श्रापों (Curses) का प्रभाव हमारे जीवन पर अद्यापि गहरा असर डालता है। देवी-देवताओं और मानव इतिहास में अनेक श्रापों (Curses) के उदाहरण पाए जाते हैं, जिनकी प्रभावशाली शक्ति आज भी हमारे सामर्थ्य और उपास्य को प्रभावित करती है। यह श्राप (Curses) हमें यह बताते हैं कि कर्मफल और जीवन के नियमों का उल्लंघन हमेशा हमारे ऊपर बुरा प्रभाव डालता है। इस ब्लॉग में, हम आपको 10 ऐसे श्रापों (Curses) के बारे में चर्चा करेंगे, जिनका प्रभाव आज भी दुनिया में बना हुआ है।
इन श्रापों (Curses) के माध्यम से हमें समझना चाहिए कि हमारे कर्मों और आचरण का महत्व क्या है और हमें धार्मिकता, न्याय, समानता, और प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। ये श्राप हमें ध्यान दिलाते हैं कि बुराई और अधर्म से हमेशा बचना चाहिए और सदाचार और धार्मिकता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
10 curses whose effect is still present today :10 श्राप जिनका प्रभाव आज भी है
श्राप (Curses) के द्वारा हमें समझाया जाता है कि असंगठितता, अधर्म, अहंकार, और न्याय के उल्लंघन से हमारा जीवन प्रभावित होता है। धार्मिक और नैतिक मूल्यों का पालन हमें समृद्धि, संतुलन और आनंद प्रदान करता है। हमें श्राप (Curses) के बारे में सोचकर अपने कर्मों को संशोधित करना चाहिए और उचित नीतियों, धर्मिकता, सदाचार, और सम्मान के मार्ग पर चलना चाहिए। इससे हम अपने जीवन को एक सार्थक, उदार, और सफल ढंग से जी सकते हैं।
श्राप (Curses) जिस प्रकार से पूर्वजों के जीवन को प्रभावित करता रहा है, वैसे ही आज भी हमारे जीवन पर उसका प्रभाव बना हुआ है। हमें अपने कर्मों की जांच करनी चाहिए और सही मार्ग पर चलने के लिए अपने विचारों, शब्दों, और कर्मों को सुधारने की जरूरत है। इससे हम अपने जीवन में स्वयं को प्रगति के मार्ग पर ले जा सकते हैं और सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी उन्नति कर सकते हैं। आइये जानते है 10 श्राप (Curses) जिनका प्रभाव आज भी बना हुआ है
१- युधिष्ठिर द्वारा कुंती को श्राप :Kunti cursed by Yudhishthira:
युद्ध के समाप्त होने पर कुंती ने पांडवों को कर्ण के बारे में बताया कि वह उनका भाई था। यह सच्चाई सभी पांडवों के लिए एक बहुत बड़ा बड़ा आघात था। इस बात को जानकर पांडव बहुत निराश हुए विशेष रूप से युधिष्ठिर को इसका आघात पहुंचा की उन्होंने अनजाने में अपने ही भाई की हत्या कर दिए । युधिष्ठिर एक अत्यंत न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ होने के नाते, कर्ण के साथ उनकी बंधुत्व को स्वीकार करते हुए, कर्ण का विधि विधान पूर्वक अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया।
इसके पश्चात्, युधिष्ठिर की कुंती के प्रति नाराजगी बढ़ गई। उन्होंने गुस्से में आकर स्त्री जाति को ही एक श्राप दिया की कोई भी स्त्री किसी भी प्रकार की गोपनीय बात का रहस्य नहीं छुपा पाएगी। इसका अर्थ था कि कोई भी रहस्य की बात उनके पेट में नहीं रह पाएगी
यह श्राप Curses अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली था। युधिष्ठिर के श्राप Curses के पश्चात्, सभी महिलाएं संकेतिक और गोपनीय बातों को साझा करने के लिए अवकाशित थीं। इससे सामाजिक और पारिवारिक संबंधों में बदलाव आया जो अभी तक चली आ रही है
२-सीता माता के श्राप Sita's curse
कुछ समय बाद, जब राम और लक्ष्मण वापस आए, तो माता सीता ने उन्हें सभी घटनाओं की जानकारी दी और बताया कि पंडित, गाय, कौवा और फल्गु नदी वहां मौजूद थे। ये चारों साक्षी के तौर पर वहाँ मौजूद थे। श्रीराम ने इस बात की पुष्टि करने के लिए इन चारों से पूछा, लेकिन इन चारों ने झूठ बोलकर कहा कि कुछ ऐसा हुआ ही नहीं। राम और लक्ष्मण को लगा कि सीता झूठ बोल रही हैं।
जानिए भारत के 10 रहस्यमयी मंदिर के बारे में
ये झूठी बातें सुनकर सीता माता क्रोधित हो गईं और उन्हें झूठ बोलने की सजा देते हुए आजीवन श्रापित कर दिया। इस श्राप के अनुसार, सारे पंडित समाज को ये श्राप मिला की शिक्षा होने पर भी पंडितो को दरिद्रता का सामना करना पड़ेगा । कौवे को उन्होंने श्राप दिया गया कि वह आकस्मिक मौत मरेगा। और उसका अकेले खाने से कभी भी पेट नहीं भरेगा गया के फल्गु नदी को माता ने ये श्राप दिया की कि नदी के ऊपर पानी का बहाव कभी नहीं होगाऔर ये ऊपर से हमेशा सूखा हुआ रहेगा और गाय को श्राप दिया गया कि हर घर में पूजा होने के पर भी गाय को हमेशा दुशरे लोगों का जूठा ही खाना पड़ेगा। जिसके वर्णन रामायण महाकाव्य में भी है।३- श्री गणेश भगवान द्वारा चन्द्रमा को श्राप Ganesha's curse on the moon
तब गणेशजी ने चन्द्रमा को श्राप देते हुए कहा कि तुम अपनी रोशनी और अपना तेज खो दोगे। श्राप मिलने के तुरंत बाद ही चन्द्रमा काला हो गया। चन्द्रमा ने अपनी गलती का एहसास किया और गणेश भगवान से माफी मांगी। भगवान गणेशजी ने उसे माफ किया और कहा कि श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन चन्द्रमा का प्रकाश महीने में 15 दिन तक कम होगा, और एक दिन पूरा समाप्त हो जाएगा। इसके बाद से चन्द्रमा का प्रकाश फिर से बढ़ना शुरू होगा और अगले 15 दिनों तक बढ़कर वह पूर्ण प्रकाश को प्राप्त करेगा। हालांकि, उस दिन के बाद से चन्द्रमा के दर्शन करने वाले व्यक्ति पर झूठा आरोप लगेगा कि वह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन उसे देखा है।
इस कथा में चंद्रमा का घमंड और गणेशजी का धैर्य दिखाया गया है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि घमंड और अहंकार से किसी को कोई लाभ नहीं होता और जब हम गलती करते हैं तो हमें उसके लिए सजा भी भुगतनी पड़ती है। इसके साथ ही, हमें दूसरों के साथ समझदारी और सहानुभूति का भाव रखना चाहिए। गणेशजी का धैर्य और माफी करने का गुण हमें यह बताता है कि हमें अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए और अन्य लोगों को भी माफी देनी चाहिए। इससे हमारे जीवन में सद्भाव और शांति बनी रहती है।
यह कथा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और लोग इसे भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, पर पाठ करते हैं। इस दिन लोग गणेशजी की पूजा और अर्चना करते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद का आभास करते हैं। इसे मान्यता के माध्यम से लोग चांद पर लगाए गए झूठे आरोपों के बारे में याद रखते हैं और उन्हें निष्पक्ष नजर से देखते हैं।
चंद्रमा की यह कथा हमें धार्मिक और नैतिक मूल्यों को समझाने के साथ-साथ अपने अहंकार और अभिमान को दूर करने का भी संदेश देती है। इससे हमें यह भी समझ मिलता है कि सच्चाई और ईमानदारी की कभी हार नहीं होती और अंत में सत्य ही जीतता है।
४- गांधारी का शकुनी को श्राप Gandhari's curse on Shakuni
कभी शांति नहीं होगी और देश समूलतः नष्ट हो जाएगा। यह श्राप कारण है कि आजकल शकुनि के देश को "कांधार" के नाम से जाना जाता है, जो पहले "गांधार" के नाम से प्रसिद्ध था।
५-चम्बल नदी को श्राप curse of Chambal river
चंबल नदी का इतिहास बहुत पुराना है, ये महाभारत काल से है महाभारत काल में इसको चर्मण्यवती नदी के रूप में जाना जाता था । एक बार का बात है राजा रंतिदेव ने पुत्र प्राप्ति यज्ञ के लिए यहाँ बहुत सारे जानवरों का बलि दिया था जिसके कारण से इस नदी का जल पशुओ के रक्त से लाल हो गया था तब से इस नदी को अपवित्र माना जाता है ।
एक दूसरी कथा के अनुशार द्रोपदी ने किसी कारण से इस नदी को श्राप दिया था की अब से इसका जल का कोई उपयोग नहीं करेगा इसी कारण से इस नदी को अबतक अपवित्र माना जाता है।
६- इंद्र को श्राप curse of Indra
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्रा पर ब्रह्महत्या का पाप चढ़ गया जिसके कारण से उन्होंने १ लाख वर्ष तक भगवान विष्णु की तपस्या की भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया की वे अपना पाप चार हिस्सों में बांटकर किसी को दे दे ।तब देवराज इंद्र ने वो पाप चार हिस्सों में बांटकर पहला हिस्सा - पेड़ को दूसरा पानी को तीसरा भूमि की और चौथा हिस्सा महिलाएं को दिया जिससे इन चारो के जीवन में जो परिवर्तन आया वो निम्नलिखित है --पेड़: इंद्र ने अपने पाप का एक हिस्सा पेड़ को दिया जिससे उसे मरने के बाद भी जीने की शक्ति मिली। यह वरदान पेड़ की पवित्रता को दर्शाता है।
पानी: इंद्र ने एक हिस्सा पानी को दिया जिससे पानी को पवित्र करने की शक्ति मिली। यह वरदान पानी की पवित्रता को दर्शाता है।
महिलाएं: इंद्र ने एक हिस्सा महिलाओं को दिया जिससे महिलाओं को मासिक धर्म की पीड़ा और संभोग के समय का आनंद मिलता है। यह वरदान महिलाओं के शरीरिक और भौतिक अनुभव को दर्शाता है।
७- सावित्री द्वारा ब्रह्मा जी को श्राप Brahma was cursed by Savitri
तब उन्होंने यज्ञ के लिए पुष्कर को चुना नियत समय पर ब्रह्मा जी अन्य देवता के साथ पुष्कर पहुंचे लेकिन उनकी पत्नी सावित्री नहीं पहुंच पाई शुभ मुहूर्त बिता जा रहा था, तब ब्रह्म जी ने माँ गायत्री को प्रकट किया और उन से विवाह किया और अपना यज्ञ को शुरू किए जब सावित्री जी ने यज्ञ स्थल पर पहुंचने के बाद देखा कि ब्रह्मा जी किसी और स्त्री के साथ यज्ञ कर रहे है तो वे इस पर बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि वे किसी भी दूसरे स्थान पर पूजा के योग्य नहीं होंगे
इस कथा के माध्यम से ब्रह्मा द्वारा पुष्कर का महत्व प्रदर्शित होता है और यह भी स्पष्ट किया जाता है कि उसकी पूजा के अलावा किसी दूसरे स्थान पर ब्रह्मा की पूजा नहीं होगी।
८ - गांधारी द्वारा श्री कृष्णा को श्राप Sri Krishna cursed by Gandhari
गांधारी, कौरवों की माता और धृतराष्ट्र की पत्नी थीं। महाभारत के युद्ध के दौरान, दुर्योधन, सहित गांधारी के सभी पुत्रों की मृत्यु हो गई थी।
जब धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी को इसकी जानकारी प्राप्त मिली तो उसने ,शोक में भरकर श्री कृष्णा को ही इसका दोषी ठहराया और क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया की अगर श्री कृष्णा चाहते तो वे इस पूरी घटना को रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया इसलिए जिस तरह से मेरा वंश का नास हुआ है उसी प्रकार श्री कृष्णा का वंश भी नष्ट होगा, उनके साथी और संबंधित व्यक्तियों की मृत्यु होगी।
९ - गणेश जी का तुलसी जी को श्राप Ganesh ji's curse on Tulsi ji
एक दिन तुलसी देवी गंगा घाट के किनारे से गुजर रही थीं और उन्हें वहां पर ध्यान में मग्न गणेश जी नजर आए। तुलसी देवी गणेश जी के प्रति आकर्षित हो गईं और उन्हें विवाह का प्रस्ताव दे दिया। लेकिन गणेश जी ने इस प्रस्ताव को मना कर दिया।
जिससे तुलसी देवी नाराज हो गईं और उनका क्रोध उस समय ऊर्जा के रूप में प्रकट हुआ। उन्होंने गणेश जी को श्राप दिया कि वे दो विवाह करेंगे। इस पर गणेश जी भी क्रोधित हो गए और उन्होंने तुलसीदेवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक राक्षस से होगा। और उनकी पूजा में तुलसी का उपयोग नहीं होगा।