Shree Trimbakeshwar Jyotirlinga त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, (Shree Trimbakeshwar Jyotirlinga ) मंदिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक से 28 किमी की दूरी गोदावरी नदी के स्रोत ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित है। मंदिर को 1740 से 1760 में तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने पुराने मंदिर के स्थान पर बनवाया था। उस समय इस मंदिर को बनाने में 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे। श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, (Shree Trimbakeshwar Jyotirlinga ) मंदिर परिसर के पास कुशावर्त तीर्थ है। श्री ज्ञानेश्वर मौली के बड़े भाई श्री निवृतिनाथ महाराज की समाधि भी त्र्यंबकेश्वर में है।Shree Trimbakeshwar Jyotirlinga मंदिर के अंदर एक छोटे से गढ्ढे में तीन लिंग है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रतीक माने जाते हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत के  शिखर के ऊपर जाने  पर भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग,(Shree Trimbakeshwar Jyotirlinga )की कथा 

शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुशार प्रचीन काल में दक्षिण दिशा में ब्रह्मगिरि नामक के स्थान था, जहा ऋषि गौतम का आश्रम था जिनकी पत्नी का नाम अहिल्या था ऋषि गौतम ने उस स्थान पर लगातार दस हजार साल तक तपस्या की थी ।एक बार वहां सौ वर्षो तक सूखा पड़ा उस स्थान पे वर्षा नहीं हुई इस वजह से लोगों की मृत्यु हो जाती थी, पशु पक्षी वो स्थान छोड़ कर दसो दिशा में चले गए ये सब देख ऋषि गौतम को बहुत दुःख हुआ तब उन्होंने वरुण देव की ६ वर्षो तक कठोर तपस्या की, तब वरुण देव प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिया वरुण देव बोले की हे ऋषि मैं आपकी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूँ माँगो क्या वर मांगते हो । तब ऋषि ने कहा की आप तो सब जानते हो वर्षा नहीं होने से सभी चराचर प्राणी व्याकुल है, इसलिए सबकी दुखो को दूर करने के लिए मैं चाहता हु वर्षा हो जाए । 
Shree Trimbakeshwar Jyotirlinga

महृषि की बात सुन कर वरुण देव बोले की मैं देवाधिदेव भगवान भोलेशंकर के अधीन हु और उनकी आज्ञा और प्रेरणा से कार्य करता हु इसलिए इस वरदान को तो सर्वेस्वर शिव ही आपको दे सकते है। इसलिए आप मुझसे कुछ और मांग लो तब ऋषि गौतम बोले—प्रभु ! आप मुझे जलदान दीजिये । इससे बडा और कोई पुण्य नहीं है है और इसे कोई नष्ट भी नहीं कर सकता। तब गौतम जी के विनती को को स्वीकार करते हुए वरुण देव बोले की आप एक गड् ढा खोदे । मैं उसे जल से भर दूंगा और उस गड् ढे का जलकभी भी खाली नहीं होगा. और इसके लिए तुम्हारा नाम भी संसार मे प्रसिद्ध हो जाएगा। वरुण देव की आज्ञा मानते हुए ऋषि गौतम ने तुरंत एक हाथ लंबा और चौड़ा गड् ढा खोद दिया । तब वरुण देव ने उसे जल से भर दिया और ऋषि गौतम से बोले—हे महामुने!इस स्थान पर किये गए सभी कर्म , दान, हवन, देव पूजन, तपस्या , पितृ श्राद्ध सब सफल होंगे ।
 
 
यह कहकर वरुण देव अंतर्ध्यान हो गए। तब ऋषि गौतम अति प्रसन्न हो गए की सबकी संकटो को उन्होंने दूर कर दिया है है। इस प्रकार ऋषि गौतम की कृपा से ये स्थान फिर से हरा भरा हो गया और सभी मनुष्यो के लिए कल्याणकारी और सुखदायक हुआ इसी प्रकार कई साल बीत गए।
 

एक बार की बात है ऋषि गौतम को प्यास लगी तो उसने अपने शिष्यों को कमंडल में जल भर के लेन के लिए उस स्थान पर भेजा जब शिष्य जल लेने के लिए उस गड्ढे पर गए तब वह कुछ ऋषि पत्नियाँ जल भर रही थी उन्होंने ने गौतम ऋषि के शिष्यों को डांटकर बिना जल दिए ही वहां से भगा दिया । आश्रम जाकर शिष्यों ने सारी बात गौतम पत्नी देवी अहिल्या को बता दिया । तब देवी अहिल्या खुद वहां जल भरने गई और जल लाकर अपने पति को पीला दिया । उस दिन से अहिल्या ही जल लेने जाने लगी । एक दिन अन्य ऋषि पत्नियों ने जान-बूझकर अहिल्या से लड़ना आरंभ करदिया और अपने घर आकर अपने पतियों से अहिल्या की झूठी शकायत कर दी की वो हमें जल भरने देने से मना करती है और कहती है की यह जल तो मेरे पति को वरदानके रूप में वरुण देव ने दिया है।उन सभी की बाते सुनकर ऋषियों को बहुत क्रोध आया। गौतम ऋषि को सबकसिखाने के लिए उन ऋषिओ ने भगवान गणपति जी की आराधना आरंभ कर दिया । उनके पूजन से प्रसन्न होकर गणपति जी प्रकट हुए और उन ऋषियों को वर मांगने के लिए कहा तब उन ऋषियों ने कहा की हे गणपति जी हम चाहते है की गौतम ऋषि ये आश्रम छोड़ कर चले जाये उनके यह वचन सुनकर गणेश जी बोले गौतम ऋषि ने तो कोई अपराध नहीं किया है फिर आप उनका बुरा क्यो चाहते है आप कोई और वरदान मांग लीजिए परंतु जबऋषि नहीं माने तो उनको इक्षित वरदान देकरगणेश जी वहां से अन्तर्ध्यान हो गए।

गणेश जी ने अपना दिया हुआ वरदान को सिद्ध करने के लिए एक गाय का रूप धारण किया औरगौतम जी द्वारा लगाए गए जौ खाने उनके खेत में चली गई। जब मऋषि गौतम ने देखा की वह गाय उनका खेत नष्ट कर रही है तो एक तिनका हाथ में लेकर उसे बाहर निकालने लगे। उस तिनके से पीड़ित होकरगाय धरती पर गिर गयी और मर गई। गाय को मरा जानकरगौतम ऋषि बहुत दुखी हुए ।उसी समय वहां अन्य ऋषि भी आ गए, जो गौतम ऋषि से बैर रखते थे। उन्होंने ऋषि गौतम, उनकी पत्नी और शिष्यो को भला-बुरा कहकर वहां से निकल जाने को मजबूर किया तो वे सब उस स्थान को छोड़ कर वह से जब चलने लगे तो ऋषि गौतम ने उन ऋषियों से गौहत्या के प्राश्चित्त का मार्ग पूछा उन ऋषियों ने कहा की पतित पावणी गंगा में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते है इसलिए अपने द्वारा की गयी गौहत्या केपाप से मुक्त ह होने के लिए आप गंगा जी को प्रकट कर उसमे स्नान करे और भगवानशिव के पार्थिव लिंग की स्थापना कर उसका विधि विधान से पूजन करे तभी आप इस महा पाप से मुक्ति पा सकते है।

उसके पश्चात ऋषि अपनी पत्नी और शिष्यों के साथ कही दूसरी जगह आश्रम वना कर रहने लगे उसके बाद सर्वप्रथम ऋषि ने ब्रह्मगिरि पर्वत की परिक्रमा किया। फिर भगवन शिव का पार्थिव लिंग बना कर उनका पूजन करने लगे। उनकी भक्ति से खुश होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए, और वर मांगने को कहा तब गौतम ने उनसे गौहत्या के पाप से मुक्ति का वर माँगा ।
 
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 तब शिवजी बोले की आपसे कोई अपराध नहीं हुआ है वह सब तो उनसभी दुष्ट दुरचरियो द्वारा रची हुई माया थी आप तो निर्दोष है तब गौतम ऋषि ने कहा की भगवान मुझ पर कृपा कर के गंगा जी को यहाँ प्रकट कीजिए ताकि सभी प्राणिओ का कल्याण हो सके गौतम ऋषि की प्रर्थना सुन कर शिवजी ने उन्हें गंगा जल दिया वही गंगाजल श्रीगंगा जी का स्त्री रूप बन गया गौतम जी ने उन्हें प्रणाम कर के उनकी स्तुति की तब गंगा जी ने प्रशन्न होकर  उनका सारा पाप अपने निर्मल जल में धो दिया और उसके बाद वो शिवजी से वहां से जाने के लिया आज्ञा मांगने लगी। तब सर्वेस्वर शिव ने कहा हे गंगे आप पापो को नाश करें वाली है इसलिए लोक कल्याण के लिए आप पृथ्वी पर ही विराजे आपको कलयुग मैं २८स्वे मन्वन्तर के समाप्त होने तक यही पृथ्वी लोक पर ही निवास करना होगा क्योकि कलयुग में पापो को नष्ट करने का यही एक साधन होगा श्रद्धा पूर्वक आपके दर्शन करने वाले के पापो को नष्ट भी आप ही करोगी तब गंगा जी ने उनसे अनुरोध किया के हे प्रभो मै आपके अधीन हूँ आप जैसा कहेंगे मैं वही करुँगी लेकिन आपसे अनुरोध है की आप माँ पार्वती के साथ मेरे पास ही निवास करे ताकि मैं सदा के भाती आपके पास ही रहुं यह सुन कर सद्शिव बोले के हे गंगे तुम्हारी मनोकामना में अवश्य पूर्ण करूँगा यह कह कर भगवान शिव वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वही स्थित हो गए गंगाजी वह पर गौतम ऋषि के नाम से प्रसिद्ध होकर गौतमी गंगा कहलायी। 

शिवलिंग की विशेषताएं

इस मंदिर की शिव लिंग की विशेषताएं ये है की ये मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है  इस लिंग के शीर्ष पर सुपारी के आकार के तीन लिंग हैं। जो की   ब्रह्मा, विष्णु और शिव के प्रतीक माने जाते हैं त्र्यंबकेश्वरी के इस शिव की पूजा रुद्र, रुद्री, लघुरुद्र, महारुद्र या अतिरुद्र का पाठ करके की जाती है। 

Shree Trimbakeshwar Jyotirlinga  त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्र्यंबकेश्वर कैसे जाएं?

हवाई मार्ग से - निकटतम हवाई अड्डा नासिक है। जहा से मंदिर की दुरी  39 किमी.है
रेलवे द्वारा - निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक रोड है जहा से इसकी दुरी  40 किमी  है।
बस मार्ग - मुंबई - त्र्यंबकेश्वर 180 किमी, पुणे - त्र्यंबकेश्वर 200 किमी
नासिक-त्र्यंबकेश्वर (त्र्यंबकेश्वर) 29 किमी

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