Ganesh Aarti :सम्पूर्ण श्री गणेश आरती और चालीसा


गणेश आरती और चालीसा (Ganesh Aarti and Chalisa) के इस ब्लॉग में हम जानेगे गणपति के विभिन्न रूपों में गए जाने वाली आरती और चालीसा 

Ganesh Aarti and Chalisa:गणेश आरती और चालीसा अर्थ सहित


Ganesh Aarti and Chalisa:सम्पूर्ण गणेश आरती और चालीसा

श्रीगणेशजीकी अनेक आरतियाँ प्रचलित हैं और सभी बड़ी ही भावपूर्ण हैं। यहाँ जितना हो सके उतनी  आरतियां. दी जा रही हैं




Ganesh Aarti and Chalisa:गणेश आरती और चालीसा अर्थ सहित



 

गणेश आरती -१ 

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एकदंत दयावन्त, चारभुजा धारी।
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंधे को, कोपि कोंठ जिवाला।
बाल सुत गंध लेवा, मांगे सुंदर सावला॥
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

सोहे बिना जाये श्रीपति भवानी पाला॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
लक्ष्मी शारदा, शरणागत वत्सला।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

श्रीगणेश विनायका, आरती करू यावा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
मंगलमूर्ति मोरया, गणनाथ नामा।

गणेश आरती -२ 

जय देव जय देव गजमुख सुखहेतो
नेतर्विष्नगणानां जाड्यार्णवसेतो 
येन भवदुपायनतां नीता नवदूर्वा
विद्यासंपत्कोीर्तिस्तेनाप्तापूर्वा 

मुक्तिलभ्या सुखतस्तव नित्यापूर्वा
धार्या जगतः स्थितये भूमौ दिवि धूर्वा
जय देव जय देव गजमुख सुखहेतो
नेतर्विष्नगणानां जाड्यार्णवसेतो 

प्रथमनमस्कृतिभाकूत्वं तव लोकप्रथितम 
दृष्टं सद्घयवहारै गुरुभिरपि च कथितम 
यः कश्चन विमुखस्त्वयि निजसिद्धेः पथीत्मं 
विविधा विघ्ना भगवन्‌ कुर्वन्ति व्यथितम
जय देव जय देव गजमुख सुखहेतो

नेतर्विष्नगणानां जाड्यार्णवसेतो 
बालं सकृदनुसरति त्वददुष्टिश्चेत्ता। 
मनुराशीनिव दासीर्विद्या स हि वेत्ता।
पविपाणिरिव परं परपक्षाणां भेत्ता।
भवति मयूरोऽहेरिव मोहस्य च्छेत्ता॥
जय देव जय देव गजमुख सुखहेतो
नेतर्विष्नगणानां जाड्यार्णवसेतो 


भावार्थ--सुखकी प्राप्तिके हेतुभूत गजानन देव! आपकी जय हो, जय हो। विष्नगणोंके नायक तथा जडता (अज्ञान)रूपी सागरसे पार होनेके लिये सेतुरूप विनायकदेव! आपकी जय हो। जिस पुण्यात्माने आपको नूतन दूर्वादलका उपहार अर्पित किया, उसने अपूर्व विद्या, सम्पत्ति एवं कीर्ति प्राप्त कर ली। आपकी कृपासे नित्य, अपूर्व मुक्ति अनायास प्राप्त की जा सकती है। भूतलपर अथवा स्वर्गलोकमें सर्वत्र सम्पूर्ण जगत्‌की रक्षाके लिये दायित्वका भार आप ही वहन करते हैं। देव! आपकी जय हो! भगवन्‌! आपके सबसे प्रथम नमस्कार-भाजन (वन्दनीय) होनेकी बात लोकमें प्रसिद्ध है। यह परम्परागत सद्बयवहारमें भी देखी गयी है तथा गुरुजनोंद्वारा भी बतायी गयी है। जो कोई भी आपसे विमुख हुआ, उसे उसकी साधनाके मार्गपर नाना प्रकारके विघ्न आकर पीड़ा (बाधा) देते हैं। देव! आपकी जय हो। यदि आपकी कृपा-दृष्टि एक बार भी बालकपर पड़ जाती है तो वह मन्त्रराशि-तुल्य उन विद्याओंको इस प्रकार प्राप्त कर लेता है, मानो वे उसकी दासियाँ हों। जैसे वज्रपाणि इन्द्रने पर्वतोंकी पाँखें काट डाली थीं, उसी प्रकार वह परपक्ष (वादीके मत)-का खण्डन करनेमें समर्थ होता है; तथा जैसे मयूर सर्पको विदीर्ण कर देता है, उसी प्रकार वह विद्वान्‌ बालक मोहका छेदन करनेवाला होता है। देव! आपकी जय हो।

Ganesh Aarti and Chalisa:गणेश आरती और चालीसा अर्थ सहित


 श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa)

दोहा:
जय गणपति सदगुण सदन,
कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल॥


अर्थ:
इस दोहे में भगवान गणेश की महिमा का गुणगान किया गया है। वे सदगुण स्वरूप हैं, कविवर (कवियों के श्रेष्ठ) होते हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा करते हैं। वे विघ्नों को हरने वाले हैं और सभी के मंगल कारण हैं। गीत में गिरिजालाल, जो भगवान शिव के अन्य नाम हैं, का भजन किया गया है और उन्हें जयकार किया गया है।

चौपाई:
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभः काजू॥


अर्थ:
इस चौपाई में गणपति गणराज की महिमा गाई गई है। उन्हें जयकार किया गया है क्योंकि वे मंगल भरने वाले और शुभ कार्यों के पूरा होने में सहायक होते हैं।

जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥


अर्थ: हे गजबदन, सदा सुखदायक, आपको जयकार है। आप ही विश्व विनायक हैं और बुद्धि का विधाता हैं।

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥


अर्थ: आपके वक्र (वक्रतुण्ड - वक्राकार मुखवाले) तुण्ड (दाँत), शुची (सुंदरता), शुण्ड (सुंदर निगाहें), तिलक (तिलक), त्रिपुण्ड (तीन पिण्ड) और भाल (माथा) आपके मन को भावना से सजाते हैं।

राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥


अर्थ: आपकी माला (हार) राजत (सिल्वर), मणि (गहनों की मणियों से भरपूर), मुक्तन (मोती से बनी), उर (छाती) और मुकुट (मुकुट) स्वर्ण (गोल्ड) से बने होते हैं और आपके शिर (सिर) और नयन (नेत्र) बड़े विशाल होते हैं।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥


अर्थ: गणेश जी के पास पुस्तक (ज्ञान), पाणि (वरदानी हाथ), कुठार (उपकारी कुठार), त्रिशूल (त्राहि त्राहि), मोदक (मिष्ठान्न), भोग (भोग), सुगंधित (महकते हुए) फूल होते हैं।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

अर्थ: गणेश जी के शरीर पर सुंदर पीताम्बर (पीला वस्त्र) होता है और मुनियों के मन में उनकी चरण पादुकाएं राज करती हैं।

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥


अर्थ: गणेश जी के भगवान शिव के शुभ सुत हैं और वे षडानन (गिरिजा नंदन) के भ्राता हैं। वे गौरी के लालन (पुत्र) हैं और विश्व-विख्यात हैं।

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥


अर्थ: गणेश जी के लक्ष्मी और सरस्वती जी साथ में बैठी होती हैं और वे धन-संपत्ति और ज्ञान की प्रतीक होती हैं। वे अपने मुषक (मूषक - गणेश के वाहन) के साथ द्वार पर सोहते हैं।

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥


अर्थ: यह कथा आपके जन्म की शुभ कथा है, जो बहुत शुचि और पावन है, और मंगलकारी है।

एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥


अर्थ: एक बार, पर्वतराज हिमालय की पुत्री (पार्वती) ने पुत्र की प्राप्ति के लिए बड़ा तप किया।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥


अर्थ: जब उसका यज्ञ समाप्त हुआ, तो गणेश जी ने द्विज रूप में उसके समक्ष प्रकट होकर प्रकट हुए।

अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥


अर्थ: गणेश जी को अतिथि के रूप में पहचानकर गौरी ने उनका स्वागत किया और विभिन्न प्रकार की सेवाएं की।

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥


अर्थ: गणेश जी बहुत प्रसन्न हुए और माता-पुत्र के हित के लिए जो तप किया था, उसके परिणामस्वरूप उन्होंने उसको वरदान दिया।

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥


अर्थ: गणेश जी ने पार्वती को पुत्र के रूप में प्राप्त किया और उनकी विशाल बुद्धि के बिना ही उनका जन्म लिया।

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥


अर्थ: गणेश जी महागणपति, गुण और ज्ञान का निधान हैं और वे पूर्ण भगवान के प्रथम रूप हैं, जिनकी पूजा सबसे पहले की जाती है।

अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥

अर्थ: इस रूप में कहा जाता है कि गणेश जी का अंतर्धान रूप होता है और वे पालक बालक के रूप में होते हैं।

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥


अर्थ: जब उन्होंने बनि (ब्रह्मा) के शिशु को रुदन कर दिया, तो वे गौरी के समान खुश नहीं थे, और उनके मुख से सुख का अभाव था।

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥


अर्थ: सब दिशाओं में खुशी-सुखमंगल का गाना हुआ, और नभ से सुरों ने सुमन (फूल) बरसाए।

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

अर्थ: भगवान शिव, उमा, और अन्य देवी-देवताएं बड़े आनंद से गणेश जी का दर्शन करती हैं, और सुरों और मुनियों के सुत भी दर्शन के लिए आते हैं।

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥


अर्थ: सबने बहुत आनंदित होकर मंगल की सजावट की, और शनि राजा भी दर्शन के लिए आए।

निज अवगुण गुणि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥


अर्थ: गणेश जी के निज अवगुणों को गुणवान शनि ने मन में नहीं डाला, और वह बालक को देखने की इच्छा नहीं करते।


Ganesh Aarti and Chalisa:गणेश आरती और चालीसा अर्थ सहित



गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥


अर्थ: गिरिजा (पार्वती) के मन में कुछ मतभेद बढ़ गए, और वे उत्सव में लगीं, लेकिन शनि को इससे कोई भी दुख नहीं हुआ।

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥


अर्थ: शनि ने कहा, "मेरे मन में कुछ इच्छा है, तुम क्या कर सकते हो, मुझे वह बच्चा दिखाओ।"

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥


अर्थ: पार्वती को इस पर विश्वास नहीं हुआ, और उन्होंने शनि से कहा, "आप तो बच्चा देखना चाहते हैं।"

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥


अर्थ: इस पर शनि ने अपने दृष्टि कोण से देखा, और बच्चा स्वरूप में उसके सिर से उड़ गया और आकाश में गया।

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥

अर्थ: गिरिजा (पार्वती) ने गिरी (पहाड़) को विकल (विचलित) होने की हालत में देखा, और धरणी (पृथ्वी) पर दुख की स्थिति हो गई, लेकिन वह इसे नहीं सह सकी।

हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥


अर्थ: उसने कैलाश पर हाहाकार किया, और शनि के ने उसके सुत को देखकर नाश कर दिया।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥


अर्थ: तब तुरंत गरुड़ चढ़कर विष्णु जी ने आकर्षित होकर चक्र को काट लिया, और गज (गणेश) के सिर को लाकर उसको जीवित कर दिया।

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥


अर्थ: गज के दड़ी पर चक्र को धारण किया गया, और प्राण मन्त्र का पाठ करके शंकर ने उसे जीवित किया।

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥

अर्थ: तब उन्होंने उसका नाम गणेश किया, और उन्होंने उन्हें प्रथम बुद्धि निधि के रूप में पूजा, और उन्होंने उन्हें वरदान दिया।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥


अर्थ: जब भगवान शिव ने बुद्धि परीक्षा की, तो गणेश जी ने पृथ्वी का प्रदक्षिणा किया।

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥


अर्थ: इसके बाद, षडानन (गिरिजा के पति, भगवान शिव) ने भ्रमित होकर विचलित हो गए, और गणेश जी ने बैठकर बुद्धि का उपाय रचा।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिणा कीन्हें ॥


अर्थ: गणेश जी ने अपने माता-पिता के पादों को छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया और उनके सात प्रदक्षिणा की।

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥


अर्थ: धन्य हैं वे गणेश जो भगवान शिव की आनंदित ह्रदय से कहे गए हैं, और नभ से सुरों के फूल बरसे।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥


अर्थ: तुम्हारी महिमा को बुद्धि द्वारा अप्रमेय बनाया गया है, और शेष नाग भी तुम्हारे गुणों की महिमा को गाने में सक्षम नहीं हैं।

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥


अर्थ: मैं मात्र बुद्धि से रहित, अपवित्र, और दुखी हूं, कृपया आपके समर्पण के लिए कैसे विधि हो सकती है, यह बताइए।

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥


अर्थ: प्रभुदास कहते हैं, "हे रामसुन्दर प्रभु, जग में प्रयाग, ककरा, और दुर्वासा के रूप में तुम्हारी पूजा होती है।"

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥


अर्थ: अब हे प्रभु, हमें दया और दीनता दिखाइए, और अपनी शक्ति और भक्ति से कुछ दो।

दोहा:
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥


अर्थ: श्री गणेश की यह चालीसा पढ़कर और उनका ध्यान करके हर कोई नवा मंगल घर में बसता है, और सभी लोगों का सम्मान होता है।

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