Omkareshwar Jyotirling And Its History story in Hindi

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम्
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम् ।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति
सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ, श्रीशैल पर श्री मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में श्री महाकाल, ओंकारेश्वर में अमलेश्वर (अमरेश्वर), परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्री भीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर,हिमालय पर श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्री घृष्णेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन, प्रातःकाल और संध्या समय,इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है,उसके सात जन्मों के पाप इन लिंगों के स्मरण-मात्र से मिट जाते है।भगवान के १२ ज्योतिर्लिंगों के क्रम मैं हम आज आपको श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग(Omkareshwar Jyotirling) के बारे मैं बताते है।

Omkareshwar Jyotirling ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग 

Omkareshwar Jyotirling

बारह ज्योतिर्लिंग मैं Shree Omkareshwar Jyotirling श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग  चौथे नम्बर पे आता है  ,यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के मध्य में है।

यहाँ पर नर्मदा नदी दो भागों में बंट कर  शिवपूरी नामक द्वीप का निर्माण करता है जो की ४ किलोमीटर लम्बा और २ किलोमीटर चौड़ा इस द्वीप का आकर ॐ जैसा दीखता है, इसलिए इसे ओम्कारेश्वर नाम दिया गया है। यहाँ ओंकारेश्वर और अमलेश्वर नामक दो अलग अलग लिंग है परन्तु दोनों एक ही ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप माने गए है।

 Omkareshwar Jyotirling ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग  की कथा 


शिवे पुराण मैं बर्णित कथा के अनुशार एक बार देवऋषि नारद जी विंध्याचल पर्वत के पास पहुंचे।विंध्याचल ने उनका काफी मान सम्मान किया और घमंड से कहा की की मेरे पास सबकुछ है किसी चीज़ की कमी नहीं है।


उनकी इस अभिमान पूर्वक बात सुन नारद जी चुपचाप शांत खड़े हो गए और कुछ सोचने लगे उनको ऐसा करते देख विंध्याचल ने कहा की आपको मेरे पास कौन सा कमी दिखा आप इस तरह से किया सोच रहे है। यह सुन नारद जी ने कहा की तुम्हारे पास सब कुछ है. किसी चीज़ की कमी नहीं है। लेकिन तुम मेरु पर्वत से ऊँचे नहीं हो । मेरु पर्वत तुमसे बहुत ऊँचा है । उसका शिखर देवताओ के लोको मैं भी पंहुचा हुआ है इतना कह कर नारद जी चले गए। पर विंध्याचल अपने जीवन को धिक्कारता रहा, और मन ही मन मैं भगवान्  शिव का आराधना का संकलप ले कर वह भगवान के शरण मैं पंहुचा तदन्तर जहा साक्षात ओंकार की स्थिति है उस स्थानन  पर जा कर वो  उसने भगवान शिव का पार्थिव मूर्ति का निर्माण किया और छह महीने तक भगवान की लगातार पूजा किया। अपनी तपस्या के स्थान से हिला तक नहीं विंध्याचल की तपस्या देख भगवान शम्भू अत्यंत खुश हुए और उन्होंने विंध्याचल को अपना वह सरूप दिखाया, जो योगियों और देवताओ के लिए भी दुर्लभ था वे प्र्शन्न होकर बोले की विन्ध्य तुम मनोबांछित वर मांगो मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत  प्र्शन्न  हु ,तब विंध्याचल ने कहा कि  अगर आप सचमुच मैं मुझ से प्रसन्न हैं 
 

तो मुझे बुद्धि प्रदान करें जो अपने कार्य को सिद्ध करने वाले हो। तब शिव जी ने  कहा कि मैं तुम्हे वर देता हूँ कि तुम जिस प्रकार का भी कार्य करना चाहते हो वह सिद्ध हो। ये सुन आकाश से पूष्प  वर्षा  होने लगा ,और  देवता और ऋषि प्रकट हुए और उन्होंने भगवन का पूजन किया तद्पश्चात उन्होंने भगवान् से अनुरोध किया की प्रभु आप यहाँ स्थिर रूप से निवास करे । देवताओ और ऋषियों की ये बात सुन कर परमेश्वर शिव अत्यंत प्रसन्न हुए ,और लोको को सुख देने के लिए वैसा ही किया वहां जो एक ही ओंकारलिंग था वो दो  भाग  मैं  विभाजित  हो गया ।
 प्रणव मैं जो सदाशिव थे वो ओंकार नाम से और पार्थिव मूर्ति मैं जो शिवजयोति थी उसको परमेश्वर की संज्ञा दी गयी इस प्रकार ओंकार और परमेश्वरये दोनों शिव लिंग भक्तो को परम फल प्रदान करते है ।

Omkareshwar Jyotirling ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंगकी के कुछ तथ्य


यह मंदिर नर्मदा किनारे ॐ आकार के पर्वत पर बसा है। यहां शिवलिंग की आकृति ॐ के आकार की है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान भोलेनाथ तीन लोकों का भ्रमण कर रात में यहां विश्राम करने आते हैं। माता पार्वती भी यहां विराजित हैं। रात को शयन से पहले भगवान शिव और माता पार्वती यहां चौसर खेलते हैं।यही कारण है कि यहां शयन आरती भी की जाती है। शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। रात में गर्भ गृह में कोई भी नहीं जाता लेकिन सुबह पासे उल्टे मिलते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव की गुप्त आरती की जाती है जहां पुजारियों के अलावा कोई भी गर्भ गृह में नहीं जा सकता। पुजारी भगवान शिव का विशेष पूजन एवं अभिषेक करते हैं।ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर एक पांच मंजिला इमारत है। पहली मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर का मंदिर है और तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव की। जबकि चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर है। ओंकारेश्वर में अनेक मंदिर हैं नर्मदा के दोनों दक्षिणी व उत्तरी तटों पर मंदिर हैं। पूरा परिक्रमा मार्ग मंदिरों और आश्रमों से भरा हुआ है। कई मंदिरों के साथ यहां अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा जी के दक्षिणी तट पर विराजमान हैं।ओंकारेश्वर का मुख्य मंदिर ऊँचे शिखर से युक्त उत्तरभारतीय वास्तुकला से बना है.यह मंदिर दर्शनार्थियों का प्रमुख आकर्षण है. मंदिर के निर्माण के विषय में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है. इसे किसने बनवाया और कब यह अज्ञात है. मंदिर का गर्भ गृह मूलतः पुरानी निर्माण शैली में बने एक छोटे मंदिर के सामान लगता है इसका गुम्बद पत्थर की परतों को जमा कर बनाया गया है. चूँकि यह छोटा मंदिर ऊंचाई पर नदी के सीधे गहरे किनारे के काफी पास दक्षिण की ओर बना है एवं उत्तर की और का बड़ा विस्तृत हिस्सा नई निर्माण शैली में बना लगता है संभवतः इसी वजह से गर्भ गृह एवं मुख्य देवता न तो मुख्य द्वार के सीधे सामने है न ही नए निर्माण के शिखर के ठीक नीचे स्थित हैं.
मंदिर में एक विशाल सभा मंडप है जो की लगभग १४ फुट ऊँचा है एवं ६० विशालकाय खम्बों पर आधारित है.मंदिर कुल मिला कर ५ मजिलों वाला है एवं सभी पर अलग अलग देवता स्थापित हैं. जो की नीचे से ऊपर की ओर क्रमश: श्री ओंकारेश्वर , श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ , श्री गुप्तेश्वर, एवं ध्वजाधारी शिखर देवता हैं.

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