रामायण के अनसुने कहानी :दशरथ का विवाह


रामायण में राम विवाह के बारे में बतलाया गया है पर अपने कभी राजा दशरथ का विवाह के बारे में सुना है इस ब्लॉग में हम उनकी विवाह के बारे में बतलायेंगे तो पेश है रामायण के अनसुने कहानी :दशरथ का विवाह


रामायण के अनसुने कहानी :दशरथ का विवाह


रामायण के अनसुने कहानी :दशरथ का विवाह

अतुल्य बल, दिव्यास्त्रों और अमरता-तुल्य वरदान के फलस्वरूप राक्षसराज रावण ने कुछ ही दिनों में देवताओं पर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। धीरे-धीरे रावण का पक्ष मजबूत होता चला गया। युद्ध में देवताओं की पराजय हुई और वे प्राण बचाकर इधर-उधर भाग गए। अब सृष्टि की संपूर्ण व्यवस्थाओं पर रावण का अधिकार हो गया। काल रावण के चरणों में बैठकर उसकी चाकरी करने लगा। l एक दिन देवर्षि नारद भ्रमण करते हुए लंका की ओर आ निकले। रावण ने उनका भरपूर आदरसत्कार किया। रावण की सेवा से प्रसन्न होकर देवर्षि नारद मधुर स्वर में बोले, '“राक्षसराज! आप जैसा परम तपस्वी, तेजस्वी और पराक्रमी राक्षस संसार में दूसरा नहीं है। आपकी शक्ति के समक्ष देवगण भी भयभीत हें। निस्संदेह आपके बाद राक्षस-कुल में कोई दूसरा पराक्रमी नहीं होगा।''

''देवर्षि, यह आप क्या कह रहे हैं? क्या आपको ज्ञात नहीं है, ब्रह्माजी ने मुझे अमरता का वरदान दिया है। मैं अमर हूँ। मुझे कोई मार नहीं सकता नारद थोड़ा मुसकराते हुए बोले, ''राक्षसराज! यद्यपि आप ब्रह्माजी के प्रपौत्र हैं, लेकिन उन्होंने आप से छल किया है। याद कीजिए राजन्‌, उन्होंने वर दिया था कि आपकी मृत्यु मनुष्य के अतिरिक्त अन्य किसी के द्वारा नहीं होगी। भगवान्‌ शिव ने भी आपको शाप दिया था कि शीघ्र ही एक मनुष्य आपके बल के नाश का कारण बनेगा। फिर यह सृष्टि का नियम भी है कि जो जनमा है, एक-न-एक दिन उसको मृत्यु अवश्य होगी। यदि आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो ब्रह्माजी से पूछ लें। भूत, वर्तमान और भविष्य उनके अधीन हैं। वे आपको सत्य अवश्य बता देंगे।'' इस प्रकार रावण के मन में शंका का बीज रोपकर देवर्षि नारद वहाँ से चले गए। अब तो रावण के हदय में अपनी मृत्यु के विषय में जिज्ञासा उत्पन्न हो गई। वह उसी समय ब्रह्माजी के पास गया और अपने मन को बात उन्हें बताई।

ब्रह्माजी बोले, “वत्स! यह सत्य है कि तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। कल अयोध्या के राजा दशरथ का विवाह कौशल देश की राजकुमारी कौशल्या से होगा। विवाह उपरांत रानी कौशल्या एक तेजस्वी बालक को जन्म देंगी ओर वही बालक तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा।''

रावण ने इस विवाह को रोककर विधि का विधान बदलने कानिश्चय कर लिया। वहाँ से वह सीधा कौशल देश जा पहुँचा। आधी रात का समय था। सभी सैनिक निद्रावस्था में थे। उपयुक्त अवसर पाकर रावण ने सोती हुई कौशल्या को एक संदूक में बंद किया और उन्हें ले जाकर तिमिंगल नामक दैत्य मित्र को सौंप दिया। तिमिंगल ने उस संदूक को समुद्र के बीच में स्थित एक द्वीप पर छोड़ दिया।

इधर राजा दशरथ जल-मार्ग से बारात लेकर कौशल देश की ओर जा रहे थे। उस समय दैवयोग से भारी वर्षा होने लगी। जल की लहरें आकाश को चूमने लगीं। चारों ओर भयंकर चक्रवात उत्पन्न हो गया। इस तूफान में सभी नावें डूब गईं। राजा दशरथ और उनका मंत्री  किसी तरह एक टूटी हुई नाव को पकड़कर उस द्वीप तक जा पहुँचे, जहाँ तिमिंगल ने संदूक छिपाया था।द्वीप पर एक विशाल संदूक देखकर राजा दशरथ विस्मित रह गए। उत्सुकतावश जब उन्होंने संदूक खोला तो उसमें से कौशल्या बाहर निकल आईं। दोनों में परिचय का आदान-प्रदान हुआ। भावी पति को अपने समक्ष देखकर कौशल्या लज्जा और संकोच से भर उठीं। दशरथ भी एकटक उन्हें देखते रह गए। तदर्नतर सुमंत्र के परामर्श से राजा दशरथ राजकुमारी कौशल्या को लेकर अयोध्या लौट आए और उनसे विधिवत्‌ विवाह कर लिया।

इस प्रकार रावण के अनेक प्रयत्न करने पर भी राजा दशरथ और कौशल्या का विवाह संपन्न हो गया।

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