MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA  महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

Shree MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA  महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में स्थित है  Shree MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA  महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग  दक्षिमुखी होने के कारण इसका अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है  इस ज्योतिर्लिंग महत्ता का वर्णन कालिदास के मेघदूत में भी है

MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA  महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA) 12 ज्योतिर्लिंग मे तीसरे नम्बर पे आता है  ये यह मध्यप्रदेश  के उज्जैन में स्थित है, अपने एक ब्रह्मण भक्त वेद के आह्वान पर प्रकट  होकर शिवजी  ने दूषण  नामक असुर का वध किया  था, 

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तत्पश्चात  वही स्थित हो गए हो गए। इसलिए  इस ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर कहा गया। इसके दर्शन  से मनुष्य की  सारी कामनाएं पूरी होती है 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग(MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA) की स्थापना 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना  की स्थापना के बारे मे दो कथा है

पहली  कथा इस प्रकार है  

अवंतिकापुरी मे  एक ब्राह्मण  रहते थे। वे भगवान शिव  के परम भक्त थे । वे प्रत्येक दिन विधि विधान  से शिवजी के  पर्थिब लिंग का पूजन किया करते थे   देवाधीदेव भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्हें धन धन्य की कोई कमी नहीं थी वे प्रतिदिन यज्ञ करते थे और ज्ञान की खोज मैं लगे रहते थे । इस प्रकार  सभी सुख को भोगकर अंत उन्हें शिवलोक की प्राप्ति हुई उस ब्रह्मण को चार पुत्र थे वे सभी  उन्ही के  सामान ही सदाचरी  थे वही  पास ही रत्नमाला  नामक एक पर्वत था 

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उसी पर्वत पर दूषण नमक  एक राक्षस रहता था ब्रह्मा जी से प्राप्त वर से और अपने अथाह बल और पराक्रम  से उसने सभी देवता मनुष्य  और तीनो लोक  के जीव को अपने अधीन कर लिया  था। एक दिन वो अपनी सेना  लेकर अवंतिकापुरी(वर्तमान का उज्जैन ) पहुंच गया ,और अपनी सैनिको को आज्ञा दिया की जो भी ब्रह्मण उसकी आज्ञा का पालन नहीं करेगा उसको  दंड दो आज्ञा पाकर दैत्य अवंतिकापुरी  नगरी में पहुंच कर उपद्र्व  करने लगे ,जिससे  सारी जनता हाहाकार करनेलगी। वे लोग उन ब्राह्मण कुमार के पास आए और उन्हें अपनी विपदा बतलायी ब्राह्मण कुमार ने लोगो को   बतलाया की जगत का कल्याण करनेवालेऔर अपने भक्तो की सदा रक्षा करने वाले भगवान शिव है इसलिए हमें उन्हें ही प्रसन्न करना चाहिए यह कहकर वे चारो ब्राह्मण पुत्र अन्य ब्राह्मण  के साथ  कर भगवान शिव  का पूजन करनेलगे। उसी समय सभी  महादैत्य वहा पहुंच गए और उन ब्राह्मणो को शिव जी का पूजन  करते देख अत्यंत क्रोधित हुआ।,और उसे मरने के लिए बढ़ा ,लेकिन जैसे ही वे दैत्य ब्राह्मणो को मरने के लिए आगे बढ़ा उसी समय भगवान शिव  पर्थिब लिंग से प्रकट हुए  और पल भर मैं उन दैत्य को मार डाला, और दूषण राक्षस को भी मौत के घाट उतार दिया । शिवजी को साक्षात पाकर वे सभी ब्राह्मण उनकी स्तुति  लगे आकाश से देवता पुष्प वर्षा  लगे



इससे भगवन शिवा अत्यंत प्र्शन्न हुए और उन्हें बरदान मांगने के लिए कहा तब ब्राह्मण पुत्र  ने कहा  की अगर आप  आराधना से खुश  है तोआप अपने श्री चरणों मैं स्थान दे ताकि   हम जीवन-मरण के बंधन से छूट जाएं 

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 तब अपने भक्त की इक्छा  के लिए सदाशिव उसी स्थान पर  ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो  गए  वह लिंग  ‘महाकालेश्वर नाम से जगत्प्रसिद हुआ   इसका  उपासना करनेसेसभी मनोरथ पूरे हो जाते है

दूसरी  कथा इस प्रकार है

उज्जैन  नगरी मे राजा चन्द्रसेन  का राज्य  था। भगवान शिव  के मुख्य सेवक मणिभद्र  के साथ उसका घनिष्ट मित्रता  मित्रता थी। मणिभद्र  ने राजा चन्द्रसेन को कौस्तुभ  मणि  भेट की राजा ने प्रसन्त्रतापूर्बक  मणि को अपनेगले में धारण कर लिया वह कौस्तुभ मणि  सूर्य  के समान चमकती थी। जिसे देखकर अन्य  राजा चन्द्रसेन से जलन रखनेलगे। सब राजाओं  ने मिलकर  चन्द्रसेन पर आक्रमण  कर दिया जब राजा चन्द्रसेन चारो   ओर से शत्रु सेना से घिर गया तब वह अपने प्राणो   रक्षा के लिए  महाकालेस्वर के शरण  मे गया और भक्ति भावना से  महादेव जी का पूजन करनेलगा। 

राजा चन्द्रसेन भगवान शिव  के पूजन मे मगन था। उसी समय एक विधवा गोपी अपने छोटेसे बालक को गोद में लिए हुए  वहांआई। वह बालक राजा को शिव पूजन करते हुए  देखता रहा। जब गोपी वापस घर गई तब वह बालक मन मे शिव-पूजन का ईक्षा  करके  कही से एक पत्थर ढूंढ़ लाया और पूजनेलगा  जैसा उसने राजा   राजा को करतेदेखा था। उसकी  माता नेउसे भोजन करनेके लिए बुलाया परंतुव वह  तो अपनी आराधना मे लगा था। जब बार-बार बुलानेपर भी बालक नहƭ आया तब उसकी  माता को क्रोध गया और वह वहां से बालक को खींचकर  ले गई और डांटने-फटकारनेलगी। उसने शिवलिंग  रूपी उस पत्थर को उठाकर फेक दिया । यह देखकर बालक बहुत दुखी हुआ और  शिवजी का नाम लेते हुए मूर्छित  हो गया। बालक की  ऐसी हालत देखकर माता रोनेलगी और रोते-रोते वह भी मूर्छित  हो गई। कुछ समय बीतनेपर बालक को जब होश आया तो उसनेअपने आप  को भगवान  शिव के सुंदर मंदिर  मे, जहां रत्न जड़ित शिवलिंग  था, वहाँ पाया। यह देखकर वह बड़ा आस्चर्यचकित हुआ । भगवान  शिव को धन्यबाद  करके उनका नाम जपता हुआ  वह बालक अपने घर की  ओर चल पड़ा। घर पहुंच कर उसनेदेखा की  उसके घर के स्थान  पर एक सुंदर महल खड़ा था। अंदर उसकी  मां सुंदर आभूषण पहने पलंग पर सोई थी। उसनेअपनी माता को जगाया। सबकुछ जानकर वह अत्यंत खुश हो गई। 


जब राजा चन्द्रसेन का पूजन समाप्त  हुआ, और उसे जब उस गोप के बारे मे जानकारी प्राप्त  हुआ तब  राजा अपनेमंत्रियो को साथ लेकर गोपी के पास पंहुचा ।  ये यह समाचार पूरे नगर मेफैल गया। जब चन्द्रसेन के शत्रुओ को यह पता चला की  उसकी  नगरी पर भगवान शिव का विशेष  कृपा है। तब उनके शत्रुओ  को यह समझ गया की  राजा चन्द्रसेन महाकालेस्वर का परम भक्त  है। इसलिए  हम उसेकभी जीत नहƭ सकते। वे सब राजा चन्द्रसेन से मित्रता  करने हेतु उस गोपी के घर चले गए। वहां पहुंच कर उसने शिवजी का पूजन किया  और राजा से मित्रता  कर ली। तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए । हनुमान जी को सामने पाकर सबने हाथ जोड़कर उनको प्रणाम किया । हनुमान जी नेउस बालक को गले लगाया और बोलेइस संसार का कल्याण  करनेवाले भगवान शिव है । वे भक्तबतसल्य है और सदा ही अपने भक्तो  पर कृपारखते है इस बालक ने सच्चे मन सेशिवजी का पूजन किया जिससे  खुश  होकर शिवजी ने इसके  सभी दुःख  को दूर कर दिया है  इस लोक मे सभी सुखǂ को भोगकर इसे मोक्ष की प्राप्ति  होगी। यह नंद नाम से जाना जाएगा। भगवान विष्णु जब कृष्णा के रूप मैं  अवतार लेंगे तो इसी के घर मेनिवास  करेंगे । यह कहकर वेअंतर्ध्यान  हो गए। तत्पसच्त सब  राजा विदा  लेकर अपने-अपनेनगर चलेगए।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पृथ्वी का अधिपति माना जाता है ,कहा जाता है ,की आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तुते' मतलब ये की आकाश  में तारक पाताल में हाटकेश्वरऔर पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है।


यह  दक्षिणमुखी ज्‍योतिर्लिंग हैकहा जाता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में आकर सच्चे मन से भगवान शिव की प्रार्थना करता है उसे मृत्यु के बाद मिलने वाली सभी बाधाओं  से मुक्ति मिल जाता है अकाल मृत्यु टल जाती है और सीधा मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान महाकाल की भस्म आरती के दुर्लभ पलों का साक्षी बनने का ऐसा सुनहरा अवसर और कहीं नहीं प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि जो इस आरती में शामिल हो जाए उसके सभी कष्ट दूर होते हैं, इसके बिना आपके दर्शन पूरे भी नहीं माने जाते हैं।हर सुबह महाकाल की भस्म आरती करके उनका श्रृंगार होता है और उन्हें ऐसे जगाया जाता है। इसके लिए वर्षों पहले शमशान से भस्म लाने की परंपरा थी, लेकिन महत्मा गांधी के कहने पर  अब कपिला गाय के गोबर के  कंडे, पीपल शमी,बड़ , पलाश, , अमलतास और बेर की लकड़‌ियों को जलाकर तैयार क‌िए गए भस्‍म को कपड़े से छानने के बाद इस्तेमाल करना शुरू हो चुका है। यह केबल उज्जैन मैं ही देखने को मिलेगा यहां के नियमानुसार, महिलाओं को आरती के समय घूंघट करना पड़ता है। दरअसल महिलाएं इस आरती को नहीं देख सकती हैं। इसके साथ ही आरती के समय पुजारी एक बस्त्र यानि सिर्फ  धोती में आरती करते हैं। अन्य  वस्त्र को धारण करने की मनाही रहती है। महाकाल की भस्म आरती के पीछे एक यह मान्यता भी है कि भगवान  भस्म को भगवान शिव का  श्रृंगार माना जाता है।और  ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में लेने से  रोग दोष से भी मुक्ति मिल जाती है

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य 

यहां रोजाना हजारों लीटर शराब भैरव बाबा को चढाई जाती है.मगर आज तक पता नहीं चल पाया की ये शराब जाती कहाँ है.कुछ श्रद्धालओं का मानना है की किसी ज़माने में अंग्रेज शासन केअधिकारीयों ने मंदिर की जाँच कराइ थी मगर उनके हाँथ निराशा ही लगी.इसके बाद वो अधिकारी भी बाबा भैरव के भक्त बन गए.हालांकि शराब पिलाने की परम्परा सदियों से चलती आ रही है.मगर अभी तक साफ़ नहीं है की बाबा भैरव को शराब पिलानेका रिवाज कब और क्यों शुरू हुआ.भैरव ही एक मात्र ऐसे भगवान है जिन्हें शराब चढाई या पिलाई जाती है.

क्यों ऐसा कहा जाता है की यहां अगर कोई राजा रुकातो उसकी मौत हो जाएगी या जो मंत्री यहां रात रुकेगा उसकी सत्ता चली जाएगी।इस मामले से जुड़े कई आश्चर्य चकित करने वाले पहलु हैं,लोगों का मानना है कि देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन आये थे,और यहीं रात रुक गए, जिसके अगले दिन ही उनकी सरकार गिर गई.ऐसी ही घटना कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वी एस येदियुरप्पा के साथ भी हुआ,वो भी बाबा महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन आये थेऔर यहाँ उन्होंने रात भी बिताई, इसके कुछ दिन बाद हीमुख्यमंत्री वी एस येदियुरप्पा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

प्राचीन काल से ही प्रतिदिन महाकाल की भस्म आरती ताजे चिता की रख से की जाती थीमगर एक रोज उज्जैन के शमशान में कोई शव नहीं जलाइससे चिंतित पुजारी ने अपने ही पुत्र की बलि दे दी और चिता की राख से भस्म आरती की.इसके बाद महाकाल पुजारी से बेहद प्रसन्न हुए और उनके पुत्र को जीवन दान दे दिया.


इन्दौर का एयरपोर्ट  से 45 km की दुरी पर उज्जैन है आप बस या टेक्सी से जा सकते है देश के सभी बड़े शहरो से उज्जैन के लिए ट्रैन चलती है


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