Mahamrityunjay Stuti:महामृत्युञ्जय स्तुति हिंदी अर्थ सहित

स्तोत्र की  ही भति  महामृत्युञ्जय स्तुति (Mahamrityunjay Stuti) का गायन किया जाता हे। इस स्तुति के जप से आई हुई मृत्यु भी जप के समाप्त होने तक ठहर जाती है। इसके जपने से अकाल मृत्यु के कारण भी समाप्त हो जाते हें अर्थात्‌ साधक पूर्णायु हो जाता है । इसके पाठ से स्वप्न के अशुभ फल भी शुभ फलों के दाता हो जाते हैँ । आपके   ऊपर किया गया कोई भी मारण प्रयोग सफल नहीं हो पाता । इस स्तुति को पंचमी, दशमी तथा पूर्णिता के दिन पढने से रोगादि का अन्त हो जाता हे।  


Mahamrityunjay Stuti


Mahamrityunjay Stuti:महामृत्युञ्जय स्तुति हिंदी अर्थ सहित 

नन्दिकेश्वर उवाचः

कैलासस्योत्तरे श्वंगे शुद्धस्फटिकसन्तिभे।
तमोगृहीतविहीने तु जरामृत्युविवर्जिंते ॥

अर्थ: उत्तर स्वंग में, कैलास पर्वत के ऊपर, शुद्ध स्फटिक (क्रिस्टल) के समान चमकने वाले स्थान में, जिसका अंतर्गत तमोगुण को ग्रहण करने का अभास नहीं होता है, वहाँ जरा, मृत्यु, और अमृत से मुक्त होते हैं।

सवार्थसम्पदाधारे सर्वज्ञानकृतालये।
कृताजंलिपुटो ब्रह्मा ध्यानासीनं सदाशिवम्‌॥

अर्थ:-जो सभी अर्थों की समृद्धि का आधार है, सर्वज्ञान का क्रीडालय है, कृतांजलि (हाथ जोड़ने वाला) और पुट (पत्तियाँ) से युक्त है, वह ब्रह्मा, सदाशिव के साथ ध्यान में बैठा है।

पप्रच्छप्रणतो भूत्वा जानुभ्यामवनिं गतः।
सर्वार्थसम्पदाधार ब्रह्मलोक-पितामहः ॥

अर्थ:-जिन्होंने प्रणाम किया और जानुभ्यां (जांघों से) वन में पहुंचा, उनका सभी अर्थों को प्राप्त करने वाला ब्रह्मा, ब्रह्मलोक और पितामह (ब्रह्मा) है।

ब्रह्मोवाचः

केनोपायेन देवेश चिरायुर्लोमरोऽभवेत्‌।
तन्मे ब्रूहि महेशान लोकानां टहितकाम्यया॥

अर्थ:-हे महेश्वर! देवों को कृतार्थ करने वाला चिरायु बनाने का क्या उपाय है? मुझे उसकी जानकारी दीजिए, क्योंकि मैं लोकों के हित में आपकी इच्छा के अनुसार इसे जानना चाहता हूँ।

श्री सदाशिव उवाच:

शृणु ब्रह्मन्‌ प्रवक्ष्यामि चिरायुर्मनिसत्तमः।
संजातः कर्मणा येन व्याधिमुत्युविवर्जितः॥

अर्थ:हे ब्रह्मा! सदा शुद्ध बुद्धि वाले मनिसत्तम (श्रेष्ठ मुनि) चिरायु बनाने का विचार करता हूँ। जिसने कर्मणा (कर्म के माध्यम से) व्याधि और मृत्यु को त्याग दिया है।

तस्मिनेकार्णवे घोरे सलिलौधपरिप्लुते।
कृतान्तभयनाशाय स्तुतोमृत्युजयः शिवः॥

अर्थ:-जो एकार्णव (समुद्र) के अंदर भयंकर प्रलय के समय बहता है, जिसमें समुद्र जल से पूर्ण हो जाता है, वह भय का नाश करने वाला, अमृत्युजय (मृत्यु को जीतने वाला) भगवान शिव है।

तस्य संकोर्तनान्तर्गतं मुनिर्मुत्युविवर्जिंतः।
तमेवक्कीर्तयन् रहित्यं मृत्युं जेतुं न संशयः॥

अर्थ:-जिस भगवान के हृदय में संकोच हो रहा है और जो मुनि द्वारा मृत्यु को जीत रहा है, वह भगवान शिव है। उसका स्तुति करने से सर्वदा मृत्यु को जीतने का अभास होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

लोमश उवाच:

ॐ देवाधिदेव! देवेशा! सर्वप्राणभताम्बर।
प्राणीनामपिनाथस्तवं मृत्युंजय नमोस्तु ते॥

अर्थ:- हे देवाधिदेव! देवेश! आप सभी प्राणियों के प्रभु, आपको शत्रुता करने वाले मृत्यु को जीतने वाले रूप में हम नमस्कार करते हैं॥

देहिनां जीवभूतोऽसि जीवोजीवस्य कारणम्‌।
जगतां रक्षकस्त्वं वै मृत्युंजय नमोस्तु ते॥

अर्थ:- आप सभी जीवों के देही और जीवन के कारण हैं, आप ही सभी जगत के रक्षक हैं, हम आपको मृत्यु को जीतने वाले रूप में नमस्कार करते हैं॥

हेमाद्विशिखराकार सुधावीचिमनो हरे।
पुण्डरीकपरे ज्योतिर्मृत्युजय नमोस्तु ते॥

अर्थ:- आपका रूप सोने के विशेषकर से भी सुंदर है, आप हेमाद्विशिखर (सोने के शिखर) के आकार में हैं, आप अशुभ रूपों को हरने वाले हैं, हम आपको मृत्यु को जीतने वाले रूप में नमस्कार करते हैं॥

ध्यानाधारमहाज्ञान सर्वज्ञानैककारण।
परित्राणासि लोकानां मात्युजय नमोस्तु ते॥


अर्थ:- आप महत्त्वपूर्ण ध्यान के आधार, अत्युत्तम ज्ञान, सर्वज्ञान के एक कारण हैं, आप सभी लोकों की रक्षा करने वाले हैं, हम आपको मृत्यु को जीतने वाले रूप में नमस्कार करते हैं॥

निहता येन कालेन स देवासुरमानुषाः।
गन्धर्वाप्सरसश्येव सिद्धविद्याधरास्तथा॥


अर्थ:- जिस काल द्वारा देवताओं, असुरों, और मानवों का समुद्र से निगल लिया गया है, उसी अद्भुत शक्ति के ध्यान से आपको नमस्कार करते हैं। आपने गन्धर्व, अप्सरा, सिद्ध, विद्याधर आदि को भी विजय प्रदान की है, उन सभी को नमस्कार करते हैं॥

साध्याश्च ववो रुद्रास्तथाश्विनिसुतावुभौ।
भरुवश्च दिशो नागाः स्थावरा जंगमास्तथा॥

अर्थ:- साध्य गण, रुद्र, और अश्विनीकुमार आपके अनुग्रह से प्रभावशाली हुए हैं, आपने सम्पूर्ण दिशाएं और स्थावर-जंगम सभी चीजें आपकी आज्ञा में स्थान पाई हैं, हम आपको मृत्यु को जीतने वाले रूप में नमस्कार करते हैं॥

जितः सोऽपि त्वया ध्यानात्मृत्युंजय नमोऽस्तु ते।
य ध्यायन्ति परां मूर्तिम्पूजयन्त्यमरादयः॥
न ते मृत्युवशं यान्ति मृत्युंजय नमोऽस्तु ते॥


अर्थ:- जो भी आपके ध्यान से और पूजा करते हैं, उन्हें आप जीत लेते हैं, हे मृत्युजय, हम आपको नमस्कार करते हैं॥ जो लोग आपके ध्यान और पूजा करते हैं, वे मृत्यु के वशीभूत नहीं होते, हे मृत्युजय, हम आपको नमस्कार करते हैं॥

श्री सदाशिव उवाच:

एवं सङ्कीर्तयेत्‌ यस्तु शुचिस्तद्गतमानसः।
भक्त्याश्चणोति यो ब्रह्मन्न स मृत्युवशो भवेत्‌॥


अर्थ:- जो शुद्ध मन और चित्त के साथ भक्ति से ब्रह्म का संकीर्तन करता है, वह व्यक्ति मृत्यु के वशीभूत नहीं होता, ऐसा निश्चित है॥

न च मृत्युभयं तस्य प्राप्तकालं च लङ्कयेत्‌।
अपमृत्युभयं तस्य प्रणश्यति न संशयः॥


अर्थ:- जिसको मृत्यु का भय नहीं होता, वह व्यक्ति मृत्यु के आने के समय भी नहीं काँपता, ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से अमृत्यु होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है॥

व्याधयो नोपपद्यन्ते नोपसर्गभयंः भवेत्‌।
प्रत्यासन्नतरे काले शतेकावर्तने कृते॥


अर्थ:- उसके पास रोग नहीं आते, और वह न कभी असर्ग (जन्म-मरण का चक्र) का भय भी नहीं करता, ऐसा व्यक्ति शतक्रोश वर्ष के बाद भी जीवित रहता है, इसलिए उसे अमरता प्राप्त होती है॥

मृत्युर्न जायते तस्य रोगान्मुंचति निश्चितम्‌।
पंचम्यां वा दङम्यां वा पौर्णिमास्यामथाऽपि वा॥


अर्थ:- जिसके लिए मृत्यु उत्पन्न नहीं होती, वह व्यक्ति सभी रोगों से मुक्त रहता है, चाहे वह पंचमी की तिथि हो या दशमी की, या पूर्णिमा हो उसके जीवन में कोई भी दुःखपूर्ण कारण नहीं होता॥

शतमावर्तते यस्तु शतवर्षं स्र जीवति।
तेजस्वी बलसम्पन्नो लभते शिवमुत्तमम्‌॥


अर्थ:- जो व्यक्ति सौ बार मृत्यु को जीतता है और सौ वर्ष तक जीवित रहता है, वह तेजस्वी, बलवान और उत्तम भगवान शिव को प्राप्त होता है॥

त्रिविधं नाशयेत्‌ पापं मनोवाक्‌ कायसम्भवम्‌।
अभिचारणि कर्माणि करम्माण्याथर्वणानि च॥


अर्थ:- तीन प्रकार से पाप को नष्ट करता है - मानसिक, वाचिक, और शारीरिक रूप से उत्पन्न पाप। तथा विभिन्न प्रकार के कर्म और अथर्ववेद में दिए गए मन्त्रों द्वारा भी॥

क्षीयन्ते नात्र सन्देहो दुःस्वप्नर्च विनञ्यति।
इदं रहस्यं परमं देवदेवस्य शूलिनः॥
दुःस्वप्ननाञ्नं पुण्यं सर्वविघ्नविनाङनम्‌।


अर्थ:- इस अमृत मंत्र से संदेह की कोई आशंका नहीं होती, और दुःस्वप्न और नरक का भय नहीं होता। यह मंत्र देवदेव महादेव का रहस्यमय रूप है, जिससे जीवन में पुण्य और सभी विघ्नों का नाश होता है॥


॥ इति श्री ब्रह्मा-शिव सम्वादे महामृत्युंजय स्तुति समाप्त॥





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