महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA

भारत, आध्यात्मिकता और रहस्यवाद का देश, अनेक पवित्र स्थानों की धरोहर है। उनमें से बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश के प्राचीन शहर उज्जैन में स्थित होने के कारण सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इस ब्लॉग में, हम महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के धार्मिक इतिहास, पौराणिक कथा, वास्तुशिल्प, रस्म, और आध्यात्मिक अनुभवों पर गहराई से जानेंगे।

 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग  दक्षिमुखी होने के कारण इसका अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है  इस ज्योतिर्लिंग महत्ता का वर्णन कालिदास के मेघदूत में भी है

 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग:Mahakaleshwar Jyotirlinga:

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन शहर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, जहां भगवान शिव का दिव्य निवास माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग प्राचीन काल से ही आध्यात्मिकता, शांति और सुंदरता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है। भारतीय मिथोलोजी में इसे महाकालेश्वर या महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (MAHAKALESHWAR JYOTIRLINGA) 12 ज्योतिर्लिंग मे तीसरे नम्बर पे आता हैअपने एक ब्रह्मण भक्त वेद के आह्वान पर प्रकट  होकर शिवजी  ने दूषण  नामक असुर का वध किया  था, 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास


तत्पश्चात  वही स्थित हो गए हो गए। इसलिए  इस ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर कहा गया। इसके दर्शन  से मनुष्य की  सारी कामनाएं पूरी होती है 

यह शिव ज्योतिर्लिंग पुराणों में वर्णित महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है, जहां शिवराजसिंह ने अपनी योगशक्ति के माध्यम से इसे स्थापित किया था। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम इसलिए है क्योंकि यहां भगवान शिव की अमरता और अविनाशित्व का दर्शन करने वाले भक्तों को महाकाल का आनंद प्रदान करता है।

इस ज्योतिर्लिंग का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह भक्तों के लिए एक महान धार्मिक और पौराणिक स्थल है। भक्तों का मानना है कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से उन्हें दिव्य शक्ति, आशीर्वाद, और अद्वितीय आनंद की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, यह स्थान भारतीय संस्कृति, धर्म, और दार्शनिक विचारों के लिए भी महत्वपूर्ण है, और यह धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन का एक अद्वितीय केंद्र है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने की सेआपको आध्यात्मिकता और शांति की अनुभूति के साथ-साथ रोमांचक और रोचक भारतीय संस्कृति के साथ परिचित कराती है।  इसके अलावा, आप यहां उज्जैन के प्रमुख पर्यटन स्थलों, ऐतिहासिक मंदिरों और आध्यात्मिक संस्थानों का भी दौरा कर सकते हैं। इस यात्रा के दौरान, आप अपार स्पिरिचुअल और धार्मिक अनुभवों का आनंद ले सकते हैं और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के भक्ति से अपने मन और आत्मा को पुनः जीवंत कर सकते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा Establishment of Mahakaleshwar Jyotirlinga and story of Mahakaleshwar Jyotirlinga

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना और उसके पीछे का ऐतिहासिक महत्व हिन्दू धर्म में गहरे रूप से स्थापित है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना और पौराणिक कथाएं इसके पीछे दो  महत्वपूर्ण कहानी  हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा -1 (Story of Mahakaleshwar Jyotirlinga-1)

शिव पुराण के अनुसार, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना महादेव द्वारा की गई थी।

अवंतिकापुरी मे  एक ब्राह्मण  रहते थे। वे भगवान शिव  के परम भक्त थे । वे प्रत्येक दिन विधि विधान  से शिवजी के  पर्थिब लिंग का पूजन किया करते थे   देवाधीदेव भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्हें धन धन्य की कोई कमी नहीं थी वे प्रतिदिन यज्ञ करते थे और ज्ञान की खोज मैं लगे रहते थे । इस प्रकार  सभी सुख को भोगकर अंत उन्हें शिवलोक की प्राप्ति हुई उस ब्रह्मण को चार पुत्र थे वे सभी  उन्ही के  सामान ही सदाचरी  थे वही  पास ही रत्नमाला  नामक एक पर्वत था 

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उसी पर्वत पर दूषण नमक  एक राक्षस रहता था ब्रह्मा जी से प्राप्त वर से और अपने अथाह बल और पराक्रम  से उसने सभी देवता मनुष्य  और तीनो लोक  के जीव को अपने अधीन कर लिया  था। एक दिन वो अपनी सेना  लेकर अवंतिकापुरी(वर्तमान का उज्जैन ) पहुंच गया ,और अपनी सैनिको को आज्ञा दिया की जो भी ब्रह्मण उसकी आज्ञा का पालन नहीं करेगा उसको  दंड दो आज्ञा पाकर दैत्य अवंतिकापुरी  नगरी में पहुंच कर उपद्र्व  करने लगे ,जिससे  सारी जनता हाहाकार करनेलगी। वे लोग उन ब्राह्मण कुमार के पास आए और उन्हें अपनी विपदा बतलायी ब्राह्मण कुमार ने लोगो को   बतलाया की जगत का कल्याण करनेवालेऔर अपने भक्तो की सदा रक्षा करने वाले भगवान शिव है इसलिए हमें उन्हें ही प्रसन्न करना चाहिए यह कहकर वे चारो ब्राह्मण पुत्र अन्य ब्राह्मण  के साथ  कर भगवान शिव  का पूजन करनेलगे। उसी समय सभी  महादैत्य वहा पहुंच गए और उन ब्राह्मणो को शिव जी का पूजन  करते देख अत्यंत क्रोधित हुआ।,और उसे मरने के लिए बढ़ा ,लेकिन जैसे ही वे दैत्य ब्राह्मणो को मरने के लिए आगे बढ़ा उसी समय भगवान शिव  पर्थिब लिंग से प्रकट हुए  और पल भर मैं उन दैत्य को मार डाला, और दूषण राक्षस को भी मौत के घाट उतार दिया । शिवजी को साक्षात पाकर वे सभी ब्राह्मण उनकी स्तुति  लगे आकाश से देवता पुष्प वर्षा  लगे

इससे भगवन शिवा अत्यंत प्र्शन्न हुए और उन्हें बरदान मांगने के लिए कहा तब ब्राह्मण पुत्र  ने कहा  की अगर आप  आराधना से खुश  है तोआप अपने श्री चरणों मैं स्थान दे ताकि   हम जीवन-मरण के बंधन से छूट जाएं 

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तब अपने भक्त की इक्छा  के लिए सदाशिव उसी स्थान पर  ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो  गए  वह लिंग  ‘महाकालेश्वर नाम से जगत्प्रसिद हुआ   इसका  उपासना करनेसेसभी मनोरथ पूरे हो जाते है

 महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा -2 (Story of Mahakaleshwar Jyotirlinga-2)

उज्जैन नगरी मे राजा चन्द्रसेन का राज्य था। भगवान शिव के मुख्य सेवक मणिभद्र के साथ उसका घनिष्ट मित्रता मित्रता थी। मणिभद्र ने राजा चन्द्रसेन को कौस्तुभ मणि भेट की । राजा ने प्रसन्त्रतापूर्बक मणि को अपनेगले में धारण कर लिया । वह कौस्तुभ मणि सूर्य के समान चमकती थी। जिसे देखकर अन्य राजा चन्द्रसेन से जलन रखनेलगे। सब राजाओं ने मिलकर चन्द्रसेन पर आक्रमण कर दिया । जब राजा चन्द्रसेन चारो ओर से शत्रु सेना से घिर गया तब वह अपने प्राणो रक्षा के लिए महाकालेस्वर के शरण मे गया और भक्ति भावना से महादेव जी का पूजन करनेलगा। राजा चन्द्रसेन भगवान शिव के पूजन मे मगन था। उसी समय एक विधवा गोपी अपने छोटेसे बालक को गोद में लिए हुए वहांआई। वह बालक राजा को शिव पूजन करते हुए देखता रहा। जब गोपी वापस घर आ गई तब वह बालक मन मे शिव-पूजन का ईक्षा करके कही से एक पत्थर ढूंढ़ लाया। और पूजनेलगा जैसा उसने राजा राजा को करतेदेखा था। उसकी माता नेउसे भोजन करनेके लिए बुलाया ।परंतुव वह तो अपनी आराधना मे लगा था। जब बार-बार बुलानेपर भी बालक नहƭ आया । तब उसकी माता को क्रोध आ गया और वह वहां से बालक को खींचकर ले गई और डांटने-फटकारनेलगी। उसने शिवलिंग रूपी उस पत्थर को उठाकर फेक दिया । यह देखकर बालक बहुत दुखी हुआ ।और शिवजी का नाम लेते हुए मूर्छित हो गया। बालक की ऐसी हालत देखकर माता रोनेलगी और रोते-रोते वह भी मूर्छित हो गई। कुछ समय बीतनेपर बालक को जब होश आया तो उसनेअपने आप को भगवान शिव के सुंदर मंदिर मे, जहां रत्न जड़ित शिवलिंग था, वहाँ पाया। यह देखकर वह बड़ा आस्चर्यचकित हुआ । भगवान शिव को धन्यबाद करके उनका नाम जपता हुआ वह बालक अपने घर की ओर चल पड़ा। घर पहुंच कर उसनेदेखा की उसके घर के स्थान पर एक सुंदर महल खड़ा था। अंदर उसकी मां सुंदर आभूषण पहने पलंग पर सोई थी। उसनेअपनी माता को जगाया। सबकुछ जानकर वह अत्यंत खुश हो गई

जब राजा चन्द्रसेन का पूजन समाप्त हुआ, और उसे जब उस गोप के बारे मे जानकारी प्राप्त हुआ तब राजा अपनेमंत्रियो को साथ लेकर गोपी के पास पंहुचा । ये यह समाचार पूरे नगर मेफैल गया। जब चन्द्रसेन के शत्रुओ को यह पता चला की उसकी नगरी पर भगवान शिव का विशेष कृपा है। तब उनके शत्रुओ को यह समझ आ गया की राजा चन्द्रसेन महाकालेस्वर का परम भक्त है। इसलिए हम उसेकभी जीत नहƭ सकते। वे सब राजा चन्द्रसेन से मित्रता करने हेतु उस गोपी के घर चले गए। वहां पहुंच कर उसने शिवजी का पूजन किया और राजा से मित्रता कर ली। तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए । हनुमान जी को सामने पाकर सबने हाथ जोड़कर उनको प्रणाम किया । हनुमान जी नेउस बालक को गले लगाया और बोले—इस संसार का कल्याण करनेवाले भगवान शिव है । वे भक्तबतसल्य है और सदा ही अपने भक्तो पर कृपारखते है । इस बालक ने सच्चे मन सेशिवजी का पूजन किया जिससे खुश होकर शिवजी ने इसके सभी दुःख को दूर कर दिया है इस लोक मे सभी सुखǂ को भोगकर इसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। यह नंद नाम से जाना जाएगा। भगवान विष्णु जब कृष्णा के रूप मैं अवतार लेंगे तो इसी के घर मेनिवास करेंगे । यह कहकर वेअंतर्ध्यान हो गए। तत्पसच्त सब राजा विदा लेकर अपने-अपनेनगर चलेगए।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व(Importance of Mahakaleshwar Jyotirlinga)

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पृथ्वी का अधिपति माना जाता है ,कहा जाता है ,की आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तुते' मतलब ये की आकाश  में तारक पाताल में हाटकेश्वरऔर पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है।यह  दक्षिणमुखी ज्‍योतिर्लिंग हैकहा जाता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में आकर सच्चे मन से भगवान शिव की प्रार्थना करता है उसे मृत्यु के बाद मिलने वाली सभी बाधाओं  से मुक्ति मिल जाता है अकाल मृत्यु टल जाती है और सीधा मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान महाकाल की भस्म आरती के दुर्लभ पलों का साक्षी बनने का ऐसा सुनहरा अवसर और कहीं नहीं प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि जो इस आरती में शामिल हो जाए उसके सभी कष्ट दूर होते हैं, इसके बिना आपके दर्शन पूरे भी नहीं माने जाते हैं।हर सुबह महाकाल की भस्म आरती करके उनका श्रृंगार होता है और उन्हें ऐसे जगाया जाता है। इसके लिए वर्षों पहले शमशान से भस्म लाने की परंपरा थी, लेकिन महत्मा गांधी के कहने पर  अब कपिला गाय के गोबर के  कंडे, पीपल शमी,बड़ , पलाश, , अमलतास और बेर की लकड़‌ियों को जलाकर तैयार क‌िए गए भस्‍म को कपड़े से छानने के बाद इस्तेमाल करना शुरू हो चुका है। यह केबल उज्जैन मैं ही देखने को मिलेगा यहां के नियमानुसार, महिलाओं को आरती के समय घूंघट करना पड़ता है। दरअसल महिलाएं इस आरती को नहीं देख सकती हैं। इसके साथ ही आरती के समय पुजारी एक बस्त्र यानि सिर्फ  धोती में आरती करते हैं। अन्य  वस्त्र को धारण करने की मनाही रहती है। महाकाल की भस्म आरती के पीछे एक यह मान्यता भी है कि भगवान  भस्म को भगवान शिव का  श्रृंगार माना जाता है।और  ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में लेने से  रोग दोष से भी मुक्ति मिल जाती है ।

श्री महाकालेश्वर मंदिर(Shri Mahakaleshwar Temple)

महाकालेश्वर का शिवलिंग बहुत विशाल है। इसके गर्भगृह की छत को चांदी की परत से ढका हुआ है। गर्भगृह में, ज्योतिर्लिंग के अलावा, आकर्षक और छोटे आकार के गणेश, कार्तिकेय और पार्वती के चित्र देखे जा सकते हैं। मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव की स्तुति के शास्त्रीय स्तवन प्रदर्शित होते हैं। नंदा दीप हमेशा प्रकाशित रहता है। बाहर निकलते समय, विस्तृत हॉलमें एक आकर्षक धातु और  पत्थर से बने नंदी को देखा जा सकता है। ओंकारेश्वर मंदिर के सामने का प्रांगण और इसके पास दो स्तंभों वाले प्रोजेक्शन आदर्श वास्तुकला को बढ़ाते हैं। महाकालेश्वर मंदिर भूमिजा, चालुक्य और मराठा शैलियों का अनूठा  मिश्रण है। इसकी शिखर पर मिनी-सरगों(mini-srngas) जैसी संरचना अत्याधुनिक है। पिछले कुछ वर्षों में, इसका ऊपरी हिस्सा सोने की प्लेट से ढका गया है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

 

मंदिर तीन मंजिलों से बना हुआ है। सबसे निचले मंजिल पर महाकालेश्वर, मध्य मंजिल पर ओंकारेश्वर और ऊपरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर के शिवलिंग स्थापित हैं। तीर्थयात्री और आगंतुक केवल नाग पंचमी के उत्सव के दिन नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर के परिसर में एक विशाल कोटि तीर्थ नामक कुंड भी है। यह कुंड सर्वतोभद्र शैली में बना हुआ है और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। कुंड और उसका जल दोनों ही दिव्य माने जाते हैं। कुंड के सीढ़ियों के साथ जुड़े मार्ग पर, परमार काल के दौरान बने मंदिर की भव्यता को प्रतिनिधित्व करने वाली कई मूर्तियां देखी जा सकती हैं। कुंड के पूर्वी भाग में एक बड़ा बरामदा है, जो गर्भगृह की ओर जाने वाले मार्ग का प्रवेश द्वार है। बरामदे के उत्तरी भाग में, एक कक्ष में, श्री राम और देवी अवंतिका की मूर्तियों की पूजा की जाती है। मुख्य मंदिर के दक्षिणी भाग में, शिंदे शासन के दौरान बने कई छोटे शैव मंदिर हैं, जिनमें वृद्ध महाकालेश्वर, अनादि कल्पेश्वर और सप्तर्षि के मंदिर प्रमुख हैं और वास्तुकला के उल्लेखनीय नमूने हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

महाकाल का वर्तमान मंदिर अठारहवीं शताब्दी के चौथे-पांचवें दशक में बनाया गया था। इसके साथ ही मराठा समुदाय के धार्मिक विचारों वाले रईसों ने भी मंदिर-परिसर में कई मंदिरों का निर्माण किया। इस अवधि के दौरान श्रावण मास में पूजा, अभिषेक, आरती, सवारी (जुलूस), हरिहर-मिलाना आदि जैसी कई प्राचीन परंपराएं भी पुनर्जीवित की गईं। ये परंपराएं अभी भी आनंदमय समारोह और भक्ति उत्साह के साथ जारी हैं। भस्मारती भोर में, महाशिवरात्रि, पंच-क्रोसी यात्रा, सोमवती अमावस्या आदि विशेष धार्मिक अवसर हैं जो मंदिर के अनुष्ठानों से जुड़े हुए हैं। कुंभ पर्व के समय मंदिर-परिसर की उचित मरम्मत और कायाकल्प किया जाता है। वर्ष 1980 में, आगंतुकों की सुविधा के लिए एक अलग मंडपम का निर्माण किया गया था। सन् 1992 में मध्यप्रदेश शासन और उज्जैन विकास प्राधिकरण ने विशेष रूप से तीर्थयात्रियों के ठहरने की व्यवस्था की। आगामी सिंहस्थ के समय भी यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है। 

महाकाल भस्म आरती mahakal bhasma aarti

उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में भस्मारति पूजा  एक महत्वपूर्ण आराधना कार्यक्रम है। यह पूजा मंदिर में रोजाना सुबह और शाम को आयोजित की जाती है। भस्मारति के दौरान, मंदिर के प्रमुख संकेतक द्वारा उज्जैन के महाकालेश्वर जी की मूर्ति के सामने अर्पित की जाने वाली धूप, दीप, गंध और फूल आदि के साथ भस्म चढ़ाई जाती है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

भस्मारति की पूजा सुबह की खिली तारीखों में तीसरी, पंचमी, सप्तमी, नवमी, दशमी और अमावस्या को होती है। यह पूजा देवों की प्रार्थना, आरती गान और मंत्रों के पाठ के साथ संपन्न होती है। भस्मारति का आयोजन प्रमुखतः प्रातःकालीन आरती के पश्चात् किया जाता है। 

भस्मारति के दौरान, पूजारी मंदिर में उपस्थित होते हैं और विशेष वस्त्र पहने होते हैं। पूजारी वहां मौजूद अनुयायियों को प्रत्येक चरण पर भस्म चढ़ाने के लिए बुलाते हैं। विशेष आरती गान, धूप, दीप और गंध की अर्पण के साथ उनके हाथ में से भस्म लेकर, वे उसे महाकालेश्वर जी की मूर्ति के मुंडमाला या शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। इसके बाद, प्रत्येक अनुयायी शिव के दर्शन करने के लिए आगे बढ़ता है।

भस्मारति का महत्वपूर्ण तत्व भस्म है, जो शिव के प्रतीक के रूप में संज्ञाना जाता है। भस्म को प्राचीन काल से ही शिव की पूजा में महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। यह शिव की निर्गुण और निराकार स्वरूपता को दर्शाता है और भक्तों को उनके अध्यात्मिक यात्रा में प्रेरित करता है।

उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में भस्मारति का आयोजन विशेष रूप से महाशिवरात्रि, रविवार और पूर्णिमा जैसे पर्वों पर किया जाता है। इन दिनों, बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में भस्मारति का दर्शन करने आते हैं और शिव की आराधना करते हैं।

भस्मारति का आयोजन उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर के भक्तों के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व रखता है। यह पूजा उन्हें शिव के अद्वितीयता और परमतत्त्व के प्रतीक भस्म के माध्यम से संयम, भक्ति, और मुक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने का संकेत प्रदान करती है।

महाकाल की भस्म आरती क्यो की जाती है ? (Why is the Bhasma Aarti of Mahakal performed?

 शिवपुराण में एक कहानी बताई गई है कि एक समय की बात है, सती ने अपने पति शिव के अपमान के कारण अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपना स्वयं को आहुति दे दी। इससे  भगवान शिव  बहुत क्रोधित हुए। इसके बाद, उन्होंने सती के मृत शरीर को लेकर विचरण करना शुरू कर दिया। जब श्रीहरी भगवान विष्णु ने शिव को इस हालत में देखा, तो वह उन्हें संसार की चिंता होने लेगी । उन्होंने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। शिव को डर था कि कहीं वह सती को हमेशा के लिए न खो दे, इसलिए उन्होंने उनकी शव की भस्म को अपने शरीर पर लगा लिया। तब से भगवान शिव का भस्म आरती किया जाता है

भस्म आरती बुकिंग(Bhasma Aarti Booking)

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

भस्म आरती बुकिंग आप ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों माधयम से कर सकते है

उज्जैन सिंहस्थ महाकुंभ(Ujjain Simhastha Mahakumbh)

उज्जैन में एक महाकुंभ लगता है , जो प्रत्येक 12 वर्षों पर आयोजित किया जाता है। इसे "सिंहस्थ" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसे सिंह  राशि  पर आयोजित किया जाता है। सिंहस्थ महाकुंभ को चार विभाजनों (अपर सिंहस्थ, मध्य सिंहस्थ, नीचे सिंहस्थ और अंतिम सिंहस्थ) में आयोजित किया जाता है, जबकि छठवां विभाजन आयोजित नहीं किया जाता है।

सिंहस्थ महाकुंभ को भारतीय धार्मिक परंपरा के अनुसार मान्यता है कि इसमें आने वाले लाखों श्रद्धालु अपने पापों को धोने के लिए नर्मदा नदी में स्नान करते हैं और धार्मिक कर्मों का पालन करते हैं। इसे धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है, जहां श्रद्धालु और संन्यासी अपनी आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इकट्ठा होते हैं।

उज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत में स्थित होने के कारण, उज्जैन को सिंहस्थ महाकुंभ का मुख्य स्थान माना जाता है। यहां पर्व के दौरान अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें संगीत, कवि सम्मेलन, धार्मिक प्रवचन, रामलीला, भजन और कीर्तन शामिल होते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

 

महाकुंभ की शुरुआत कई  युग पहलेहुई थी, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मथन के समय अमृत प्राप्त करने के लिए एक संघर्ष हुआ था। इस संघर्ष के दौरान, जब कुंभ वासुकी (सर्प) ने अपना जहर छोड़ा, वहां स्नान करने वालों को अमृत मिला। इसलिए, महाकुंभ को अमृत की खोज के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण तार्किक परंपरा माना जाता है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

 

सिंहस्थ महाकुंभ के दौरान, संयमी संन्यासी, नगा साधुओं, धार्मिक संतों, आचार्यों, श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों की भीड़ उज्जैन में आती है। इस मेले में स्नान के लिए कुछ विशेष स्नानघाट स्थापित किए जाते हैं, जहां लोग नर्मदा नदी में स्नान करते हैं।

उज्जैन  महाकाल लोक दर्शन (Ujjain Mahakal Lok Darshan)

11 अक्टूबर 2022 को उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  द्वारा महाकाल का लोकार्पण किया था गलियारा विकास परियोजना के तहत, दो चरणों में महाकालेश्वर मंदिर का विस्तार किया जा रहा है। इस परियोजना के लिए करीब 850 करोड़ रुपये का खर्च होने की अनुमानित राशि है।

उज्जैन  महाकाल लोक दर्शन (Ujjain Mahakal Lok Darshan)

 

महाकाल मंदिर कॉरिडोर का पूरा क्षेत्र लगभग 900 मीटर का है, जो काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग 4 गुना बड़ा है

यह परियोजना मंदिर के विस्तार को सुविधाजनक बनाने, आरामदायक यात्रा की व्यवस्था करने, और श्रद्धालुओं को अधिक सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से आयोजित की जा रही है। इस परियोजना के अंतर्गत, मंदिर के आसपास के क्षेत्र का विकास किया जाएगा और भव्यता को बढ़ावा दिया जाएगा।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

 

महाकाल लोक के नाइट गार्डन में भगवान शिव की लीलाओं पर आधारित 190 मूर्तियां हैं। यहां 108 स्तंभ स्थापित किए गए हैं, जिन पर भगवान शिव और उनके गणों की विभिन्न मुद्राएं बनी हुई हैं। पूरे परिसर में 18 फीट की 8 प्रतिमाएं हैं। यहां पर्याप्त विस्तार में विभिन्न लीलाओं, कथाओं और महाकाल भगवान के महत्वपूर्ण कार्यों को दर्शाने के लिए इन मूर्तियों का आयोजन किया गया है।

 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

इन मूर्तियों में नटराज, शिव, गणेश, कार्तिकेय, दत्तात्रेय अवतार, पंचमुखी हनुमान, चंद्रशेखर महादेव की कथा, शिव और सती, समुद्र मंथन दृश्य आदि शामिल हैं। ये मूर्तियाँ भक्तों को उनकी आस्था और धार्मिक विश्वास के साथ महाकाल भगवान की अनुभूति कराती हैं।

महाकाल लोक के नाइट गार्डन एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जहां शिव के विभिन्न रूपों का आनंद लिया जा सकता है और महाकाल भगवान की कथाओं और लीलाओं का मनोहारी अनुभव किया जा सकता है।

 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

महाकाल लोक के परिसर में 23 प्रतिमाएं हैं, जिनकी ऊंचाई 15 फीट है। इनमें शिव नृत्य, 11 रुद्र, महेश्वर अवतार, अघोर अवतार, काल भैरव, शरभ अवतार, खंडोबा अवतार, वीरभद्र द्वारा दक्ष वध, शिव बारात, मणि भद्र, गणेश और कार्तिकेय से साथ पार्वती, सूर्य और कपालमोचक शिव शामिल हैं।

वहीं, 17 प्रतिमाएं 11 फीट की हैं, जिनमें प्रवेश द्वार पर श्री गणेश, अर्द्धनारीश्वर, अष्ट भैरव, ऋषि भारद्वाज, वशिष्ठ, विश्वमित्र, गौतम, कश्यप, जमदग्नी शामिल हैं।

8 प्रतिमाएं महाकाल लोक में 10 फीट की हैं, जिनमें लेटे हुए गणेश, हनुमान शिव अवतार, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती, लकुलेश, पार्वती के साथ खेलते गणेश की प्रतिमा शामिल हैं।

साथ ही, महाकाल लोक में नौ फीट की 19 प्रतिमाएं हैं, जिनमें यक्ष-यक्षिणी, सिंह, बटुक भैरव, सती, पार्वती, ऋषि भृंगी, विष्णु, नंदीकेश्वर, शिवभक्त, रावण, श्रीराम, परशुराम, अर्जुन, सती, ऋषि शुक्राचार्य, शनिदेव, ऋषि, दधिचि की प्रतिमाएं शामिल हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

 

वहीं, शिव अवतार वाटिका में भगवान शिव से जुड़ी कथाएं और विशाल प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। त्रिपुरारी महाकाल-महाकाल संकुल में भव्य मूर्तिशिल्प स्थापित की गई है, जिसमें स्वयं ब्रह्मा जी रथ के सारथी हैं। यह संदेश देती है कि अधर्म पर सदैव ही धर्म की विजय होती है।

कैलाश पर्वत और रावण साधना को भी दिखाया गया है, जहां असुरराज रावण ने कठोर तप करके महादेव को प्रसन्न किया था। इस प्रसंग को भी प्रतिमा में दर्शाया गया है। इस वाटिका में नृत्य  करते हुए गजानन और मौन साधना करते सप्तऋषि की मूर्तियों को भी दिखाया गया है।

महाकाल प्रांगण में 108 विशाल स्तंभ बनाए गए हैं, जिन पर महादेव के परिवार के चित्र उकेरे गए हैं। ये चित्र भी प्रतिमाओं के स्वरूप में बने हैं और इनमें गणेश कार्तिकेय शिव, शक्ति, की लीलाओं का वर्णन है।

महाकाल लोक मंदिर देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है, जिसके प्रांगण को आधुनिक रूप दिया गया है। इससे धरती पर यहां देवलोक जैसा आभास होता है। महाकाल लोक में स्थापत्य कला, संस्कृति और आध्यात्मिक भाव को अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया गया है। पूर्व में मंदिर का क्षेत्रफल 2.82 हेक्टेयर था, जो परियोजना पूर्ण होने के पश्चात बढ़कर 20.33 हेक्टेयर हो गया है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

 

मंदिर के प्रांगण में 25 फीट ऊँची लाल पत्थर की दीवारें हैं, जिन पर शिवमहापुराण में उल्लेखित घटनाओं को भित्ति चित्र के रूप में उत्कीर्ण किया गया है। कमल कुंड, पंचमुखी शिव स्तंभ, सप्त ऋषि और त्रिवेणी मंडप भी इस प्रांगण में बनाए गए हैं।

महाकाल लोक परिसर में वैदिक घड़ी भी लगाई जा रही है, जिससे आगंतुकों को समय की जानकारी मिल सके।

श्री महाकालेश्वर मंदिर कैसे जाये(How to reach Shri Mahakaleshwar Temple)

 यहां कुछ आम रूप से उपयोगी निर्देश दिए गए हैं जो आपको मंदिर जाने में मदद कर सकते हैं:

हवाई मार्ग: उज्जैन का निकटतम विमानक्षेत्र देवी आहिल्याबाई होल्कर उज्जैन विमानतल है। वहां से आप टैक्सी, ऑटोरिक्शा या बस के जरिए महाकालेश्वर मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग: उज्जैन रेलवे स्टेशन उच्च संख्या में ट्रेनों के लिए आवाजाहीन रेलवे स्टेशनों में से एक है। स्टेशन से मंदिर तक कई सारी टैक्सी, ऑटोरिक्शा और बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

सड़क मार्ग: यदि आप कार या टैक्सी का उपयोग कर रहे हैं, तो उज्जैन में कई मार्ग हैं जो मंदिर के पास जाते हैं। आपको आपके स्थान से नजदीकी मार्ग की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। मंदिर के नजदीक वाहन पार्किंग सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

उज्जैन के अन्य दर्शनीय स्थल (Other places to visit in Ujjain)

 उज्जैन मध्य प्रदेश, भारत का एक प्रमुख पौराणिक और धार्मिक स्थल है, जहां कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल स्थित हैं। इसके अलावा, उज्जैन में आप निम्नलिखित दर्शनीय स्थलों का आनंद ले सकते हैं:
 
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का दिव्य निवास

 

कालीदास प्रतिष्ठान:  Kalidas Foundation:

कालिदास प्रतिष्ठान एक सामाजिक संगठन है जो उज्जैन शहर में स्थित है। यह संगठन कालिदास की काव्य और साहित्यिक विरासत को प्रमोट करने का मकसद रखता है और उज्जैन को एक साहित्यिक केंद्र के रूप में प्रमुखता देने का प्रयास करता है।

कालिदास प्रतिष्ठान को 1980 में स्थापित किया गया था और इसका मुख्यालय उज्जैन में स्थित है। यह संगठन कालिदास की कृतियों के अध्ययन, विश्लेषण और प्रचार के लिए समर्पित है। संगठन का उद्देश्य कालिदास के लेखन के माध्यम से भारतीय साहित्य, संस्कृति, भाषा, और कला को संजीवित करना है।

कालिदास प्रतिष्ठान के द्वारा विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रम, संगोष्ठी, सेमिनार, और कवि सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। यहां के कार्यक्रम में भारतीय साहित्यकार, कवि, और विचारक शामिल होते हैं जो अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करते हैं और साहित्य से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं।

इसके अलावा, कालिदास प्रतिष्ठान द्वारा सालाना "कालिदास पुरस्कार" भी आयोजित किया जाता है जिसका उद्देश्य साहित्यिक योग्यता वाले लोगों को पुरस्कृत करना है। इस पुरस्कार को विभिन्न श्रेणियों में प्रदान किया जाता है, जिसमें काव्य, नाटक, कविता, कहानी, और विचार लेखन शामिल होते हैं।

कालिदास प्रतिष्ठान ने उज्जैन को साहित्यिक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और साहित्य से जुड़े लोगों को एक मंच प्रदान किया है जहां वे अपनी रचनाएं साझा कर सकते हैं और साहित्यिक मामलों पर विचार-विमर्श कर सकते हैं।

बड़ा गणेशजी मंदिर:(Bade Ganesh Temple)

यह भगवान गणेश के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यहां भगवान गणेश की एक विशेष मूर्ति स्थापित है जिसे स्थानीय लोग और पर्यटकों द्वारा पूजा किया जाता है।

श्री  चिंतामण गणेश मंदिर Shree Chintaman Ganesh Temple

श्री चिंतामण गणेश मंदिर की स्थिति 7 किलोमीटर दूर शहर से उज्जैन-फतेहाबाद रेलवे लाइन पर है। सड़क पहुंच उपलब्ध है। गणेश मूर्ति को स्वयं निर्मित माना जाता है। क्योंकि मूर्ति प्राचीन है, इसलिए चैत्र मास के हर बुधवार को यहां एक विशाल संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। यह माना जाता है कि इसे देखने से हर इच्छा पूरी होती है और चिंता दूर होती है। यहां चिंतामण गणेश को पहली शादी कार्ड की विशेष रीति अपनाई जाती है।

विक्रम की उद्यान: (Vikram's Garden)

इस उद्यान में आप आराम करते हुए घूम सकते हैं और खूबसूरत वृक्षों, फूलों और झरनों का आनंद ले सकते हैं।

हरसिद्धि मंदिर(Harsiddhi Temple)

यह देवता राजा विक्रमादित्य की सदैव पूजित देवी है। हरसिद्धि को उज्जैन के प्राचीन और पवित्र स्थानों में विशेष महत्त्व है। शिव पुराण के अनुसार, देवी सती की कोहनी यहां गिरी थी। स्कंद पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में चंडा मुंडा, दो राक्षसों ने पूरे देश को आतंकित किया था। उन्होंने कैलाश पर्वत पर अशांति पैदा की और शिव ने देवी चंडी को आह्वानित किया और वह उन्हें मार दिया। इस पर शिव ने उसे प्रशंसा की और कहा, "हरस्थाम हे चंडी संहतो दुष्ट दानवू, हरसिद्धि तो लोके नाम्ना ख्यातिम गागिश्यति"। माना जाता है कि जैसे उन्होंने राक्षसों को मार दिया है, उसे हरसिद्धि के नाम से जाना जाएगा। मंदिर के चार दरवाजे हर चार ओर हैं। प्रमुख द्वार पूर्व में है, दक्षिण में एक कुआँ है जिसमें 1947 के मार्च का स्तंभ है। मंदिर के सामने देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति है, दो बड़ी और लंबी खम्भे हैं जिनमें 726 प्रकाश स्तंभ (दीये) स्थित हैं। नवरात्रि के दौरान ये बहुत चित्रसंगत दृश्य प्रदान करते हैं।

चार मठ: Char Math

उज्जैन में चार प्रमुख जैन मठ स्थित हैं। ये मठ जैन धर्म के प्रमुख केंद्र हैं और इसे दर्शनीय स्थल के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।

चमुंडेश्वरी मंदिर: Chamundeshwari Temple:

यह एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है, जहां भगवती चमुंडेश्वरी की पूजा की जाती है। मंदिर स्थली पर स्थित है और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है।

काल भैरव मंदिर Kaal Bhairav ​​Temple

यह बहुत प्राचीन मंदिर क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है और शहर से 4 किलोमीटर दूर है। यह स्थान भगवान शैव संप्रदाय के आठ प्रसिद्ध भैरव स्थानों में से एक है। प्राथमिकतापूर्वक प्रसाद के रूप में भैरव को शराब चढ़ाई जाती है। इस स्थान का कपालिक और औघड़ संप्रदाय के लिए एक विशेष महत्त्व है।

विक्रम के उद्यान: Kaal Bhairav ​​Temple

यह एक प्रसिद्ध पार्क है जहां आप विभिन्न प्राकृतिक वातावरण और फूलों का आनंद ले सकते हैं। यहां आप ट्रेन राइड और बॉटिंग का भी आनंद ले सकते हैं।

चित्रकूट दरबार: Chitrakoot darvar

यह एक प्रसिद्ध सिख गुरुद्वारा है जो गुरु गोविंद सिंह जी के समरक रूप में बनाया गया है। यहां आप धार्मिक सुख और आत्मीयता का आनंद ले सकते हैं।

आईएसकॉन मंदिर ISKCON Temple

उज्जैन भारत में प्रमुख हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है। आईएसकॉन मंदिर उज्जैन जिले मध्य प्रदेश के ननखेड़ा बस स्टैंड के पास स्थित है। उज्जैन का धार्मिक महत्त्व यह भी है कि भगवान श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम यहां गुरु संदीपनी आश्रम में अध्ययन करते थे।

गड़कलिका मंदिर Gadkalika Temple

यह मंदिर शहर से 4 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि महान कवि कालिदास इसी मूर्ति देवी काली की पूजा करते थे। मंदिर में मां काली, भगवान विष्णु और हनुमान की मूर्तियां हैं। यह मंदिर उज्जैन के प्राचीन मंदिरों में से एक है। प्रति वर्ष दो नवरात्रियों के अवसर पर हजारों भक्त यहां इस विशेष पूजा अनुष्ठान करने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह स्थान द्वादश सिद्धपीठों में से एक है।

मंगलनाथ- Mangalnath

क्षिप्रा नदी के किनारे और शहर से 5 किलोमीटर दूर यह मंदिर है, जैसा कि मत्स्य पुराण में वर्णित है, यहां मंगल (मंगल ग्रह) की उत्पत्ति स्थान है। प्रति मंगलवार को यहां विशेष पूजा अनुष्ठान किया जाता है जिसमें हजारों भक्त मंगल लिंग की पूजा करते हैं।

गोपाल मंदिर--Gopal Mandir

यह शहर के केंद्र में स्थित है। इसकी शिखर और गर्भगृह मार्बल से बने हुए हैं और इसके वाम ओर देवी रुक्मिणी की मूर्ति और दाहिने ओर शिव-पार्वती की मूर्ति है। मंदिर में काले रंग के पत्थर में गोपाल कृष्ण की मुख्य मूर्ति और सफेद रंग में राधिका की मूर्ति है। गर्भगृह के दरवाजे पर रत्न प्लेट है। वैकुंठ चौदस पर आधी रात में महाकालेश्वर की सवारी इस मंदिर तक आती है क्योंकि शिव गोपाल से मिलने जाते हैं। इसे प्रसिद्धता से हरिहर मिलन (मिलन) कहा जाता है। इसके बाद गोपाल जी की सवारी महाकालेश्वर तक आती है और गोपाल जी से महाकालेश्वर को तुलसी की दाल चढ़ाई जाती है। इसे प्रसिद्धता से हरिहर मिलन कहा जाता है। यहां भद्रकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर एक विशेष त्योहार मनाया जाता है।

नवग्रह मंदिर (त्रिवेणी)-Navagraha Temple (Triveni)

यह शहर से 5 किलोमीटर दूर उज्जैन-इंदौर सड़क पर स्थित है। इसमें नवग्रहों (नौ ग्रहों) की प्राचीन मूर्तियां हैं। शनिचरी अमावस्या पर यहां बहुत सारे तीर्थयात्री इकट्ठे होते हैं और क्षिप्रा में स्नान करते हैं, फिर दर्शन के बाद उन्होंने रुढ़िवाद रूप में अपने पुराने कपड़े और जूते दान किए जाते हैं ताकि शनि के बुरे प्रभाव से छुटकारा मिले।

चौबीस खम्बा मंदिर Chaubis Khamba Temple

यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास पत्नी बाजार के मार्ग पर स्थित है। इसमें 24 खम्बों (स्तंभों) की एक पंक्ति है, जो मंदिर की शान हैं। मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति है और उज्जैन के प्रमुख देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इसके आगे स्थित पंडित द्वारे नृत्यमंदप भी है, जहां प्रतिदिन सुबह-शाम आरती और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

यहां से बाहर उज्जैन के पास और भी कई मंदिर हैं जिनमें से कुछ हैं: बड़ा गणेश, जालोरी हनुमान, कालीया हनुमान, तळेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, और छोटे गणेश मंदिर।
 

नगरकोट की रानी(Nagarkot Ki Rani)


यह रक्षक देवता उज्जैन के दक्षिण-पश्चिम कोने पर स्थित है। इस स्थान का पुरातात्विक महत्व है और यह नाथ पंथ की परंपरा से जुड़ा हुआ है। मंदिर के सामने परमार काल का एक तालाब है। दो छोटे मंदिर जिनमें से एक में भगवान कार्तिकेय का बासी है, इस तालाब के दोनों किनारों पर स्थित हैं। नगर के प्राचीन परकोटा (सीमा) पर स्थित होने के कारण इसे नगरकोट की रानी कहा जाता है।

राम-जनार्दन मंदिर Rama-Janardana Temple

सांदीपनी आश्रम के पीछे अंकपात के पश्चिम में विष्णुसागर है और इसके निकट श्री रामजनार्दन मंदिर स्थित है। यह सुरम्य स्थान पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है। यहां जो दो मंदिर हैं, उनमें से एक में श्री राम लक्ष्मण और सीता की मूर्ति है और दूसरे में जनार्दन विष्णु की मूर्तियां हैं। मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा 17वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर के सामने एक बड़ा तालाब है। चित्रगुप्त और धर्मराज का मंदिर पास में स्थित है।

वेद शाला (वेधशाला)( The Vedh Shala (Observatory)

क्षिप्रा नदी के तट पर और शहर से 1 किमी दूर वेदशाला बनी हुई है जिसे जंतर मंतर और यंत्र महल के नाम से भी जाना जाता है। खगोलीय और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस स्थान का निर्माण लगभग 300 वर्ष पूर्व राजा जयसिंह ने करवाया था। उनका विचार था कि ग्रहों की गणना सटीक होनी चाहिए और इसके लिए उन्होंने उज्जैन के अलावा जयपुर, काशी, दिल्ली और मथुरा में वेदशालाओं की स्थापना की। प्रारंभ में उज्जैन वेदशाला में केवल चार यंत्र (मशीनें) थे, अर्थात् (1) सम्राट यंत्र (2) नारीवलय यंत्र (3) भित्ती यंत्र और (4) दिगंश यंत्र। बाद में पाँचवें यंत्र में सम्राट यंत्र का प्रयोग कर शंकू यंत्र जोड़ा गया, सूर्य घड़ी से प्राप्त स्थानीय समय को एक तालिका में मानक समय में परिवर्तित किया जाता है। दिगांश यंत्र से विभिन्न ग्रहों का दिगंश प्राप्त किया जाता है। यहां प्राचीन कला के ज्ञान के साथ-साथ पंचांग बनाना भी सिखाया जाता है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य 

यहां रोजाना हजारों लीटर शराब भैरव बाबा को चढाई जाती है.मगर आज तक पता नहीं चल पाया की ये शराब जाती कहाँ है.कुछ श्रद्धालओं का मानना है की किसी ज़माने में अंग्रेज शासन केअधिकारीयों ने मंदिर की जाँच कराइ थी मगर उनके हाँथ निराशा ही लगी.इसके बाद वो अधिकारी भी बाबा भैरव के भक्त बन गए.हालांकि शराब पिलाने की परम्परा सदियों से चलती आ रही है.मगर अभी तक साफ़ नहीं है की बाबा भैरव को शराब पिलानेका रिवाज कब और क्यों शुरू हुआ.भैरव ही एक मात्र ऐसे भगवान है जिन्हें शराब चढाई या पिलाई जाती है.

क्यों ऐसा कहा जाता है की यहां अगर कोई राजा रुकातो उसकी मौत हो जाएगी या जो मंत्री यहां रात रुकेगा उसकी सत्ता चली जाएगी।इस मामले से जुड़े कई आश्चर्य चकित करने वाले पहलु हैं,लोगों का मानना है कि देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन आये थे,और यहीं रात रुक गए, जिसके अगले दिन ही उनकी सरकार गिर गई.ऐसी ही घटना कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वी एस येदियुरप्पा के साथ भी हुआ,वो भी बाबा महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन आये थेऔर यहाँ उन्होंने रात भी बिताई, इसके कुछ दिन बाद हीमुख्यमंत्री वी एस येदियुरप्पा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

प्राचीन काल से ही प्रतिदिन महाकाल की भस्म आरती ताजे चिता की रख से की जाती थीमगर एक रोज उज्जैन के शमशान में कोई शव नहीं जलाइससे चिंतित पुजारी ने अपने ही पुत्र की बलि दे दी और चिता की राख से भस्म आरती की.इसके बाद महाकाल पुजारी से बेहद प्रसन्न हुए और उनके पुत्र को जीवन दान दे दिया.


ऐसा माना जाता है कि उज्जैन में  कभी एक भव्य सूर्य मंदिर था। स्कंद पुराण के अवंती-महात्म्य में सूर्य मंदिर और दो तालाबों, सूर्य कुंड और ब्रह्म कुंड का वर्णन दर्ज है। आस-पास के गांवों के लोग आज भी सूर्य कुंड में स्नान करते हैं। इस पूरे क्षेत्र में पुराने मंदिर के अवशेष बिखरे हुए पाए जाते हैं।


उज्जैन में   एक खंडित शिलालेख महमूद खिलजी के समय 1458 में महल के निर्माण का रिकॉर्ड करता है। कहानी यह है कि 16 वीं शताब्दी में मालवा के सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी द्वारा तापमान को बहुत कम रखने के लिए चारों ओर टैंकों का निर्माण किया गया था, क्योंकि उन्हें पारा पीने की आदत थी जो गर्म होता है।

एक महान धार्मिक केंद्र के रूप में, उज्जैन बनारस, गया और कांची के बराबर है। शैववाद, वैष्णववाद और उनके विभिन्न संप्रदायों और संप्रदायों, जैन धर्म और बौद्ध धर्म ने इस कैथोलिक शहर में एक जगह पाई है। स्कंद पुराण के अवंती खंड में शक्ति और उनके विभिन्न रूपों के लिए समर्पित असंख्य मंदिरों का उल्लेख है। सिद्ध और नाथ पंथ जो तांत्रिकवाद की शाखा थे, उज्जैन में भी फले-फूले।

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, महाकाल में स्थित शिवलिंग को स्वयंभू (स्वयं का जन्म) माना जाता है, जो अन्य छवियों और लिंगमों के विपरीत शक्ति (शक्ति) की धाराएँ प्राप्त करता है, जो कि मंत्र-शक्ति के साथ अनुष्ठानिक रूप से स्थापित और निवेशित हैं। .

महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणामूर्ति के रूप में जानी जाती है, जिसका मुख दक्षिण की ओर है। यह एक अनूठी विशेषता है जिसे तांत्रिक परंपराओं द्वारा 12 ज्योतिर्लिंगों में से केवल महाकालेश्वर में पाया जाता है। महाकाल तीर्थ के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण दिशा में नंदी की प्रतिमा है। तीसरी मंजिल पर स्थित नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन ही दर्शन के लिए खोली जाती है।

महाशिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है और रात भर पूजा चलती रहती है।

प्रश्न एवं उत्तर FAQ

प्रश्न 1: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग क्या है? 

उत्तर 1: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में स्थित है। यह भगवान शिव के 12ज्योतिर्लिंग  एक प्रमुख पूजा स्थलों में से एक है।

प्रश्न 2: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किस समय मिलते हैं?

 उत्तर 2: महाकालेश्वर मंदिर का समय निर्धारित है और महाकालेश्वर मंदिर का दरवाजे सुबह 4:00 बजे खुलते हैं। श्रद्धालुओं को अपने समय पर जल्दी करने की आवश्यकता होती है क्योंकि दरवाजे शाम 10:30 बजे बंद हो जाते हैं।

प्रश्न 3: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व क्या है? 

उत्तर 3: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को मान्यता है कि यह एक प्राचीन ज्योतिर्लिंग इसे शिवरात्रि और कर्तिक मास में विशेष महत्व दिया जाता है।

प्रश्न 4: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास क्या है? 

उत्तर 4: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास मध्य प्रदेश के महाकालेश्वर से  संबंधित है। यह मंदिर प्राचीन काल में स्थापित किया गया था और इसे विभिन्न युगों में सुधार और नवीनीकरण किया गया है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को गंगा वंशियों, मौर्यों, गुप्तों, परमारों, सिंधियों, और होल्करों ने संरक्षित रखा है।

प्रश्न 5: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान कहाँ पर स्थित है? 

उत्तर 5: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत में स्थित है। यह मंदिर महाकाल पहाड़ी के पास स्थित है, जो की उज्जैन शहर के मध्यांतर्गत है।

प्रश्न 6: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के विचारों का वर्णन करें। 

उत्तर 6: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को विभिन्न धार्मिक प्रकारों में महत्वपूर्ण मान्यता है। यहां श्रद्धालुओं को शिव की विभिन्न स्वरूपों का दर्शन करने का अवसर मिलता है, जिनमें महाकाल, सदाशिव, भैरव, रुद्र, और पशुपति शामिल हैं। इसे महाकालेश्वर का नाम दिया गया है जो भगवान शिव के एक सांयकालीन रूप को दर्शाता है।

प्रश्न 7: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी क्या है? 

उत्तर 7: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी में कहा जाता है कि दैत्य दरूकावन कालिंग ने महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण किया था और वहां तपस्या करता रहा। उसकी तपस्या ने भगवान शिव की प्रसन्नता प्राप्त की और उन्होंने उसे वरदान दिया कि वहां उनका विशेष स्थान होगा और वहां ज्योतिर्लिंग स्थापित होगा।

प्रश्न 8: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताएं। 

उत्तर 8:

  • महाकालेश्वर मंदिर का गोपुरम सुंदर विज्ञान कला के उदाहरणों में से एक माना जाता है।
  • मंदिर के पास स्थित महाकाल सरोवर एक पवित्र तीर्थ स्थल है
  • महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

प्रश्न 9: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा कैसे की जाती है? 

उत्तर 9: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा मंदिर के नियमों और परंपराओं के अनुसार की जाती है। पूजा के दौरान श्रद्धालु अपने मनोकामनाएं शिव के चरणों में रखते हैं और उन्हें ध्यान में लाते हैं। धूप, दीप, ध्वजा, फूल, अदरक, दूध, दही, तिल, बिल्वपत्र, गंगाजल, अक्षत आदि पूजा सामग्री उपयोग की जाती है।

प्रश्न 10: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में कौन-कौन से पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं? 

उत्तर 10: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में कई पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं। सबसे प्रमुख उत्सव है शिवरात्रि, जिसे महाकालेश्वर मंदिर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। अतिरिक्त रूप से, महाशिवरात्रि, महाशिवरात्रि के अलावा कुछ तिथियों पर मासिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है, जिनमें कार्तिक मास, श्रावण मास, माघ मास और मार्गशीर्ष मास के पर्व शामिल हैं।

प्रश्न 11: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना कब और कैसे हुई?


उत्तर 11: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना प्राचीन काल में की गई। इसके बारे में निर्णय ग्रंथों या प्राचीन लेखों में स्पष्टता से उल्लेख नहीं है। हालांकि, मान्यता के अनुसार, यह मंदिर दैत्य दरूकावन कालिंग द्वारा निर्मित किया गया था और उसकी तपस्या से भगवान शिव ने इसे अपना आवास बनाया।

प्रश्न 12: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास कैसे पहुंचा जा सकता है?


उत्तर 12: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को दर्शन करने के लिए आपको उज्जैन शहर में जाना होगा। उज्जैन मध्य प्रदेश, भारत में स्थित है। उज्जैन शहर विभिन्न आवागमन साधनों द्वारा पहुंचा जा सकता है, जैसे वाहन, ट्रेन, और हवाई जहाज। महाकालेश्वर मंदिर बस या टैक्सी से भी पहुंचा जा सकता है।

प्रश्न 13: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग किस माह में अधिक भक्तों के आगमन का कारण बनता है?

उत्तर 13: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर्यावरण के साथ जुड़े धार्मिक मान्यताओं के कारण बहुत सारे भक्त खींच आते हैं। हालांकि, श्रावण मास (सावन) को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए विशेष महत्व होता है। इस मास में शिवरात्रि और श्रावण सोमवार का व्रत पालन किया जाता है, जिससे अधिक संख्या में भक्त ज्योतिर्लिंग की दर्शन करने आते हैं।

प्रश्न 14: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कितने मीटर की ऊँचाई पर स्थित है?

उत्तर 14: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर लगभग 170 फीट (51 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है। इसलिए, यह इमारत नगर के ऊँचाई से प्रमुख आकर्षण का हिस्सा है और वहां से आपको शहर का आकारिक नजारा देखने का अवसर भी मिलता है।

प्रश्न 15: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की संख्या कितनी है?

उत्तर 15: वेद पुराणों में कहीं भी महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की संख्या का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इसलिए, यह मान्यता और विश्वास पर आधारित है कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की संख्या एक ही है और यह उज्जैन में स्थित है।

प्रश्न 16: महाकाल को क्या चढ़ता है?

उत्तर 16:महाकाल को हरिओम जल चढ़ाया जाता है, जो बाबा की पूजा के लिए उपयोग होता है। हरिओम जल एक विशेष प्रकार का पवित्र जल होता है और यह शिव भक्तों द्वारा चढ़ाया जाता है ताकि उन्हें शिव की कृपा प्राप्त हो सके। यह जल शिवलिंग की स्थापना और पूजा के दौरान अपनाया जाता है। हरिओम जल को गंगा नदी की प्रतीक्षा करके तैयार किया जाता है और इसे महाकाल मंदिर में प्रयोग किया जाता है।

बाबा महाकाल के दर्शन से विश्वास किया जाता है कि उन्हें मृत्यु दर्शन यानी अधिकारिक नाम से यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिलती है। यह मान्यता है कि जब भक्त महाकाल के दर्शन के लिए मंदिर में जाता है, तो वे मृत्यु देवता द्वारा दंडित नहीं किए जाते हैं और उन्हें शिव की कृपा प्राप्त होती है। इसलिए, बहुत से श्रद्धालु महाकाल मंदिर में यात्रा करते हैं ताकि उन्हें आत्मिक और मानसिक शांति मिल सके।

प्रश्न 17:महाकाल दर्शन के लिए कितना समय चाहिए?

उत्तर 17:आमतौर  पर 30 मिनट से 1 घंटे तक परन्तु यह समय महाकाल दर्शन की आपूर्ति और मंदिर के भक्तों की भीड़ के आधार पर बदल सकता है। अधिक भक्तों की संख्या के कारण, दर्शन के लिए और अधिक समय लग सकता है। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का लोकप्रियता उच्च होती है, इसलिए शिवरात्रि जैसे पवित्र अवसरों पर या दिन के खास समय में, भक्तों की भीड़ अधिक हो सकती है और दर्शन के लिए अधिक समय लग सकता है। इसलिए, यदि आप मंदिर में महाकाल दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको पहले उचित जांच करना चाहिए कि वर्तमान में कितना समय लग रहा है और किसी अतिरिक्त पूजा अथवा आरती के लिए उचित समय ध्यान में लेना चाहिए।

प्रश्न 18  महाकाल का टिकट कितने का है?

उत्तर 18 : महाकाल कॉरिडोर एंट्री टिकट की कीमत 1500 रुपए है। सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक 150 टिकट उपलब्ध होते हैं और शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक 50 टिकट उपलब्ध होते हैं। यह टिकट दर्शन को सुविधाजनक और अनुभवपूर्ण बनाने के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध होते हैं और आप उन्हें ऑनलाइन खरीद सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि यह टिकट कीमतें अपेक्षाकृत बदल सकती हैं और मंदिर प्रबंधन समिति के निर्देशों या स्थानीय नियमों के अनुसार विभिन्न दिनों या अवसरों पर विभिन्न हो सकती हैं। इसलिए, यदि आप महाकाल कॉरिडोर एंट्री टिकट की वर्तमान मूल्य या उपलब्धता के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो सर्वोत्तम रूप से स्थानीय पर्यटन अथवा मंदिर प्रबंधन समिति की वेबसाइट पर जांच करें।

 

प्रश्न 19 उज्जैन में रात क्यों नहीं रह सकते हैं?

उत्तर 19 उज्जैन में रात्रि में रहने से संबंधित मान्यताएं और पौराणिक कथाएं हैं, जो आपका वर्णन करती हैं। यह एक पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण है और इसे विश्वास के रूप में स्वीकार किया जाता है। इन कथाओं के अनुसार, महाकाल बाबा उज्जैन के राजा माने जाते हैं और इसलिए राजाओं या मंत्रियों को रात्रि में उज्जैन में नहीं ठहरने की सलाह दी जाती है। इसके उल्लंघन की स्थिति में, कथाएं कहती हैं कि उन्हें इसकी सजा भुगतनी पड़ती है।

 

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