महामृत्युंजय स्तोत्र,(Mahamrityunjaya Stotra) जिसे "महान मृत्यु-विजय मंत्र" के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में गहरा महत्व रखता है। प्राचीन संस्कृत में रचित यह स्तोत्र अपनी शक्तिशाली आध्यात्मिक ऊर्जा और असामयिक मृत्यु को दूर करने की क्षमता के लिए पूजनीय है। इस ब्लॉग में, हम महामृत्युंजय स्तोत्र के गहन अर्थ का पता लगाएंगे। इस लिए श्लोक पढ़े और भगवान की कृपा प्राप्त करे।
Mahamrityunjaya Stotra:महामृत्युञ्जय स्तौत्र हिंदी अर्थ सहित-१
नन्दिकेश्वर उवाच
केलासस्योत्तरे शद्धे शुद्ध-स्फटिक-सन्निभ।
तमोगुणविहीने तु जरा-मृत्यु-विवजिंते॥ ९॥
इस श्लोक का अर्थ है कि कैलास पर्वत के उत्तर भाग में, जो शुद्ध स्फटिक की भाँति स्वर्णिम चमकता है, वहां तमोगुण से रहित शिव शान्ति और अमृतता की स्थिति में बना हुआ है। वहां जन्म-मृत्यु का अभास नहीं होता, और वह जिवन के सम्पूर्ण अर्थों का अधिकारी है।
सर्वार्थसम्पदाधारे सर्वज्ञानकृतालये।
कृताञ्जलिपुटो ब्रह्मा ध्यानासीनं सदाशिवम्॥ २॥
इस श्लोक का अर्थ है कि वह ब्रह्मा, सम्पूर्ण आर्थिक धन का संग्रहण करने वाला, सभी ज्ञानों का केंद्र, अपने हृदय के सहस्त्रार में हाथ जोड़कर सदाशिव के सामने ध्यान में बैठा हुआ है।
प्रपच्छ प्रणतो भूत्वा जानुभ्यामवनिं गतः।
सर्वार्थसम्पदाधारो ब्रहालोक-पितामहः ॥३ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि शिव ने भूतों के प्रति प्रणाम करके जनुओं से बचकर अवनि में प्रवेश किया, और सम्पूर्ण धनों का संग्रहण करके ब्रह्मा, लोकपितामह, बने।
पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः।
वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदाऽवतु ।॥ ४ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव, जो सभी रत्नों को धारण करने वाले हैं और पाशों से भयभीत होने वाले हैं, उनका अवतरण वरुण के रूप में हुआ है, और वह पश्चिम दिशा में सदा मेरे साथ रहें।
गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः।
वायव्यां मारुतात्मा मां शंकरः पातु सर्वदा॥ ५ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव, जो गदा और भय का नाश करने वाले हैं, प्राणों के नायक हैं, सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त हैं, वायु के रूप में आत्मा हैं, वह मेरे साथ हमेशा सुरक्षित रहें।
शङ्घाभयकरस्थो मां नायकः परमेर्वरः।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शंकरः प्रभुः॥ ६ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव, जो शंख और भय का नाश करने वाले हैं, परमेश्वर हैं, सभी दिशाओं के भीतर स्थित हैं, उनका सदा ही मेरे साथ सुरक्षा हो।
शूलाभयकरः सर्वविद्यानामधिनायकः।
ईशानात्मा तथेजान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥ ७ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव, जो शूल और भय का नाश करने वाले हैं, सभी विद्याओं के अधीन हैं, ईशान के रूप में आत्मा हैं, वह मेरे साथ हमेशा सुरक्षित रहें।
ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽधः सदाऽवतु ।
शिरो मे शंकरः पातुः ललाटं चन्द्रशेखरः ॥ ८ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव, जो ऊर्ध्व भाग में ब्रह्म के रूप में हैं, जो सभी विश्वों के आधार में हैं, वह सदा ही मेरे शिर पर शंकर और ललाट पर चंद्रशेखर के रूप में रहें।
भ्रूमध्यं सर्वलोकेशटस्त्रिनेत्रो लोचनेऽवतु ।
भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥ ९ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव, जो सम्पूर्ण लोकों के माध्यम से ब्रह्मा के रूप में हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो भूमि पर स्थित हैं, वह मेरी भूभाग्यशाली भ्रू, नेत्र, और करणों को सदा ही सुरक्षित रखें।
"नासिकां मे महादेव ओष्ठो पातु वृषध्वजः ।
जिह्यं मे दक्षिणमूरतिर्दन्तानमे गिरिशोऽवतु ॥ १० ॥"
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव, जो वृषभ के ध्वज के रूप में हैं, जो मेरी नाक को सुरक्षित रखें, जिनका ओष्ठ मेरे लिए सुरक्षा करे, और जो मेरी जीभ, दक्षिणमूर्ति, और दंतों को सदा ही सुरक्षित रखें।
मृत्युजयो ` मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः ।
पिनाको मत्करौ पातु त्रिशूली हदयं मम॥ ११ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि मृत्युजय, जो सर्पभूषण धारण करने वाले हैं, उनका अवतरण मेरे मुख पर हो, कण्ठ पर नागभूषण के साथ हो, मेरे हृदय पर पिनाक और मत्करौ, और मेरे हृदय पर त्रिशूली हो।
पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीर्वरः।
नाभिं पातु विरूपाक्षः पारव मे पार्वतीपतिः ॥ १२ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि पार्वतीपति, जो पाँच मुखों वाले हैं, उनका अवतरण मेरे स्तनों पर हो, जगत्पति, मेरे उदर पर हो, विरूपाक्ष, मेरी नाभि पर हो, और पार्वतीपति, मेरे नाभि के उपर पर हो।
करटिद्रयं गिरिशो मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः ॥ १३ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महेश्वर, जो तीन मुखों वाले हैं, उनका अवतरण मेरे करों पर हो, पृष्ठ पर प्रमथाधिप, और मेरे मूर्धन पर भैरव रूप में हो।
जानुनी मे जगद्धर्ता जंघे मे जगदसम्बिका।
पादौ मे सततं पातु लोकवन्यः सदाशिवः ॥ १४ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जगद्धर्ता, जो जानुं में हैं, जगदसम्बिका, जो जंघों में हैं, सदाशिव, जो पादों में हैं, वह सदा ही मेरे साथ रहें, जो सम्पूर्ण लोकों के उत्तम हैं।
गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम।
मृत्युजयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥ १५ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि गिरिश, जो मेरी पत्नी को सुरक्षित रखें, भव, जो मेरे पुत्रों को सुरक्षित रखें, मृत्युजय, जो मेरे आयु को जीते रखें, और गणनायक, जो मेरे मन का नेता हो।
सर्वाङ्ग मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम्॥ १६ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि सदाशिव, जो समय के समर्थन करने वाले हैं, उनका अवतरण मेरे सभी अंगों पर हो, और यह तेरा कवच और देवताओं का अत्यंत दुर्लभ है।
मृतसंजीवनं नाम्नां महादेवेन कोर्तितम्।
सहस्ावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम्॥ १७ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि महादेव ने मृतसंजीवन नामक अमृत रस को इसके नाम से तैयार किया है, और इसका सहस्त्रावर्तन और पुनः पुनः उसके पुरश्चरण से यह सिद्ध होता है।
यः पठेच्छणुयाचित्यं श्रावयेत्सुसमाहितः।
स कालमृत्युं निर्जिंत्यं सदायुष्यं समश्नुते ॥ १८ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जो इस कवच को भगवान शिव की भक्ति और श्रद्धा से पढ़ता है, सुनता है और इसे समझता है, वह समय और मृत्यु को जीतकर हमेशा जीवन और आयुष्य का आनंद लेता है।
हस्तेन वा यदा स्पुष्टवा मृतं संजीवयत्यसो ।
आधयो व्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन॥ १९ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जब कभी कोई व्यक्ति मृत्यु के करीब होता है या किसी व्याधि से पीड़ित होता है और जब वह भगवान शिव की प्रार्थना करता है, तो उसके हाथ से स्पर्श करने पर वह शीघ्र स्वस्थ हो जाता है और उसे किसी प्रकार की व्याधि नहीं होती।
कालमृत्यमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा।
अणिमादिगुणैश्वर्य लभते मानवोत्तमः ॥ २० ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि यह कवच एक ऐसे व्यक्ति को सर्वदा जीत की प्राप्ति कराता है जो सम्पूर्ण गुणों और ईश्वरीय शक्तियों से सम्पन्न है, और वह मनुष्यों में श्रेष्ठ है।
शुद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम्।
युद्धमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वेनं दृश्यते ॥ २१ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति इस कवच को शुद्ध मन से पढ़कर आरंभ करता है, उसको यह आठ विंशति श्लोकों वाला कवच पूरा करना चाहिए। युद्ध के बीच स्थित शत्रु उसे तुरंत हर लेता है और सभी दिशाओं से दृश्यमान हो जाता है।
न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति यस्य वे।
विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा ॥ २२ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जिनके लिए ब्रह्मा आदि देवताएं भी उसके द्वारा चलाए जाने वाले शस्त्रों को नष्ट करती हैं, वह व्यक्ति देवयुद्ध के बीच में भी हमेशा जीत ही प्राप्त करता है।
प्रातरुत्थाय सत्तं यः पठेत्कवचं शुभम्।
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च॥ २३ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति सुबह उठकर इस शुभ कवच को पढ़ता है, वह अक्षय्य सौख्य को इस लोक में और परलोक में भी प्राप्त करता है।
सर्वव्याधिविनिर्मुक्तः सर्वरोगविवर्जितः ।
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडषवार्षिकः॥ २४ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति इस कवच को पढ़कर सम्पूर्ण व्याधियों से मुक्त होता है, सभी रोगों से बचा रहता है, अजरा और अमर होकर हमेशा षोडशवार्षिक आयु का आनंद लेता है।
विचरत्यखिलाल्लोकाम्प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान्।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहूतम्॥ २५ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति इस कवच को पढ़कर सम्पूर्ण लोकों की यात्रा करता है और अत्यंत दुर्लभ भोगों को प्राप्त करता है, उसे यह अत्यंत गोपनीय कवच मिला हुआ है।
मृतसंजीवनं नाम्ना देवतैरपिदुर्लभम्॥ २६ ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि मृतसंजीवन नामक इस कवच का आदिकाल से ही उपयोग किया जा रहा है, और यह देवताओं के द्वारा दुर्लभ माना जाता है।