Puran All information पुराण की सम्पूर्ण जानकारी

 

पुराण (Puran) , संस्कृत शब्द "पुरा" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है प्राचीन या पुराना। यह हिंदू धर्म के बहुत बड़े संग्रह को दर्शाता है, जो जीवन, पौराणिक कथाएं, इतिहास और आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं में गहरे अनुभवों को प्रदान करता है। इन प्राचीन पाठों ने अपनी समृद्ध कथाओं, अचल समय के ज्ञान और गहरी शिक्षाओं के साथ पीढ़ियों को मोहित किया है। 

 

इस ब्लॉग पोस्ट में, हम पुराण पुराण (Puran) की रोमांचक दुनिया इसका महत्व, संरचना, मुख्य विषय और स्थायी महत्व की बारे में जानेगे । पुराण (Puran) भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम धार्मिक एवं ऐतिहासिक कथा-ग्रंथ हैं। ये ग्रंथ हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं और इसमें विभिन्न देवताओं एवं उनके अवतारों, राक्षसों, दानवों तथा मानवों के जीवन के घटनाक्रमों का विस्तृत वर्णन है। इन पुराणों की रचना काल वर्षों से पहले हुई थी और ये सदियों से हमारी संस्कृति को आश्रय देते आए हैं। इस ब्लॉग में हम पुराणों(Puran) के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे जो आपको भारतीय संस्कृति एवं धर्म के गहराई को समझने में मदद करेगी। तो दोस्तों जानिए इस ब्लॉग में पुराण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यव पढ़ने के बाद आपको कही और जाने की जरुरत नहीं होगी

 

Puran All information पुराण की सम्पूर्ण जानकारी

 

 पुराण क्या है What is the Puran

सनातन धर्म के ग्रंथों में पूरण (Puran) एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पूरण शब्द संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "पूरा" या "पूर्णता"। पूरणों में विभिन्न देवी-देवताओं की कथाएं, वेदांत के सिद्धांत, मानव जीवन के नियम, तत्त्वज्ञान, धर्म के सिद्धांत और विभिन्न आध्यात्मिक विषयों पर ज्ञान का समावेश होता है। इन पुराणों के माध्यम से हमें अपनी संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिकता की प्रवृत्ति मिलती है।

प्राचीन भारतीय संस्कृति का विस्तार पूरणों में स्पष्ट रूप से दिखता है। पूरणों के जरिए भगवान के लीलाओं, महर्षियों के उपदेशों, नैतिकता और धर्म की महत्ता पर विचार किए गए हैं। इन ग्रंथों की कहानियां हमें आध्यात्मिकता, धार्मिकता, नैतिकता और समाजिक मूल्यों के बारे में सिखाती हैं। ये पुराण हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने का अवसर देते हैं और हमें उच्चतम सत्य की ओर आग्रह करते हैं।

पूरणों की परंपरा काफी पुरानी है और इनका मान्यता सम्पूर्ण भारत में रही है। ये ग्रंथ अपने अद्वितीय स्वरूप और व्यापक विषयवस्तु के लिए मशहूर हैं। प्राचीन समय से ही पूरणों को श्रद्धा और सम्मान के साथ प्राप्ति किया जाता रहा है। ये ग्रंथ हिन्दी, बंगाली, तेलुगु, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, और मलयालम जैसी अनेक भाषाओं में उपलब्ध हैं जिससे इनकी महत्ता और चर्चा का पता चलता है।

विभिन्न पूरणों में भगवान विष्णु, शिव, ब्रह्मा, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य, इंद्र, वायु और अन्य देवताओं की कथाएं और महत्त्वपूर्ण घटनाएं स्थान पाती हैं। ये पूरण भगवान के अवतारों, उनके अद्भुत लीलाओं, और उनके भक्तों की कथाएं बताते हैं। इन ग्रंथों के अंतर्गत संसार के उद्धार, नैतिकता, और धर्म के सिद्धांतों का भी विस्तार किया गया है।

पूरणों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण उद्देश्य भारतीय संस्कृति, इतिहास, और सभ्यता के विकास को दर्शाना है। इन ग्रंथों में हमें महाभारत और रामायण की कथाएं भी मिलती हैं, जो हमारी संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं। पूरणों की कथाओं में आपको पुरातन भारत के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक जीवन का एक अद्वितीय दृष्टिकोण मिलेगा।

ये पुराण हमें अद्वैतवाद, धर्मशास्त्र, तत्त्वज्ञान, और आध्यात्मिकता के मूल सिद्धांतों को समझने का अवसर देते हैं। इनके माध्यम से हमें सार्वभौमिक मूल्यों, साहित्यिक रचनाओं, और विज्ञान के भीतर गुप्त रहस्यों का पता चलता है। पूरणों के माध्यम से हम अपने जीवन को शुद्ध, नैतिक, और आध्यात्मिक दिशा में अग्रसर रख सकते हैं।

पूरणों का अध्ययन एक गम्भीर और अनुशासित प्रक्रिया है। इनमें बहुत सारे अध्यात्मिक तथ्य, विविध देवताओं और उनके अवतारों की कथाएं, महर्षियों के उपदेश, और सभी जीवन के मूल्य संकलित हैं। इन ग्रंथों की महानता इस बात में है कि वे हमें ज्ञान के सम्पूर्ण क्षेत्रों का एक अद्वितीय नजारा प्रदान करते हैं।

पूरणों की गहनता और व्यापकता इस बात का प्रमाण है कि वे हमारे समय से हजारों वर्ष पूर्व तक की ज्ञान परंपराओं का साक्षात्कार हैं। ये ग्रंथ हमें उच्चतम मार्ग और आध्यात्मिकता की प्राप्ति करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। पूरणों का अध्ययन हमें आध्यात्मिक अनुभव, संतों की उपासना, और जीवन का मतलब समझने की क्षमता प्रदान करता है।

पूरणों का अध्ययन एक अद्वितीय और रोमांचकारी अनुभव हो सकता है। इनमें छिपी हुई अनमोल ज्ञान को खोजने और समझने का प्रयास करें। ये ग्रंथ हमें अपने जीवन में संतुलन, शांति, और पूर्णता की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करते हैं। पूरणों का अध्ययन हमारी मानसिक, आध्यात्मिक, और भौतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

पुराणों की संख्या कितनी है (What is the total number of Puranas)

पुराणों की कुल संख्या को लेकर विभिन्न मत हैं और इसमें विशेष आपत्तियाँ भी हैं। प्रामाणिकता के मामले में, आमतौर पर 18 महत्वपूर्ण पुराण माने जाते हैं। इन 18 पुराणों का नामांकन निम्नानुसार है:

1- विष्णु पुराण (Vishnu Puran)

 

विष्णु पुराण (Vishnu Purana)

 

विष्णु पुराण एक प्रमुख पौराणिक ग्रंथ है जो हिन्दू धर्मग्रंथों में पाया जाता है। यह पुराण विष्णु भगवान के महत्वपूर्ण रूपों, लीलाओं, और महिमा के बारे में ज्ञान प्रदान करता है। इस पुराण में विष्णु भगवान के अवतार, जीवन कथा, महत्त्वपूर्ण उपदेश और देवी-देवताओं के साथ संबंधित कथाएं वर्णित हैं।

विष्णु पुराण आध्यात्मिकता, धर्म और जगत की सृष्टि के विषय में व्यासजी के शिक्षाओं का संग्रह है। यह ग्रंथ धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ आध्यात्मिकता और जीवन के लक्ष्य की व्याख्या करता है। विष्णु पुराण में मूलतः धर्म, कर्म, भक्ति, और मोक्ष के विषय में चर्चा की जाती है।

इस पुराण के अनुसार, विष्णु भगवान सृष्टि के स्थायीनिधान हैं और उनका संसार के सभी धर्मों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। विष्णु पुराण जीवन में शुभता, धार्मिकता और सत्य के मार्ग की प्रेरणा प्रदान करता है। इस पुराण के अध्ययन से एक व्यक्ति अपने अंतरंग धर्म को समझ, अच्छे कर्म करके और भगवान की उपासना करके अपने जीवन को महान बना सकता है।

विष्णु पुराण एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है जो भारतीय साहित्य में गर्व के साथ संग्रहित है। इसका अध्ययन करके मानव मानसिकता, नैतिकता और आध्यात्मिक विकास में वृद्धि हो सकती है।

विष्णु पुराण (Puran) में कुल 23,000 श्लोक हैं। इस पुराण का रचयिता वेदव्यास नहीं है, बल्कि इसके रचयिता वेदव्यास के शिष्य पराशर महर्षि माने जाते हैं। वेदव्यास के अन्य पुराणों की तरह, विष्णु पुराण भी सनातन धर्म की ज्ञानवर्धक ग्रंथों में से एक है।

२- नारद पुराण (Narada Puran)

 

नारद पुराण (Narada Purana)

नारद पुराण एक प्रमुख पौराणिक ग्रंथ है जो हिन्दू धर्म के अन्य पौराणिक ग्रंथों के साथ महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस पुराण का नाम उन प्राचीन ऋषि और वाग्मिता के नाम से जुड़ा है, जो संसार के अन्धकार से बाहर निकलकर उज्जवलता की ओर प्रेरित करते हैं।

नारद पुराण में नारद ऋषि द्वारा कई महत्वपूर्ण विषयों का वर्णन किया गया है। इस पुराण में धर्म, नैतिकता, आचार्यों के महत्त्व, देवी-देवताओं की महिमा, उपास्य देवताओं के विषय में विस्तृत ज्ञान, मनुष्य जीवन की महत्त्वपूर्ण उपदेश, धर्माचरण, यज्ञ, तपस्या, जीवन मार्ग, राजनीति, आध्यात्मिक साधना आदि पर चर्चा की जाती है।

नारद पुराण धार्मिकता, आध्यात्मिकता, ज्ञान और जीवन की महत्वपूर्ण बातों को समझाने और संसार में सत्य के मार्ग को प्रस्तुत करने का कार्य करता है। इस पुराण में व्यास ऋषि के उपदेशों के माध्यम से जीवन में धार्मिकता, सदभाव, प्रेम और नैतिकता को स्थापित करने का मार्ग दिया जाता है। इसके माध्यम से व्यक्ति को समग्र विकास की ओर प्रेरित किया जाता है, जो उच्चतम जीवन के आदर्शों को प्राप्त करने की योग्यता को विकसित करता है।

नारद पुराण मानवीय समाज को समग्र विकास की ओर ले जाने वाले सर्वांगीण ज्ञान और आध्यात्मिकता का विस्तार करता है। यह ग्रंथ अपार समय और स्थानिक महत्वपूर्णता रखता है और धर्म, दान, त्याग, ध्यान, प्रेम, सेवा, आचार्यों की पूजा और भगवान की उपासना के माध्यम से मानवीय जीवन को पवित्र बनाने का संदेश प्रदान करता है।

नारद पुराण में कुल 25,000 श्लोक हैं और इसका रचयिता नारद माने जाते हैं।

३-स्कन्द पुराण(Skanda Puran)

 

स्कन्द पुराण(Skanda Purana)

स्कन्द पुराण हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पौराणिक ग्रंथों में से एक है। इस पुराण का नाम स्कन्द देवता यानी कार्तिकेय देवता पराम्परिक रूप से जाना जाने वाले देवता के नाम पर रखा गया है। इस पुराण में स्कन्द देवता के जन्म, उनके विभिन्न अवतार, लीलाओं, विजयों और महिमा का वर्णन किया गया है।

स्कन्द पुराण में अन्य महत्वपूर्ण विषयों का भी चर्चा की जाती है। इसमें विशेष रूप से तीर्थस्थानों के महत्त्व, धर्म, कर्म, ध्यान, योग, व्रत, मन्त्र, पूजा, तपस्या, दान, राजनीति, श्राद्ध, जन्मांतर, विवाह, मृत्यु, उपास्य देवताओं के विषय में विवरण प्रदान किया जाता है।

स्कन्द पुराण में भारतीय संस्कृति, दर्शन, और जीवन शैली के संबंध में भी बहुत कुछ उपलब्ध होता है। यह ग्रंथ व्यास महर्षि के द्वारा निर्मित है और समाज को आध्यात्मिक ज्ञान, धर्म, नैतिकता, और सद्गुणों की प्रेरणा प्रदान करने का उद्देश्य रखता है। इस पुराण के अध्ययन से व्यक्ति मानवीय जीवन में आध्यात्मिक संवेदनशीलता, नैतिक मूल्यों का सम्मान, और भगवान की उपासना के माध्यम से अपने जीवन को पूर्णता और ध्येय की ओर ले जा सकता है।

स्कन्द पुराण में कुल 81,000 श्लोक हैं। इस पुराण के रचयिता के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है।

४-शिव पुराण (Shiv Puran)

 

शिव पुराण (Shiva Purana)

शिव पुराण एक प्रमुख पौराणिक ग्रंथ है जो हिन्दू धर्म के अन्य पौराणिक ग्रंथों में से एक है। यह पुराण भगवान शिव के महिमा, लीलाओं, तांडव नृत्य, महादेवी पार्वती के साथ उनके विवाह, पुत्र गणेश और कार्तिकेय की कथाएं, उनके भक्तों के कथानुसार उपास्य रूपों का वर्णन करता है।

शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव सृष्टि, स्थिति और प्रलय के नियंत्रक हैं। उन्हें त्रिमूर्ति में से एक माना जाता है, जहां वह ब्रह्मा (सृष्टि करने वाला देवता), विष्णु (पालक और पालक देवता) और शिव (प्रलय करने वाला और परमात्मा) के रूप में प्रकट होते हैं। शिव पुराण में शिव भक्ति, मन्त्र, पूजा, व्रत, तपस्या, साधना, सिद्धि और मोक्ष के मार्गों का विवरण भी दिया गया है।

शिव पुराण में शिव के अवतारों, मंदिरों, तीर्थों, व्रतों और महात्म्य के बारे में विस्तृत वर्णन है। इसमें उनके भक्तों के जीवन की कथाएं और शिव के शक्तिशाली रूपों का भी वर्णन किया गया है, जैसे कि अर्द्धनारीश्वर, नटराज, रुद्र, महाकाल आदि। इस पुराण में माता पार्वती के रूप में मान्यता है और उनकी महिमा, तपस्या, शक्ति और अनुग्रह का वर्णन भी किया गया है।

शिव पुराण में धर्म, नैतिकता, ध्यान, योग, भक्ति, संस्कृति, आध्यात्मिकता और मोक्ष के विषय में व्यापक ज्ञान दिया गया है। इस पुराण के अध्यायों में विभिन्न धार्मिक कथाएं, उपदेश, उपासना विधियाँ, प्रार्थना, महिमा स्तोत्र, विशेष व्रत और उनकी महत्त्वपूर्णता के बारे में चर्चा की जाती है। यह पुराण व्यक्ति को समस्त मानवीय जीवन के आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धांतों का ज्ञान प्रदान करता है और उन्हें ईश्वरीय उपासना और साधना के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है।

शिव पुराण भगवान शिव के बारे में गहनता से व्याख्यान करता है और मानव समाज को आध्यात्मिकता, भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग में प्रेरित करता है। यह पुराण हमें शिव के पावन नाम, मंत्र, स्तोत्र, व्रत और पूजा का महत्व और फल बताता है ताकि हम उनके अनुग्रह और कृपा से सम्पूर्णता और ध्येय की प्राप्ति कर सकें।

शिव पुराण आध्यात्मिकता, भक्ति और संस्कृति के बारे में एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसे पढ़ने और अध्ययन करने से हम अपने मन को शुद्ध करते हैं, अच्छे गुणों का विकास करते हैं, आध्यात्मिक सत्य को समझते हैं और अपने जीवन को ध्यान, शांति और सद्गति की ओर ले जाते हैं। शिव पुराण के माध्यम से हम भगवान शिव की कृपा, आशीर्वाद और प्रेम का आनंद ले सकते हैं और उनके ध्यान में समर्पित होकर आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर चल सकते हैं।

शिव पुराण में लगभग 24,000 श्लोक होते हैं। इस पुराण के रचयिता के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, लेकिन इसे वेदव्यास द्वारा रचित माना जाता है।

४-१  शिव पुराण कथा   Shiv Puran Katha

शिव पुराण एक प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जो भगवान शिव की कथाओं, लीलाओं, तात्पर्यों और धर्मिक उपदेशों पर आधारित है। यह पुराण वेद और उपनिषदों के प्रमाणों के आधार पर सम्पूर्ण है और हिंदू धर्म के एक प्रमुख ग्रंथ के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसमें भगवान शिव की कथाएं, विविध अवतार, तापस्या, देवी-देवताओं की महिमा, शिव-पार्वती की लीलाएं, मन्दिर निर्माण, व्रत-त्योहार, शिव लिंग की महिमा, गंगा और नर्मदा नदी की महिमा, नाग और गरुड़ उपासना, धर्म, धर्माचार, धर्मकर्म, धर्माधर्म के उपदेश और धर्म संसार के नियमों का विस्तृत वर्णन है।

शिव पुराण में भगवान शिव के विभिन्न अवतार और लीलाओं का वर्णन है, जैसे कि शिव की विवाहिता सती और पार्वती की कथा, शिव और पार्वती के विविध रूप और नाम, गौरी की उत्पत्ति, गणेश और कार्तिकेय की उत्पत्ति, भगवान शिव के तप, स्वर्ग और पाताल में शिव की लीलाएं, शिव की महिमा का वर्णन है। 

४-2 शिव पुराण के अनुसार पुत्र प्राप्ति के उपाय  According to Shiva Purana, ways to have a son


शिव पुराण में पुत्र प्राप्ति के उपायों का वर्णन किया गया है। यदि कोई व्यक्ति संतान की कामना रखता है और पुत्र प्राप्ति के उपाय करना चाहता है, तो उन्हें निम्नलिखित उपायों का पालन करना चाहिए:

१-महामृत्युंजय मंत्र का जाप: शिव पुराण में महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करने का महत्वपूर्ण वर्णन है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से पुत्र प्राप्ति में सहायता मिल सकती है। मंत्र का जाप करते समय शिवलिंग के सामने ध्यान केंद्रित करें और विशेष आदर और श्रद्धा के साथ इसका जाप करें।


२-शिव रात्रि व्रत: शिव पुराण में शिव रात्रि व्रत का महत्वपूर्ण वर्णन है। इस व्रत के दौरान व्यक्ति एकांत में रहकर शिवलिंग की पूजा, ध्यान और मन्त्र जाप करता है। यह व्रत पुत्र प्राप्ति में सहायता प्रदान कर सकता है और पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए शिव की कृपा को आकर्षित कर सकता है।


३ अश्वमेध यज्ञ: शिव पुराण में अश्वमेध यज्ञ का वर्णन है जो पुत्र प्राप्ति में सहायता कर सकता है। यह यज्ञ प्राचीन काल से प्रचलित है और अत्यंत महत्त्वपूर्ण मान्यताओं के साथ संपन्न होता है। इसके लिए यजमान को विशेष पूजा, हवन और दान करने की आवश्यकता होती है।


४-श्रावण सोमवार व्रत: श्रावण मास के सोमवार का व्रत भी पुत्र प्राप्ति में सहायता कर सकता है जैसा कि शिव पुराण में उल्लेखित है। इस व्रत के दौरान व्यक्ति सोमवार को नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा, अर्चना, जागरण और मन्त्र जाप करता है। यह व्रत शिव के आशीर्वाद को प्राप्त कर पुत्र प्राप्ति में सहायता प्रदान कर सकता है।

पुत्र प्राप्ति के उपायों के लिए शिव पुराण में उल्लेखित विधियों का पालन करना चाहिए। हालांकि, इन उपायों के अलावा व्यक्ति को शुद्धता, संतान की इच्छा, प्रेम, सद्भावना और ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए। उपायों के साथ-साथ योग्य आहार, नियमित ध्यान और धार्मिक कर्मों का पालन करना भी आवश्यक है। अंततः, ईश्वर की कृपा, पुत्र प्राप्ति की इच्छा और पूर्व पुण्य के अनुसार पुत्र प्राप्ति हो सकती है।
 

४-३  शिव पुराण में शादी के उपाय

शिव पुराण में विवाह और शादी के लिए कई उपाय बताए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति उचित विवाह के अवसर ढूंढ़ना चाहता है या अपनी शादी में बाधाएँ को दूर करना चाहता है, तो वे शिव पुराण में बताए गए उपायों का पालन कर सकते हैं। यहां कुछ उपाय दिए जा रहे हैं:

१- भगवान शिव की पूजा: शिव पुराण में सबसे प्रमुख उपाय शिव की पूजा करने का है। नियमित रूप से शिव मंदिर जाकर पूजा करना, प्रार्थना करना और शिवलिंग के रुद्राभिषेक का आयोजन करना शादी में समस्याओं को दूर करने और उचित विवाह साझा करने की कृपा प्राप्त कर सकता है।


२- मंत्रों का जाप: शिव पुराण में पवित्र मंत्रों की महत्वपूर्णता बताई गई है। उच्चारण और जाप करते समय विवाह की इच्छा के साथ शिव मंदिर में ध्यान केंद्रित करें और मंत्रों का नियमित जाप करें। विवाह में सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए यह मंत्र आपकी सहायता कर सकते हैं।


३-कार्येश्वरी मंत्र का पाठ: शिव पुराण में शादी के लिए कार्येश्वरी मंत्र का वर्णन दिया गया है। इस मंत्र का नियमित पाठ करने से आपको अच्छे विवाह के अवसर मिल सकते हैं। इस मंत्र का पाठ करने से पहले आपको गुरु की आदेश और नियमों का पालन करना चाहिए।


४-व्रत और तीर्थ यात्रा: शिव पुराण में विवाह सम्बंधित उपायों में व्रतों और तीर्थ यात्रा का भी उल्लेख किया गया है। आपको नियमित रूप से विवाह से संबंधित व्रत रखने चाहिए और पवित्र स्थानों पर तीर्थ यात्रा करनी चाहिए। इससे आपको उचित विवाह और आपसी समझ में सहायता मिल सकती है।

शिव पुराण में विवाह के उपायों के अलावा आपको अपने आपको शुद्ध रखना, ईश्वर पर श्रद्धा रखना, धार्मिक कर्मों का पालन करना, और परिवार के साथ प्रेम और सहयोग का विचार रखना चाहिए। इन उपायों के साथ-साथ आपको सभी वैधिक और नैतिक नियमों का पालन करना चाहिए। यह उपाय आपको संतान सुखी विवाह की प्राप्ति में सहायता प्रदान कर सकते हैं।

४-४ शिव पुराण के अनुसार कर्ज मुक्ति के उपाय


शिव पुराण में कर्ज मुक्ति के उपायों का वर्णन भी किया गया है। यदि कोई व्यक्ति कर्ज से पीड़ित है और कर्ज मुक्ति के लिए उपाय ढूंढ़ रहा है, तो वे शिव पुराण में बताए गए उपायों का पालन कर सकते हैं। यहां कुछ उपाय दिए जा रहे हैं:

शिव चालीसा और स्तोत्र: कर्ज से छुटकारा पाने के लिए शिव चालीसा और स्तोत्र का नियमित पाठ करें। इसके द्वारा शिव भगवान की कृपा प्राप्त होती है और कर्ज से मुक्ति मिलती है।


महामृत्युंजय मंत्र का जाप: महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्) का नियमित जाप करें। यह मंत्र कर्ज से मुक्ति के लिए बहुत प्रभावी माना जाता है और आपको आर्थिक संकट से निजात दिलाने में सहायता कर सकता है।


कामेश्वर मंत्र का पाठ: शिव पुराण में कामेश्वर मंत्र का वर्णन भी किया गया है, जो कर्ज से राहत दिलाने में मान्यता प्राप्त है। इस मंत्र (ॐ कामेश्वराय विद्महे कामेश्वरी प्रियायै धीमहि तन्नो अन्नपूर्णि प्रचोदयात्) का नियमित पाठ करने से कर्ज से छुटकारा मिल सकता है।


नागेश्वर मंत्र का जाप: नागेश्वर मंत्र (ॐ नागेश्वराय विद्महे वासुकियाय धीमहि तन्नो नाग प्रचोदयात्) का नियमित जाप करें। इस मंत्र का जाप करने से कर्ज संबंधी समस्याओं का समाधान हो सकता है।


शिव तांत्रिक पूजा: शिव पुराण में शिव तांत्रिक पूजा के उपायों का वर्णन भी है। आप शिव प्रतिमा की तांत्रिक पूजा कर सकते हैं और कर्ज से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

ध्यान दें कि शिव पुराण में उपायों का वर्णन केवल सामान्य जानकारी के रूप में दिया गया है। यदि आप किसी विशेष समस्या के संबंध में कर्ज मुक्ति के उपाय चाहते हैं, तो आपको किसी पंडित या धार्मिक आद्यात्मिक गुरु से संपर्क करना चाहिए और विवरणीकरण और निर्देश प्राप्त करना चाहिए।

४-५ शिव पुराण के अनुसार धन प्राप्ति के उपाय



शिव पुराण में धन प्राप्ति के उपायों का वर्णन किया गया है। यदि आप धन प्राप्ति के उपाय ढूंढ़ रहे हैं, तो आप शिव पुराण में बताए गए उपायों का पालन कर सकते हैं। यहां कुछ उपाय दिए जा रहे हैं:

महामृत्युंजय मंत्र का जाप: महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्) का नियमित जाप करें। यह मंत्र धन प्राप्ति के लिए मान्यता प्राप्त है और आपको आर्थिक समृद्धि में सहायता कर सकता है।


लिंगार्चना: शिव पुराण में लिंगार्चना का विशेष महत्व बताया गया है। आप नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा और अर्चना करें और अपने धन प्राप्ति की कामना करें।


शिव स्तोत्र: शिव पुराण में विभिन्न शिव स्तोत्रों का वर्णन भी किया गया है। आप शिव स्तोत्रों का पाठ करके धन प्राप्ति की कामना कर सकते हैं।


कुंडलिनी जागरण: शिव पुराण में कुंडलिनी शक्ति के विषय में भी चर्चा की गई है। आप कुंडलिनी जागरण के लिए विशेष मंत्रों, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं। कुंडलिनी जागरण से आपको आर्थिक समृद्धि में सहायता मिल सकती है।


दान करना: शिव पुराण में दान का महत्व विस्तार से बताया गया है। आप धन का निर्माण करने के लिए निर्धारित दान कर सकते हैं, जैसे कि अन्नदान, वस्त्रदान, धनदान आदि। दान करने से आपको आर्थिक वर्धन हो सकता है।

ध्यान दें कि शिव पुराण में उपायों का वर्णन केवल सामान्य जानकारी के रूप में दिया गया है। यदि आप किसी विशेष समस्या के संबंध में धन प्राप्ति के उपाय चाहते हैं, तो आपको किसी पंडित या धार्मिक आद्यात्मिक गुरु से संपर्क करना चाहिए और विवरणीकरण और निर्देश प्राप्त करना चाहिए।

४-६ शिव पुराण पढ़ने के फायदे


शिव पुराण को पढ़ने के कई फायदे होते हैं। यह प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ है और शिव भगवान के महात्म्य, तत्व, कथाएं, उपासना और विभिन्न उपायों का विस्तृत वर्णन करता है। यहां कुछ मुख्य फायदे हैं जो शिव पुराण को पढ़ने से मिल सकते हैं:

आध्यात्मिक उन्नति: शिव पुराण में आध्यात्मिक ज्ञान, उपासना और धार्मिक तत्वों का वर्णन है। इसे पढ़कर आप अपनी आध्यात्मिक उन्नति में मदद प्राप्त कर सकते हैं और अपने अंतरंग जीवन को स्पष्टता और दिशा प्रदान कर सकते हैं।


मन की शांति: शिव पुराण में शिव के गुण, महिमा और शांति के उपायों का वर्णन है। इसे पढ़ने से मन की शांति मिलती है, मानसिक चिंताओं और स्थानिकताओं का समाधान होता है।


भक्ति और आनंद: शिव पुराण में शिव की भक्ति की महत्ता और उपासना के विभिन्न रूपों का वर्णन है। इसे पढ़ने से आप भक्ति भाव और आनंद का अनुभव कर सकते हैं और आपकी आत्मा को उत्कृष्टता की अनुभूति होती है।


धार्मिक ज्ञान: शिव पुराण में हिंदू धर्म, धार्मिक कर्म, देवी-देवताओं की कथाएं, व्रत, पूजा और तीर्थों के महत्व का वर्णन है। इसे पढ़कर आप धार्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं और अपने धार्मिक आचरण में सुधार कर सकते हैं।


संस्कृति का ज्ञान: शिव पुराण भारतीय संस्कृति, त्राडिशन्स, नृत्य, संगीत, कला और धर्मशास्त्र के महत्वपूर्ण पहलुओं का वर्णन करता है। इसे पढ़कर आप भारतीय संस्कृति के गहरे अर्थ को समझते हैं और भारतीय विरासत को संजोने में मदद मिलती है।

शिव पुराण के पठन से हमें धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है, हमारे मन को शांति मिलती है और हम भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना प्राप्त करते हैं। यदि आप अपने जीवन को आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से आर्थिक समृद्धि, मन की शांति और आनंद के साथ आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो शिव पुराण को पढ़ना आपके लिए बहुत लाभदायक साबित हो सकता है

५-  भागवत पुराण (Bhagavata Puran)

भागवत पुराण (Bhagavata Purana) एक प्रमुख हिंदू पुराण है जो श्रीमद् भागवत महापुराण (Shrimad Bhagavatam) के नाम से भी जाना जाता है। यह पुराण भगवान विष्णु के महिमा, लीलाएं, अवतार, भक्ति, वैष्णव सिद्धांत और धार्मिक तत्वों का व्यापक वर्णन करता है। इस पुराण में कृष्णावतार की कथाओं और महाभारत के प्रमुख कथाओं का वर्णन भी है।

भागवत पुराण के पठन से कई महत्वपूर्ण फायदे हो सकते हैं:


भक्ति और प्रेम की विकास: भागवत पुराण में श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की भक्ति और प्रेम की महिमा का विस्तृत वर्णन है। इसे पढ़कर आप भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम की भावना को विकसित कर सकते हैं।

आध्यात्मिक ज्ञान: भागवत पुराण में आध्यात्मिक ज्ञान, तत्व और धर्म के सिद्धांतों का वर्णन है। इसे पढ़कर आप आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दिशा देते हैं।


मन की शांति: भागवत पुराण में अनेक श्रीकृष्ण कथाएं हैं जो मन को शांति, समाधान और आनंद प्रदान करती हैं। इसे पढ़कर आप अपने मन को शांत और स्थिर बना सकते हैं।


धार्मिकता का विकास: भागवत पुराण में धार्मिक कर्म, नैतिकता, दया, सेवा, अहिंसा, सत्य और परम धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन है। इसे पढ़कर आप धार्मिकता को अपने जीवन में स्थापित कर सकते हैं और नेतृत्व के माध्यम से समाज के लिए उदाहरण स्थापित कर सकते हैं।


संस्कृति और नैतिक मूल्यों की प्रशंसा: भागवत पुराण में भारतीय संस्कृति, कला, संगीत, नृत्य, काव्य और नैतिक मूल्यों की प्रशंसा है। इसे पढ़कर आप अपनी संस्कृति और नैतिक मूल्यों को महत्त्वपूर्ण मान सकते हैं और संस्कृति के सभी आयामों को समझ सकते हैं।

भागवत पुराण को पढ़ने से हमें आध्यात्मिक ज्ञान, भक्ति, मन की शांति, धार्मिकता, संस्कृति और नैतिक मूल्यों की समझ मिलती है। यदि आप अपने जीवन को इन सभी पहलुओं में समृद्ध कर है।

भागवत पुराण में 18,000 श्लोक होते हैं। इस पुराण के रचयिता के बारे में जानकारी कम है, लेकिन इसे महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित माना जाता है। इस पुराण को पढ़ने वाले वैष्णव संप्रदाय के लोग इसका बहुत आदर करते हैं और इसे अपने जीवन के मार्गदर्शन में लाते हैं।

६-मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Puran)

मार्कण्डेय पुराण (Puran) हिंदू धर्म के पुराणों में से एक है। इस पुराण को ऋषि मार्कण्डेय द्वारा रचित माना जाता है। यह पुराण महाभारत काल में लिखा गया था और इसमें कुछ अंश महाभारत से भी मिलते हैं।

मार्कण्डेय पुराण, एक प्रमुख हिंदू साहित्यिक कृति है जो भारतीय धार्मिक साहित्य की महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है। यह पुराण वेद पुराणों के मध्य कालीन है और भारतीय साहित्य में व्यापक महत्त्व रखता है। मार्कण्डेय पुराण का नाम मुख्य रूप से उनके द्वारा रचित किए जाने वाले मार्कण्डेय ऋषि के नाम पर रखा गया है।

यह पुराण चार खंडों में विभाजित होता है और इन खंडों में विभिन्न विषयों का विस्तृत वर्णन किया गया है। प्रथम खंड में विशेष रूप से मार्कण्डेय महात्म्य, महाप्रलय के बारे में कथाएं, देवी दुर्गा के महात्म्य, भक्ति का महत्त्व आदि प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय खंड में मार्कण्डेय महात्म्य के अलावा अन्य प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई है, जैसे कि योग, ज्ञान, धर्म आदि।

तृतीय खंड में पुराण के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि की कथाएं प्रस्तुत की गई हैं, जो उनके तपस्या, ज्ञान, और उनकी विशेष शक्ति पर आधारित हैं। चतुर्थ खंड में वेदांत, धर्मशास्त्र, समरसता, विविध यज्ञों का वर्णन, अन्य पुराणों की उपलब्धियां आदि प्रस्तुत किए गए हैं।

मार्कण्डेय पुराण में विविध विषयों का संग्रह है, जैसे कि धर्म, दर्शन, तत्वज्ञान, भक्ति, ऋषि कथाएं, देवी दुर्गा के महात्म्य आदि। यह पुराण भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास के महत्वपूर्ण संस्करणों में से एक है और उपनिषदों, महाभारत, रामायण आदि के साथ ब्रह्मसूत्रों का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

मार्कण्डेय पुराण (Puran)में कुल 13752 श्लोक हैं। इस पुराण में वेदों के साथ-साथ उपनिषदों, रामायण, महाभारत और भगवद गीता का भी संग्रह है। इस पुराण में महादेव के महत्व को बताया गया है और इसमें उनके अनेक लीलाओं का वर्णन भी है। इसके अलावा इस पुराण में धर्म, कर्म, ज्ञान, अर्थ और मोक्ष के सिद्धांतों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है।

७-वामन पुराण (Vamana Puran)

वामन पुराण, एक प्रमुख हिंदू पुराण है जो भारतीय साहित्य के वेद पुराणों में से एक है। यह पुराण विष्णु पुराण के अंतर्गत आता है और विष्णु भगवान की महिमा और लीलाओं पर ध्यान केंद्रित करता है। वामन पुराण का नाम मुख्य रूप से वामन अवतार धारण करने वाले भगवान विष्णु के नाम पर रखा गया है।

वामन पुराण में वामन अवतार के साथ जुड़े घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है। वामन अवतार में भगवान विष्णु छोटे आकार में प्रकट होते हैं और दैत्य राजा बलि को विजय प्राप्त करते हैं। यह पुराण उस घटना को विस्तार से वर्णित करता है और उसे भगवान विष्णु की प्रेम और दया के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित करता है।

वामन पुराण में भगवान विष्णु के अलावा अन्य देवताओं, महर्षियों, ऋषियों और मनुष्यों के जीवन के विषय में भी चर्चा की गई है। इस पुराण में धर्म, कर्म, भक्ति, ध्यान, उपासना आदि धार्मिक विषयों पर महत्वपूर्ण उपदेश दिए गए हैं। वामन पुराण भारतीय साहित्य, धर्म और दर्शन की महत्त्वपूर्ण पुराणों में से एक है और उसे धार्मिक अध्ययन और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

वामन पुराण में कुल 10,000 श्लोक हैं और इस पुराण में 4 खंड होते हैं। प्रथम खंड में वेदों, पुराणों और उपनिषदों की महिमा का वर्णन होता है। द्वितीय खंड में भगवान विष्णु के 10 अवतारों का वर्णन होता है, जिनमें राम और कृष्ण अवतार भी शामिल होते हैं। तृतीय खंड में वामन अवतार के वर्णन के साथ सत्ययुग से लेकर कलियुग तक के धर्म के विवरण होते हैं। चतुर्थ खंड में उपनिषदों, योग, मोक्ष और श्रीमद् भगवद गीता के बारे में जानकारी दी गई है।

८-वराह पुराण (Varaha Puran)

वराह पुराण (Puran) हिंदू धर्म के पुराणों में से एक है जो विष्णु पुराण के अन्तर्गत आता है। यह पुराण विष्णु के वराह अवतार के विवरण के साथ-साथ वैदिक ज्ञान, धर्म, कर्म, दान, तीर्थयात्रा आदि के विषयों पर भी चर्चा करता है।इस पुराण में 24,000 श्लोक होते हैं जो 3 खंडों में बंटे हुए होते हैं। पहला खंड वराह के अवतार का वर्णन करता है, दूसरा खंड सृष्टि के विषय में वर्णन करता है, और तीसरा खंड वैदिक ज्ञान और उससे जुड़े विषयों पर चर्चा करता है।इस पुराण के अनुसार, ब्रह्मा ने सृष्टि शुरू की थी, लेकिन उन्होंने यह संकल्प लिया था कि उन्हें निराकार विष्णु का ध्यान करना चाहिए। इस पुराण में विष्णु को सर्वोत्तम माना गया है और उनके अवतारों का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह पुराण धर्म, दान, तपस्या और श्रद्धा के महत्व को बताता है और मनुष्य के उद्धार के लिए उन्हें सलाह देता है।

९-मत्स्य पुराण (Matsya Puran)

मत्स्य पुराण (Matsya Puran) भारतीय साहित्य का एक प्रमुख पुराण है जो वेद पुराणों के मध्य कालीन है। इस पुराण का नाम मुख्य रूप से मत्स्य अवतार धारण करने वाले भगवान विष्णु के नाम पर रखा गया है। मत्स्य पुराण का संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और इसका लिखने का कारण महाभारत के आदिकालीन काल में भगवान विष्णु द्वारा विष्णु अवतार के रूप में धर्म संरक्षण के लिए जगत की रक्षा करने के उद्देश्य से था।

मत्स्य पुराण में विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है। इस पुराण में भगवान विष्णु के अलावा मनुष्यों, ऋषियों, महर्षियों, देवताओं, राजा-महाराजों आदि के जीवन के विषय में विस्तार से बताया गया है। यह पुराण धर्म, दान, व्रत, तीर्थयात्रा, ज्योतिष, आयुर्वेद, गीता, योग, पुनर्जन्म आदि धार्मिक विषयों पर भी बात करता है।

मत्स्य पुराण में मत्स्य अवतार के माध्यम से पृथ्वी रक्षा के लिए भगवान विष्णु की उपस्थिति का वर्णन है। इसके अलावा यह पुराण मनुष्य की उत्पत्ति, वंशावली, संस्कृति, युगों की व्याप्ति, प्रलय, धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक, मोक्ष आदि जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी विचार करता है।

मत्स्य पुराण भारतीय साहित्य, धर्म, इतिहास और ज्योतिष के अद्यतन स्रोत के रूप में महत्त्वपूर्ण है और इसे धार्मिक अध्ययन और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

मत्स्य पुराण में कुल मिलाकर 14,000 श्लोक और 291 अध्याय हैं, जो किसी भी पुराण में अद्यापि अद्यावत हैं. यह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है और विभिन्न अवधियों में लिखे गए हैं. इस पुराण में धर्म, योग, विद्या, ऋषि-मुनियों के जीवन कथाएं, देवताओं के महत्वपूर्ण कार्य, तीर्थस्थानों का वर्णन, मन्वंतरों के बारे में जानकारी, राजनीति, विवाह, श्राद्ध, व्रत, अश्वमेध यज्ञ आदि के विषय में विस्तृत चर्चा की गई है.

१०- कूर्म पुराण (Kurma Puran)

कूर्म पुराण भी एक प्रमुख हिन्दू पुराण है जो विष्णु पुराणों में से एक है। यह पुराण मुख्य रूप से कूर्मावतार (कछुए के रूप में भगवान विष्णु का अवतार) के बारे में चर्चा करता है। इस पुराण का नाम कूर्म पुराण उस कारण से प्राप्त हुआ है क्योंकि इसमें भगवान का कूर्मावतार महत्वपूर्ण है।

कूर्म पुराण के माध्यम से भगवान का अवतार लेने का कारण, सृष्टि के रहस्य, धर्म, कर्म, मोक्ष, योग, प्रार्थना, तपस्या, व्रत, मन्त्र, महात्म्य, तीर्थयात्रा, पितृतर्पण, संस्कार, दिवस, ऋषि-मुनियों की कथाएं, राजनीति, धर्मशास्त्र, दान, देवताओं की कथाएं, देवी-देवताओं की महिमा, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव, धर्माराधना, निर्वाण, अन्य पुराणों के संक्षेप में सृष्टि का वर्णन आदि किए गए हैं।

कूर्म पुराण में कुल मिलाकर लगभग 17,000 श्लोक हैं जो 64 अध्यायों में विभाजित हैं। यह पुराण भागवत पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, ब्रह्मा पुराण, आदि कई अन्य पुराणों की उत्पत्ति और महत्त्वपूर्ण कथाओं का संकलन करता है। कूर्म पुराण का पाठ आध्यात्मिक ज्ञान, धर्म, आचार्य के मार्गदर्शन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।


११-ब्रह्म पुराण (Brahma Puran)

ब्रह्म पुराण भी एक प्रमुख हिन्दू पुराण है जो विष्णु पुराणों में से एक है। यह पुराण प्रमुखतः ब्रह्मा जी के महत्वपूर्ण विषयों के बारे में चर्चा करता है। इस पुराण में भगवान ब्रह्मा के सृष्टि क्रियाओं, ब्रह्मांड के विस्तार, सृष्टि के रहस्य, मन्वंतर, यज्ञ, वर्णाश्रम धर्म, वेद, पुराण, तपस्या, ऋषि-मुनियों की कथाएं, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड, व्रत, तीर्थयात्रा, धर्मरक्षा, धर्माचार, पुण्य, पाप, मोक्ष, देवताओं की महिमा, अवतार, भूत-प्रेत, नरक, स्वर्ग, देवी-देवताओं के विषय में चर्चा की गई है।

ब्रह्म पुराण में कुल मिलाकर लगभग 12,000 श्लोक हैं जो 245 अध्यायों में विभाजित हैं। इस पुराण में ब्रह्मा प्रकृति, परमात्मा, सत्य, ज्ञान, आनंद, विश्वात्मा, धर्म, कर्म, मोक्ष, अन्तिम प्राप्ति आदि के विषय में गहराई से चर्चा की गई है। यह पुराण धार्मिक तत्त्वों, आध्यात्मिक ज्ञान और साधना की महत्त्वपूर्ण सूचनाएं प्रदान करता है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है।

१२-पद्म पुराण (Padma Puran)

पद्म पुराण भी एक महत्वपूर्ण हिंदू पुराण है जो विष्णु पुराणों के ग्रंथों में से एक है। इस पुराण में विभिन्न विषयों पर व्याख्यान किए गए हैं और यह एक बहुत व्यापक पुराण है जिसमें धर्म, देवताओं के कथावस्तु, व्रत, तीर्थयात्रा, संस्कृति, उपासना, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, योग, तप, धर्मीय कर्म, नरक और स्वर्ग के बारे में विस्तृत चर्चा होती है।

पद्म पुराण के अनुसार, यह पुराण भगवान विष्णु द्वारा ब्रह्मा को सुनाया गया है, और इसे आदि तत्त्व, वैष्णव महात्म्य और ब्रह्मसंहिता के रूप में विभाजित किया गया है। इस पुराण में लगभग 55,000 श्लोक हैं, जिन्हें कई अध्यायों में विभाजित किया गया है।

पद्म पुराण में विभिन्न विषयों पर देवताओं, ऋषियों, कथावस्तुओं, उपासना विधियों, संस्कृति और साहित्य, महात्म्य कथाएं, धर्मीय कर्मों के फल, भक्ति, गीत, योग, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, नरक और स्वर्ग के विवरण, धर्म के अनुसार जीवन जीने की महत्वपूर्ण बातें, श्रद्धा, व्रत, पाप पुण्य के फल, स्वर्गीय और नरकीय जन्मों की विविधता आदि पर विस्तृत चर्चा की गई है।

पद्म पुराण में ब्रह्मवैवर्त पूर्वखंड और उत्तरखंड के द्वारा विभाजित होता है, जो विभिन्न प्रकरणों में व्याख्यान किए गए हैं। यह पुराण हिंदू धर्म, आचार-अनुष्ठान, उपासना विधियों और आध्यात्मिक ज्ञान को प्रदान करता है।

१३- लिंग पुराण (Linga Puran)

लिंग पुराण एक प्रमुख हिंदू पुराण है जो शैव पुराणों में से एक है। यह पुराण मुख्य रूप से शिवलिंग और शिव के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करता है। इस पुराण में शिव के अवतारों, महिमा, तांत्रिक साधना, पूजा-अर्चना, महात्म्य, शिवलिंग पूजा, महाशिवरात्रि व्रत, शिव की कथाएं, तीर्थयात्रा, धर्मशास्त्र, योग, मोक्ष, पाप-पुण्य के फल, जीवन के उद्देश्य, धर्मीय जीवन आदि पर चर्चा की गई है।

लिंग पुराण में कुल मिलाकर लगभग 11,000 श्लोक हैं, जिन्हें विभिन्न अध्यायों में विभाजित किया गया है। इस पुराण का विषय शिव और उनकी पूजा पर विशेष महत्त्व रखता है, और यह शैव साधकों और भक्तों के लिए महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है। इस पुराण में शिव के भक्तों के लिए उपदेश, साधना मार्ग, ध्यान, प्रार्थना और शिव भक्ति के उपायों का वर्णन भी किया गया है।

१४-गरुड़ पुराण (Garud Puran)


गरुड़ पुराण हिंदू धर्म का एक प्रमुख पुराण है जो मृत्यु और प्रेतों के विषय में चर्चा करता है। इस पुराण में मृत्यु के बाद की आत्मा के यात्रा, नरक और स्वर्ग की विविधता, प्रेत और पितृ तर्पण, पुण्य कर्मों के फल, मानव जन्म की महिमा, धर्म के सिद्धांत, आध्यात्मिकता, दुःख और सुख के कारण और अन्य विषयों पर विस्तृत चर्चा होती है।

गरुड़ पुराण के अनुसार, यह पुराण भगवान विष्णु के द्वारा उनके वाहन गरुड़ को सुनाया गया है। इसे कर्मखंड और उपासना खंड के द्वारा विभाजित किया जाता है, जो विभिन्न प्रकरणों में व्याख्यान किए गए हैं। इस पुराण में लगभग 19,000 श्लोक हैं जो 226 अध्यायों में विभाजित हैं।

गरुड़ पुराण में मृत्यु और आध्यात्मिकता के विषयों पर व्याख्यान किए जाते हैं। यह जीवन-मृत्यु की प्राकृतिक प्रक्रिया, प्रेतगति, पुण्य-पाप के फल, संसार-चक्र का वर्णन करता है। इसके अंतर्गत गरुड़ पुराण में भक्ति, योग, ध्यान, पूजा, व्रत, जन्माष्टमी, नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि, कर्मकाण्ड, धर्म, अधर्म, नृत्य, संगीत, वैदिक संस्कृति आदि के विषयों पर भी चर्चा होती है।

गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा के वर्णन द्वारा मनुष्य को जीवन के उद्देश्य, धर्म के महत्व, नेति-नीति, सदाचार, दया, त्याग, दान, संतोष, आत्मविश्वास आदि का आदर्श प्रदान किया जाता है। इस पुराण का अध्ययन प्रेतगति और आध्यात्मिक साधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे जीव अपने जीवन को सार्थक और आध्यात्मिक बना सकता है।

१४-१ गरुड़ पुराण के अनुसार स्त्रियों को कभी 4 काम नहीं करने चाहिए 

गरुड़ पुराण के अनुसार, कुछ पाठकों के अनुसार, स्त्रीओं को चार काम कभी नहीं करने चाहिए यह बताया जाता है। ये चार काम निम्नलिखित हो सकते हैं:

१- निर्ममता (अनुचित संबंध): गरुड़ पुराण के अनुसार, स्त्रीओं को निर्ममता, अर्थात अनुचित और अधर्मिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। यहां पर उल्लेखित काम संबंधित हो सकते हैं, जिनमें आदर्शता और नैतिकता की अनुपालना नहीं होती है।

२- द्रव्यार्जन (अन्यायपूर्ण धन कमाना): गरुड़ पुराण के अनुसार, स्त्रीओं को अन्यायपूर्ण तरीके से धन कमाने वाले काम में नहीं लगना चाहिए। इसका उदाहरण अपराध, लुभावन, अनुचित व्यापार आदि हो सकता है।

३- हिंसा: स्त्रीओं को गरुड़ पुराण के अनुसार, हिंसा करने वाले कार्यों में नहीं लगना चाहिए। यहां पर हिंसा का अर्थ शारीरिक, भावनात्मक, और मानसिक रूप से किसी को नुकसान पहुंचाना है।

गरुड़ पुराण के अनुसार पुत्र प्राप्ति के उपाय

 गरुड़ पुराण के अनुसार, स्त्रीओं को अनुचित वचन बोलने से बचना चाहिए। इसमें बातचीत में गाली देना, अश्लील या अनुचित भाषा का प्रयोग करना शामिल हो सकता है।

हालांकि, यह उक्ति सिद्धांत गरुड़ पुराण की एक अवधारणा है और इसका व्याख्यान विभिन्न संस्कृति और आचार्यों के बीच भिन्न हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचार्यों, धर्मिक ग्रंथों और अपने स्वयं के नैतिक मूल्यों के आधार पर अपने जीवन के निर्णय लेने चाहिए।

१४-२ गरुड़ पुराण के अनुसार पुत्र प्राप्ति के उपाय

 

गरुड़ पुराण में पुत्र प्राप्ति के उपायों पर विस्तार से चर्चा नहीं की गई है, लेकिन कुछ वेदिक और पौराणिक उपाय जो पुत्र प्राप्ति के लिए सुझाए गए हैं, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

संतान गोपाल मंत्र: गोपाल मंत्र का जाप और पूजा करने से पुत्र प्राप्ति की कामना की जाती है। "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" यह मंत्र निरंतर जपने से पुत्र सुख की प्राप्ति हो सकती है।

पुत्र कृष्ण मंत्र: इस मंत्र का जाप करने से भी पुत्र प्राप्ति की कामना की जा सकती है। "ॐ क्लीं कृष्णाय नमः" यह मंत्र निरंतर जपने से पुत्र सुख की प्राप्ति हो सकती है।

व्रत और पूजा: विशेष व्रत और पूजा करने से भी पुत्र प्राप्ति की कामना की जा सकती है। संतान गौरी व्रत, संतान गणेश व्रत, श्रीकृष्णा जन्माष्टमी, माता संतान धारण करने की पूजा आदि व्रत-पूजा पुत्र प्राप्ति के लिए संबंधित माने जाते हैं।

गुरु की कृपा: अपने गुरु के आदेश और मार्गदर्शन का पालन करने से भी पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी हो सकती है। गुरु के शिष्य बनकर आचरण करने से धर्मिक और आध्यात्मिक गुणों की प्राप्ति होती है, जो पुत्र प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

यद्यपि इन उपायों का उल्लेख गरुड़ पुराण में सीमित है, लेकिन यह पौराणिक उपायों का एक संकलन है और यथासंभव परंपरागत और स्वयंसेवक पंथों के मार्गदर्शन द्वारा अपनाने चाहिए। यदि आप पुत्र प्राप्ति की कामना रखते हैं, तो उचित होगा कि आप एक पंडित या आचार्य से परामर्श लें और उनके मार्गदर्शन में इन उपायों का अनुसरण करें।

१४-३ गरुड़ पुराण के टोटके

गरुड़ पुराण में विभिन्न टोटकों का उल्लेख है जो अभियांत्रिकीकरण, रोग निवारण, शान्ति, सुख, संतान प्राप्ति, नशा मुक्ति आदि के लिए उपयोगी माने जाते हैं। ये टोटके व्यक्ति के नैतिक और धार्मिक मूल्यों के आधार पर उपयोग किए जाने चाहिए। कृपया ध्यान दें कि ये टोटके आध्यात्मिक साधना या विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के बिना अपनाने चाहिए नहीं हैं। नीचे कुछ गरुड़ पुराण के टोटकों का उल्लेख है:

मन्त्राध्ययन टोटका: गरुड़ पुराण में मन्त्राध्ययन के महत्व का वर्णन है। आदर्शता और प्रार्थना के साथ निरंतर मन्त्राध्ययन करने से आत्मा को शांति, आनंद और संतोष प्राप्त हो सकता है।

रोगनाशक टोटका: रोग निवारण के लिए गरुड़ पुराण में कुछ टोटके दिए गए हैं। उनमें से एक उपाय है श्रीमद्भागवत कथा के पाठ का अवश्य करना जिससे रोगों का नाश हो सकता है।

धन प्राप्ति का टोटका: धन प्राप्ति के लिए गरुड़ पुराण में विशेष टोटके और मन्त्र दिए गए हैं। इनमें से कुछ उपाय श्री लक्ष्मी के नाम का जाप, कृष्ण मंत्र का जाप, और विशेष व्रत-पूजाओं को अपनाने के रूप में उल्लेख किए गए हैं।

ध्यान दें कि टोटके और उपायों का प्रयोग करने से पहले, उचित होगा कि आप एक आचार्य, पंडित, या धार्मिक गुरु से परामर्श लें और उनके मार्गदर्शन के अनुसार इनका अनुसरण करें। वे आपको सही मार्गदर्शन प्रदान कर सकेंगे और आपकी साधना को सुरक्षित और उपयोगी बना सकेंगे।

१४-४ गरुड़ पुराण कब पढ़ना चाहिए

गरुड़ पुराण एक पौराणिक ग्रंथ है और हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, लेकिन कुछ विशेष अवसरों और पौर्णिमा तिथियों पर इसे पढ़ने का महत्वपूर्ण माना जाता है।

गरुड़ जयंती: गरुड़ जयंती को गरुड़ पुराण का पाठ करने के लिए विशेष दिन माना जाता है। यह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गरुड़ पुराण के पाठ करने से गरुड़ भगवान की कृपा मिलती है।

पितृ पक्ष: पितृ पक्ष में गरुड़ पुराण का पाठ करने का विशेष महत्व है। पितृ पक्ष में पितरों की प्रतिष्ठा और उनकी आत्मिक शांति के लिए गरुड़ पुराण का पाठ करना सामान्य रूप से अनुशंसित किया जाता है।

व्रत और तीर्थयात्रा: कुछ व्रतों और तीर्थयात्राओं के दौरान भी गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है। इनमें संतान प्राप्ति के व्रत, नाग पंचमी, नवरात्रि, आदि शामिल हो सकते हैं। इन अवसरों पर गरुड़ पुराण का पाठ करने से अधिक पुण्य प्राप्त होता है।

इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति की विशेष इच्छा हो या उसे किसी विषय पर ज्ञान प्राप्त करना हो, तो उस समय भी गरुड़ पुराण का पाठ किया जा सकता है।

सार्वभौमिक रूप से, गरुड़ पुराण को किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, क्योंकि इसमें अद्वैत वेदान्त और आध्यात्मिक सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन है। यह धार्मिक ज्ञान को समझने और अपने जीवन में उत्तमता की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।

१४-५ गरुड़ पुराण के अनुसार कर्मों का फल

गरुड़ पुराण में कर्मों के फल के विषय में विस्तृत वर्णन है। यह पुराण कर्म और उनके प्रभाव को समझने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस पुराण के अनुसार, कर्मों का फल व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है और उसकी भविष्यवाणी करता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार, सभी कर्मों का फल अवश्य प्राप्त होता है, चाहे वह अधिकारिक (कायिक) कर्म हो या मानसिक कर्म हो। पुराण में कहा गया है कि कर्मों का फल सीधे व्यक्ति को भोगना पड़ता है और उसे संसारी जन्मों में फिर से जन्म-मृत्यु की चक्रव्यूह में ले जाता है।

इस पुराण में वर्णित किए गए कर्मों के अनुसार व्यक्ति को उच्च या निचले लोकों में जन्म लेने का फल मिलता है। सत्कर्मों के कारण व्यक्ति को स्वर्गीय लोकों में जन्म लेने का फल मिलता है, जहां उसे सुख, शांति और आनंद की अनुभूति होती है। विकर्मों या दुष्कर्मों के कारण व्यक्ति को नरकीय लोकों में जन्म लेने का फल मिलता है, जहां उसे दुख, कष्ट और पीड़ा का अनुभव करना पड़ता है।

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि शुभ कर्म करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है और उसे संसार से छूटने का मार्ग प्राप्त होता है। इसलिए, इस पुराण के अनुसार, अच्छे कर्मों को करने और दुष्कर्मों से बचने का महत्वपूर्ण संदेश दिया गया है।

१४-६ गरुड़ पुराण के अनुसार पत्नी के कर्तव्य

गरुड़ पुराण में पत्नी के कर्तव्य के बारे में विस्तृत वर्णन नहीं है, लेकिन हिन्दू धर्म में पत्नी के कर्तव्य का महत्वपूर्ण स्थान है। पत्नी के कर्तव्य के बारे में व्यापक रूप से सामान्य मान्यताएं हैं, जो धर्मशास्त्रों और पौराणिक ग्रंथों में प्रस्तुत की गई हैं।

गरुड़ पुराण के अनुसार, पत्नी के कर्तव्य में उसके पति का सम्मान करना, उसकी सेवा करना, उसकी संतान की परवरिश करना, उसके साथ सहयोग करना, परिवार के कार्यों में सहभागी बनना, और परिवार के धार्मिक और सामाजिक मामलों में भाग लेना शामिल हो सकते हैं।

हिन्दू धर्म में, पत्नी को पति की सहायक, साथी और जीवनसंगी के रूप में मान्यता दी जाती है। वह अपने पति की सुख-दुख में साथ देती है और उसके साथ परिवार के कार्यों को संचालित करती है। साथ ही, पत्नी को धार्मिक और नैतिक मूल्यों का पालन करने का भी कर्तव्य माना जाता है।

यह सुझाव दिया जाता है कि व्यक्ति पत्नी के कर्तव्यों को समझें, सम्मान करें और सहायता प्रदान करें। पत्नी के साथ साथीपन और प्रेम से रहने से संयुक्त जीवन में सुख और समृद्धि का अनुभव होता है।

१४-७ गरुड़ पुराण किसने लिखा है

गरुण पुराण का रचयिता वेदव्यास जी के नाम से जाना जाता है, जो महाभारत के रचयिता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। यह एक प्रमुख पौराणिक ग्रंथ है और पौराणिक साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। गरुण पुराण में विष्णु और गरुड़ जी के संवाद के माध्यम से ज्ञान की विविध पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है।

गरुण पुराण में उपस्थित ज्ञान, उपदेश और अनुभवों का अध्ययन करके व्यक्ति अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दिशा दे सकता है। इस पुराण का पाठ करने से मनुष्य को आध्यात्मिक संवेदना, उच्चतर आदर्शों की प्राप्ति, और सत्य के प्रति आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।

१४-८ गरुड़ पुराण के कितने अध्याय हैं

गरुड़ पुराण में कुल मिलाकर 19,000 श्लोक और 245 अध्याय हैं। यह पुराण बहुत विस्तृत है और विभिन्न विषयों पर विस्तारपूर्वक चर्चा करता है। इसमें धार्मिक तत्त्वों, देवताओं, मन्त्रों, योग, पूजा पद्धति, महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों के वर्णन, प्रायश्चित्त, ग्रहों के प्रभाव, स्वर्ग-नरक, राजनीति, आध्यात्मिकता, ज्योतिष, आदि पर चर्चा की गई है। यह पुराण महत्वपूर्ण धार्मिक ज्ञान और आध्यात्मिक संदेशों का संग्रह है।

१४-०९  गरुड़ पुराण के अनुसार मरने के बाद क्या होता है

गरुड़ पुराण में मरने के बाद के घटनाक्रम का विस्तृत वर्णन है। इस पुराण के अनुसार, मनुष्य जीवन की मृत्यु के पश्चात अपने कर्मों के अनुसार अगले जन्म में योनि और योनि के साथ नये शरीर को प्राप्त करता है। मृत्यु के बाद का जीवन और अनुभव व्यक्ति के कर्मों और धर्म के आधार पर निर्धारित होता है।

गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद की घटनाओं का विवरण, अध्यात्मिक सफर, प्रेत योनि में जीवन, यमलोक और नरक में प्राणी के अनुभव, प्रेतात्मा का यात्रा करना, अन्य लोकों में यात्रा, अंधकारग्रहण, पुनर्जन्म, प्रेतलोक, नारक और स्वर्ग के वर्णन शामिल होते हैं।

यह सभी घटनाएं मरने के पश्चात जीवात्मा के साथ होती हैं और इसका वर्णन गरुड़ पुराण में उपलब्ध है। इसमें आत्मा के अनुभव, प्रायश्चित्त, कर्मफल, और उसकी मुक्ति के बारे में भी चर्चा की जाती है।

महत्वपूर्ण है कि गरुड़ पुराण और अन्य पुराणों में इस विषय पर भिन्नाभिन्न विचार भी प्रकट हो सकते हैं, इसलिए यह विषय आपकी आध्यात्मिक जानकारी और धार्मिक अनुभव के आधार पर भिन्नता दिखा सकती है।

१५-ब्रह्मण्ड पुराण (Brahmanda Puran) 

ब्रह्माण्ड पुराण, पुराणों का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो हिन्दू धर्म की पौराणिक साहित्यिक परंपरा का अभिन्न अंग है। इसे महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा लिखा गया है और यह उनकी 18 महापुराणों में से एक है। यह पुराण अत्यंत विस्तृत है और ब्रह्माण्ड (ब्रह्मांड या विश्व) के सृष्टि, स्थिति और प्रलय के विषयों पर चर्चा करता है।

ब्रह्माण्ड पुराण में कुल मिलाकर 12,000 श्लोक और नवांश संख्या के अध्याय हैं। यह पुराण तीन भागों में विभाजित है: प्रक्रिया खंड, ब्रह्मा खंड और प्रजापति खंड।

प्रक्रिया खंड में सृष्टि के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है, जैसे सृष्टि का आदि और अंत, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, देवताओं, ग्रहों, नक्षत्रों और मानव जाति की उत्पत्ति।

ब्रह्मा खंड में मुख्य रूप से ब्रह्मा जी की महिमा, वेदों का महत्व, यज्ञों की विधि, धर्म, आदित्यों के वर्णन, मन्वन्तरों का वर्णन, आदि प्रकट होता है।

प्रजापति खंड में प्रजापतियों और मनुष्य जाति के विषय पर चर्चा की गई है। यहां मनुष्य के जन्म, विवाह, धर्म, वर्णाश्रम धर्म, योग, तीर्थयात्रा, प्रायश्चित्त, नरक और स्वर्ग के वर्णन, आदि की चर्चा की जाती है।

ब्रह्माण्ड पुराण उपनिषदों, गीता, संहिताएं और अन्य पौराणिक ग्रंथों के साथ मिलकर हिन्दू धर्म के विविध पहलुओं को समझने में मदद करता है। इसमें सृष्टि का विस्तृत वर्णन, ब्रह्मा, विष्णु, शिव और देवी दुर्गा के महत्वपूर्ण अवतारों का उल्लेख है।

यह पुराण विद्या, धर्म और आध्यात्मिकता के विषयों पर ज्ञान का संग्रह है और मनुष्य को उच्चतम आदर्शों की ओर प्रेरित करता है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने अस्तित्व की महत्वपूर्णता, जीवन के उद्देश्य, धार्मिक दायित्व, और आध्यात्मिक साधनों का मार्ग जानता है।

१६ वैष्णव पुराण (Vaishnava Puran)

वैष्णव पुराण वेदव्यास जी द्वारा लिखित वेदों के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है। यह पुराण विष्णु भगवान के महिमा, अवतार, लीलाएं, और उनके भक्तों के कथानुसार बहुत सारे विषयों पर चर्चा करता है। यह पुराण वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायों के लिए महत्वपूर्ण है और उनके आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान को बढ़ाने का कार्य करता है।

वैष्णव पुराण में विष्णु भगवान के अवतारों के विवरण, जैसे रामायण, कृष्ण लीला, नृसिंह और वामन अवतार, द्वापर युग में कालिंग देश के गोपियों के संग खेलने की कथा, और भगवान विष्णु की महिमा के बारे में बताया गया है। इसके अलावा, वैष्णव पुराण में धर्म, भक्ति, पूजा, व्रत, यज्ञ, तीर्थयात्रा, संस्कार, ज्योतिष विज्ञान, नरक और स्वर्ग के वर्णन, आदि के बारे में भी चर्चा की गई है।

वैष्णव पुराण में देवताओं, ऋषियों, मुनियों, राजाओं और धर्मिक व्यक्तियों की कथाएं और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं भी सम्मिलित हैं। इस पुराण के माध्यम से वैष्णव सम्प्रदाय की प्रमुख सिद्धांतों, भक्ति मार्ग की महत्वता, देवताओं के पूजन और वैष्णव संस्कृति की आदर्शों को समझा जाता है।

वैष्णव पुराण भारतीय साहित्य और धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है और भक्तों के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक मार्गदर्शन का स्रोत है। यह पुराण वैष्णव सम्प्रदाय की प्रमुख पुस्तकों में से एक है और भक्तिभावना, आदर्श जीवन, और वैष्णव धर्म की प्रशंसा करता है।

१७-ब्रह्मवैवर्त पुराण (Brahmavaivarta Puran)

ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदव्यास द्वारा लिखित महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है। इस पुराण में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के साथ संवाद द्वारा मनुष्य और विश्व के उत्पत्ति, विनाश, धर्म, आध्यात्मिकता, भक्ति, कर्म, वर्णाश्रम धर्म, योग, तीर्थयात्रा, मन्दिर पूजा, व्रत, जन्माष्टमी, गोवत्स द्वारा दान, आदि के विषयों पर चर्चा की गई है।

इस पुराण में भगवान कृष्ण और राधा के विवाह, राधाकृष्ण की लीलाएं, गोपियों की प्रेम कथाएं, वृंदावन और मथुरा के वर्णन, और भगवान कृष्ण के महिमा और अद्भुत लीलाओं का वर्णन है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में धार्मिकता, आध्यात्मिकता, भक्ति, नैतिकता और दान के महत्व को गहराई से समझाया गया है। इसके माध्यम से मनुष्य को उच्चतम आदर्शों की ओर प्रेरित किया जाता है और उसे धार्मिक और आध्यात्मिक साधनों का मार्ग ज्ञान प्राप्त होता है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण हिन्दू धर्म के विविध पहलुओं को समझने में मदद करता है और व्यापक रूप से ब्रह्मा, विष्णु, शिव, देवी और भगवान कृष्ण के महत्वपूर्ण विषयों पर ज्ञान प्रदान करता है। इस पुराण का अध्ययन भक्ति, आध्यात्मिक अनुभव, और धार्मिक ज्ञान में वृद्धि करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

१८-वायु पुराण (Vayu Puran)

वायु पुराण (Vayu Puran) वेदव्यास द्वारा लिखित हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है। इस पुराण में वायु देवता के माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु, शिव और अन्य देवताओं के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है।

यह पुराण धार्मिकता, आध्यात्मिकता, देवताओं की महिमा, व्रतों, तीर्थयात्रा, विवाह, आराधना प्रक्रियाएं, दान, यज्ञ और ज्योतिष विज्ञान के विषयों पर विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। इसके अंतर्गत विशेष रूप से वायु देवता की महिमा, पूजा, मंत्र और उपासना का वर्णन किया गया है।

वायु पुराण में मनुष्य के जीवन, नैतिकता, आध्यात्मिक आदर्श, संस्कृति, नरक और स्वर्ग जैसे विषयों पर भी चर्चा की गई है। इसके अंतर्गत विभिन्न धर्मों के मार्गदर्शन, मोक्ष के पथ, राजधर्म और समाज के नियमों का वर्णन भी मिलता है।

वायु पुराण के अध्ययन से धार्मिक ज्ञान, आध्यात्मिक अनुभव और उच्चतम मार्ग की प्राप्ति होती है। इस पुराण को पठने और सुनने से व्यक्ति में आध्यात्मिकता, शांति, धर्मिकता, और ईश्वर प्रेम का विकास होता है।

इन १८ पुराणों के अलावा ३० उप पुराण भी है जिसका विवरण निचे दिया गया है

ये उपपुराण भी समस्त पुराणों के जैसे ही महत्त्वपूर्ण हैं और संस्कृत साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं।

१-संबव पुराण - Sambhava Puran

संबव पुराण एक प्रमुख हिन्दू साहित्यिक कथा-संग्रह है जो हिन्दू धर्म की प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह पुराण भगवान शिव के विषय में है और शिव पुराणों की समूह में से एक है। यह पुराण चौथे युग के प्रारंभिक दौर में लिखा गया था और इसे विभिन्न संस्कृत रचयिताओं द्वारा संकलित किया गया है।

संबव पुराण में भगवान शिव के अनेक रूपों, महिमा और कथाओं का वर्णन किया गया है। यह पुराण मुख्य रूप से उत्पत्ति (संबव) और प्रलय (विनाश) के संबंध में बताता है। इसके अलावा, इसमें शिव भक्ति, शिवलिंग की महिमा, उपासना विधियाँ, तीर्थस्थलों का वर्णन, मंत्र, व्रत, महापुरुषों के चरित्र आदि का वर्णन भी है।

संबव पुराण में शिवलिंग की पूजा का विस्तृत वर्णन है और इसमें शिवलिंग पूजा के महत्वपूर्ण आचार्य और सूत्रों का उल्लेख किया गया है। यह पुराण शिव के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण और प्रमुख साहित्य माना जाता है।

संबव पुराण में शिव के अलावा पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, विष्णु, लक्ष्मी, सरस्वती, ब्रह्मा, सूर्य, चंद्रमा, यमराज, नारद, वायु और अन्य देवताओं के रूप में भी वर्णन है।

यह पुराण शिवलिंग पूजा, व्रत, उपासना, मंत्रों, महात्म्यों, दैवी और मानवी गुणों का उपयोग करके मनुष्य के जीवन में धार्मिकता, त्याग, सदाचार और सच्ची भक्ति की महत्ता को समझाता है।

यह पुराण मुख्य रूप से संबव के शिवलिंग महात्म्य का वर्णन करता है और भक्तों को शिव की पूजा, उपासना और अनुयायी बनने के लिए प्रेरित करता है।

यह हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण पुराण है जिसे शिव पुराणों की महत्ता के कारण बहुत मान्यता दी जाती है। यह पुराण आध्यात्मिक ज्ञान, धर्म और भक्ति के संबंध में व्याख्यान करता है और शिवभक्तों के बीच व्याप्त प्रसिद्ध है।

संबव पुराण में कुल मिलाकर 24,000 श्लोक और 12 अध्याय हैं। यह पुराण अपनी बड़ी मात्रा श्लोकों के कारण प्रसिद्ध है और इसका संग्रह भगवान शिव के विषय में विस्तृत ज्ञान देने के लिए किया गया है। इन श्लोकों में भगवान शिव, उनकी देवी पार्वती और अन्य देवताओं के विषय में कथाएं, महिमा और उपदेश शामिल हैं। 

इसमें 18,000 श्लोक होते हैं।

 

२- कुमारिका पुराण - Kumari Kanda Puran

कुमारिका पुराण एक प्रमुख हिन्दू पुराण है जो मां पार्वती (कुमारीका देवी) के विषय में है। यह पुराण विष्णु पुराणों की एक शाखा है और श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में महत्त्वपूर्ण मान्यता रखता है।

कुमारिका पुराण में मां पार्वती के बारे में अनेक कथाएं, महिमा, उपासना, तांत्रिक प्रयोग, मंत्रों और व्रतों का वर्णन है। इस पुराण में मां पार्वती को कुमारी रूप में पूजा जाता है और उनके साधकों को सौभाग्य, सुख, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया जाता है।

यह पुराण अध्यात्मिक ज्ञान, तांत्रिक साधनाओं, पूजा-अर्चना विधियों, महात्म्यों और उपासना से सम्बंधित विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। इसका पाठ विशेष रूप से नवरात्रि और दुर्गा पूजा के समय किया जाता है और भक्तों के बीच इसकी महिमा और महत्व को मान्यता दी जाती है।

कुमारिका पुराण का अध्ययन विशेष रूप से श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में धार्मिकता और भक्ति के संबंध में मान्यता रखने वाले लोगों के बीच प्रचलित है।कुमारिका पुराण की संख्या श्लोकों और अध्यायों के बारे में स्पष्टता नहीं है। कुछ संस्कृत मानवीय ग्रंथों में भी इस पुराण की विस्तारित संख्या का उल्लेख नहीं किया गया है। इसलिए, कुमारिका पुराण के श्लोकों और अध्यायों की निश्चित संख्या के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।

यह पुराण 17,000 श्लोकों से युक्त होता है।

 

३-नरसिंह पुराण - Narasimha Puran

नरसिंह पुराण एक प्रमुख हिन्दू पुराण है जो भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह के विषय में है। यह पुराण विष्णु पुराणों की एक शाखा है और नारायणीयं (Narayaniyam) के साथ महत्वपूर्ण संबंध रखता है।

नरसिंह पुराण में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के बारे में विस्तृत कथाएं, महिमा, उपासना, व्रत, मंत्र और तांत्रिक प्रयोगों का वर्णन है। इस पुराण में नरसिंह अवतार को उत्कृष्ट मान्यता दी जाती है और उनके भक्तों को सुरक्षा, सद्भाव, शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया जाता है।

इस पुराण में नरसिंह अवतार के विशेष चरित्र, दिव्य रूप, लीला, आराधना, मंत्रों का उपयोग, पूजा-अर्चना विधियां और नरसिंह भक्ति के महत्त्वपूर्ण तत्त्व विस्तार से वर्णित हैं। यह पुराण भक्तों के बीच नरसिंह अवतार के महिमा, शक्ति और भक्ति की महत्त्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत माना जाता है।

नरसिंह पुराण का अध्ययन विशेष रूप से विष्णु भक्ति, नरसिंह देवता की पूजा और उपासना के संबंध में किया जाता है। इस पुराण को पठने और सुनने से भक्त नरसिंह देवता की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं।नरसिंह पुराण में कुल मिलाकर लगभग 25,000 श्लोक और 78 अध्याय हैं। यह अंक आधारित संख्या है और इनकी पूरी निश्चितता के लिए इस पुराण का अध्ययन करना संबंधित होगा।

४-नन्दी पुराण - Nandi Puran

नंदी शिव का वाहन होते हैं। इस पुराण में शिव, पार्वती और नंदी की महिमा और उनके अनुयायियों को मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं, उसके बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें 8,000 श्लोक होते हैं।नन्दी पुराण एक प्रमुख हिंदू पुराण है जो भगवान शिव के विषय में है। इस पुराण में भगवान शिव, उनके अवतार, उपासना, मंत्र, तांत्रिक प्रयोग, पूजा-अर्चना, व्रत, महिमा और उनके महादेवी पार्वती के बारे में विस्तृत कथाएं हैं। यह पुराण शिव भक्तों के बीच बहुत महत्वपूर्ण है और उन्हें शिव देवता की पूजा, उपासना और साधना की मार्गदर्शन करता है। नन्दी पुराण का अध्ययन करने से भक्त शिव भावना, आध्यात्मिकता और आनंद को प्राप्त कर सकते हैं।

५-सूर्य पुराण 

सूर्य पुराण एक प्रमुख हिन्दू पुराण है जो भगवान सूर्य (सूर्य देवता) के विषय में है। इस पुराण में सूर्य देवता के अवतार, महिमा, व्रत, उपासना, मंत्र, ज्योतिष विज्ञान और सौर मन्त्र तंत्र के बारे में विस्तृत विवरण हैं। सूर्य पुराण का अध्ययन सूर्य देवता की पूजा, उपासना और ज्योतिष विज्ञान में रुचि रखने वाले लोगों के बीच प्रचलित है।

६-पराशर पुराण

पराशर पुराण भागवत सम्प्रदाय के आधार पर एक महत्त्वपूर्ण हिन्दू पुराण है। यह पुराण भगवान विष्णु के अवतार वामन के पुत्र पराशर ऋषि के मुख से कहानी के रूप में प्रस्तुत होता है। पराशर पुराण में धर्म, दर्शन, कर्म, वेद, ज्योतिष, जीवन मार्गदर्शन, व्रत, उपासना, मन्त्र, तापस्या, मोक्ष और विभिन्न विषयों के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान किया जाता है। इसका अध्ययन आध्यात्मिक ज्ञान और वैदिक धर्म की समझ को प्रबल करने के लिए किया जाता है।

७-वैयाकरण पुराण: 

वैयाकरण पुराण एक अत्यंत अद्भुत पुराण है जो व्याकरण (वाक्य रचना) के विषय में है। यह पुराण वेदों की व्याकरण विधि, भाषा के नियम, शब्द रचना, वाक्य संरचना, व्याकरणीय परिभाषाएं और व्याकरण सिद्धान्तों का वर्णन करता है। यह पुराण भाषा और व्याकरण के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है और वाक्य रचना, व्याकरण सिद्धान्त और भाषा नियमों की समझ को विस्तारित करने में मदद करता है। इस पुराण में कुल 10000 श्लोक होते हैं।

८-वरुण पुराण: 

वरुण पुराण हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पुराण है जो वरुण देवता के विषय में है। इस पुराण में वरुण देवता की महिमा, उपासना, व्रत, मंत्र, तांत्रिक प्रयोग, धर्म, न्याय, राजनीति, सृष्टि, प्रलय, जीवन मार्गदर्शन और अन्य विषयों पर विस्तृत चर्चा होती है। वरुण पुराण का अध्ययन वरुण देवता की उपासना और धार्मिकता के प्रशंसार्थी लोगों के बीच लोकप्रिय है। 

इस पुराण में कुल 24,000 श्लोक होते हैं।

९-विश्वकर्मा पुराण: 

विश्वकर्मा पुराण हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुराण है जो विश्वकर्मा देवता के विषय में है। यह पुराण विश्वकर्मा देवता के जीवन, कार्यक्षेत्र, महिमा, उपासना, मंत्र, तांत्रिक प्रयोग, स्थापत्य कला, शिल्पकला, वस्तुनिर्माण, गृहनिर्माण, यन्त्र-मशीन, शिल्प शास्त्र और अन्य विषयों पर विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। विश्वकर्मा पुराण का अध्ययन शिल्पकला, वास्तुनिर्माण, यन्त्र-मशीन और विश्वकर्मा देवता की पूजा और उपासना में रुचि रखने वाले लोगों के बीच प्रसिद्ध है। इस पुराण में कुल 24,000 श्लोक होते हैं।

१०-उपमन्यु पुराण: 

उपमन्यु पुराण हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पुराण है जो उपमन्यु ऋषि के जीवन और उपदेश पर केंद्रित है। इस पुराण में उपमन्यु ऋषि के जीवन की कथाएं, उनके शिष्य और उपदेश, धर्म, नैतिकता, योग, ध्यान, अध्यात्म और मोक्ष के विषय में विस्तृत चर्चा होती है। उपमन्यु पुराण का अध्ययन आध्यात्मिक ज्ञान और धार्मिक जीवन में समृद्धि के लिए किया जाता है।यह पुराण दो खंडों में विभाजित है और इसमें कुल 4000 श्लोक हैं।

११ -कलिका पुराण: 

कलिका पुराण हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पुराण है जो मां काली के विषय में है। इस पुराण में मां काली के अवतार, महिमा, उपासना, मंत्र, तांत्रिक प्रयोग, व्रत, पूजा-अर्चना, तीर्थस्थान, साधना, तपस्या, मोक्ष और अन्य विषयों पर विस्तृत ज्ञान प्रदान किया जाता है। कलिका पुराण का अध्ययन मां काली की उपासना और तांत्रिक साधना में रुचि रखने वाले लोगों के बीच प्रचलित है।इस पुराण में कुल 98,000 श्लोक हैं और यह दो खंडों में विभाजित है।

१२-ज्ञानार्णव पुराण:

 ज्ञानार्णव पुराण हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पुराण है जो आध्यात्मिक ज्ञान और साधना पर केंद्रित है। इस पुराण में आध्यात्मिक ज्ञान, ध्यान, योग, मन्त्र, तांत्रिक प्रयोग, गुरु-शिष्य परंपरा, धर्म, नैतिकता, मोक्ष और अन्य विषयों पर विस्तृत चर्चा होती है। ज्ञानार्णव पुराण का अध्ययन आध्यात्मिक साधना और मोक्ष के प्रशंसार्थी लोगों के बीच प्रसिद्ध है।इस पुराण में कुल 12,000 श्लोक होते हैं।

१३-अद्भुत रामायण - Adbhuta Ramayan

अद्भुत रामायण (Adbhuta Ramayan) एक प्राचीन हिंदी ग्रंथ है जो रामायण की एक अलग रचना है। यह ग्रंथ रामायण की अद्भुत और आध्यात्मिक घटनाओं पर केंद्रित है। इसमें राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान जैसे प्रमुख चरित्रों की कथाएं दी गई हैं, लेकिन यह कथाएं परंपरागत रामायण से अलग हैं।

अद्भुत रामायण में अनेक अद्भुत और रहस्यमय घटनाएं दर्शाई गई हैं, जो रामायण के मार्ग से अलग होती हैं। यह ग्रंथ विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक आदर्शों को समझाने का प्रयास करता है।

अद्भुत रामायण के रचयिता के बारे में बहुत कम जानकारी है और इसका संग्रह कई संस्कृत मस्तिष्कों के योगदान से हुआ है। यह ग्रंथ हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण अंश के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है।

कृपया ध्यान दें कि अद्भुत रामायण रामायण की प्रमुख रचनाओं में से एक नहीं है और इसकी विशेषता और महत्वपूर्णता संदर्भ के अनुसार बदल सकती है।इस पुराण में कुल 8,000 श्लोक होते हैं।

१४-अद्भुत महाभारत - Adbhuta Mahabharata

अद्भुत महाभारत (Adbhuta Mahabharata) एक प्राचीन हिंदी ग्रंथ है जो महाभारत की एक विशेष रचना है। इस ग्रंथ में महाभारत की कथा को अद्भुत और आश्चर्यजनक घटनाओं पर केंद्रित किया गया है।

अद्भुत महाभारत में महाभारत की प्रमुख कथाएं दी गई हैं, लेकिन इन कथाओं का दृष्टिकोण और प्रस्तुतिकरण विभिन्न होता है। इस ग्रंथ में अनेक अद्भुत और रहस्यमय घटनाएं वर्णित हैं, जो महाभारत के मार्ग से अलग होती हैं।

अद्भुत महाभारत धार्मिक और आध्यात्मिक आदर्शों को समझाने का प्रयास करता है और उसमें भारतीय संस्कृति और दर्शन के मूल्यों का प्रतिपादन किया गया है। इस ग्रंथ का महत्वपूर्ण संग्रह भी कई संस्कृत मस्तिष्कों के योगदान से हुआ है।

यह ग्रंथ हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, लेकिन कृपया ध्यान दें कि इसकी स्थिति और महत्वपूर्णता संदर्भ के अनुसार बदल सकती है और यह महाभारत की प्रमुख रचनाओं में से एक नहीं है। इस पुराण में कुल 1,900 श्लोक होते हैं।

 

१५ अगस्त्य संहिता - Agastya Samhita

 
अगस्त्य संहिता एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है जो वैदिक ज्योतिष, गणित और वैद्यकीय विज्ञान पर आधारित है। इस संहिता का विषय विस्तार से बताया गया है, जिसमें चंद्रमा, सूर्य, नक्षत्र और ग्रहों के बारे में विस्तृत ज्ञान, ज्योतिषीय योग्यता, औषधि निर्माण, और उपचारों के विविध तत्वों पर चर्चा होती है। यह ग्रंथ विभिन्न विज्ञानों पर विशेष ध्यान देता है और यह माना जाता है कि अगस्त्य महर्षि द्वारा रचित है।इसमें कुल 14,000 श्लोक होते हैं।

१६- अहिर्बुध्न्य संहिता - Ahirbudhnya Samhita

 
अहिर्बुध्न्य संहिता भी एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जिसे अहिरबुध्न्य संहिता के नाम से भी जाना जाता है। यह ग्रंथ विष्णु भक्ति और तंत्रिक साधनाओं पर आधारित है। इसमें भगवान विष्णु, माया, तांत्रिक उपासना और साधनाओं के बारे में बताया गया है। यह ग्रंथ भारतीय तंत्र शास्त्र का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है और विशेष रूप से वैष्णव सम्प्रदायों में प्रचलित है।इस संहिता में कुल 8,000 श्लोक होते हैं।इस संहिता में कुल 8,000 श्लोक होते हैं।

१७- अमरकोष - Amarakosha

 
अमरकोष एक प्राचीन संस्कृत शब्दकोश है जो कोश की एक प्रमुख पुस्तक है। इसे अमरसिंह ने लिखा है और इसे एक प्रमुख संस्कृत शब्दकोश के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में उपयोग होने वाले शब्दों को संकलित करता है और उनके अर्थ, पर्यायवाची, विरुद्धार्थी, निष्कर्षी और उपयोग को स्पष्ट करता है। इस ग्रंथ का महत्वपूर्ण स्थान विद्यालयों, पंडितों और संस्कृत भाषा के अध्ययन में होता है, और यह संस्कृत साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।इस पुस्तक में 10,000 से अधिक संस्कृत शब्दों का संग्रह है।

१८ उत्तर रामायण (Uttara Ramayana):

उत्तर रामायण एक प्राचीन हिंदी ग्रंथ है जो महर्षि वाल्मीकि के आदर्श रामायण के बाद की कथा को वर्णित करता है। इस ग्रंथ में भगवान राम के अयोध्या पर वापस आने के बाद के घटनाक्रम और उनके पुत्रों के जीवन का वर्णन होता है। इसमें भगवान राम और सीता के पुत्रों, लव और कुश, की कथा शामिल होती है। यह ग्रंथ उत्तर भारतीय काव्य परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

१९ उपासना कल्प (Upasana Kalpa):

उपासना कल्प एक संस्कृत ग्रंथ है जो धार्मिक उपासना और पूजा विधियों को संकलित करता है। यह ग्रंथ विभिन्न देवताओं की उपासना, मंत्रों, व्रतों, पूजा पद्धतियों और धार्मिक आचरणों के विवरण को समेटता है। उपासना कल्प आध्यात्मिक साधना और भक्ति के आधारभूत सिद्धांतों को समझाने में मदद करता है। इस ग्रंथ में कुल 232 श्लोक हैं।

२० कृष्णजन्म खण्ड (Krishna Janma Khanda):

कृष्णजन्म खण्ड एक प्राचीन हिंदी ग्रंथ है जो भगवान कृष्ण के जन्म के घटनाक्रमों को वर्णित करता है। यह ग्रंथ भागवत पुराण के एक अध्याय के रूप में भी जाना जाता है। कृष्णजन्म खण्ड में भगवान कृष्ण के अनुष्ठान, बाल लीला, गोपियों के संग रासलीला, और उनके अन्य लीलाओं का वर्णन होता है। यह ग्रंथ कृष्ण भक्ति और भगवान कृष्ण की महिमा को समझाने में महत्वपूर्ण रूप से सम्मिलित है।इस ग्रंथ में कुल 94 अध्याय और 5,369 श्लोक हैं।

२१ तीर्थ कल्प (Tirtha Kalpa):

तीर्थ कल्प एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है जो भारतीय धार्मिक तीर्थस्थलों के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। इस ग्रंथ में भारतवर्ष में स्थित तीर्थस्थलों का वर्णन, उनका महत्व, पौराणिक कथाएं और उनकी मान्यता पर चर्चा होती है। यह ग्रंथ तीर्थयात्रा और धार्मिक पुनर्जन्म के संबंध में मार्गदर्शन प्रदान करता है।इस ग्रंथ में कुल 42 अध्याय और 1,260 श्लोक हैं

२२ दत्तात्रेय संहिता (Dattatreya Samhita):

दत्तात्रेय संहिता एक प्रमुख संस्कृत ग्रंथ है जो महर्षि दत्तात्रेय के शिष्यों के माध्यम से संकलित हुआ है। यह ग्रंथ मुख्य रूप से धार्मिक उपासना, आध्यात्मिक साधना और ज्ञान के विषयों पर चर्चा करता है। दत्तात्रेय संहिता में मंत्र, उपासना विधियाँ, तपस्या के विधान, योग, ज्ञान, और धर्म के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ संस्कृत आध्यात्मिक साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

२३ देवी पुराण (Devi Purana):

देवी पुराण एक प्रमुख पुराण है जो देवी दुर्गा, माता पार्वती, और अन्य देवी देवताओं के बारे में विस्तृत कथाएं और ज्ञान प्रदान करता है। इस ग्रंथ में देवी की महिमा, उपासना, तांत्रिक कार्य, देवी माहात्म्य, और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है। देवी पुराण भक्ति और देवी उपासना के प्रमुख स्रोतों में से एक है।

२४ नागराज पुराण (Nagaraja Purana):

नागराज पुराण एक प्राचीन संस्कृत पुराण है जो नागराज (सर्पराज) वासुकि के बारे में कथाएं, महिमा, और उपासना को वर्णित करता है। इस पुराण में नागराज के मार्गदर्शन में नाग पूजा, व्रत, और उपासना की विधियों का वर्णन होता है। नागराज पुराण भारतीय नाग संस्कृति और नाग उपासना के प्रमुख स्रोतों में से एक है।

२५ नीलमत पुराण (Nilamata Purana):

नीलमत पुराण एक प्रमुख संस्कृत पुराण है जो कश्मीरी संस्कृति, धर्म, और उपासना को वर्णित करता है। इस पुराण में कश्मीर के प्रमुख देवताओं, तीर्थस्थलों, मंदिरों, और उनकी पूजा प्रथा का वर्णन होता है। नीलमत पुराण कश्मीरी संस्कृति और परंपराओं के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

२६ प्रत्यभिज्ञ हृदय (Pratyabhijna Hridaya):

प्रत्यभिज्ञ हृदय एक संस्कृत ग्रंथ है जो आचार्य उत्पलदेव द्वारा लिखा गया है। यह ग्रंथ कश्मीर शैव सिद्धांत के मूल सिद्धांतों का वर्णन करता है। प्रत्यभिज्ञ हृदय वेदान्त और तांत्रिक तत्त्वों को संगठित करता है और आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस ग्रंथ में उत्पलदेव के द्वारा विस्तारपूर्वक विवेचित सिद्धांतों का प्रस्तुतिकरण किया गया है।

२७ भविष्योत्तर पुराण (Bhavishya Purana):

भविष्योत्तर पुराण एक प्रमुख पुराण है जो भविष्य के बारे में विस्तृत कथाएं, पूर्वजन्म कथाएं, धर्म, और उपासना का वर्णन करता है। यह पुराण विभिन्न धर्मिक तत्त्वों, देवताओं, राज्यों, तीर्थस्थलों, और पुरुषार्थों के संबंध में भविष्यवाणी करता है। भविष्योत्तर पुराण धर्म, इतिहास, और भविष्य के विषयों पर ज्ञान प्रदान करता है।

२८ महापुराण (Mahapurana):

महापुराण भारतीय संस्कृति में प्रमुख रूप से मान्यता प्राप्त करने वाले 18 पुराणों में से एक है। इसमें भगवान विष्णु और उनके अवतारों, विष्णु के भक्तों, धर्म, दान, व्रत, और धार्मिक कर्मों का वर्णन किया गया है। महापुराण भारतीय धर्म और साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे बड़े ही सम्मान और महत्त्व से देखा जाता है।

२९ योगवासिष्ठ (Yoga Vasistha):

योगवासिष्ठ एक प्रमुख संस्कृत ग्रंथ है जो आचार्य वाल्मीकि द्वारा लिखा गया है। यह ग्रंथ रामायण के बाद की कथा है और विवेक मार्ग के विषय में विस्तृत चर्चा करता है। योगवासिष्ठ में आध्यात्मिक ज्ञान, वैराग्य, मोक्ष की प्राप्ति, और उच्चतम ज्ञान के विषय में विस्तारपूर्वक विचार किए जाते हैं। यह ग्रंथ ध्यान, धारणा, और योग के माध्यम से मुक्ति की प्राप्ति के मार्ग का वर्णन करता है।

३० तन्त्रसार पुराण (Tantrasara Purana)

तन्त्रसार पुराण (Tantrasara Purana) एक प्रमुख हिन्दू धर्मग्रंथ है, जो तंत्र शास्त्र (Tantra Shastra) की महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। यह पुराण तंत्र शास्त्र के सिद्धांतों, साधनाओं और उपासना के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है।

तन्त्रसार पुराण का लेखक और रचयिता विश्वनाथादीक्षित (Vishwanatha Dikshita) हैं, जो कि 14वीं या 15वीं शताब्दी के योग्य हैं। इस पुराण में तंत्रिक उपासना की साधनाओं, मन्त्रों, यंत्रों, विधियों और विधानों का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ तंत्र संबंधी ज्ञान का विस्तारपूर्ण स्रोत माना जाता है और तंत्र साधना को समझने और अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

तन्त्रसार पुराण के भागों में मन्त्र-यंत्र साधना, व्रत-उपवास, पूजा-अर्चना, दीक्षा-दिव्योपदेश, सिद्धि-प्राप्ति, वशीकरण, भूत-प्रेत विद्या, नाग-देवता साधना, मोहनी-मंत्र साधना, स्त्री-साधना आदि के विषयों पर चर्चा की गई है। इस पुराण में तंत्र के सिद्धांत, साधना की विधियाँ, मंत्रों का उच्चारण और अनुष्ठान, पूजा के नियम, व्रत और उपवास, ध्यान-योग, पाठ-जाप आदि की विधियाँ बताई गई हैं।

तन्त्रसार पुराण के अतिरिक्त, इसमें निश्चय-प्रकाश, शिव-रहस्य, दुर्गा-रहस्य, काली-रहस्य, ब्रह्म-रहस्य, नारद-प्रकाश, संहिता-रहस्य, अष्टांग-हृदय, भैरव-रहस्य, दत्त-रहस्य, कपाली-रहस्य, त्रिपुरा-रहस्य आदि ग्रंथों का संकलन भी किया गया है।

तन्त्रसार पुराण एक प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो तंत्र शास्त्र के आध्यात्मिक और आचार्य परंपरा को संजोने का कार्य करता है। इस पुराण का अध्ययन तंत्र साधना की रूपरेखा और सिद्धांतों के प्रति रुचि रखने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।इस पुराण में कुल 6,000 श्लोक होते हैं।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने