बहिर्ग्रह यानी एक्सोप्लैनेट(Exoplanets) वह ग्रह होते हैं जो सौरमंडल के बाहर होते हैं और अन्य तारकों के चारों ओर घूमते हैं। ये ग्रह धरती के जैसे हो सकते हैं या फिर इनका आकार धरती से बहुत बड़ा या छोटा हो सकता है।अब तक, साइंटिस्ट ने लगभग 4000 से अधिक बहिर्ग्रहों(Exoplanets) को खोजा है और नए खोज जारी हैं। ये बहिर्ग्रह हमें सौरमंडल की अधिकतम जानकारी देने के लिए एक संतोषजनक स्रोत हो सकते हैं, और इनका अध्ययन हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि धरती जैसे ग्रह वहां कैसे बने होंगे और जीवन की उत्पत्ति के लिए कौन से शर्तें आवश्यक होंगी।11 Jan 2022 को NASA के James Webb Space Telescope ने एक Exoplanets LHS 475 b के बारे में हमें बताया जो की हमसे 41 प्रकाश वर्ष के दुरी पर है तो इस लेख में हम आपको बताएँगे की बहिर्ग्रह क्या है (What is Exoplanets In Hindi)
What is Exoplanets (बहिर्ग्रह क्या है )
Exoplanets को हिंदीं में बहिर्ग्रह या गैर सौरीय ग्रह भी कह सकते है What is Exoplanets (बहिर्ग्रह क्या है ) तो इसका सीधा सा जवाब है, की एक Exoplanets या एक्स्ट्रासोलर हमारे सौर मंडल के बाहर का एक ग्रह है जो की हमारे सौर मंडल में मौजूद हमारे सूरज का परिकर्मा नहीं करता है बल्कि ये हमरी आकाशगंगा में पाए जाने वाले किसी अन्य तारे का परिकर्मा करता है।
बहिर्ग्रह Exoplanets क्या होते हैं? समय-समय पर इस सवाल का जवाब आपको सुनने को मिलता होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहिर्ग्रह वास्तव में क्या होते हैं और उनके बारे में क्या रोचक तथ्य होते हैं?
एक्सोप्लेनेट्स,Exoplanets जिन्हें हम बहिर्ग्रह भी कहते हैं, धरती के बाहर अन्य तारों के चारों ओर घूमते हुए दिखाई देते हैं। इनकी कुल संख्या से संबंधित कोई ठोस आंकड़ा नहीं है, लेकिन अब तक सैकड़ों बहिर्ग्रह मानव द्वारा खोजे जा चुके हैं।
बहिर्ग्रह Exoplanetsधरती से बहुत दूर होते हैं और धरती जैसे ग्रहों की तुलना में काफी बड़े होते हैं। ये अन्य तारों के चारों ओर घूमते हुए दिखाई देते हैं जैसे चंद्रमा धरती के चारों ओर घूमता हुआ दिखाई देता है।
बहिर्ग्रह Exoplanets की खोज करने का प्रयास लगभग 400 साल पुराना है।
Exoplanets जिन तारे का चक्कर लगाते है उनकी चमक के कारण छिपे हुए रहते है इसलिए इसे टेलिस्कोप से देखना मुश्किल होता है इसलिए खगोलविद एक्सोप्लेनेट का पता लगाने के लिए अन्य तरीकों का उपयोग करते है जब ये ग्रह अपने तारे का परिकर्मा करते है तब उनकी तारे पर पड़ने वाली परछाई से उनका पता लगाते है जिसे हम transit method या हिंदी में पारगमन विधि कहते है ।
१९९० में पहला एक्सोप्लेनेट की खोज की गयी थी तब से लेकर अबतक हम अलग अलग माधयमो का उपयोग कर के हमने हज़ारो एक्सोप्लेनेटके पहचान की है।
एक्सोप्लैनेट्स कैसे खोजते हैं?(How to find exoplanets?)
एक्सोप्लैनेट्स की खोज अलग-अलग तकनीकों का उपयोग करके की जाती है। कुछ मुख्य तकनीकों का उल्लेख निम्नलिखित है:
वैज्ञानिक एक्सोप्लैनेट्स को ढूंढ़ने के लिए 5 तरीका अपनाते है
1 -RADIAL VELOCITY(रेडियल वेग) - इस तरीका से अबतक १०२३ एक्सोप्लैनेट्स को ढूंढा जा चूका है- इस तकनीक में वैज्ञानिक स्टार के आसपास घूमते ग्रहों का खोज करते हैं, जिनके कारण स्टार की चुंबकीय क्षमता और स्थिरता पर असर पड़ता है। यह असर स्टार की वेग और दिशा में दिखाई देता है, जिससे वैज्ञानिक ग्रह का आकार, दूरी और मांग निकालते हैं।
२-TRANSIT मेथड (पारगमन) इस तरीका से अबतक 3941 एक्सोप्लैनेट्स को ढूंढा जा चूका है -इस तकनीक में वैज्ञानिक एक स्टार के आसपास घूमते एक या एक से अधिक ग्रहों के ट्रांजिट (धुंधला दिखाई देना) की खोज करते हैं।
जब एक ग्रह अपने स्टार के सामने से गुजरता है, तब उसका दिखाई देने का प्रकार बदल जाता है और यह धुंधला दिखाई देता है। यह धुंधलापन स्टार की रोशनी का एक छोटा सा भाग होता है, जिसे वैज्ञानिकों को खोजना पड़ता है।
३-DIRECT IMAGING- इस तरीका से अबतक 62 एक्सोप्लैनेट्स को ढूंढा जा चूका है -
डायरेक्ट इमेजिंग (Direct Imaging) एक तकनीक है जो एक्सोप्लैनेट्स की खोज करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। इस तकनीक में, वैज्ञानिक दूसरे स्टारों के आसपास घूमते हुए ग्रहों की तस्वीरें खींचते हैं।
यह तकनीक उन स्थितियों में काम आती है जब ग्रह अपनी स्टार के नजदीक से गुजरता हुआ उससे प्रकाश भंग करता है। इस तरह के ग्रहों को खोजने के लिए खास उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है जो इस प्रकार के ग्रहों की छोटी सी चमक को भी निहार सकते हैं।
डायरेक्ट इमेजिंग की तकनीक बहुत ही मुश्किल होती है क्योंकि ग्रहों की छोटी सी चमक को निहारना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलावा, स्वर्गीय ग्रहों की तस्वीरें खींचना अधिक मुश्किल होता है क्योंकि वे अपनी स्टार के नजदीक से गुजरते हुए बहुत तेज गति से घूमते होते हैं।
४- GRAVITATIONAL MICROLENSING (गुरुत्वाकर्षण माइक्रोलेंसिंग)-इस तरीका से अबतक 152 एक्सोप्लैनेट्स को ढूंढा जा चूका है
ग्रेविटेशनल माइक्रोलेंसिंग (Gravitational Microlensing) एक और तकनीक है जो एक्सोप्लैनेट की खोज के लिए इस्तेमाल की जाती है। इस तकनीक में, एक ग्रह अपने स्टार के साथ से गुजरते समय स्टार की रोशनी को बाधित करता है जो समय-समय पर धमकीत होती है। इस बाधित रोशनी को निहारने के लिए वैज्ञानिक दूसरे स्टार की ओर देखते हैं।
इस तकनीक का फलस्वरूप ये होता है कि जब ग्रह स्टार के साथ से गुजरता है तब स्टार की रोशनी में एक छोटी सी बदलाव आता है जो स्टार की दूरी के आधार पर निहारा जा सकता है। यदि इस छोटे से बदलाव का कारण एक ग्रह होता है तो वह ग्रह एक्सोप्लैनेट हो सकता है।
ग्रेविटेशनल माइक्रोलेंसिंग की खोज 1993 में हुई थी और इसके द्वारा अब तक कुछ एक्सोप्लैनेट्स की खोज की गई है। यह तकनीक संभवतः सबसे कम संख्या में एक्सोप्लैनेट्स की खोज के लिए इस्तेमाल की जाती है।
५ -Astrometry--इस तरीका से अबतक 2 एक्सोप्लैनेट्स को ढूंढा जा चूका है इस तकनीक में वैज्ञानिक ग्रह की स्थानों को अवलोकन करते हैं, और स्टारों की स्थानों के साथ उन्हें तुलना करते हुए ग्रह के लिए निर्देशांक निकालते हैं।
ये थे कुछ मुख्य तकनीक जो एक्सोप्लैनेट की खोज के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। ये तकनीक स्पेस एजेंसीज द्वारा और निजी वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा इस्तेमाल की जाती हैं। इन तकनीकों का उपयोग करके वैज्ञानिक दुनिया ने अब तक हजारों एक्सोप्लैनेट्स की खोज की है।
Types of Exoplanets(एक्सोप्लैनेट के प्रकार)
हमारे सौरमंडल के बाहर के ग्रह को Exoplanets कहते है जो किसी और तारे का परिक्रमा करते है आकार की बात करे तो Exoplanets विस्तृत विविधता में आते है यानि की ये अलग अलग अकार में मिल सकते है ये हमरे सौरमंडल में पाए जाने वाले बृहस्पति से बड़े गैस giants में भी मिल सकते है और चट्टानी ग्रहों तक जो पृथ्वी या मंगल के बराबर के या उससे बड़े मिल सकते है इसमें कुछ का तपमान इतना हो सकता है की वे धातु को भी उबाल सकते है या कुछ इतने धंदे हो सकते है की हम वह जम सकते है वे एक साथ दो सूर्यो की भी परिक्रमा कर सकते है वहां का एक वर्ष केवल कुछ दिनों का भी हो सकता है कुछ एक्सोप्लैनेट ऐसे भी हो सकते है की वो सूर्य के परिकर्मा न कर के आकाश गंगा के मध्य भाग का परिक्रमा कर सकता है
हम जिस गैलेक्सी में रहते है उसे Milky Way,(मिल्की वे) गैलेक्सी कहते है ये एक सर्पिल टाइप के गैलेक्सी है जिसमे 100 अरब से ज्यादा तारे है जिनमें एक तारा हमारा सूर्य भी है। इनमे से सभी तारे के पास अपना एक सौरप्रणाली भी है तो इस प्रकार से हम कह सकते है की आकाशगंगा में ग्रहो की संख्या खरबों में जा सकती है अब तक खोजे गए अधिकांश Exoplanets हमसे सेकड़ो या हजारों प्रकाश वर्ष की दुरी पर स्थित है आज कल के तक्नीक के मदद से हम अभी वहां पहुंच नहीं सकते है लेकिन भविष्य में हम वहां तक पहुंचने की तक्नीक इजाद कर सकते है
लेकिन अच्छी बात ये है के हम एक्सोप्लैनेट को देख सकते हैं उसके तापमान और वायुमंडल का पता लगा सकते है और शयद एक दिन उनमे मौजूद जीवन के संकेतो के बारे में पता लगा सकते है
अब तक ज्ञात Exoplanets को वैज्ञानिकों ने चार भगो में बाटा है १-Gas giant, (गैस विशाल) २ super-Earth (सुपर-अर्थ ) ३ -Neptunian, (नेप्च्यूनियन) ४( Terrestrial) (स्थलीय)
गैस जायंट्स (Gas Giants)
ये बड़े आकार वाले ग्रह होते हैं जो अपनी स्टार के चारों ओर घूमते होते हैं। इनमें हाइड्रोजन और हीलियम जैसे गैसेस होते हैं और इनके दीप स्काइ ब्लू रंग के कारण इन्हें ब्लू जायंट (Blue Giants) भी कहा जाता है। जुपिटर और सैटर्न इस प्रकार के एक्सोप्लैनेट्स के उदाहरण हैं।।
गैस जायंट्स के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- वे अधिकतर सौरमंडल में दूसरे ग्रहों से अधिक आकार और वजन के होते हैं।
- इनमें हाइड्रोजन और हेलियम जैसे गैस तत्व होते हैं।
- इनके मंडलीय तापमान बहुत उच्च होता है।
- इनमें कोई ठोस सतह नहीं होती है।
- इन्हें समुद्रों और जलवायु के बारे में कुछ नहीं पता होता है।
अभी तक सौरमंडल के बाहर सूर्य के चारों ओर कुल मिलाकर 4000 से अधिक एक्सोप्लेनेट मिल चुके हैं। इनमें से लगभग 300 से अधिक एक्सोप्लेनेट गैस जायंट्स हैं, जो बड़े आकार और उनमें अधिकतम भारी गुरुत्व बल के कारण कुछ खास होते हैं। इनमें से कुछ गैस जायंट्स ज्वालामुखी प्रकार के एक्सोप्लेनेट होते हैं, जहाँ उष्मा तथा आघात ऐसी उच्च स्तर पर होते हैं जो उन्हें निष्क्रिय घातों जैसा बना देते हैं।
हालांकि बहुत से गैस जायंट एक्सोप्लैनेट्स का पता लगाया गया है, कुछ उनके नाम निम्नलिखित हैं:
कुछ गैस जायंट्स एक्सोप्लैनेट के नाम हैं:
- HD 209458 b
- WASP-12 b
- Kepler-7 b
- HAT-P-1 b
- HD 189733 b
- TrES-4
- HD 149026 b
- XO-2N b
- CoRoT-2 b
- KELT-9 b
ये कुछ प्रसिद्ध नाम हैं, इसके अलावा भी बहुत से गैस जायंट्स एक्सोप्लैनेट अभी तक खोजे नहीं गए हो सकते हैं।
HD 209458b: यह ग्रह सूर्य से लगभग 153 वर्ष-प्रकाश दूरी पर है और प्रथम ऐसा गैस जायंट एक्सोप्लैनेट है जिसे उल्का स्फटिक खोजने में सफलता मिली थी।
WASP-17b: यह एक बड़ा गैस जायंट एक्सोप्लैनेट है जो अपनी तेज आकार और गुब्बारे की तरह के आकार के लिए जाना जाता है।
Kepler-7b: इस ग्रह की आकार धरती से तीन गुना बड़ा है और इसे एक दूसरे ग्रहों के बीच घूमते हुए देखा जा सकता है।
HD 189733b: यह एक अन्य उल्का स्फटिक एक्सोप्लैनेट है जो सूर्य से लगभग 63 वर्ष प्रकाश दूर है।
TrES-4: यह एक बड़ा गैस जायंट एक्सोप्लैनेट है जो अपने घने और उत्तल घनत्व के लिए जाना जाता है।
यह सिर्फ कुछ उदाहरण हैं, बहुत से और भी गैस जायंट एक्सोप्लैनेट्स हैं जो हमारे ब्रह्मांड में मौजूद हैं।
२ super-Earth (सुपर-अर्थ ) What is super-Earth(सुपर-अर्थ क्या है )
super-Earth जिसे हिंदी में महापृथ्वी कहते है जो हमारे सौरमंडल के बाहर के ग्रह को कह सकते है जिसका आकार हमारे पृथ्वी से बहुत बड़ी पर नेपच्यून और यूरेनस जैसे ग्रहो की तुलना में बहुत हल्की होती है super-Earth गैस, चट्टान का बना हो सकता है या दोनों के मिश्रण से बना हो सकता है और आकर में हमारी पृत्वी से दो गुना तथा द्रव्यमान के 10 गुना तक के बीच हो सकता हैं।
सुपर-अर्थ एक्सोप्लैनेट के बारे में यह जानकारी देना महत्वपूर्ण है कि इनमें से बहुत से एक्सोप्लैनेट सहयोगी हो सकते हैं जो धरती के जीवन के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। इनमें एक भी एक्सोप्लैनेट की मौजूदगी हमारे सौरमंडल और हमारी जीवन जगत के बारे में नई जानकारी प्रदान कर सकती है। इनमें से कुछ एक्सोप्लैनेट धरती की तुलना में धनाढ़्म हो सकते हैं, जबकि कुछ उनसे कम भार वाले होते हैं। इनमें से कुछ एक्सोप्लैनेट में जलवायु वर्षा की संभावना होती है जबकि कुछ में अधिक ऊर्जा और विकिरण की मौजूदगी होती है। इनके अलावा, इनमें से कुछ एक्सोप्लैनेट ग्रहण अवधि में आते हैं, जो धरती से बहुत दूर होते हैं और इनमें से कुछ बड़ी चक्रवातों और भौतिक गतिविधियों का सामना करते हैं।
अभी तक, सौरमंडल के बाहर सूर्य के चारों ओर कुल मिलाकर 4000 से अधिक एक्सोप्लेनेट मिल चुके हैं। इनमें से लगभग 2/3 एक्सोप्लेनेट सुपर-अर्थ कहलाते हैं, जो कि पृथ्वी से कुछ ज्यादा भारी होते हैं और इनके आकार 1.5 गुना से लेकर 2 गुना पृथ्वी से बड़े होते हैं।
यह एक बहुत बड़ी श्रृंखला होती है और इसमें अनेक विभिन्न प्रकार के ग्रह हो सकते हैं। इनमें से कुछ सुपर-अर्थ चट्टानों या बटुओं की तरह शीशे से बने होते हैं जो उन्हें आयाम और मजबूती प्रदान करते हैं, जबकि कुछ वास्तव में अपने सूर्य के बहुत करीब होते हुए अत्यंत गर्म होते हैं। इनमें से कुछ स्वतंत्र ग्रहों के साथ जुड़े होते हैं, जबकि कुछ जोड़ों के साथ जुड़े होते हैं, जो एक दूसरे के चारों ओर घूमते हैं।
कुछ सुपर-अर्थ एक्सोप्लैनेट के नाम निम्नलिखित हैं:
- HD 7924 c
- Gliese 667 Cc
- Kepler-62 f
- Kepler-438 b
- Kepler-296 e
- LHS 1140 b
- K2-18 b
- GJ 357 d
- TOI 700 d
- K2-141 b
ये सभी सुपर-अर्थ एक्सोप्लैनेट धरती से थोड़े बड़े आकार के होते हैं और इनमें धरती से कुछ अधिक भार हो सकता है।
केप्लर-452बी पृथ्वी के जैसा पहला ग्रह था जिसे नजदीक के सौर मंडल के आसपास खोजा गया था।
केप्लर-22बी एक सुपर-अर्थ है जिसे सुपर महासागर में समाया जा सकता है।
एक सुपर-अर्थ ग्रह हमारे अपने सौर मंडल के आस पास कही भी छुपा हुआ हो सकता है ।
Neptunian, (नेप्च्यूनियन)
नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट एक ग्रह होता है जो सौरमंडल के बाहर स्थित होता है और जो सौरमंडल से अधिक नेप्च्यूनस की तुलना में आकार या गुरुत्व बल के मामले में होता है। नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट उन ग्रहों में से एक होता है जो कि गुरुत्वाकर्षण और दूरी के मामले में सौरमंडल के नेप्च्यूनस ग्रह से काफी अलग होते हुए भी उनसे ज्यादा समान होता है।
नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट के बारे में अधिक जानकारी हमें उन ग्रहों से मिलती है जो अपनी निकटतम तारे से बहुत दूर होते हुए भी स्वचालित रूप से घूमते हुए पाए जाते हैं। इन ग्रहों के विशेषताएं विश्लेषण करके वैज्ञानिकों ने नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट को अन्य ग्रहों से अलग निश्चित किया हैं।
नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट अक्सर बहुत ठंडे होते हैं और उन्हें गैस रूप में पाया जाता है।
नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट कुछ इस प्रकार के ग्रह होते हैं जो सौरमंडल के बाहर स्थित होते हैं और जो संभवतः नेप्च्यूनस ग्रह की तुलना में अधिक समानता रखते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट के नाम और उनकी विशेषताएं:
जलसा-1b: यह एक अत्यंत गर्म ग्रह है जो कि धातु या रजत की विशेषताओं को धारण करता है। यह ग्रह अपनी निकटतम तारे से संभवतः बहुत दूर है और इसलिए इसका एक घंटा लगभग 18 भूमिगत वर्षों के बराबर होता है।
जलसा-2b: इस ग्रह के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इस ग्रह का विशाल गैसी वायुमंडल हो सकता है।
HD 97658 b: यह ग्रह नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट की श्रृंखला में सबसे बड़ा ग्रह होता है। इसका एक खास विशेषता है कि इसके आसपास एक घना वायुमंडल होता है जो इस ग्रह को इससे बड़े ग्रहों से अलग बनाता है।
कुछ नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट के नाम हैं:
-
- GJ 436 b
- HAT-P-11b
- Gliese 436 b
- HAT-P-26b
- Kepler-138 b
- GJ 3470 b
- Kepler-68 b
- Kepler-56 b
- WASP-69 b
- Kepler-732 b
ये कुछ प्रसिद्ध नाम हैं, इसके अलावा भी बहुत से नेप्च्यूनियन एक्सोप्लैनेट अभी तक खोजे नहीं गए हो सकते हैं।
स्थलीय एक्सोप्लैनेट (Terrestrial Exoplanets)
धरती जैसे ग्रह होते हैं, जो कि अपने धातुरूपी आकृति, आबादी, अक्षरेखा और गति के साथ धरती की तुलना में बहुत समान होते हैं। ये सबसे अधिक ढूंढ़े जाने वाले एक्सोप्लैनेट हैं जो कि इंसान के निकट नृत्यत्व और जीवन शर्तों के आधार पर विशेष ध्यान के पात्र होते हैं।
स्थलीय एक्सोप्लैनेट ग्रह धरती की तुलना में सूर्य के करीब होते हुए भी अपनी जड़ों से धरती जैसे होते हैं, यानी इनकी सतह पर पत्थर और धूल जैसी चीजें हो सकती हैं। इन ग्रहों की अधिकतम भूमि पर पानी के बिंदु होते हैं जो इनके सतह पर नदियों, समुद्रों, और झीलों के रूप में प्रकट हो सकते हैं।
धरती की तुलना में स्थलीय एक्सोप्लैनेट ग्रहों का जीवन समर्थन करने के लिए सौरमंडल में ठंडे स्थानों की तुलना में कम उष्णता होती है। इन ग्रहों के ऊपर वायुमंडल धरती की तुलना में कम वजन का होता है, जो कि अधिक आकर्षण शक्ति न होने के कारण होता है। इसके अलावा, इन ग्रहों पर जलवायु की स्थिति भी अलग होती है। उदाहरण के लिए, कुछ स्थलीय एक्सोप्लैनेट ग्रह अत्यधिक शुष्क होते हैं जबकि दूसरे अत्यधिक जलवायु होते हैं।
अधिकतर स्थलीय एक्सोप्लैनेट ग्रह धरती से दूर होते हैं और सूर्य से बहुत करीब नहीं होते हैं। इन ग्रहों को खोजने के लिए कुछ उन्नत उपकरणों की आवश्यकता होती है जैसे टेस, केप्लर, हबल और कोरोनोग्राफ के जैसे उपकरण। इन ग्रहों में पाए जाने वाले तत्वों में अम्ल, मिट्टी और विभिन्न मिश्रण शामिल हो सकते हैं।
इन ग्रहों पर भी धरती की तरह वैविध्य देखा जा सकता है। इनमें जंगल, पहाड़, नदियां, समुद्र और झील जैसे भौतिक सुविधाएं हो सकती हैं। इन ग्रहों पर धरती से अलग तत्व भी हो सकते हैं, जैसे जबावदेह वायुमंडल, नए रंग और दुनिया जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान के विषय में नई जानकारी के लिए अभ्यास किए जा रहे हैं।
स्थलीय एक्सोप्लैनेट की खोज मानव जागृति को बढ़ाती है क्योंकि यह संभव होता है कि इनमें जीवन के संकेत मौजूद हो सकते हैं जो हमारे समझ के बाहर होते हैं।इनमें से कुछ स्थलीय एक्सोप्लैनेटों के नाम और उनकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
Kepler-186f: यह स्थलीय एक्सोप्लैनेट मानव निवास के लिए सबसे उपयुक्त हो सकता है। यह सूर्य के लगभग 500 वर्ष दूर है और इसका तापमान धरती जैसा है।
Proxima Centauri b: यह स्थलीय एक्सोप्लैनेट दूसरे सबसे निकट सितारे के आसपास घूमता हुआ पाया गया है। इसका तापमान उष्मावलीय सीमा से कुछ नीचे होता है लेकिन इस ग्रह पर जीवन की संभावनाएं कम होती हैं।
TRAPPIST-1e: इस स्थलीय एक्सोप्लैनेट का आकार धरती से थोड़ा छोटा होता है। इसका तापमान धरती से कम होता है, लेकिन इस ग्रह के ऊपर जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं। इस एक्सोप्लैनेट के आसपास धूमकेतुओं का एक समूह होता है जो इसकी धातुरूपी गति को नियंत्रित करते हैं। इस ग्रह का अक्षरेखा 6.1 दिन होता है, यानी इस ग्रह का एक दिन धरती के 6.1 दिन के बराबर होता है।
इस ग्रह को धरती के समान आबादी वाला भी माना जा सकता है और इसकी अत्यधिक आबादी के कारण इस पर धरती की तुलना में ज्यादा वायुमंडल हो सकता है। इसके अलावा, इस एक्सोप्लैनेट का अत्यधिक जलवायु हो सकता है, जो इस पर जीवन की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है।