोका मनसे स्मरण करता रह श्रीरामचन्द्रके चरणोका वाणीसे कीर्तन करता हूं श्रीरामचनदरके चरणोको सिर जुकाकर प्रणाम करता हू तथा श्रीरामचन्दरके चरर्णोकी शरण केता हू ॥ २९ ॥ राम मेरी माता दहै, राम मेरे पिता है, राम स्वामी है ओर राम ही मेरे सखा हें । दयामय रामचन्द्र ही मेर सर्वस्व है; उनके सिवा ओर किसीको मेँ नहीं जानता--बिक्कुक नही जानता ॥ ३० ॥ जिनकी दायीं ओर लक्ष्मणजी, बायीं ओर जानकीजी ओर सामने हनुमानजी विराजमान हे उन रघुनाथजीकी मेँ बन्दना करता हू ॥ ३१९॥

काभिरामं रणरङ्धीरंराजीवनेत्रं रघुवंङानाथम्‌ । कारुण्यरूपं करुणाकरंतंश्रीरामचन्द्र इारणं प्रपद्ये । ३२ ॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगंजितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ वातात्मजं वानरयूथमुख्यंश्रीरामदूतं ङारणं प्रपद्ये॥३३ ॥
कूजन्तं रामरामेति मधुर मधुराक्षरम्‌ ।आरुह्य कविताराखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥ 
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌ । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ।। ३५ ॥
 भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌ । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥ ३६ ॥
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमौ भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः । 
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ।॥ ३७ ॥
 राम रामेति रामेति रमे रमे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्य रामनाम वरानने ॥ ३८ ॥

जो सम्पूर्ण लोकोमें सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन, रघुवंडनायक, करुणामूर्तिं ओर करुणाके भण्डार हैँ उन श्रीरामचन्द्रजीकी मै रारण लेता हू ॥ २२ ॥ जिनकी मनके समान गति ओर वायुके समान वेग है, जो परम जितेन्द्रिय ओर बुद्धिमान श्रेष्ठ है उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्रीरामदूतकी मँ डारण लेता हू ॥ २३ ॥ कवितामयी डालीपर बैठकर मधुर अशक्षरोवाठे “राम-राम' इस मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकिरूप कोकिलरूकी मै वन्दना करता हू ॥ ३४ ॥ आपत्त्योको हरनेवाठे तथा सब प्रकारकी सम्पत्ति प्रदान करनेवाले छोकाभिराम भगवान्‌ रामको बारेबार नमस्कार करता हू॥ ३५॥ “राम-राम' एेसा घोष करना सम्पूर्णं संसारबीजोको भून डालनेवाला, समस्तसुख-सम्पत्तिकी प्राप्ति करनेवाला तथा यमदूतोको भयभीत करनेवाला है ॥ ३६ ॥ राजाओ् श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते है । मेँ लक्ष्मीपति भगवान्‌ रामका भजन करता हू । जिन रामचन्द्रजीने सम्पूर्णं राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था, मैं उनको प्रणाम करता हू । रामसे बड़ा ओर कोई भी आश्रय नही है । मै उन रामचन्द्रजीका दास हू । मेरा चित्त सदा राममे ही लीन रहे; हे राम । आप मेरा उद्धार कीजिये ॥ ३७ ॥ (श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते है) हे सुमुखि ! रामनाम विष्णुसहस्रनामके तुल्य हे । मे सर्वदा "राम, राम, राम' इस प्रकार मनोरम राम-नाममें ही रमण करता हू ॥ ३८ ॥

श्रीरामरक्षास्तोत्र  F & Q

1. श्रीरामरक्षास्तोत्र क्या है?

 श्रीरामरक्षास्तोत्र एक प्राचीन स्तोत्र है जो भगवान राम की आध्यात्मिक सुरक्षा का प्रशंसापूर्ण वर्णन करता है।

2. कौन था श्री बुधकौशिक ऋषि?

 बुधकौशिक ऋषि विश्वामित्र के शिष्यों में से एक थे, जिन्होंने श्रीरामरक्षास्तोत्र को भगवान शिव के आदेश पर रचा।

3. श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति, भक्ति में वृद्धि, समृद्धि, रोगनिवारण और आत्मनिरीक्षण में सुधार होता है।

4. श्रीरामरक्षास्तोत्र कैसे सिद्ध करें?

 सिद्धि के लिए इसे नियमित रूप से पढ़ें, पवित्र स्थान पर बैठकर और भक्ति भाव से।

5. इस स्तोत्र का प्रतिदिन कितना समय देना चाहिए?

   एक स्थिर समय निर्धारित करके प्रतिदिन इसे पढ़ने का प्रयास करें, जिससे नियमितता बनी रहे।

6. श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन कितने दिनों तक करना चाहिए?

   इसे नियमित रूप से पढ़ने की सिफारिश 21 दिन तक है, जिससे आपको इसके पूरे लाभ मिल सकते हैं।

7. इस स्तोत्र को पढ़ने से कौन-कौन से समस्याएं सुलझ सकती हैं?

   यह स्तोत्रम् मानसिक चिंता, कठिनाइयाँ, और रोगों को दूर करने में सहायक होता है।

8. इस स्तोत्र का पठन कैसे करें?

   प्रतिदिन का पठ श्रद्धाभाव से और ध्यानपूर्वक करें, प्रत्येक श्लोक को समझकर और भावना से पठें।

9. श्रीरामरक्षास्तोत्र का ध्यान कहाँ और कैसे करें?

   प्रतिदिन कुछ समय ध्यान में बैठें और श्रीराम के चिन्हों का ध्यान करें, जिससे मानसिक और आत्मिक विकास हो।

10. क्या इस स्तोत्र को पढ़ने से आत्मा को शांति मिलती है?

    हाँ, श्रीरामरक्षास्तोत्र का नियमित पाठ करने से आत्मा में शांति और समृद्धि की अनुभूति होती है।

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