Baba Baidyanath Dham Complete Introduction बाबा बैद्यनाथ धाम



बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham) मंदिर, जिसे देवघर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय धार्मिक स्थलों में से एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर झारखंड राज्य के देवघर नगर में स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है। बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर देवघर भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण संकेत है और लाखों शिव भक्तों के लिए पवित्र तीर्थस्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
इस ब्लॉग में, हम बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham) मंदिर देवघर के महत्व, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, पौराणिक संबंध और उसके विशेषताओं को प्रमुख रूप से विचार करेंगे। हम मंदिर के निर्माण के पीछे की कथाएं और महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के बारे में भी बात करेंगे। इसके अलावा, हम आपको मंदिर की मरम्मत और वास्तुकला के अद्भुत उदाहरणों के बारे में भी जानकारी प्रदान करेंगे।इस ब्लॉग के माध्यम से, हम पाठकों को बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham) मंदिर देवघर के विस्तृत ज्ञान के साथ-साथ इसके महत्वपूर्ण स्थानों और धार्मिक महत्व के बारे में जागरूक करने का प्रयास करेंगे। यह अद्वितीय धार्मिक स्थल भक्तों के लिए एक आदर्श स्थान है जहां उन्हें आत्मिक संबंध को स्थापित करने और आध्यात्मिकता के मार्ग पर आगे बढ़ने का अवसर मिलता है। बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर (Baba Baidyanath Dham) देवघर एक ऐसा स्थान है जहां धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव एक साथ मिलते हैं और मन, शरीर और आत्मा के संगम की अनुभूति होती है।
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Baba Baidyanath Dham Complete Introduction.बाबा बैद्यनाथ धाम

बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham), झारखंड राज्य के देवघर नगर में स्थित है और यह भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इस मंदिर को बाबाधाम भी कहा जाता है। बैद्यनाथ धाम को बाबाधाम धाम कहा जाता है क्योंकि इसमें महादेव के एक विशेष शिवलिंग की मूर्ति स्थापित है। यह शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे सर्वाधिक महिमामंडित माना जाता है।

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बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham), दक्षिणपूर्वी भारत का एकमात्र ज्योतिर्लिंग धाम है और यह शक्ति पीठ भी है। इस स्थान पर माता सती का हृदय गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ या हार्द पीठ के नाम से भी जाना जाता है। बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham), 'देवघर' के पुण्यभूमि में स्थित है और यहां देवाधिदेव महादेव के साथ माता पार्वती की हृदय प्रदेश की मूर्ति स्थापित है। इसलिए इसे एक दिव्य संगम के रूप में माना जाता है। बैद्यनाथ धाम के शिवलिंग को 'कामना लिंग' के नाम से भी जाना जाता है। यह मान्यता है कि भगवान शिव यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने शिव को वर रूप में प्राप्त करने के लिए इसी शिवलिंग की पूजा की थी, और इसलिए यह शिवलिंग उन्हें अत्यंत प्रिय है। इसलिए लोग इस मंदिर में शिवलिंग की पूजा करके अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की कामना करते हैं।

पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि रावण ने महादेव को अपने साथ लंका चलने के लिए प्रसन्न करने के लिए अपने आत्म लिंग को दान में दे दिया। शर्त यह थी कि लिंग को धरती पर कहीं रखा जाएगा तो वहीं पर शिवलिंग स्थापित हो जाएगा। माता पार्वती को यह बात पसंद नहीं आई और इसके चलते देवताओं को चिंता हुई। इसलिए वे माँ गंगा को आह्वान करने का निर्णय लिया और उन्होंने रावण के जलपात्र में प्रवेश किया। जब रावण ने उस जल को पिया, तो उसे लघुशंका की तीव्र इच्छा हुई और उसे लंका जाने की जरूरत महसूस हुई। वह एक स्थान पर रुक गया जिसे "हरला जोरी" नामक स्थान कहा जाता है, और वहीं पर भगवान विष्णु ने आत्म लिंग को थामकर निवृत्त हो गए। जब उनकी आने में देर हुई, तो चरवाहे ने शिवलिंग को पृथ्वी पर रख दिया और तब से यहां पर वही स्थापित हो गया।

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शिव के आदेश पर, रावण ने अपने क्रोध में एक पेड़ को गिराया, जिससे एक स्वयंभू लिंग प्रकट हुआ, जिसे "हरितकिनाथ" के नाम से जाना जाता है और यह आज भी हरला जोरी में स्थित है। बाद में, कालांतर में भगवान शिव के आदेश से बैजु नामक ग्वाले ने इसे वर्तमान बैद्यनाथ धाम में स्थापित किया।बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham) मंदिर का नाम लेने से जुड़े कई तथ्य हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में चंद्रकांत मणि स्थित है, जिससे लगातार जल स्रावित होता है और वह जल लिंग विग्रह पर गिरता है। बैद्यनाथधाम में गिरने वाला जल चरणामृत के रूप में मान्यता है कि लोग जब इसे ग्रहण करते हैं, तो वह उन्हें किसी भी रोग से मुक्ति प्रदान करता है।

बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham) मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके शिखर पर त्रिशूल की जगह 'पंचशूल' होता है। यह पंचशूल सुरक्षा कवच के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव को पंचशूल के दर्शन ही प्रसन्न कर देते हैं।

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धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शंकर ने अपने प्रिय शिष्य शुक्राचार्य को पंचवक्त्रम की विधि बताई थी, जिससे फिर लंकापति रावण ने इस विद्या को सीखा था। पंचशूल अजेय शक्ति प्रदान करता है। रावण ने उसी पंचशूल को इस मंदिर पर स्थापित किया था, जिससे इस मंदिर को कोई क्षति नहीं पहुंचा सकती है।

धार्मिक परंपरा में 'त्रिशूल' को भगवान का हथियार माना जाता है, लेकिन इस मंदिर में पंचशूल स्थापित है, जिसे सुरक्षा कवच के रूप में मान्यता दी जाती है। भगवान भोलेनाथ को प्रिय मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' पंचाक्षर होता है और उन्हें रुद्र रूप में पंचमुखी माना जाता है।

सभी ज्योतिर्पीठों के मंदिरों के शीर्ष पर 'त्रिशूल' होता है, लेकिन बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham) के मंदिर में ही पंचशूल स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि पंचशूल द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कवच के कारण ही इस मंदिर पर आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का कोई असर नहीं हुआ  है।

बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham)  मंदिर का इतिहास और महत्व अत्यंत प्राचीन हैं और यहां विशाल संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा भक्ति की जाती है। यहां के मंदिर का निर्माण वैदिक काल में हुआ था और इसे अपनी धार्मिकता, सामाजिक महत्व और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए प्रसिद्ध किया जाता है। इसके आसपास के क्षेत्र में अन्य मंदिरों, कुंडों और तीर्थस्थलों की भी प्रमुखता है।

ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ धाम का दर्शन करने के लिए लोग विभिन्न भागों से यहां यात्रा करते हैं और शिवरात्रि के दिन यहां भक्तों की भीड़ बहुत अधिक होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बैद्यनाथ धाम का दर्शन करने से भक्तों को मुक्ति और सुख की प्राप्ति होती है।

बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham)मंदिर के परिसर में अन्य भी 20 मंदिर स्थित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों के नाम निम्नलिखित हैं:

 

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बाबा बैद्यनाथ धाम बैद्यनाथ मंदिर ज्योतिर्लिंग (Baba Baidyanath Dham is the Baidyanath Temple Jyotirlinga).

यह मंदिर अत्यंत प्रमुख है और इसे ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यहां पर भगवान शिव की पूजा की जाती है।

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शक्ति पीठ माँ पार्वती मंदिर (Shakti Peeth Maa Parvati Mandir)


यह मंदिर बाबा बैद्यनाथ मंदिर के प्रमुख स्थानों में से एक है और इसे माँ पार्वती की प्रतिष्ठा के लिए प्रस्थान किया जाता है। यहां पूजा-अर्चना और आरती की विशेष प्रक्रियाएं होती हैं।

काल भैरव मंदिर (Kaal Bhairav Mandir).

यह मंदिर भगवान काल भैरव को समर्पित है। भगवान काल भैरव को शिव का एक रूप माना जाता है और यहां भक्तों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है।

भैरवनाथ मंदिर(Bhairavnath Mandir).

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और भगवान भैरव का प्रमुख मंदिर है।

कामख्या मंदिर (Kamakhya Mandir).

यह मंदिर माँ कामाख्या को समर्पित है, जो शक्ति की देवी मानी जाती है। यह मंदिर तांत्रिक और तांत्रिक पूजा पद्धतियों के लिए प्रसिद्ध है।

हनुमान मंदिर (Hanuman Mandir).

यह मंदिर हनुमानजी को समर्पित है। भक्तों द्वारा भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना और आरती की जाती है।

सूर्य मंदिर (Surya Mandir).

यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। यहां सूर्य देवता की पूजा-अर्चना की जाती है और सूर्यास्त के समय आरती भी आयोजित की जाती है।

नवग्रह मंदिर(Navagraha Mandir).

यह मंदिर नवग्रहों (नवग्रहों की देवताओं) को समर्पित है। यहां नवग्रहों की शांति और कृपा के लिए पूजा की जाती है।

गणेश मंदिर(Ganesh Mandir).

यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है। गणेश चतुर्थी और अन्य विशेष पर्वों पर यहां भक्तों द्वारा आरती और पूजा की जाती है।
 

नाग मंदिर (Nag Mandir).

यह मंदिर सर्प देवता को समर्पित है। भक्तों द्वारा सर्प देवता की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें मिठाई और दूध की चढ़ावटी जाती है।

काली मंदिर (Kali Mandir).

यह मंदिर माँ काली को समर्पित है। भक्तों द्वारा माँ काली की पूजा-अर्चना की जाती है और विशेष पर्वों पर यहां भक्तों द्वारा आरती की जाती है।

राधा कृष्ण मंदिर (Radha Krishna Mandir).

यह मंदिर श्री राधा-कृष्ण को समर्पित है। यहां भक्तों द्वारा राधा-कृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें फूलों की चढ़ावटी जाती है।

संतोषी माता मंदिर (Santoshi Mata Mandir).

यह मंदिर संतोषी माता को समर्पित है। संतोषी माता की विशेष पूजा-अर्चना और व्रत के दौरान यहां भक्तों द्वारा मिठाई और प्रसाद की चढ़ावटी जाती है।

जय माता दी मंदिर (Jai Mata Di Mandir).

 यह मंदिर माता वैष्णो देवी को समर्पित है। भक्तों द्वारा माता वैष्णो देवी की पूजा-अर्चना की जाती है और माता के दर्शन के लिए यहां विशेष यात्राएं आयोजित की जाती हैं।

बृंदावनेश्वर मंदिर(Brindavaneswar Mandir).

यह मंदिर श्री कृष्ण को समर्पित है और यहां भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर के पास श्रद्धालुओं के लिए विशेष धार्मिक आवास भी है।

नरसिंह मंदिर(Narasimha Mandir).

यह मंदिर भगवान नरसिंह को समर्पित है। यहां भक्तों द्वारा भगवान नरसिंह की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें फूलों की चढ़ावटी जाती है।

जगदम्बा मंदिर (Jagadamba Mandir).

यह मंदिर माता जगदम्बा को समर्पित है। भक्तों द्वारा माता जगदम्बा की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें फूलों की चढ़ावटी जाती है।

राम-सीता मंदिर:

 यह मंदिर भगवान राम और सीता को समर्पित है। भक्तों द्वारा भगवान राम और माता सीता की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें फूलों की चढ़ावटी जाती है।

गौरीशंकर मंदिर(Ram-Sita Mandir).

यह मंदिर भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है। यहां भक्तों द्वारा भगवान शिव और पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें फूलों की चढ़ावटी जाती है।

गोपीनाथ मंदिर(Gopinath Mandir).

यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यहां भक्तों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें फूलों की चढ़ावटी जाती है।

यहां ऊपर उल्लेखित मंदिरों में से कुछ हैं, लेकिन बाबा बैद्यनाथ मंदिर के परिसर में अन्य भी छोटे-बड़े मंदिर हो सकते हैं। इन मंदिरों में आप धार्मिक आदार्शों को समझने और धार्मिक आनंद लेने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं।

बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर का इतिहास (The history of Baba Baidyanath Dham Temple)

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने, सदावसन्तं गिरिजासमेतं ।
सुरासुराराधित्पाद्य्पद्मं श्री बैद्यनाथं तमहं नमामि ।।

बैद्यनाथधाम झारखंड राज्य के देवघर जिला मुख्यालय में स्थित है। यह एक विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो पुरातन काल से ही अत्यंत रमणीय और पवित्र माना जाता है। इसे "शक्ति पीठ" के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस स्थान पर माँ पार्वती के हृदय से गिरे थे। बैद्यनाथधाम ज्योतिर्लिंगों की पांचवीं संख्या में स्थान पाता है।

 

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इस मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसे देशभर में एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर को अपने ऐतिहासिक महत्व, पौराणिक संबंध और सांस्कृतिक महानता के लिए प्रसिद्धता प्राप्त है।

वास्तव में, बैद्यनाथधाम मंदिर के साथ कई ऐसी कथाएं जुड़ी हुई हैं जो इसके महत्व को प्रमाणित करती हैं। ऐतिहासिक रूप से, गुप्त वंश के अंतिम राजा आदित्यसेन गुप्त के शासन काल में 8वीं शताब्दी ईसा से मंदिर का उल्लेख मिलता है। मुग़लकाल के दौरान, अम्बर के राजा मान सिंह के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने यहां एक तालाब बनवाया था, जिसे मानसरोवर के नाम से जाना जाता है। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और यह एक पिरामिड की तरह एक पत्थर की संरचना है, जिसकी ऊँचाई 72 फीट है। इसके ऊपर तीन सोने के बर्तन स्थापित हैं, साथ ही एक पंचशूल (त्रिशूल के आकार में पांच चाकू) भी है। यहां एक आठ पंखुड़ीयों वाला कमल भी है, जिसे "चंद्रकांता मणि" कहा जाता है।

१.१ बाबा बैद्यनाथ धामप्राचीन कथाओं और उत्पत्ति: (Baba Baidyanath DhamAncient Legends and Origin:)

बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर की उत्पत्ति और प्राचीनता के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में राजा पूर्णमास्यु के द्वारा हुआ था। दूसरी कथा के अनुसार, मंदिर की नींव महर्षि व्यास द्वारा रखी गई थी। तीसरी कथा के अनुसार, मंदिर का निर्माण महर्षि गौतम द्वारा किया गया था। इन कथाओं के अलावा, मंदिर का निर्माण महाभारत काल में भी हुआ था और इसे पांडवों के द्वारा बनवाया गया था।

१.२ रावण के साथ संबंधित पौराणिक संबंध: (Puranic Association with Ravana:)

बैजनाथ धाम में स्थापित मान्यता के अनुसार, वहां पर शिवलिंग को 'कामना लिंग' भी कहा जाता है। जिसक वर्णन  शिव पुराण में भी  है।  कथा के अनुसार, प्राचीन काल में लंकापति ने  बहुत कठिन तपस्या की ताकि वे भगवान का प्रसन्न कर सकें।

 

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रावण की तपस्या से भगवान शिव खुश हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है। इस समाचार ने सभी देवताओं को परेशान कर दिया और वे ब्रह्माजी के पास गए और इस विषय में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यदि भगवान शिव रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा? ब्रह्माजी ने यह देखते हुए भगवान शिव को समझाया और उनसे वरदान नहीं  देने को कहा। लेकिन भगवान ने उनकी बात नहीं मानी

शिवजी ने रावण से कहा कि यदि वह उन्हें लंका ले जाना चाहते हैं तो एक शर्त माननी होगी। उन्होंने कहा कि जहां भी उन्हें भूमि स्पर्श होगा, वहीं पर उन्हें स्थापित होना होगा। रावण ने इस शर्त को स्वीकार किया। भगवान शिव ने अपना रूप धारण कर एक शिवलिंग में परिवर्तित हो गए । जब रावण इस शिवलिंग को लेकर जा रहे थे 

 

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उस समय उसे लघुशंका लगी । जिसके कारन रावण अत्यंत व्याकुल हो गया तत्पश्चात रावण ने उस शिवलिंग को वह मौजूद एक चरवाहे को पकड़ने के लिए दे दिया जो की भगवान विष्णु थे उस चरवाहे ने रावण से कहा की मैं इस शिव लिंग को ज्यादा देर नहीं पकड़ सकता यदि उसने २ छन से जयदा देर लगाई तो वो इसे धरती पद रख देगा ।रावण ने कहा ठीक है वो दोछन से पहले आ जायेगा और उसके उपरांत रावण चला गया देव कृपा से रावण को दो छान से जयादा का वक़्त लग गया तब उस चरवाहे ने आवाज़ लगाई लेकिन रावण ने उसे नहीं सुना उसके पश्चात उस चरवाहे ने उस लिंग को धरती  पद रख दिया । जब रावण वापस आया, तो वह सभी कोशिशों के बावजूद शिवलिंग को उठा नहीं सका। रावण को इस बात की अवगति हुई कि यह भगवान की लीला है तब  उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, और अन्य देवताओं के साथ मिलकर शिवलिंग की पूजा की। जब भगवान शिव के दर्शन हुए तो उन्होंने शिवलिंग को उसी जगह पर स्थापित कर दिया। इस तरह से से महादेव कामना लिंग के रूप में बैजनाथ धाम में विराजमान हैं।

१.३ बैद्यनाथ धाम का ऐतिहासिक महत्व: (Historical Significance of Baidyanath Dham:)

बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर का ऐतिहासिक महत्व बैद्यनाथ धाम के रूप में भी जाना जाता है। इसे भारतीय धर्म शास्त्रों में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यहां के ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव के अस्तित्व का प्रतीक माना जाता है और शिव भक्तों की आदर्श पुण्यस्थल के रूप में पूज्यता प्राप्त है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के मुख्य मंदिर में विशेष रूप से प्रदर्शित किए जाने वाले वस्त्रों में तीन आरोही आकार के सोने के बर्तन हैं, जिन्हें गिधौर के महाराजा राजा पूरन सिंह ने दान किया था। इसके अलावा, एक 'पंचसूला' भी है, जो पांच चाकूओं के आकार में होती है और बहुत ही दुर्लभ मानी जाती है।वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का लिंगम बेलनाकार होता है और लगभग 5 इंच व्यास का होता है। यह लिंगम बेसाल्ट के एक बड़े स्लैब के केंद्र से लगभग 4 इंच की दूरी पर स्थित होता है। इसे भक्तों द्वारा विशेष श्रद्धा के साथ पूजा जाता है।

शिव भक्तों के मानने के अनुसार, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग अरिद्रा नक्षत्र की रात को शिव ने अपने आप को ज्योतिर्लिंग में बदल लिया था। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग के लिए अरिद्रा नक्षत्र की रात पर विशेष श्रद्धा रखी जाती है।

ज्योतिर्लिंग का अर्थ होता है "ज्योति का लिंग" और इसे सर्वोच्च अंशहीन वास्तविकता का प्रतीक माना जाता है, जिसमें से शिव आंशिक रूप से प्रकट होते हैं। ज्योतिर्लिंग मंदिर उस स्थान को प्रतिष्ठित करते हैं जहां शिव प्रकाश के उग्र स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर शिव भक्तों के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान है और इसे भक्तों द्वारा प्रदर्शनी का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।

१.४ मरम्मत और वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण(Examples of Remarkable Restoration and Architecture:)

बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर की मरम्मत और वास्तुकला के अद्भुत उदाहरणों की वजह से यह एक महान धार्मिक स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त करता है। मंदिर की वास्तुकला एक सुंदर और शानदार मिश्रण है जिसमें आधुनिक और पारंपरिक वास्तुकला के तत्व मिले हुए हैं। इसकी आकृति, विशेषताएं, और शैली दर्शकों को अद्भुत रोमांच प्रदान करती हैं। मंदिर की मरम्मत बाजार के प्रारंभिक समय से ही जारी रही है और इसे नवीनीकरण करने के लिए निरंतर प्रयास किए जाते हैं।

इस प्रकार, बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गर्व का विषय है। यह स्थान हिंदू धर्म और संस्कृति के आदर्शों का प्रतीक है और भगवान शिव के भक्तों के लिए एक मुख्य पवित्र तीर्थस्थल के रूप में महत्वपूर्ण है।

 पर्यटन स्थल:(Tourist Destination:)

बैद्यनाथधाम के निकट कई महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल मौजूद हैं जिन्हें धार्मिक और प्राकृतिक रूप से जाना जाता है। इनमें से प्रमुख स्थानों में हरलाजोरी, त्रिकुट पर्वत, नंदन पहाड़, नवलखा मंदिर, रिखीय पीठ, हाथी पहाड़, तपोवन, सत्संगनगर, देवसंघ इत्यादि शामिल हैं। ये स्थान धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण हैं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

हरलाजोरी-Harlajori

हरलाजोरी एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो बैद्यनाथधाम के निकट स्थित है। यह एक प्राकृतिक जलप्रपात है जो प्रवाहित नदी बेलह नदी (Belha River) से निकलता है। हरलाजोरी जलप्रपात झारखंड राज्य के पलामू जिले में स्थित है।

हरलाजोरी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है - "हर" और "लाजोरी"। "हर" का अर्थ हरा या अक्कड़ होता है, जो यहां के जंगलों की प्रमुख विशेषता है, और "लाजोरी" शब्द का अर्थ जलप्रपात होता है। हरलाजोरी की ऊँचाई लगभग 37 मीटर (120 फीट) है और इसकी धार जल नदी के ऊपर से बहती है।

हरलाजोरी को अपार प्राकृतिक सौंदर्य से चिह्नित किया जाता है। इसके आस-पास का वातावरण अत्यंत शांतिपूर्ण होता है और पर्यटकों को सुकून और आनंद का अनुभव करने का अवसर देता है। यहां पर्यटक तटस्थ चरम शांति और प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।

हरलाजोरी में प्राकृतिक जंगल, छोटे झरने, आकर्षक पहाड़ी और खूबसूरत वनस्पति देखने का अवसर होता है। यहां पर्यटक ट्रेकिंग करते हुए शानदार वन और जलप्रपात का आनंद ले सकते हैं। हरलाजोरी आसपास के पर्यटन स्थलों के रूप में भी जाना जाता है, जैसे कि कोयलांग पहाड़, पलामू वन्यजीव अभयारण्य, जोना पहाड़, और पेसा शाही पार्क।

हरलाजोरी विश्राम, प्राकृतिक सौंदर्य और अद्वितीय जलप्रपात के लिए पर्यटकों के बीच एक लोकप्रिय स्थल है। यहां जाने से पर्यटक शांति और सुंदरता का आनंद ले सकते हैं और प्रकृति के प्रति अपार आदर और प्रेम का अनुभव कर सकते हैं।

त्रिकुट पर्वत,Trikuta Parvat (Trikuta Mountain)

त्रिकुट पर्वत झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह पर्वत तीनों शिखरों से मिलकर बना हुआ है, इसलिए इसे "त्रिकुट" पर्वत कहा जाता है। इन तीनों शिखरों के नाम हैं महादेव, वैष्णो देवी और ब्रह्मा।

त्रिकुट पर्वत को मान्यता के अनुसार तीनों देवताओं के आवास के रूप में माना जाता है। यहां पर्यटक श्रद्धालुओं और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करते हैं। इसे धार्मिक तथा प्राकृतिक महत्व के साथ जाना जाता है।

त्रिकुट पर्वत के चरम ऊँचाई लगभग 2,470 मीटर (8,100 फीट) है। यहां से पर्यटक मनमोहक पहाड़ी दृश्य, घने वन, और आसपास की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। यहां पर्यटकों को पर्यटन, ट्रेकिंग, और प्राकृतिक विचरण के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध हैं।

त्रिकुट पर्वत पर्यटन स्थल के रूप में प्रमुखता प्राप्त करने का कारण है इसके प्राकृतिक सौंदर्य, मान्यताओं और धार्मिक महत्व के साथ-साथ यहां के मंदिरों का भी आकर्षण होता है। यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए धार्मिकता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और प्रकृति प्रेमियों के लिए आदर्श स्थल है।

नंदन पहाड़ Nandan Pahad

नंदन पहाड़ एक प्रसिद्ध पहाड़ी है जो नंदी मंदिर के पास स्थित है, जो शहर के किनारे पर स्थित है। यहां एक लोकप्रिय शिव मंदिर भी है। नंदन पहाड़ सिर्फ बाबा बैद्यनाथ धाम स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की यात्रा कोई भक्त कभी भूल नहीं सकता। पहाड़ी पर कई अन्य मंदिर हैं, और इनमें से अधिकांश में भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिक की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं।

कहानी के अनुसार, रावण ने एक बार शिवधाम में जबरन प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन नंदी (भगवान शिव का बैल), जो द्वाररक्षक थे, ने उसे रोक दिया। रावण क्रोधित हो उठा और उसे इस स्थान पर फेंक दिया, और इसीलिए पहाड़ी को "नंदी" के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी आपको शहर के सुंदर परिदृश्यों का आनंद देती है और यहां से आपको अद्भुत सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य भी मिलता है। यहां एक मनोरंजन पार्क भी है, जहां आपको स्विमिंग पूल, खेल के मैदान और नौका विहार की सुविधा मिलती है।

यह पहाड़ी बाबा मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा और अन्य छोटे वाहनों का उपयोग करके इस पहाड़ी की यात्रा कर सकते हैं।

नवलखा मंदिर,  Navlakha Temple

बाबा बैद्यनाथ धाम के पास स्थित सुंदर नौलखा मंदिर देवी राधा और भगवान कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर मुख्य शहर से लगभग 2 किलोमीटर दूर है। इसकी वास्तुकला पश्चिम बंगाल के बेलूर में स्थित रामकृष्ण मंदिर की तरह दिखती है। मंदिर में देवताओं की सुंदर मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो लगभग 146 फीट ऊँची हैं। नौलखा मंदिर का निर्माण कोलकाता के एक शाही परिवार द्वारा, पथुरिया घाट की रानी चारुशिला द्वारा नौ लाख रुपये के दान के साथ शुरू किया गया था।

इस मंदिर में संत बालानंद ब्रह्मचारी की एक मूर्ति भी स्थापित है। यह मंदिर संत बालानंद ब्रह्मचारी की सलाह पर बनाया गया था। किंवदंती के अनुसार, रानी के पति की अकस्मात मृत्यु के बाद, रानी ने अपना घर छोड़ दिया। निराश और अकेली रानी ने उस संत से मिली, जिसने उन्हें मंदिर बनाने की सलाह दी थी।

बाबा मंदिर से इसकी दूरी लगभग 4 किलोमीटर है। यात्रा के लिए आप टैक्सी, ऑटोरिक्शा और अन्य छोटे वाहनों का उपयोग कर सकते हैं।

रिखीय पीठ,Rikhia Peeth

रिखिया आश्रम, जिसे श्री श्री पंच दशनाम परमहंस अलखबरह के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक अनमोल धार्मिक स्थान है। यह बाबा बैद्यनाथ धाम से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह देश के सबसे पुराने योग आश्रमों में से एक है। इस आश्रम को स्वामी शिवानंद सरस्वती के अनुयायी स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया है और इसमें कई प्रबुद्ध संतों का निवास है। यह तपोभूमि के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है, जहां गहन साधना और स्वामी सत्यानंद की तपस्या का स्थान है। इस स्थान पर ऋषियों की उपस्थिति और उनकी कठिन साधना के कारण व्याप्त शांति का अनुभव किया जा सकता है। यहां पीठ शब्द का अर्थ है "उच्च शिक्षा का आसन" और रिखियापीठ का नाम ऋषि शब्द से बना है, जिसमें से ऋखिया व्युत्पन्न है। इसका उद्देश्य वेदों, उपनिषदों और पुराणों में वैदिक वंश के ऋषियों द्वारा प्रचारित प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार करना है, साथ ही सभी को आधुनिक कौशल प्रदान करते हुए जाति, पंथ, राष्ट्रीयता, धर्म और लिंग की परवाह किए बिना है।

आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा और अन्य छोटे वाहनों का उपयोग करके रिखिया आश्रम की यात्रा कर सकते हैं।

हाथी पहाड़,Haathi Pahad

हाथी पहाड़ झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह पहाड़ अपने विशेष आकार के लिए प्रसिद्ध है, जिसे हाथी की उपमा में दिया जाता है।

हाथी पहाड़ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आश्चर्यजनक पहाड़ी झरनों के लिए लोकप्रिय है। यहां पर्यटक पहाड़ी ट्रेकिंग, हाइकिंग, और नेचुर वॉक का आनंद लेते हैं। पहाड़ी चढ़ाई करके ऊँचाई से ब्रेथटेकिंग नजारे का आनंद लेने के साथ-साथ, प्रकृति के आपूर्ति से पूर्ण पानी की झरनों को देखने का भी अवसर मिलता है।

हाथी पहाड़ का महत्व धार्मिक दृष्टिकोण से भी है। यहां पर्यटक धार्मिक आराधना के लिए भी आते हैं। इस पहाड़ पर एक छोटा सा मंदिर स्थित है, जहां लोग पूजा और आराधना करते हैं।

हाथी पहाड़ एक शांतिपूर्ण और प्राकृतिक वातावरण में स्थित है और यहां की प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए यहां आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षक स्थल है।

 तपोवन, Tapovan

तपोवन पहाड़ियाँ देवघर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित हैं और यहां तपो नाथ महादेव का मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। तपोवन में एक विशेष आकर्षण है दरार वाली चट्टान, जहां माना जाता है कि भगवान हनुमान का चित्र देखा जा सकता है। यह अद्भुत है क्योंकि चट्टान की आंतरिक सतह में चित्रकारी करना रंग और ब्रश का इस्तेमाल करके असंभव है। पहाड़ी के नीचे एक छोटा कुंड (जलकुंड) है, जिसे स्थानीय लोग सूक्त कुंड या सीता कुंड के नाम से जानते हैं, क्योंकि कहा जाता है कि देवी सीता यहां स्नान करती थीं।

तपोवन शब्द का अर्थ है "ध्यान का वन" और इसे एक समय में नागाओं (साधुओं) के लिए ध्यान स्थल (तपोभूमि) के रूप में उपयोग किया जाता था। इसी कारण इसे तपोवन के नाम से जाना जाता है।

बाबा मंदिर से तपोवन की दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। आप बस, टैक्सी, ऑटोरिक्शा और अन्य छोटे वाहनों का उपयोग करके यात्रा कर सकते हैं।

सत्संगनगर, SATSANG NAGAR

सत्संग आश्रम भारत में प्रमुख धार्मिक संस्थानों में से एक है, और इसकी दुनिया भर में 2,000 से अधिक शाखाएं हैं। सत्संग आश्रम की मुख्य शाखा सत्संग देवघर है, जो ठाकुर अनुकुलचंद्र द्वारा स्थापित की गई थी। यह शाखा हिमायतपुर से देवघर में स्थानांतरित हुई है। आश्रम में कमरे, छात्रावास और बड़ी इमारतें हैं। आवास के लिए आगंतुकों के लिए उपलब्धता है और यह ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। आश्रम के पास एक रसोईघर भी है जहां खाने के लिए कोई पैसा नहीं लिया जाता है, इसे आनंदबाजार कहा जाता है। आश्रम में एक संग्रहालय और चिड़ियाघर भी हैं जो आगंतुकों के लिए खुले हैं।

यह आश्रम बाबा मंदिर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा और अन्य छोटे वाहनों का उपयोग करके इस आश्रम की यात्रा कर सकते हैं।

देवसंघ  DEVASANGHA

देवसंघ, झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित एक पर्यटन स्थल है। यह एक धार्मिक स्थान है जहां धार्मिक सभाएं और आयोजन होते हैं।

देवसंघ में प्रतिवर्ष धार्मिक महोत्सव आयोजित होते हैं जहां लोग धार्मिक आयोजनों, कीर्तन, आराधना और सत्संगों में भाग लेते हैं। यहां पर्यटक धार्मिकता और साधना का अनुभव करते हैं और अपनी आंतरिक शांति और प्राकृतिकता के साथ संगठित होते हैं।

देवसंघ एक सांस्कृतिक महोत्सव केंद्र भी है जहां लोग धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। यहां विभिन्न कला, संगीत, नृत्य, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है जिनमें स्थानीय और प्रादेशिक कलाकारों को भी सम्मानित किया जाता है।

देवसंघ में प्राकृतिक सौंदर्य भी मौजूद है, और यहां पर्यटकों को धार्मिकता और स्वाभिमान का अनुभव करने का अवसर मिलता है। इसके अलावा, देवसंघ के आसपास के प्राकृतिक स्थलों का भ्रमण भी आयोजित किया जाता है जैसे कि पहाड़ी झरने, नदियाँ और अन्य प्राकृतिक आकर्षण।

श्रावणी मेला, SHRAVANI MELA

श्रावणी मेला, जो बाबा बैद्यनाथधाम के पर्यावरण में आयोजित होता है, एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है जिसका नाम देश और विदेश के अलग-अलग धर्मावलम्बियों के बीच प्रसिद्ध है। इस मेले में हर साल श्रद्धालुओं का भव्य आगमन होता है, और इसके दौरान लगभग 50 लाख लोग बाबा बैद्यनाथधाम आकर श्रद्धा और भक्ति का आनंद लेते हैं। यह मेला श्रावण मास के दौरान आयोजित होता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार जुलाई और अगस्त के मध्य में पड़ता है।

Baba Baidyanath Dham Complete Introduction बाबा बैद्यनाथ धाम

 

श्रावणी मेले का महत्व बहुत ही उच्च है। इस मेले के दौरान श्रद्धालु सभी धर्मिक कार्यों का पालन करते हैं और बाबा बैद्यनाथधाम की ओर अपना पवित्र यात्रा कार्यक्रम पूरा करते हैं। प्रारंभ में, श्रद्धालु बैद्यनाथधाम से शुरू करते हैं और उत्तरवाहिनी गंगा के पानी को अपने काँवरों में भरते हैं। वे पैदल यात्रा के दौरान अनेक कठिनाइयों का सामना करते हैं और दुर्गाम पर्वत और जंगलों को पार करके बाबा बैद्यनाथधाम पहुँचते हैं। वहां, वे पहले पवित्र शिवगंगा सरोवर में स्नान करते हैं और फिर बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के द्वारा गंगाजल से अभिषेक करते हैं। उसके बाद, उन्हें बाबा बसुकीनाथ के अभिषेक करने के लिए आग्रह किया जाता है।

काँवर यात्रा के लिए शारीरिक क्षमता का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसे श्रद्धालु कड़ी मेहनत और साधना के माध्यम से प्राप्त करते हैं। इस यात्रा के महत्व को पौराणिक कथाओं ने भी प्रमाणित किया है। त्रेता युग में, भगवान श्री राम ने श्रावण मास में सुल्तानगंज से जल ले कर बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। इसलिए, इस मेले का आयोजन भगवान श्री राम के अद्वितीय कर्म की याद को ताजगी देता है।

इस मेले का आयोजन महत्त्वपूर्ण आस्थापना, धर्मिक उत्साह, और धार्मिक आनंद की अनुभूति का अवसर प्रदान करता है। यह आयोजन सभी पापों से मुक्ति, मनोरथ की पूर्ति और सम्पूर्ण जीवन की सुख-शांति को प्राप्त करने का एक अवसर है। श्रद्धालु भक्तों को अपनी आत्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने, आत्म-परिशुद्धि करने और धार्मिकता की अद्यतनता को स्थापित करने का अवसर मिलता है। श्रावणी मेला एक सामूहिक धार्मिक उत्सव है जो श्रद्धालुओं को साझा आत्मीयता और धर्म संबंधी अनुभव का मौका देता है।

श्रावणी मेला बाबा बैद्यनाथधाम के प्रमुख आयोजनों में से एक है और इसकी महत्त्वपूर्ण गहराई और अर्थगतता से परिचित होना चाहिए। यह मेला श्रद्धालुओं को धार्मिक आनंद और सामूहिक आदर्शों का अनुभव कराता है, जिससे उन्हें अपने आंतरिक संगठन, धार्मिक बेहतरीनी और धार्मिक साधना में विश्वास होता है।

 बाबा बैद्यनाथ धाम देवघर कैसे पहुंचे (HOW TO REACH BABA BAIDYANATH DHAM, DEVGHAR)

बैद्यनाथ धाम, जिसे भीमशंकर धाम भी कहा जाता है, झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए निम्नलिखित तरीकों का उपयोग कर सकते हैं:

हवाई मार्ग: बाबा बैद्यनाथ हवाई अड्डा, जिसे देवघर हवाई अड्डा भी कहा जाता है, देवघर, झारखंड की सेवा करने वाला घरेलू हवाई अड्डा है। यह मुख्य शहर से लगभग 12 किलोमीटर (7.4 मील) की दूरी पर स्थित है। यह हवाई अड्डा झारखंड के उत्तर-पूर्वी भाग और दक्षिण-पूर्वी बिहार के कुछ जिलों की सेवा के लिए विकसित किया गया है। इस अड्डे का मुख्य उद्देश्य है देश भर में बैद्यनाथ मंदिर के लाखों तीर्थयात्रियों को बाबाधाम पहुंचना।

अप्रैल 2021 में, सरकार की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना UDAN के तहत, इंडिगो ने देवघर से कोलकाता, रांची और पटना के लिए उड़ानें संचालित करने के लिए चुना गया था। और दिल्ली के लिए उड़ानें 30 जुलाई 2022 से शुरू हुईं हैं।

इस तरीके से आप बाबा बैद्यनाथ हवाई अड्डे तक पहुंच सकते हैं और वहां से देवघर के मंदिर तक आगे की यात्रा आप टैक्सी, ऑटोरिक्शा या यात्रा एजेंसी की सहायता से कर सकते हैं।

रेल मार्ग: देवघर रेलवे स्टेशन रेल नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। आप ट्रेन की सुविधा का उपयोग करके देवघर रेलवे स्टेशन तक पहुंच सकते हैं। इसके बाद, आपको टैक्सी, ऑटोरिक्शा, या बस का उपयोग करके बैद्यनाथ धाम पहुंचने का व्यवस्थित कर सकते हैं।

दिल्ली से देवघर: दिल्ली से देवघर तक कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। आप उच्चतम गति वाली ट्रेनों जैसे ब्राम्हपुत्रा मेल, राजधानी एक्सप्रेस आदि का उपयोग कर सकते हैं। यह यात्रा करीब 20-24 घंटे का समय लगा सकती है।

कोलकाता से देवघर: कोलकाता से देवघर तक भी कई ट्रेनें चलती हैं। आप ट्रेनों जैसे शालिमार एक्सप्रेस, रांची-वापसी एक्सप्रेस, पूर्वोत्तर संगठन एक्सप्रेस आदि का उपयोग कर सकते हैं। यह यात्रा करीब 6-8 घंटे का समय लगा सकती है।

पटना से देवघर: पटना से भी देवघर तक कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। आप ट्रेनों जैसे संगमित्रा एक्सप्रेस, जयनगर-ततानगर एक्सप्रेस, पूर्वोत्तर संगठन एक्सप्रेस आदि का उपयोग कर सकते हैं। यह यात्रा करीब 8-10 घंटे का समय लगा सकती है।

रांची से देवघर: रांची से भी देवघर तक कुछ ट्रेनें चलती हैं। आप ट्रेनों जैसे बाराकरारी-गोमो एक्सप्रेस, रांची-वापसी एक्सप्रेस, पूर्वोत्तर संगठन एक्सप्रेस आदि का उपयोग कर सकते हैं। यह यात्रा करीब 5-6 घंटे का समय लगा सकती है।


सड़क मार्ग: देवघर अच्छी तरह से राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। आप अपने यातायात वाहन का उपयोग करके बैद्यनाथ धाम के लिए सीधे देवघर पहुंच सकते हैं। आप नेशनल हाइवे 2 और राष्ट्रीय हाइवे 114 का उपयोग कर सकते हैं जो देवघर तक जाते हैं।

देवघर पहुंचने के बाद, आपको बैद्यनाथ धाम के लिए स्थानीय वाहन या पारंपरिक रिक्शा का उपयोग करके जाना होगा। आप भी यात्रा एजेंसियों से टैक्सी की व्यवस्था कर सकते हैं, जो आपको दरवाजे से दरवाजे ले जाएगी।

ध्यान दें कि यात्रा करने से पहले आपको स्थानीय पर्यटन नियमों और प्रतिबंधों के बारे में अवगत होना चाहिए, ताकि आप अपनी यात्रा का समय सही ढंग से नियोजित कर सकें।

प्रश्न एवं उत्तर FAQ

प्रश्न 1: देवघर मंदिर किस देवी-देवता को समर्पित है?
उत्तर: देवघर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

प्रश्न 2: देवघर मंदिर की स्थापना कब हुई?
उत्तर: देवघर मंदिर की स्थापना 1596 ईसापूर्व में हुई।

प्रश्न 3: देवघर मंदिर कहाँ स्थित है?
उत्तर: देवघर मंदिर झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है।

प्रश्न 4: देवघर मंदिर का अर्चिटेक्चर कैसा है?
उत्तर: देवघर मंदिर का वास्तुकला मुख्य रूप से नागर शैली में है। यह एक पहाड़ी स्थल पर बना हुआ है और एक प्रमुख मंदिर और कई छोटे मंदिरों से मिलकर मिलाने वाली संरचना है।

प्रश्न 5: देवघर यात्रा का सबसे अच्छा समय कब होता है? 

उत्तर: देवघर यात्रा का सबसे अच्छा समय श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के दौरान माना जाता है, जब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और महा शिवरात्रि जैसे पर्व भी मनाए जाते हैं।

प्रश्न 6: देवघर मंदिर में कितनी बार मंदिर में जाना पड़ता है?
उत्तर: देवघर मंदिर में पूजा अठारह बार जाना पड़ता है।

प्रश्न 7: देवघर मंदिर का विशेषता क्या है?
उत्तर: देवघर मंदिर में शिवलिंग की प्रतिष्ठा रखी गई है, जिसे जोली कहते हैं। यह एक स्वयंभू शिवलिंग है और देवों के विदित इतिहास के अनुसार यहाँ शिवलिंग स्थापित होने के पश्चात से ही देवघर की महिमा बढ़ी है।

प्रश्न 8: देवघर मंदिर किस पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है?
उत्तर: देवघर मंदिर का संबंध महाभारत के एक युद्ध के संदर्भ में होने वाली कथा से जुड़ा हुआ है। इसमें कहा जाता है कि शिवलिंग को जिस स्थान पर यात्री ले जा रहे थे, उसी स्थान पर माता सती का अंग गिर गया था और उस स्थान का नाम देवघर रखा गया।

प्रश्न 9: देवघर मंदिर में कौन-कौन से पूजारी तत्व होते हैं?
उत्तर: देवघर मंदिर में प्रमुखतः तीन पूजारी तत्व होते हैं। पहले हैं "बड़ा पूजारी" जो मंदिर की पूजा-अर्चना करता है, दूसरे हैं "महंत" जो आध्यात्मिक कार्यों का प्रबंधन करता है, और तीसरे हैं "पुजारी" जो देवी-देवताओं की सेवा करते हैं।

प्रश्न 10: देवघर मंदिर में कौन-कौन से महोत्सव मनाए जाते हैं?
उत्तर: देवघर मंदिर में कई महोत्सव मनाए जाते हैं, जैसे महाशिवरात्रि, सावन मास, कार्तिक पूर्णिमा, माघ मेला, नवरात्रि, श्रावण मास, आदि।

प्रश्न 11: देवघर मंदिर का इतिहास क्या है?
उत्तर: देवघर मंदिर के निर्माण का इतिहास काफी पुराना है। मान्यताओं के अनुसार, यहाँ पहले सती माता के अंग गिरे थे और बाद में इसी स्थान पर शिवलिंग की प्रतिष्ठा की गई। इसके बाद से ही देवघर मंदिर महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन गया है।

प्रश्न 12: देवघर मंदिर के चारों ओर कौन-कौन से मंदिर स्थित हैं?
उत्तर: देवघर मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित हैं, जैसे बैरागी मंदिर, गौरी शंकर मंदिर, जगन्नाथपुरी मंदिर, कण्ठाली मंदिर, आदि।

प्रश्न 13: देवघर मंदिर का कैलाश पर्वत के साथ क्या सम्बंध है?
उत्तर: देवघर मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि शिवलिंग को उस स्थान पर जाने के लिए यात्री ने कैलाश पर्वत की यात्रा की थी। इसलिए इस मंदिर का नाम देवघर रखा गया, जो कैलाश के घर का अर्थ होता है।

प्रश्न 14: देवघर यात्रा के लिए कौन-कौन से पूजा सामग्री लेनी चाहिए? 

उत्तर: देवघर यात्रा के दौरान आपको श्रद्धालु बनाते समय बिल्वपत्र, गंगाजल, फूल, दीप, धूप, सुपारी, नारियल, चावल, दूध, पंचामृत (दही, घी, शहद, गुड़, तुलसी का रस) आदि पूजा सामग्री लेनी चाहिए।

प्रश्न 15: देवघर मंदिर में कितनी वार्षिक आय आती है?
उत्तर: देवघर मंदिर में वार्षिक आय लगभग 350 करोड़ रुपये से अधिक होती है।

प्रश्न 16: देवघर मंदिर में कौन-कौन से पर्वतों का दर्शन किया जा सकता है?
उत्तर: देवघर मंदिर में यात्रियों को अग्निकुंड पर्वत, भस्म ज्वाला, गोलापाहाड़ी, भीमबंगर पर्वत, और नवग्रह पर्वत का दर्शन करने का अवसर मिलता है।

प्रश्न 17: देवघर मंदिर किस राज्य का प्रमुख धार्मिक स्थल है?
उत्तर: देवघर मंदिर झारखंड राज्य का प्रमुख धार्मिक स्थल है।

प्रश्न 18: देवघर मंदिर का क्या महत्व है?
उत्तर: देवघर मंदिर भगवान शिव के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के अनुसार महत्वपूर्ण माना जाता है और यात्रियों के लिए पवित्र स्थल है।

प्रश्न 19: देवघर मंदिर में कितने लोग वार्षिक यात्रा पर जाते हैं?
उत्तर: देवघर मंदिर में वार्षिक यात्रा पर लाखों लोग जाते हैं। विशेषतः महाशिवरात्रि, सावन मास और नवरात्रि में यहाँ भक्तों की भीड़ बहुत ज्यादा होती है।

प्रश्न 20: देवघर मंदिर में आने वाले भक्तों को क्या विशेष भोग चढ़ाया जाता है?
उत्तर: देवघर मंदिर में आने वाले भक्तों को भोलेनाथ की प्रसन्नता के लिए दूध, घी, धूप, फूल, फल, नारियल, बिल्वपत्र, पंचामृत, धात्री, दक्षिणा, आदि विभिन्न प्रकार के भोग चढ़ाए जाते हैं।

प्रश्न 21: देवघर मंदिर के किस दिन में अधिक भक्तों की भीड़ होती है?
उत्तर: देवघर मंदिर में सोमवार, शनिवार, पूर्णिमा, अमावस्या, महाशिवरात्रि, सावन सोमवार और नवरात्रि जैसे दिनों पर अधिक भक्तों की भीड़ होती है।

प्रश्न 22: देवघर मंदिर में कितनी मंदिरों की संख्या है?
उत्तर: देवघर मंदिर में करीब 22 मंदिरों की संख्या है, जिनमें शिवलिंग का मंदिर सबसे प्रमुख है।

प्रश्न 23: देवघर मंदिर में कितनी ऊँचाई पर स्थित है?
उत्तर: देवघर मंदिर की ऊँचाई लगभग 2470 फीट (753 मीटर) है।

प्रश्न 24: देवघर मंदिर में कितने दरवाजे होते हैं?
उत्तर: देवघर मंदिर में कुल मिलाकर चार दरवाजे होते हैं। ये हैं स्वर्गद्वार, नंदिद्वार, गगनद्वार, और चंद्रद्वार।

प्रश्न 25: देवघर मंदिर किस नदी के किनारे स्थित है?
उत्तर: देवघर मंदिर उपनदी के किनारे स्थित है, जो झारखंड राज्य के मध्य भाग में बहती है। यह नदी देवघर मंदिर के पास से ही गुजरती है।

प्रश्न 26 : शिवलिंग क्या होता है?
उत्तर: शिवलिंग भगवान शिव की प्रतिमा होती है। यह एक अद्वितीय और पवित्र प्रतीक है जो शिव के प्रतिष्ठान स्थल के रूप में पूजा जाता है।

प्रश्न 27: शिवलिंग का महत्व क्या है?
उत्तर: शिवलिंग को हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। यह शिव की प्रतिष्ठा, शक्ति, और उसके निर्माण का प्रतीक है। इसे शिव के आदि रूप के रूप में माना जाता है और भक्तों की भक्ति केंद्रित करता है।

प्रश्न 28: शिवलिंग किस मान्यता के अनुसार पूजा जाता है?
उत्तर: शिवलिंग को शैव परंपरा के अनुसार पूजा जाता है। शैव संप्रदाय में शिवलिंग को सर्वोच्च देवता माना जाता है और शिवलिंग की पूजा शिव की उपासना का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

प्रश्न 29: देवघर में आकर्षक स्थल कौन-कौन से हैं?
उत्तर: देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर के अलावा अन्य प्रमुख आकर्षण स्थलों में बसुकिनाथ मंदिर, रविनाथ मंदिर, महाकाली मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, श्री राम जनकी मंदिर और त्रिकुट पहाड़ी शामिल हैं।

प्रश्न 30: देवघर में रहने के लिए अच्छे होटल कौन-कौन से हैं?
उत्तर: देवघर में आपके रहने के लिए होटलों का विकल्प उपलब्ध है, जैसे होटल वैशाली, होटल यात्री निवास, होटल देवगंगा, होटल प्रभुदत्त आदि।

प्रश्न 31: देवघर में धार्मिक त्योहारों का आयोजन कब-कब होता है?
उत्तर: देवघर में प्रमुख धार्मिक त्योहारों का आयोजन महाशिवरात्रि, श्रावण मास, कार्तिक पूर्णिमा, दिवाली, होली, रक्षा बंधन, और नवरात्रि आदि में किया जाता है।

 

 

 

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