पुराणों में वर्णित हिन्दुओ के चार धाम है उत्तराखंड में बद्रीनाथ गुजरात का द्वारका तमिलनाडू का रामेश्वरम और उड़ीसा का जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri) आज इसी चार धाम में वर्णित धाम उड़ीसा का जगन्नाथ पूरी (Jagannath Puri)और श्री जगन्नाथ मंदिर(Jagannath Temple) के बारे में जानेगे हिंदी में।
Jagannath Temple(श्री जगन्नाथ मंदिर)
श्री जगन्नाथ मंदिर धाम (Jagannath Temple)को हिदुओ के चार धाम में एक माना गया है जगन्नाथ मंदिर धाम (Jagannath Temple) उड़ीसा के पूरी नाम के जगह पे स्थित है राजा इंद्रद्युम्न ने सर्व्पर्थम इस पवित्र मंदिर का निर्माण करवाया था ।
12 वीं शताब्दी में अनंतवर्मन देव ने इस मंदिर के प्रारंभिक भाग का निर्माण कराया| तत्पश्चात अनंग भीम देव 1174 ई में इस मंदिर का वर्तमान स्वरुप दिया।
इसमन्दिर के तीन मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा है। श्री जगन्नथपुरी पहले नील माघव के नाम से पुजे जाते थे। जो भील सरदार विश्वासु के आराध्य देव थे।
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) लगभग 4 लाख वर्ग में फैला दो आयताकार देवरो से घिरा हुआ है मंदिर के बहरी दीवारों को मेघनाथ पचेरी कहा जाता है यह २० फिट ऊंचा है।
Jagannath puri Temple Story (जगन्नाथ पूरी मंदिर की कहानी)
मंदिरका निर्माण इंद्रद्युम्न ने करवाया था। इंद्रद्युम्न मालवा के राजा थे। एक रात भगवान विष्णु उनके सपने मैं आये और उन्हें बतायाकी नीलांचल पर्वत पर एक गुफामैं मेरी एक मूर्ति हैजिसे निल माधव कहते है। तुम उस मूर्ति कोयहाँ ला कर एकमंदिर का निर्माण करवाओ. और उसको इसमेंस्थपित करो तब राजा नेमूर्ति लेन के लिए एकब्रह्मण बिद्यापति को भेजा।विद्यापतिजानते थे की सबरजाती के लोगनीलमाधव की पूजा करतेहैं और ये नीलांचलपर्वत मैं मूर्ति को कही छुपारखा है। वह यह जानतेथे की इस कबीलेका मुखिया विश्ववसु आसानी से मूर्ति नहीं सौपेगा तब विद्यापति नेचतुराई से मुखिया केबेटी से विवाह करलेते है। औरअपनी पत्नी के मदद सेमूर्ति चुरा कर राजा कोदे देते है है। यह जान कर की मूर्ति चोरी होगया है, मुखिया विश्ववसु बहुत दुखी हुए अपनेभक्त को दुखी देख भगवान पुनः उस गुफा मैं चले गए और जाते वक़्त राजा को कह गए की जबमंदिर बन जायेगा तो फिर से आ जायेंगे।
कुछवर्षो बाद राजा ने भगवान जगन्नाथका विशाल मंदिर बनवा दिया। तब भगवान नेउन्हें सपने में बतया की मेरी मूर्तिबनाने के लिए समुद्रमें तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ाउठाकर लाओ। तब राजा नेअपने सेवक को वो लकड़ीलेन के लिए भेजालेकिन कोई भी उसको उठानहीं पाया। तब राजा नेकबीले के मुखिया विश्ववसु से लकड़ी लानेका अनुरोध किया विश्ववसु अकेले भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिरतक ले आए।.जबमूर्ति बनाने के बरी आयीतो कोई भी उस लकड़ीको त्रास कर मूर्ति नहींबना पाया। तब भगवानविश्वकर्मा एक बूढ़े केभेष मैं आये और राजा कोकहा की मूर्ति तोवो बना देगा लेकिन उनकी एक शर्त है,की 21 दिवस तक वह मूर्तिबनाने का कार्य करेंगे.मूर्ति बनाने के समय कोईभी नहीं होना चाहिए. राजा ने भी यहशर्त मान ली तब एकबंद कमरे मैं भगवान विश्वकर्मा मूर्तिबनाने लगे। रोज छैनी, हथौड़ी की आवाजें आतीरहीं लेकिन एक दिन आवाज़बंद हो गयी तबराजा को लगा कीकही बूढ़ा मर तो नहींगया है और राजाने कमरे का दरवाजा खोलदिया कमरा खोलने पर वहाँ कोई नहींथा सिर्फ तीन अधूरीमूर्तियां मिली जिसमे भगवान जगन्नाथ और उनके भाईका पैर नहीं बना था। और हाथ बहुतछोटे छोटे थे राजा ने भगवान कीइच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया ।
जगन्नाथ मंदिर में कौन जा सकते है (Who can visit Jagannath Temple)
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath
Temple) में गैर हिदुओ का प्रवेश वर्जित है जगन्नाथ मंदिर में केवल सनातन
हिन्दू भरतीय बौद्ध सिख और जैन धर्म के लोग को ही प्रवेश की अनुमति है।
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गाँधी को भी वह प्रवेश की इज़ाज़त नहीं दि गयी थी क्योकि उन्होंने एक पारसी फ़िरोज़ गाँधी से शादी की थी।
2005 में थाईलैंड के रानी को भी प्रवेश की इज़ाज़त नहीं दि गयी थी क्योकि वो विदेशी बौद्ध थी।
मंदिर में गैर हिन्दुओ को प्रवेश न देने के कारण है पुराने समय में मंदिर को अपवित्र करने या इसे तोड़ने के कई घटनाये।
Jagannath Temple (जगन्नाथ मंदिर ) के मूर्तियों को नष्ट करने या लूटने के लिए 20 बार कोशिश की गयी मंदिर के पुजारिओं ने मूर्ति को छुपा कर मूर्ति की अपवित्र होने से बचाया ।
जगन्नाथ के मंदिर के रहस्य
मंदिरकी मूर्ति हर
बारह साल बाद बदली जाती है। उस रात पूरी शहर की बिजली काट दी जाती है.फिर
मंदिर का मुख्य पुजारी एक बंद कमरे मैं जा कर मूर्ति का साज सज्जा करता है
और उसमेएक ब्रह्मा पदार्थ डालता है।
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क्या है ब्रह्मा पदार्थ
कहाजाता है की जबब्रह्मा पदार्थ को डाला जाताहै,तो वह हिलता डुलता हुआ महसूसहोता है, उसे छूने वाले पुजारी कहता है. की वो ब्रह्मापदार्थ खरगोश के जैसा उछलता है । पुराणोंके अनुसार जब भगवान श्रीकृष्णा का दाह संस्कारकिया था ,तो उनका दिलपंचभूत मैं विलीन नहीं हुआ था। तबअर्जुन ने उसे द्वारकाके समुन्द्र मैं डाल दिया था जो कालांतरमैं पूरी पहुंच गया। एक रात को पूरी के राजा को भगवानने सपने में ब्रह्म पदार्थ के बारे में बताया।
जगन्नाथ मंदिर का झंडा
हवा का विपरीत दिशा मैं बहना
आमतौरपर दिनमैं हवा समुद्र से धरती कीतरफ चलती है और शामको धरती से समुद्र कीतरफ लेकिन जगन्नाथ पूरीमैं ह प्रक्रिया उल्टीहै। ये रहस्य आजतक कोई नहीं जान पाया है।
चक्र और अन्य रहस्य
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के शिखर पर लगा चक्र को कोई भी दिशा से देखने पर चक्र का मुंह आपकी ही तरफ हीदिखेगी ।
आमतौरपर सभी बस्तु का छाया बनताहै लेकिनजगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) का छाया नहीं बनता है ।
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के अंदर समुद्र की लहरों कीआवाज सुनाई नहीं देती है जबकि समुद्रसमीप ही है।
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरते और न ही इस पर बैठते है
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) मंदिर के ऊपर से कोई भी हवाई जहाज नहीं उड़ते हैं।
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं लेकिन हैरानी की बात ये है कि सबसे ऊपररखे बर्तन में ही प्रसाद सबसे पहले पकता है। फिर नीचे की तरफ एकके बाद एक बर्तन में रखा प्रसाद पकता जाता है।
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) में हर दिन बननेवाला प्रसाद भक्तों के बीच कभी कम नहीं पड़ता। लेकिन जैसे ही मंदिर का द्वार बंद होता है, वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
How to reach Jagannath Temple (जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे )
Jagannath Temple (जगन्नाथ मंदिर) ओडिसा के पूरी शहर में स्थित है agannath Temple (जगन्नाथ मंदिर) आप बस से ट्रैन से या हवाईजहाज से जा सकते है।
ट्रैन से जगन्नाथ मंदिर कैसे जाये -How to reach Jagannath Temple by train
दिल्ली से Jagannath Temple (जगन्नाथ मंदिर) के लिए चार ट्रैन चलती है।
1- Kalingautkal Exp ये ट्रैन दिल्ली के H NIZAMUDDIN से 12 बजे पूरी के लिए निकलती है इस ट्रैन का दिल्ली का किराया स्लीपर का 780 AC -2060 और 3000 है इसका टोटल रनिंग टाइम 39 घंटे का है ।
२-Nandankanan Exp -ये ट्रैन आनंद विहार से पूरी जाती है इसका टोटल रनिंग टाइम 24 घंटा 30 मिनट है ये आनंद विहार से सप्ताह में चार दिन लगभग 5 बजे शाम को निकलती है ट्रैन का किराया स्लीपर का 665 AC-3 -1730 और AC-2 2490 तथा AC -1 का 4290 है।
3 Purushottam Exp-ये ट्रैन नई दिल्ली से पूरी जाती है इसका टोटल रनिंग टाइम 30 घंटा 30 मिनट है ये नई दिल्ली से हर दिन लगभग 10 बजे शाम को निकलती है ट्रैन का किराया स्लीपर का 750 AC-3 -1965 और AC-2 2830 तथा AC -1 का 4835 है।
Bbs Rajdhani--ये ट्रैननई दिल्ली से पूरी जाती है इसका टोटल रनिंग टाइम 24 घंटा 30 मिनट है ये नई दिल्ली से सप्ताह में चार दिन लगभग 5 बजे शाम को निकलती है ट्रैन का किराया AC-3 -3375 और AC-2- 5010 तथा AC -1 का 6255 है।
हवाई जहाजसे जगन्नाथ मंदिर कैसे जाये -How to reach Jagannath Temple by Plane
अगर आप हवाई जहाज से जाना चाहते है तो इसके लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा भुवनेश्वर है जो की देश के हर मेजर हवाई अड्डा से कनेक्ट है दिल्ली से हवाई जहाज का किराया लगभग 4000 से शुरू होता है।
पूरी में कहा रुके
पूरी के रुकने के लिए बहुत शेयर धर्मशाला है जिसका किराया 250 से 750 के बीच है चाहे तो होटल बुक करा सकते है लेकिन ध्यान रखे होटल आप पहले से ऑनलाइन बुक करा ले होटल का किराया ५०० से शुरू होता है।
Jagannath puri rath yatra जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ पूरी की रथ यात्रा पुरे संसार में प्रसिद्ध है ये यात्रा हर वर्ष १४ जुलाई को तथा हिन्दू कैलेंडर के अनुसारआषाढ़ महीने की द्वितीय तिथि को रथ यात्रा शुरू होती है जगन्नाथ रथ यात्रा १० दिन का होता है जिसमे तीन रथ होते है इसमें से सबसे बड़ा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है जिसमे १६ पहिये होते है तथा उसके उचाई भी दुशरे रथो से बड़ी होती है इस रथ में में कुल 832 लकड़ी के टुकड़ो का इस्तेमाल होता है इस रथ का आवरण लाल और पीला होता है इसी प्रकार बलभद्र के रथ में 14 पहिये तथा सुभद्रा के रथ में 12 पहिये होते है सबसे आगे बलभद्र जी का रथ चलता है बीच में बहन सुभद्रा का तथा अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है।
भगवान जगन्नाथ रथ- भगवान जगन्नाथ रथ सबसे बड़ा होता है इस रथ का नाम कपिध्वज,गरुड़ध्वज नंदीघोष अदि नाम सेजाना जाता है इस रथ में 16 पहिया होता है और इसकी उचाई लगभग 13 मीटर का होता है ।
बलभद्र का रथ- भगवान जगन्नाथ के भाई बलभद्र के रथ में 14 पहिया लगा होता है इस रथ का नाम तालध्वज है रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं.।
सुभद्रा का रथ-सुभद्रा के रथ में 12 पहिये होते है इस रथ का नाम देवदलन है रथ के ध्वज को ध्वज नदंबिक कहते हैं।.
जगन्नाथ रथ यात्रा क्यो निकली जाती है इसके पीछे अनेक कहनिया प्रसिद्ध है ।
1 -पहली मान्यता के अनुशार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा जब मायके आयी तब इनको नगर भ्रमण करने की इक्छा हुई तब भगवान अपने भाई और बहन के साथ रथ पे बैठ कर नगर भ्रमण को निकलते है तब से हर वर्ष इसी दिन रथ यात्रा निकाली जाती है।.
२- दूसरी मान्यता के अनुशार भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर में में अपनी मौसी से मिलने जाते है ,गुंडिचा मंदिर वही मंदिर है जहा भगवान पहली बार भगवान विस्वकर्मा ने इनकी मूर्ति वनवाया था।
कहा जाता है की भगवान रथ खींचने से सौ अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है ।