सम्पूर्ण महामृत्युञ्जय कवचम्‌ का हिंदी अर्थ - रहस्य और फायदे


इस ब्लॉग पोस्ट में हम महामृत्युञ्जय कवचम्‌ (Mahamrityunjaya Kavacham)के चित्र के साथ हिंदी में विवरण करेंगे। कवच का अर्थ, उसके रहस्य, और इसके उपयोग से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को हम आपको साझा करेंगे। यह पोस्ट आपको महामृत्युञ्जय कवचम्‌ (Mahamrityunjaya Kavacham)को समझने और इसके लाभों को समझने में मदद करेगी।"

सम्पूर्ण महामृत्युञ्जय कवचम्‌ का हिंदी अर्थ - रहस्य और-लाभ

महामृत्युंजय कवच:Mahamrityunjaya Kavacham

सम्पूर्ण महामृत्युञ्जय कवचम्‌ (Mahamrityunjaya Kavacham)का हिंदी अर्थ जानने के लिए इस लेख में उसके रहस्य और फायदों की विस्तृत चर्चा की गई है। महामृत्युञ्जय कवचम्‌ (Mahamrityunjaya Kavacham)एक प्राचीन मंत्र है जिसे भगवान शिव के प्रशंसकों द्वारा पूजा जाता है। इसके अध्ययन से लाभ मिलते हैं, जैसे कि शांति, सुरक्षा, और मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार। यह मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है जो भय को दूर करने और विपदा से सुरक्षा प्रदान करता है।

महामारी, महारोग, और भयंकर शत्रु - इन अद्भुत कवचों का पाठ करने से मनुष्य अपने जीवन को सुरक्षित बना सकता है। ये कवच तीनों लोकों में दुर्लभ हैं और सर्वमंत्रों और तंत्रों में अत्यधिक शक्तिशाली हैं। महामृत्युंजय मंत्र एक शक्तिशाली और प्राचीन मंत्र है जो जीवन को संरक्षित करने के लिए अद्वितीय है। इस मंत्र को 'त्रयंबकम' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'तीन आँखों वाला'। यह मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में प्रमुख रूप से मिलता है।

महामृत्युंजय कवच के लाभ:Benefits of Mahamrityunjay Kavach:

1. रक्षा की शक्ति: महामृत्युंजय कवच एक यन्त्र है जो सभी बुरी शक्तियों से रक्षा करता है। इसे धारण करने से आस-पास एक कवच बनता है जो व्यक्ति को सभी नकारात्मक शक्तियों से बचाता है। 

2. सकारात्मक ऊर्जा: कवच का प्रयोग सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है और व्यक्ति को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखता है। 

3. रोग मुक्ति: महामृत्युंजय कवच शरीर को सभी रोगों से मुक्ति प्रदान करता है और जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने में मदद करता है। 

5. आपातकाल में सुरक्षा: महामृत्युंजय मंत्र का जाप आपातकाल में व्यक्ति को सुरक्षित रखता है और उसे आगामी मुश्किलों से बचाता है। 

6. रोगनाशक: यह मंत्र शरीर के रोगों को दूर करने में सहायक होता है और व्यक्ति को स्वस्थ रखता है। 

7. ऊर्जा और हिम्मत: महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति को ऊर्जा और हिम्मत मिलती है, जो उसे जीवन के छलांगों में मदद करती है। 

महामृत्युंजय जाप का समय: Mahamrityunjaya chanting time:

महामृत्युंजय मंत्र का जाप सबसे अच्छा तीन समयों पर किया जा सकता है - सुबह, दोपहर, और सायं। यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति पूरे दिन में इस मंत्र का नियमित जाप करता है और उसका जीवन सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है।

सम्पूर्ण महामृत्युञ्जय कवचम्‌ का हिंदी अर्थ

महामृत्युञ्जय कवचम्‌-१ 

भैरव उवाच 


शृणुष्व परमेशानि कवचं मन्मुखोदितम्‌।
 महामृत्युञ्जयस्यास्य न देवं परमाद्भुतम्‌॥ ९॥ 

श्री भैरव जी ने कहा--हे महेश्वरि ! इस परम्‌ श्र्यवान्‌ कवच को मेरे मुख से सुनो। इस अद्भुत महामत्युञ्जय कवच को किसी को नदे। 

यं धृत्वा यं पठित्वा च श्रुत्वा च कवचोत्तमम् ।
त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा सुखितोऽस्मि महेश्वरि ॥ २ ॥

इस उत्तम कवच को जौ धारण करे, पढ़े  या सुनेगा वह्‌ त्रैलोक्य का मालिक होकर सुख से रहेगा । 

तदेववर्णयिष्यामि तव प्रीत्या वरानने ।
तथापि परमं तत्वं न दातव्यं दुरात्मने ॥ ३ ॥

हे वरानने! उसका वर्णन तुम्हारी प्रीति देखकर करता हू यह परम तत्व है किसी भी दुरात्मा को नहीं देना बताना चाहिए।

 विनियोग पदकर जल गिरावे-

अस्य श्रीमहामृत्युञ्जयकवचस्य श्रीभैरव ऋषिः,
गायत्रीछन्दः, श्रीमहामृत्युञ्जयो महारुद्रो देवता,
ॐ बीजं, जूं शक्तिः, सः कीलकं, हौमिति तत्वं,
चतुर्वर्गसाधने मृत्युञ्जयकवचपाठे विनियोगः ।

ध्यानं | 

चन्द्रमण्डलमध्यस्थं रुद्रं भाले विचिन्त्य तम् ।
तत्रस्थं चिन्तयेत् साध्यं मृत्युं प्राप्तोऽपि जीवति ॥ १ ॥

चन्द्रमण्डल मध्य मेँ धारण किए हए विचित्र माला धारण किये हुए जो  रुद्र का जो चिन्तन करता है उसे मृत्यु प्राप्त होने पर भी जीवन मिल जाता हे।

ॐ जूं सः हौं शिरः पातु देवो मृत्युञ्जयो मम ।
ॐ श्रीं शिवो ललाटं मे ॐ हौं भ्रुवौ सदाशिवः ॥ २ ॥

ॐ, जूं, सः, हौं। भगवान मृत्युञ्जय, मेरे सिर की रक्षा करें। ॐ श्रीं, मेरे ललाट पर भगवान शिव का साकार रूप हो। ॐ हौं, मेरी भृविंदल (भ्रुवौ) पर सदाशिव (शिव) स्थित रहें॥

नीलकण्ठोऽवतान्नेत्रे कपर्दी मेऽवताच्छ्रुती ।
त्रिलोचनोऽवताद् गण्डौ नासां मे त्रिपुरान्तकः ॥ ३ ॥

नीलकण्ठ, जिसने नीले कंठ (गले) को धारण किया है, जिसके नेत्र नीले हैं, जिसने कपर्दी (वस्त्र) धारण किया है, जिसने श्रुती (गुंथित बाल) धारण किया है, जिसके तीन नेत्र हैं, जिनके गले पर त्रिपुरान्तक (त्रिपुरासुर सम्हारक) कहा गया है, जिनकी गुलाबी त्वचा (शरीर) में चंदन की सुगंध बसी है, जो त्रिलोचन (तीन नेत्रों वाले) हैं, जिनके गले पर नीला वस्त्र है, और जिनकी नासिका (नाक) पर त्रिपुरान्तक है॥ ३ ॥"

मुखं पीयूषघटभृदोष्ठौ मे कृत्तिकाम्बरः ।
हनुं मे हाटकेशनो मुखं बटुकभैरवः ॥ ४ ॥

मुख मे अमृतघर रूपी शिव, ओष्ठों मे कृत्तिकाम्बर । ठोड मे हारकेश्वर, मुख में बटक भैरवः ।

कन्धरां कालमथनो गलं गणप्रियोऽवतु ।
स्कन्धौ स्कन्दपिता पातु हस्तौ मे गिरिशोऽवतु ॥ ५ ॥

कन्धे में कालमथन, गले में गणप्रिय । स्कंधप्रदेश में स्कदपिता, हाथ मे गिरीश।

नखान् मे गिरिजानाथः पायादङ्गुलिसंयुतान् ।
स्तनौ तारापतिः पातु वक्षः पशुपतिर्मम ॥ ६ ॥

पादो कौ संयुक्त अंगुलिसहित नखों में गिरिजानाथ । स्तनो में तारापति, वक्षस्थल में पशुपति।

कुक्षिं कुबेरवरदः पार्श्वौ मे मारशासनः ।
शर्वः पातु तथा नाभिं शूली पृष्ठं ममावतु ॥ ७ ॥

कुक्षि मे वर देने वाले कुबेर, पार्श्व मंडल मे मारशासन। नाभि स्थान में शर्वं, पृष्ठ स्थान मेँ शूली ।

शिश्नं में शंकरः पातु गुह्यं गुह्यक वल्लभः ।
 कटिं कालान्तक पायाद्‌ उरु्मेधकघातनः ॥ ८ 

लिंग स्थान में शंकर, गुदा स्थान में गृह्यकबल्लभ । करि मं कालान्तक, ऊरू मे अंधक घात।

जागरूकोऽवताज्जानू जङ्घे मे कालभैरवः ।
गुल्फो पायाज्जटाधारी पादौ मृत्युञ्जयोऽवतु ॥ ९ ॥

जानु में जागरूक, जंघाओं में कालभैरव । गुल्फ स्थान में जटाधारी, पादस्थान में मृत्युञ्जय 

पादादि मूर्धापर्यन्तं सद्योजातो ममावतु।
रक्षाहीनं नामहीनं वपुः पात्वमृतेशुवरः ॥ ९०॥

"पाद से लेकर सिर तक, सद्योजात (एक प्रकार का शिव) मुझे सन्मुख करें। जिनका शरीर रक्षा से रहित, नाम और पहचान से रहित हो, ऐसा मृतेश्वर (मृत्यु के भगवान) मेरे शरीर को पाते रहें॥ ९०॥"

पूर्वं बलविकरणो दक्षिणे कालशासनः।
 पश्चिमे पार्वतीनाथ उत्तरे मां मनोन्मनः॥ १९॥ 

"पूर्व में बलविकरण, दक्षिण में कालशासन, पश्चिम में पार्वतीनाथ, और उत्तर में मां मनोन्मनः॥ १९॥ प

यहाँ दिए गए मंत्रों को सही से लिखा गया है:

ऐशान्यामीश्वरः पायादाग्नेयामग्निलोचनः | 
नैऋत्यां शम्भुरव्यान्मां वायव्यां वायुवाहनः ||

अर्थ: इश्वर, दिशा का शासक, आग्नेय स्वरूप, अग्नि का धारक, नैऋत्य दिशा में शंभु, वायव्य दिशा में वायुवाहन, यह सभी मुझे सुरक्षित रखें।

 ऊध्वं बलप्रमथनः पाताले परमेर्वरः।
 दश दिक्ष सदा पातु महामृत्युञ्जयश्चमाम्‌॥९३॥

अर्थ: ऊपर स्थित बलप्रमथन, पाताल में परमेश्वर, सभी दिशाएं मुझे सदा महामृत्युञ्जय स्वरूप रक्षा करें।

रणे राजकुले द्यूते विषमे प्राणसंशये।
पायादों जं महारुद्रो देवदेवो दशाक्षर॥१४॥

अर्थ: युद्ध, राजकुल, जूवा, विषम स्थिति, और प्राणसंकट के समय मुझे पायादों जं महारुद्रो, देवों के देव, दशाक्षर स्वरूप रक्षा करें।

प्रभाते पातु मां ब्रह्मा मध्यान्हे भैरवोऽवतु।
सायं सर्वेश्वरः पातु निशायां नित्यचेतनः ॥ ९५॥

अर्थ: प्रातः काल में मुझे ब्रह्मा, मध्याह में भैरव, सायंकाल में सर्वेश्वर, रात्रि में नित्यचेतन स्वरूप रक्षा करें।

अर्धरात्रे महादेवो निशान्ते मां महोदयः।
सर्वदा सर्वतः पातु ॐ ज्‌ सः हौं मृत्युञ्जयः ।॥१६॥

अर्थ: अर्धरात्र में महादेव, रात्रि के अंत में महोदय, सब स्थानों में सदा सर्वत्र पातु, ॐ ज्‌ सः हौं मृत्युञ्जय स्वरूप रक्षा करें।

इतीदं कवचं पुणयं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्‌।  
सर्वमंत्रमयं गद्यं सर्वतंत्रेषु गोपितम्‌॥ ९७॥

यह तीनों लोकों में पुण्यप्रद दुर्लभ मृत्युञ्जय कवच सर्वमन्त्रमय गुप्त से भी गुप्त तीनों लोकँ मे हे

पुण्यं पुण्यप्रदं दिव्यं देवदेवाधिदेवतम्‌।
य इदं च पठेन्म॑त्र कवचं वाचयेत्ततः॥९८॥

यह पुण्य से भी पुण्यप्रद, दिव्य, देवों के देव महामृत्युञ्जय का मन्त्र संपन्न है। जो इस कवच को मन में धारण करता है, उसके हाथ में हे महादेवि! त्य॑बक का अष्टसिद्धि है। युद्ध में धारण करने से, युद्ध में विचरता हुआ शत्रुओं का नाश करके वह जय प्राप्त करता है।

जपं कृत्वा गृहे देवि स प्राप्स्याति सुखं पुनः।
महाभये महारोगे महामारीभये तथा॥२०॥

जब इसे गृह में जप करेगा, तो वह पुनः सुख को प्राप्त होता है। यह महाभय, महारोग, और महामारी के समय में भी लाभकारी है।

दुर्भिक्षे शत्रु संहारे पठेत्कवचमादरात्‌।
सर्वं॒तत्प्रशमं याति मृत्युञ्जय प्रसादतः॥२१॥

दुर्भिक्ष, शत्रुसंहार के समय में इस कवच का आदर-सम्मान के साथ पाठ करें। इससे सभी संकट समाप्त होते हैं, मृत्युञ्जय की कृपा से।

धनं पुत्रान्सुखं लक्ष्मीमारोग्यं सर्वसम्पदः।
प्राणोति साधकः सद्यो देवि सत्यं न संशयः ॥ २२॥

धन, पुत्र, सुख, लक्ष्मी, आरोग्य, सम्पत्ति, प्राण - सभी इस साधक को प्राप्त होते रहते हैं, और इसमें कोई संदेह नहीं है।

इतीदं कवचं पुण्यं महामृत्युञ्जयस्य तु।
गोप्यं सिद्धिप्रदं गुह्यं गोपनीयं स्वयोनिवत्‌॥ २३॥

यह महापुण्यकारी, गुप्त, सिद्धिप्रद, गोपनीय और स्वयं योनिवत्‌ होने वाला महामृत्युञ्जय कवच गोपनीय है।



महामृत्युञ्जय कवच (२)

श्रीदेव्युवाच

भगवन्‌ सर्वधर्मज्ञ सृष्टिस्थितिलयात्मक।
मूत्युजयस्य देवस्य कवचं मे प्रकाशय ॥

श्री देवी ने कहा, "भगवान, जो सभी धर्मों को जानने वाले हैं और सृष्टि, स्थिति और प्रलय को नियंत्रित करने वाले हैं, मृत्युजय नामक देवता का कवच मुझे प्रकट करें॥"

श्री ईश्वर उवाच

श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम्‌।
मार्कण्डयोऽपि यद्भूत्वा चिरंजीवी व्यजायत ॥

श्री ईश्वर ने कहा, "देवी, मैं सब सिद्धियों का दाता कवच स्वरूप में तुझे बताता हूँ। मार्कण्डेय भी इसका अनुसरण करके अमर बना था॥"

तथेव सर्वदिक्पाला अमरावमवाप्नुयुः।
कवचस्य ऋषिर्ब्रह्या छन्दोऽनुष्टुबुदाहतन्‌॥

इसके ऋषि ब्रह्या हैं और छन्द अनुष्टुप है। मृत्युञ्जय नामक देवता इसका संरक्षक है और इसका विनियोग देह के रोग, दलायुष, और आरोग्य में बताया गया है॥"

मृत्युंजयः समुदिष्टो देवता पावंतीपतिः।
देहारोग्यदलायुष्ट्वे विनियोगः प्रकीर्तितः ॥

मृत्युजय देवता, पावंतीपति, इसका उद्गार करते हैं। इसका पाठ करने से शरीर की रक्षा, रोगमुक्ति और दीर्घायु होती है। इसका प्रयोग नियमित रूप से देहारोग्य और दीर्घायु के लिए किया जाता है।"

ॐ त्रयम्बकं मे शिरः पातु ललाटं मे यजामहे ।
सुगन्धि पातु हदयं जठरं पुष्टिवर्धनम्‌॥

ॐ त्रयम्बकं, जो मेरे शिर पर पात रखता है, ललाट पर मैं उसकी पूजा करती हूँ। सुगन्धि, हृदय, जठर, पुष्टिवर्धन ये सभी मुझे इस त्रयम्बक के माध्यम से प्राप्त होते हैं।"

नाभिमु्वारुकमिव पातु मां. पार्वतीपतिः।
बन्धनादूस्युग्मं मे पातु वामाङ्ख्ासनः॥

नाभि, जो मेरे मूढ़ रूप की तरह है, उसका पात रखता है। पार्वतीपति, वामाङ्ख की ओर मेरे बांह को रक्षा करते हैं।"

मत्योजानुयुगं पातु दशक्षयज्ञविनानः।
जंघायुग्मं च मुक्षीय पातु मां चनद्रशोखरः॥

मृत्युजय देवता, जो दशक्षयज्ञ के बिना पूर्ण है, जंघों को मुक्त करते हैं और चन्द्रशोखर, जो मेरे शिर को रक्षा करते हैं।

माम॒ताच्च पदद्न्द्धं पातु सर्वेश्वरो हरः।
प्रसौ मे श्रीशिवः पातु नीलकण्ठश्च पार्वयोः ॥

मेरे पैरों के नीचे विचारशीलता रहती है और उसका प्रयोग सर्वेश्वर, हर, श्रीशिव और नीलकण्ठ देवताओं की पूजा के लिए किया जाता है।"

ऊर्ध्वमेव सदा पातु सोमसूर्याग्निलिचनः।
अधः पातु सदा शम्भुः सर्वांपद्धिनिवारणः ॥

ऊपरी स्वर्ग में सोम, सूर्य और अग्नि, जो यह सम्पूर्ण जगहों के कार्यों में स्थित हैं, वह मुझे सदा पाते रहें। नीचे शंभु, सर्व कार्यों की रक्षा करने वाले, सदा मुझे पाते रहें।"

वारूण्यामर्धनारी्ो वायव्यां पातु शंकरः।
कपर्दो पातु कोवेयमिशान्यां ईश्वरोऽवत्‌॥!

वारूणी दिशा में वायुपुत्र, शंकर देवता की रक्षा करें। कपर्द, कोवेय और इशान, जो अपनी पूजा करते हैं।

ईशानः सलिले पायदघोरः पातु कानने।
अन्तरिक्षे वामदेवः पायात्तत्पुरुषो भुवि॥

ईशान, सागर में रहता है, पाय को शुद्ध करता है, दघोर रूप में काननों में रक्षा करता है। आकाश में वामदेव, भूमि पर पुरुष, ये सभी मुझे पाते रहें

श्रीकण्ठः शयने पातु भोजने नीललोहितः।
गमने त्र्यम्बकः पातु सर्वकार्येषु भुवतः॥

श्रीकण्ठ, जब मैं शयन करती हूँ, वह मुझे पाते रहें, भोजन के समय नीललोहित देवता मेरी रक्षा करें। गति के समय त्रयम्बक देवता मुझे पाते रहें, सर्व कार्यों में भुवतः

सर्वत्र स्वदेहं मे सदा मूृत्युजयोऽवतु।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्वकामदम्‌॥

सर्वरश्चाकरं सर्वग्रहपीड़ा-निवारणम्‌।
दुःस्वप्ननाशनं पुण्यमायुरारोग्यदायकम्‌॥

त्रिसंध्यं यः पठेदेतन्मृत्युतस्य न विद्यते ।
लिखितं भूर्जपत्रे तु य इदं मे व्यधारयेत्‌॥

तं दृष्टेव पलायन्ते भतप्रेतपिश्ाचकाः।
डाकिन्यश्यैव योगिन्यः सिद्धगन्धर्वराक्षसः ॥

बालग्रहादिदोषा हि नश्यन्ति तस्य दर्णनात्‌।
उपग्रहाष्चैव मारीभयं यचोराभिचारिणः ॥

इदं कवचमायुष्यं कथितं तव॒ सुन्दरि।
न दातव्यं प्रयतेन न प्रकाश्यं कदाचन्‌ 


सर्वत्र, हमेशा मेरे शरीर की रक्षा करें, सदा मृत्युजय देवता हमेशा मेरे साथ हों। इसी प्रकार, यह दिव्य कवच सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है, सभी दिशाओं की रक्षा करने वाला है। सर्व रक्षा, सर्व ग्रहों के पीड़ा निवारण, दुःस्वप्न नाशक, पुण्य, आयुर्विद्या दायक है। जो व्यक्ति इस कवच को त्रिसंध्यमान पठता है, उसकी मृत्युता नहीं होती है। यदि कोई इसे भूमि पर लिखकर रखता है, तो भी उसकी रक्षा होती है।""जो कोई इस कवच को देखता है, उस पर भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, योगिनी, सिद्ध, गन्धर्व, राक्षस और उपग्रह आदि भयभीत होकर दूर हो जाते हैं। बालग्रह और अन्य दोष भी नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इसे प्रयत्नपूर्वक रखा जाना चाहिए, लेकिन इसे किसी को नहीं दिखाना चाहिए।"

"यह कवच काव्य रचना का है और इसमें सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। किसी को भी इसे दान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका प्रकाशन कभी भी नहीं होना चाहिए।"

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