Nageshvara Jyotirlinga-नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान के १२ ज्योतिर्लिंग के क्रम में हम आज आपको Nageshvara Jyotirlinga-नागेश्वर  ज्योतिर्लिंग के बारे मैं बताने जा रहे है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग(Nageshvara Jyotirlinga)गुजरात के द्वारका धाम से 17 किलोमीटर दूर स्थित है । नागेश्वर का अर्थ है नागो का ईश्वर भगवान शिव का एक नाम नागेश्वर भी है इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण और रूद्रपुराण में भी है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग(Nageshvara Jyotirlinga) की महिमा अपार है कहा जाता है की जो कोई भी मंदिर परिसर मैं जा कर इसका कथा को सुनता है ,उसके सरे पाप धूल जाते है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग(Nageshvara Jyotirlinga) के मंदिर परिषर मैं भगवान शिव की ध्यान मुद्रा में एक बड़ी ही विशाल मूर्ति है।

Nageshvara Jyotirlinga

Story Of  Nageshvara Jyotirlinga-नागेश्वर  ज्योतिर्लिंग की कथा


प्राचीन समय मे एक राक्षस था। उसका नाम दारुक तथाउसकी पत्नी का नाम दारुका था। वे दोन एक सुंदर वन मे रहा करते थे, जो कि समुद्र से बहुत नजदीक था। वह वन चौसठ कोस लंबा और चौड़ा था। वहां के रहने वाले
मनुष्य उन दोनों के अत्याचार बहुत दुखी रहते थे।। 
Nageshvara Jyotirlinga

 
एक दिन दारुका कही घूम रही थी तब उसने देखा के एक नाव पुर कुछ मनुष्य कही जा रहा है , ये बात उसने अपने पति और साथी  राक्षस को बताया तब दारुक ने उन सभी को पकड़ कर बंदीगृह मे डाल दिया। उन सभी मनुष्यो मे सुप्रिय नामक बनिया भी था। जो एक शिव परम भक्त था उसने कारावास मे ही भगवान शिव का पार्थिव लिंग स्थापित किया और विधिपूर्वक उसकी आराधना करने लगा । उसका देखा देखि अन्य मनुष्य भी भगवन शिव का पूजन करने लगा । ऐसा करते हुए काफी दिन हो गए एक दिन उसे पूजा करते हुए दारुक का दूत ने देख लिया, और ये बात उसने दारुकको बता दिया। यह जान कर दारुक सुप्रिय के पास गया और बोला की सच बता तू किस देवता का पूजा करता है। अन्यथा मै तुम्हे मार दूंगा बहुत पूछने पर भी जब सुप्रिय ने कुछ नहीं बताया, तब क्रोधित होकर दारुक ने उस बनिया को मारने का आज्ञा दे दिया । वह परम शिव भक्त हाथ जोड़े, आंख मूंदकर अपने आराध्य भगवान शिव का ध्यान कर उनसे मन मैं रक्षा करने का प्रार्थना करने लगा। तब भगवान शिव अपने भक्त की पुकार सुनकर तुरंत वहां प्रकट हो गए, और पाशुपत अस्त्र से उन सभी राक्षसों को पल भर मे ही नाश कर दिया ।राक्षसों को नाश करने के बाद भगवान ने सुप्रियसे कहा की आज से यह वन राक्षसों से हो गया है । अब तुम सब सदा केलिए भय मुक्त हो जाओ। अब इस वन मे धर्म के मार्ग पर चलने वाले ही इस वन की शोभा बढ़ाएंगे और उसके बाद प्रभु अंतर्ध्यान हो गए । उधर दूसरी ओर दारुका देवी पार्वती की आराधना करने लगी। उसने देवी को प्रसन्न कर लिया और प्राथना करने लगी की माते! आप मेरे वंश एवं कुल रक्षा कीजिये । तब देवी पार्वती दारुका के वचन को सुनकर भगवान शिव से बोली की —हे नाथ! आपकी कही यह बातयुग के अंत मे सच हो उससे पूर्व तामसी सृष्टि भी रहे, यह मेरा विचार है। भगवन्! मेरी बातको पूरा करिये । दारुका मेरी ही शक्ति है। इसलिए उसकी रक्षा करना मेरा धर्म है। यहां पर दारुका का ही राज्य होगा। देवी पार्वती के इन वचन को सुनकर भगवान शिव बोले—हे देवी आपकी इक्षा अवश्य ही पूरी होगी परंतु अपने भक्तो की रक्षा के लिए मैं यही पर स्थित रहूँगा । यह कहकर भगवान शिव और देवी पार्वती वहां जयोतर्मय रूप मैं उस पार्थिव लिंग मैं स्थितहो गए। भगवान शिव नागेश्वर रूप मे देवी पार्वती नागेस्वरी नाम से प्रसिद्ध हुए ।
 
१२ ज्योतिर्लिंग इस प्रकार है  ।

7. श्री बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश (Shree Vishwanath Jyotirlinga) 
9. श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड (Shree Vaidyanath Jyotirlinga ) 
12. श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र(Shree Grishneshwar Jyotirlinga)
 

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