किस शाप के कारण लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ


"इस ब्लॉग पोस्ट में, हम जानेंगे कैसे और क्यों हुआ था लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा का पृथ्वी पर अवतरण। इस दिव्य रहस्य को सुलझाने के लिए पढ़ें!"


लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा का पृथ्वी पर अवतरण



किस शाप के कारण लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ

लक्ष्मी, सरस्वती ओर गंगा-ये तीनों ही  भगवान विष्णु  की पत्नी  हैँ। ये बडे प्रेमके साथ सर्वदा भगवान्‌ विष्णुके समीप विराजमान रहती हैँ एक बार गंगा कामातुर होकर मुसकराती  हुई भगवान्‌ विष्णुका मुख निहार  रही थीं तब भगवान्‌ विष्णु क्षणभर उनके मुखको ओर  देखकर मुसकराने लगे। उसे देखकर लक्ष्मी ने तो  सहन कर लिया, किंतु सरस्वतीने नहीं  उदारताकी मूर्ति लक्ष्मीने हंसकर  सरस्वतीको  समझाया , किंतु अत्यन्त कोपाविष्ट के कारण  सरस्वती शान्त  नहीं हुई  उस समय लाल नेत्रं तथा मुखमण्डलवाली ओर कुपित तथा कामवेगके कारण निरन्तर कँपते  हुए  सरस्वती अपने पति भगवान्‌ विष्णुसे  कहने लगीं  हे गदाधर! मुझे  ज्ञात हो गया कि गंगापर  आपका अधिक प्रेम रहता है ओर लक्ष्मी पर भी  उसीके समान प्रेम रहता है । किंतु हे प्रभो! मुझ पर आपका थोड़ा भी प्रेम नहीं है 

गंगा ओर लक्ष्मीके साथ आपकी प्रीति समान  है, इसीलिये [ गंगाके] इस विपरीत व्यवहारको भी लक्ष्मीने क्षमा कर दिया अब यरहोँ पर मुझ  अभागिनीके जीवित रहनेसे  क्या लाभ? क्योकि जो स्त्री अपने पतिके प्रेमसे वंचित है, उसका जीवन व्यर्थ हे  

सरस्वती की यह बात सुनकर और उन्हें  कोपाविष्ट  देखकर भगवान ने मन-ही-मन कुछ  सोचा ओर इसके बाद वे वहोँसे बाहर निकलकर सभा में  चले गये 

भगवान्‌ नारायणके चले जानेपर वाणी की   अधिष्ठातृ-देवी  सरस्वती ने कुपित होकर  निरभीकतापूर्वक गंगासे सुननेमें अत्यन्त कटु वचन  कहा सरस्वती ने कहा  हे निर्लज्! हे सकाम! तुम अपने  इतना गर्वं क्यों कर रही हो ? "मेरे ऊपर पतिका अधिक प्रेम  रहता हे '-ऐसा  तुम प्रदर्शित करना चाहती हो ॥

 हे कान्तवल्लभे! आज मेँ भगवान्‌ विष्णुके  सामने ही तुम्हारा अभिमान चूर्णं कर दूँगी; तुम्हारा  वह पति मेरा क्या कर लेगा ? ठेसा कहकर वे गंगाके बाल खींचनेके लिये उद्यत हुई; तब लक्ष्मीने दोनोँके बीचमें आकर  सरस्वतीको ऐसा  करनेसे रोक दिया 

इससे महान्‌ बलवती तथा सतीत्वमयी  सरस्वती ने उन लक्ष्मीको शाप दे दिया कि तुम नदी ओर वृक्ष के रूपवाली हो जाओगी, गंगाका विपरीत आचरण देखकर भी तुमने कुछ   नहीं कहा ओर सभाके बीचमें वृक्ष तथा नदी की भाती  तुम जडवत्‌ बन  गयी थी; इसलिये तुम वही हो जाओ॥ 

यह शाप सुनकर भी लक्ष्मीने न तो शाप दिया  ओर न क्रोध ही किया। वे सरस्वतीका हाथ पकड़कर  दुःखित हो वहीं पर बैठ  गई   कोपके कारण कोपिते हुए ओटों तथा लाल नेत्रोवाली ओर अत्यन्त असन्तुष्ट उस सरस्वतीको  देखकर गंगा लक्ष्मीसे कहने लगीं   हे देवी  तुम अत्यन्त उग्र स्वभाववाली इस सरस्वतीको छोड दो। यह शीलरहित, मुखर, विनाशिनी तथा नित्य वाचाल रहनेवाली सरस्वती मेरा क्या कर लेगी ॥  वाणीकी अधिष्ठात्री देवी यह सरस्वती सर्वदा कलहप्रिय है । इसमें जितनी योग्यता तथा शक्ति हो, वह सब लगाकर यह आज मेरे साथ विवाद कर ले। 

ऐसा  कहकर गंगाने सरस्वतीको शाप दे  दिया।  ओर उन्होने लक्ष्मीसे कहा-- जिस सरस्वतीने  तुम्हे शाप दिया है, वह भी नदीरूप हो जाय। यह नीचे मृत्युलोकमें चली जाय, जहोँ पापीलोग निवास करते हैँ। [वहाँ] यह  उन पापियोके पाप ग्रहण करेगी; इसमे सन्देह नहीं  है गंगाकी यह बात सुनकर सरस्वतीने भी उसे शाप दे दिया कि तुम्हे भी धरातलपर जाना होगा ओर वहाँ  पापियोके पापको अंगीकार करना होगा 

इसी बीच चार भुजाओंवाले भगवान्‌ विष्णु चार  भुजाओंवाले अपने चारों पार्षदोके साथ वहाँ आ  गये सर्वज्ञ श्रीहरिने सरस्वतीका हाथ पकड़कर  प्रेमपूर्वक उन्हे अपने वक्षसे लगा लिया ओर उन्हं शाश्वत तथा सर्वोत्कृष्ट ज्ञान प्रदान किया। उनके कलह तथा शापकी वात सुनकर प्रभु श्रीहरि उन दुःखित स्त्रियोसे समयानुकूल बात कहने लगे ॥ 

श्रीभगवान्‌ बोले--हे लक्षि! हे शुभे! तुम  अपने अंशसे पृथ्वीपर राजा धर्मध्वजके घर जाओ। तुम अयोनिजके रूपमेँ उनकौ कन्या होकर प्रकट होओगी । वहीँ पर तुम दुर्भाग्यसे वृक्ष बन जाओगी। मेरे ही अंशसे उत्पन शंखचूड नामक असुरकी भार्या होनेके बाद ही पुनः तुम मेरी पत्नी बनोगी। उस समय तीनों लोकोंको पवित्र करनेवाली तुलसीके नामसे भारतवर्षे तुम प्रसिद्ध होओगी। हे वरानने! अब तुम सरस्वतीके शापसे अपने अंशसे नदीरूपमें प्रकट होकर भारतवर्षं शीघ्र जाओ ओर वहाँ “ पद्यावती' नामसे प्रतिष्ठित होओ 

 तत्पश्चात्‌ उन्होने गंगासे कहा-- हे गंगे।  लक्ष्मीके पश्चात्‌ तुम भी सरस्वतीके शापवश पापिका पाप भस्म करनेके लिये अपने ही अंशसे विश्वपावनी नदी बनकर भारतवर्षमें जाओ। हे सुकल्पिते! राजा  भगीरथको तपस्यासे उनके द्वारा धरातलपर ले जायी  गयी तुम पवित्र ' भागीरथी ' नामसे प्रसिद्ध होओगी। हे सुरेश्वरि ! मेरी आक्ञाके अनुसार तुम मेरे ही अंशसे उत्पनन समुद्रकौ पत्नी ओर मेरी कलाके अंशसे उत्पन राजा शन्तनुकौ भी पत्नी होना स्वीकार कर लेना ॥ 

 तदनन्तर उन्होने सरस्वतीसे कहा- हे भारति, गंगाके शापको स्वीकार करके तुम अपनी कलासे भारतवर्षे जाओ ओर दोनों सपतल्नियों (गंगा तथा लक्ष्मी) -के साथ कलह करनेका फल भोगो । साथ ही हे अच्युते! अपने पूर्ण अंशस ब्रह्मसदनमें ब्रह्माकी भार्या बन जाओ ॥ गंगाजी शिवके स्थानपर चली जार्यँ। यहँपर  केवल शान्त स्वभाववाली, क्रोधरहित, मेरी भक्त, सत््वस्वरूपा, महान्‌ साध्वी, अत्यन्त सौभाग्यवती, सुशील तथा धर्मका आचरण करनेवाली लक्ष्मी ही विराजमान रहं । जिनके एक अंशक कलासे समस्त लोकोमे सभी स्तर्या धर्मनिष्ठ, पतिव्रता, शान्तरूपा तथा सुशील बनकर पूजित होती हैँ ॥




एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने