Hanuman Vadvanal Strotra:तंत्र-मंत्र भूत-बाधा का स्वत निवारण

हनुमान वडवानल (Hanuman Vadvanal) स्तोत्र भगवान हनुमान को समर्पित है। इसे प्रसिद्ध  महाकाव्य "रामचरितमानस" के लेखक, संत तुलसीदास ने लिखा और  जिसे सर्प्रथम विभीषण द्वारा हनुमान जी के स्तुति में रचा गया था  यह स्तोत्र विभिन्न बाधाओं का समाधान करने और नकारात्मक ऊर्जा को भगाने  लिए जाना जाता है।

"वडवानल" शब्द संस्कृत में "बड़ी आग" का अर्थ होता है और यह पौराणिक दानव "वडवानल" से संबंधित है, जिनकी अत्यंत विनाशकारी शक्तियाँ थीं। इस स्तोत्र में हनुमान की वीरता और दिव्य गुणों का वर्णन है, जो इच्छाओं की पूर्ति और सुरक्षा के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
हनुमान वडवानल (Hanuman Vadvanal) स्तोत्र में ऐसे छंद हैं जो हनुमान की दिव्य उपस्थिति का संदेश देते हैं और जीवन की चुनौतियों पर काबू पाने में मदद करते हैं। इसे बदनामी, भय, शक्ति और साहस प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

स्तोत्र का पाठ बड़ी विपत्तियों को टालने में मदद करता है। इससे बड़ी-से-बड़ी विपत्ति भी टल जाती है और हनुमान जी की कृपा से सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होती है। इस स्तोत्र के प्रभाव से तंत्र-मंत्र, बंधन, प्रयोग, भूत-बाधा आदि का स्वत: ही निवारण होता है और बड़े-से-बड़े शत्रु भी नष्ट हो जाते हैं।
Hanuman Vadvanal Strotra :तंत्र-मंत्र, भूत-बाधा का स्वत: निवारण


हनुमान वडवानल स्तोत्र  पाठ विधि (Hanuman Vadvanal Stotra recitation method

हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करने की विधि बहुत ही सरल और आसान होती है। इसका पाठ करने से पहले आपको निम्नलिखित विधि का पालन करना चाहिए:

1-प्रात:काल उठकर नित्य कर्म करें: सुबह उठकर नित्य की शुद्धि के लिए कर्म करें।
2-स्नान करें: शुद्ध रहने के लिए स्नान करें।
3-स्वच्छ वस्त्र पहनें: शुद्धता के लिए स्वच्छ वस्त्र पहनें।
4-पूजा स्थल की शुद्धि: पूजा स्थल को शुद्ध करें।

पूजा का विधान:Vidhan of Puja:

हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने लाल आसन पर बैठें।
गणेश जी की पूजा करें, फिर श्रीराम सहित माता सीता की पूजा करें।
तत्पश्चात हनुमान जी की पूजा विधिपूर्वक करें।
दीपक का जलाना: सरसों के तेल का दीपक जलाएं हनुमानजी के सामने।
स्तोत्र का पाठ: "इस  स्तोत्र" का पाठ 108 बार  करें।
पाठ की अवधि: इस पाठ को लगातार 41 दिनों तक करें।
व्रत और आहार: 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन करें।
अन्य सावधानियाँ: सभी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहें।
इस विधि का पालन करते हुए "हनुमान वडवानल स्तोत्र" का पाठ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।


हनुमान वडवानल स्तोत्र मंत्र का तरीका  (The way of Hanuman Vadvanal Stotra Mantra)

 विनियोग

नीचे दिए गए मंत्र को पढ़ते हुए, दाहिने हाथ में जल लें और उसके बाद वह जल भूमि पर छोड़ दें।

ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः,
श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं,
मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे
सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम्
आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं
श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।

ध्यान

हाथ जोड़कर, हम हनुमान जी की ध्यान धरें: इसके बाद निचे दिए मंत्रो को पढ़े 

मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

तत्पश्चात , विधिपूर्वक पूजा करें और स्तोत्र का आरंभ करें।


ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम
सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय

वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र
उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र

अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद

सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय 

ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन
भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर

चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर,
माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस

भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां
ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं

ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां
शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर

आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय
शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय

प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन

परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु
शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय

नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान्
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते
राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र

पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय
नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।

।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।।



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