Devi Mantras : दुर्गा कवच स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित



दुर्गा कवच स्तोत्र (Durga Kavach Stotra) एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तोत्र है जिसे मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए पठने का प्रमाण माना जाता है। यह स्तोत्र आपको भौतिक और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है और आपको अपने जीवन में सामाजिक और आर्थिक स्तर पर सुरक्षित रहने में मदद करता है। इस लेख में, हम आपको दुर्गा कवच स्तोत्र (Durga Kavach Stotra) के महत्व, पाठन के तरीके, और इसके लाभ के बारे में विस्तार से बताएंगे।

 

दुर्गा कवच

 

दुर्गा कवच स्तोत्र क्या है (What is Durga Kavach Stotra)

"दुर्गा कवच स्तोत्र" (Durga Kavach Stotra) माता दुर्गा की महिमा और उनकी कृपा का गुणगान करने वाला प्रमुख स्तोत्र है। इसका पाठ माता माँ दुर्गा के प्रति भक्ति और आदर का एक उत्कृष्ट व्यक्ति द्वारा किया जाता है। इस स्तोत्र में माता दुर्गा की शक्तियों, गुणों, और महत्व का वर्णन किया गया है और भक्त उनकी कृपा और सुरक्षा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है। यह स्तोत्र माता दुर्गा की पूजा और आराधना के समय अक्सर पठा जाता है और विशेष रूप से नवरात्रि के अवसर पर लोग इसका पाठ करते हैं। इसके माध्यम से वे माता दुर्गा की कृपा और सुरक्षा प्राप्त करने की कामना करते हैं। दुर्गा कवच स्तोत्र (Durga Kavach Stotra) माता दुर्गा के आद्याशक्ति और महाकाली रूप की महिमा को महसूस करने का अवसर प्रदान करता है और भक्तों को सुरक्षित रखने का कार्य करता है। 

दुर्गा कवच स्तोत्र का महत्व (Importance of Durga Kavach Stotra)


दुर्गा कवच स्तोत्र (Durga Kavach Stotra) का पाठ करने से व्यक्ति अपने जीवन में सुरक्षित रह सकता है। यह स्तोत्र आपको भौतिक और मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है और आपको बुराई से बचाने में मदद करता है। इसका पाठ करने से आपका मन और शरीर सुरक्षित रहता है और आपको बुराई से बचाने की शक्ति मिलती है।

दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठन कैसे करें(How to recite Durga Kavach Stotra)

 
दुर्गा कवच स्तोत्र (Durga Kavach Stotra) पढ़ने का उचित तरीका यह है:

1. पूजा स्थल तैयारी: पहले एक शुद्ध स्थान चुनें जो पूजन के लिए उपयुक्त हो। स्थल को शुद्ध करने के बाद, आसन पर बैठें या बैठिए.
2. ध्यान: मां दुर्गा की मूर्ति या चित्र को ध्यान से देखें और मां की कृपा के लिए मन्मोजित हों.
3. संकल्प: पूजन का उद्देश्य स्पष्ट करें और मां दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्ति की प्रार्थना करें.
4. पवित्र आदिकांश का पाठन: पूजा आरंभ करने से पहले, दुर्गा कवच स्तोत्र का पवित्र आदिकांश पढ़ें. यह आदिकांश मंगल कारणा के रूप में जाना जाता है और दुर्गा कवच का शुरूआती भाग होता है.
5. कवच स्तोत्र का पठन: अब दुर्गा कवच स्तोत्र का पूरा पाठन करें. इसके द्वारा आप मां दुर्गा की रक्षा की प्रार्थना करेंगे और अपने आप को उनकी कृपा में लिपटा हुआ महसूस करेंगे.
6. प्रार्थना: कवच स्तोत्र का पठन करने के बाद, मां दुर्गा से अपनी इच्छाओं की प्रार्थना करें. आप किसी भी विशेष संकल्प को इस समय उपस्थित कर सकते हैं.
7. समापन: पूजा को समाप्त करें और मां दुर्गा को धन्यवाद दें. पूजा के बाद, आप आरती गान कर सकते हैं और प्रसाद बाँट सकते हैं.
ध्यान दें कि दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए. यह पूजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और आपके जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि लाने में मदद कर सकता है.

दुर्गा कवच स्तोत्र के लाभ(Benefits of Durga Kavach Stotra)

दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठ करने के कई लाभ हो सकते हैं. निम्नलिखित कुछ मुख्य लाभ हैं:

1. रक्षा और सुरक्षा: दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठ करने से मां दुर्गा की कृपा और रक्षा मिल सकती है, जिससे आपको असुरक्षा और आपत्ति से सुरक्षित रहने में मदद मिलती है.

2. मानसिक शांति: स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति, ध्यान, और आत्मा के साथ अंतरिक शक्ति मिलती है. यह तनाव, चिंता, और दुख से मुक्ति प्रदान कर सकता है.

3. रोग निवारण: दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठ करने से शारीरिक और आत्मिक रूप से स्वास्थ्य को उन्नति मिल सकती है. यह रोगों की रक्षा कर सकता है और रोग निवारण में मदद कर सकता है.

4. दुर्गा पूजा में सहायक: दुर्गा कवच स्तोत्र को दुर्गा पूजा के दौरान पढ़ने से पूजा का महत्व और प्रभाव बढ़ सकता है. यह पूजा में भक्ति और समर्पण की भावना को मजबूत कर सकता है.

5. आत्मा के साथ संवाद: स्तोत्र का पठन करने से आप अपनी आत्मा के साथ संवाद कर सकते हैं और आपकी आत्मा को मां दुर्गा के साथ जोड़ सकते हैं, जिससे आपके आत्मिक विकास में मदद मिलती है.

यह लाभ व्यक्ति के विशेष स्थितियों और भावनाओं पर भी निर्भर कर सकते हैं, लेकिन दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठ भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जाता है और यह आत्मा के साथ एक सकारात्मक जुड़ाव को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
 हैं।
 

 दुर्गा कवच स्तोत्र (देवी कवच स्तोत्र) Durga Kavach Stotra (Devi Kavach Stotra)

दुर्गा कवच स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित




॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,

चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,

श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥


"इस श्रीचण्डीकवच के पाठ का आरंभ किया जाता है। इसके ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद अनुष्टुप् है, देवता चामुण्डा है, और इसके अंगन्यास में मातृका बीज है। इसके साथ ही, इसके तत्त्व और महत्व है, और इसे श्रीजगदम्बा की प्रीति प्राप्ति के लिए सप्तशतीपाठ के अंग के रूप में जपा जाता है।

॥मार्कण्डेय उवाच॥


ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥

 
मार्कण्डेय ने कहा:
हे पितामह ब्रह्मा, कृपया मुझे वह अत्यंत गोपनीय ज्ञान दिखाएं, जो सभी प्राणियों का सर्वोत्तम रक्षक है और किसी और को नहीं पता है। कृपया वह ज्ञान मुझे प्रदान करें।"


॥ब्रह्मोवाच॥

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌। देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2॥

इस श्लोक में ब्रह्मा ऋषि मार्कण्डेय से कह रहे हैं कि माँ दुर्गा का कवच बहुत पुण्यकारी है, और यह अत्यंत गुप्त है, जिसका जाप और पाठ सभी भूतों के लिए उपकारकारी है। वे मार्कण्डेय से कवच का महत्व और लाभ बता रहे हैं और उन्हें इसका श्रवण करने की सलाह दे रहे हैं।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌॥3॥

 
यह श्लोक माँ दुर्गा के नौ रूपों की चरणों का उल्लेख करता है और उनके पहले चार रूपों का वर्णन करता है:

प्रथमं शैलपुत्री: इस रूप में, माँ दुर्गा को शैलपुत्री के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि वे हिमालय पर्वतों की पुत्री हैं।
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी: इस रूप में, वे ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली देवी हैं, जो तपस्या और ध्यान में लगी रहती हैं।
तृतीयं चन्द्रघण्टी: इस रूप में, माँ दुर्गा को चंद्रघण्टी के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि उनके मूक पर्वत पर चंद्र की चंद्रमा द्वारा प्रकाशित होता है।
कूष्माण्डी: इस रूप में, माँ दुर्गा को कूष्माण्डी के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि उनके मुख से निकला अमृत कूष्माण्ड की तरह होता है।

ये चार रूप पूज्य और माँ दुर्गा के नौ रूपों के प्रारूप होते हैं, जिन्हें नवरात्रि के दौरान पूजा जाता है।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌॥4॥

 

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इस श्लोक में, माँ दुर्गा के नौ रूपों के पांचवें से आठवें रूपों का वर्णन किया गया है:

 पंचमं - स्कन्दमाता: इस रूप में, माँ दुर्गा को स्कन्दमाता के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि वे भगवान कार्तिकेय (स्कन्द) की माता हैं।
षष्ठं - कात्यायनी: इस रूप में, माँ दुर्गा को कात्यायनी के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि वे महर्षि कात्यायन की पुत्री हैं।
 सप्तमं - कालरात्री: इस रूप में, माँ दुर्गा को कालरात्री के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि वे रात के अंधकार का प्रतीक हैं।
आष्टमं - महागौरी: इस रूप में, माँ दुर्गा को महागौरी के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि वे अत्यंत श्वेत और पवित्र हैं।

ये चार रूप भगवान कार्तिकेय (स्कन्द), महर्षि कात्यायन, रात का प्रतीक, और महागौरी के साथ पूज्य हैं, और उन्हें नवरात्रि के दौरान पूजा जाता है।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥


इस श्लोक में, नवमं रूप के साथ नौ दुर्गा के नामों का वर्णन किया गया है:

नवमं - सिद्धिदात्री: इस रूप में, माँ दुर्गा को सिद्धिदात्री के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि वे अपने भक्तों को सिद्धियाँ देती हैं और उनकी इच्छाएं पूरी करती हैं।
इन नौ दुर्गा के रूपों का सार्थक महत्व होता है और उन्हें नवरात्रि के अवसर पर पूजा जाता है। यह नौ रूप भगवान दुर्गा की आराधना के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में माने जाते हैं।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥


इस श्लोक का अर्थ है कि जब किसी व्यक्ति का शत्रु युद्ध में आग के समान तेजी से बढ़ जाता है और वे भयभीत हो जाते हैं या जब वे किसी विषम और दुर्गम स्थिति में फंस जाते हैं, तब माँ दुर्गा की शरण में जाते हैं। वह माँ दुर्गा उनके रक्षक और संरक्षक बनती है, जो उनके भय और संकट को दूर करने के लिए उपस्थित होती हैं।

इस श्लोक के माध्यम से यह संदेश दिया जा रहा है कि माँ दुर्गा हमें जीवन के सभी कठिनाइयों और संघर्षों से पार करने में मदद करती है और हमें भय से मुक्त करती हैं। वह हमारी रक्षा करती है और हमें उन दुष्ट घातक तत्वों से सुरक्षित रखती है जो हमारे जीवन में हानि पहुंचा सकते हैं।

न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे। नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥


इस श्लोक में कहा जा रहा है कि जब व्यक्ति देवी दुर्गा के कवच का पाठ करता है और इन देवियों की रक्षा की अनुशासन करता है, तो वह रणक्षेत्र में भी शत्रुओं के बीच जाने पर भी किसी प्रकार का अशुभता या संकट का सामना नहीं करता है। उसे दरिद्रता, दुख, और भय का अनुभव नहीं होता। इसके बजाय, वह सुरक्षित और आत्म-संतोष में रहता है।

यह श्लोक देवी के कवच की महत्ता और उसके पाठ का महत्व प्रकट करता है, और यह बताता है कि यदि कोई व्यक्ति उनकी रक्षा करता है, तो उसे सभी प्रकार के दुःख और आपत्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते। ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥


इस श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति भक्ति और स्मृति के साथ इन देवी को याद करता है, उनका संशयशून्य रूप से सर्वरक्षा होता है और उनका समृद्धि में वृद्धि होती है. यदि कोई व्यक्ति देवी को भक्ति और स्मृति के साथ याद करता है, तो वह उनके आशीर्वाद से जीवन में सफलता प्राप्त करता है और उसकी प्रजाति में वृद्धि होती है।

यह श्लोक भक्ति और आध्यात्मिक साधना के महत्व को बताता है और यह भी प्रमाणित करता है कि जब व्यक्ति ईश्वर के प्रति श्रद्धा और समर्पण दिखाता है, तो उसे देवी के आशीर्वाद में आत्मविश्वास होता है।
 

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना। ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥ 9॥

चामुण्डा प्रेतों के साथ बैठी हुई हैं, वाराही स्वरूप में, महिषासन पर। वैष्णवी देवी गरुड़ के साथ बैठी हुई हैं, जो गज के सारथी हैं।"

माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना। लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥


इस श्लोक में विभिन्न देवियों की विशेष भक्ति का वर्णन किया गया है, और उनकी स्वरूप और गुणों का सुंदर वर्णन किया गया है:

1. माहेश्वरी: यह देवी महेश्वर (भगवान शिव) की पत्नी है और उनकी वाहना गौ होती है, इसलिए वह "वृषारूढा" कहलाती है.
2. कौमारी: यह देवी कुमार स्वरूप में प्रस्तुत होती है, अर्थात् बचपन की अवस्था में।
3. शिखिवाहना: देवी की वाहना एक शिखा वाले मुर्ग की होती है, जिससे वह "शिखिवाहना" कहलाती है।
4. लक्ष्मी: यह देवी भगवान विष्णु की पत्नी और समृद्धि और सौभाग्य की प्रतीक होती है। उसका आसन पद्मासन होता है और उसके हाथ में पद्म होता है, इसलिए वह "पद्महस्ता" कहलाती है। वह भगवान हरि (विष्णु) की प्रिय होती है।
इस श्लोक से यह बताया जा रहा है कि इन देवियों की पूजा और उनके गुणों के स्मरण से भक्त को आध्यात्मिक और सांसारिक धन, सौभाग्य, और सफलता प्राप्त होती है।

Devi Mantras : दुर्गा कवच स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित



श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना। ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥11॥


इस श्लोक में कुछ और महत्वपूर्ण देवियों के बारे में वर्णन किया गया है:

1.श्वेतरूपधारा: यह देवी श्वेत (सफेद) वस्त्र पहनकर प्रकट होती है, और वह ईश्वरी या ईश्वर की स्वरूपिणी होती है। वह वृष (बैल) पर वाहन करती है, इसलिए वह "वृषवाहना" कहलाती है।
2. ब्राह्मी: यह देवी ब्रह्मा की पत्नी होती है और वह हंस (स्वान) पर सवार रहती है।
3. हंससमारूढा:देवी का वाहन हंस होता है, और वह हंस के साथ सवार रहती है।
4. सर्वाभरणभूषिता: देवी के शरीर पर सभी प्रकार के आभूषण (भूषण) होते हैं, और वह सभी प्रकार के आभूषणों से विभूषित होती हैं।

यह श्लोक भक्तों को ध्यान, धारणा और विश्वास के साथ इन देवियों की पूजा करने की महत्वपूर्ण प्रेरणा देता है। इन देवियों की आराधना से भक्त को आध्यात्मिक और लौकिक सुख-सौभाग्य प्राप्त होता है।

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः। नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥12॥


इस श्लोक में यह वर्णित किया गया है कि ये माताएँ (देवियाँ) सभी योगों के साथ सम्पूर्ण भूषणों से युक्त होती हैं, और वे विभिन्न प्रकार के रत्नों से विभूषित होती हैं। इससे दिखाया जाता है कि ये देवियाँ अत्यंत सुंदर और महत्वपूर्ण हैं, और उनकी पूजा का विशेष महत्व है। भक्त उनके पास योग, आभूषण, और रत्नों की शोभा को आदरपूर्वक देखते हैं और इन्हें अपने जीवन में लाने का प्रयास करते हैं।

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:। शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥13॥


इस श्लोक में यह वर्णित किया गया है कि देवीयों के रथ पर बैठकर, वे अपने क्रोध से अभिभूषित होती हैं और उनके हाथ में शङ्ख (शंख), चक्र (सुदर्शन चक्र), गदा (मास पूर्ण मुद्रिका), शक्ति (ट्रिशूल), हल (और हाथ में मुसल (कुल्हाड़ी) जैसे युद्धास्त्र दिखाई देते हैं। इन आस्त्र-शस्त्रों का प्रतीक्रमण दर्शाते हैं कि देवी महाकाली क्रोध से अभिभूषित होती हैं और युद्ध के समय इन युद्धास्त्रों का सहारा लेती हैं।

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥14॥


इस श्लोक में, देवी के आस्त्र-शस्त्र की एक सूची प्रस्तुत की गई है:

1. खेटक (घुघ्नी/डंडा): एक प्रकार की छड़ी या डंडा जो युद्ध के समय कुल्हाड़ी की तरह प्रयोग किया जाता है.
2. तोमर (टोमहॉक): यह एक प्रकार की छड़ी होती है जिसमें एक कुल्हाड़ी के साथ एक छड़ा होता है, जो युद्ध के समय प्रयोग किया जाता है.
3. परशु (एक प्रकार का कुल्हाड़ी): यह भी एक प्रकार का कुल्हाड़ी होता है और युद्ध के अवसर पर उपयोगिता रखता है.
4. पाश (पाश): पाश एक प्रकार का बंधन जाल होता है और दुश्मन को पकड़ने या बाँधने के लिए प्रयोग किया जाता है.
5. कुन्तायुध (बोव): इस शब्द का अर्थ तीरधारी किर्शिकी बो की तरह होता है, जिसका प्रयोग दुर्गा माता के युद्ध अस्त्र के रूप में होता है.
6. त्रिशूल (तीसर): त्रिशूल एक प्रकार की त्रिदंड छड़ी होती है जिसमें तीन किनारे होते हैं. यह एक प्रकार के युद्ध आस्त्र के रूप में प्रसिद्ध है.
7. शार्ङ्ग (धनुष): शार्ङ्ग एक प्रकार की धनुष होती है और धनुर्धर देवता विष्णु के आस्त्र के रूप में उपयोग किया जाता है.
8. आयुध (शस्त्र): आयुध एक सामान्य शब्द है जो किसी भी प्रकार के युद्ध औजारों को सूचित करता है, जैसे कि युद्ध के लिए उपयोग किए जाने वाले आस्त्र-शस्त्र।

इन आस्त्र-शस्त्रों का उपयोग युद्ध में दुर्गा माता द्वारा किया जाता है, और वे उनकी शक्ति और दैवी शक्ति का प्रतीक होते हैं जो उन्हें उनके भक्तों की सुरक्षा के लिए प्रयोग करने में मदद करते हैं।

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च। धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै॥15॥


इस श्लोक में कहा गया है कि देवी आस्त्र-शस्त्रों का उपयोग दैत्यों के नाश के लिए और अपने भक्तों की सुरक्षा के लिए करती हैं. वे दैत्यों का नाश करने में युद्ध के सामग्री का प्रयोग करती हैं और अपने भक्तों को भय और आपत्तियों से बचाने के लिए आयुद्ध करती हैं. इसके द्वारा, वे दैत्यों के प्रति और अपने भक्तों के प्रति अपनी कृपा और सुरक्षा के रूप में अपने आयुधों को धारण करती हैं, और देवों के लिए भी उनकी हित में कार्य करती हैं।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे। महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥


इस श्लोक में, देवी को उनकी महारौद्र और महाघोर पराक्रम के लिए नमस्कार किया जा रहा है। यह श्लोक उनके महाबल, महोत्साह, और महाभय विनाशन के स्वरूप का स्तुति कर रहा है। यह दिखाने का प्रयास करता है कि देवी कितनी महान और शक्तिशाली हैं, और उनका देवों और उनके भक्तों के लिए कितना महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि। प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता॥17॥


इस श्लोक में, यह प्रार्थना की जा रही है कि मां देवी दुष्प्रेक्ष्य और शत्रुओं के भय से रक्षा करें। यह भी कहा जा रहा है कि देवी की कृपा पूर्व दिशा (प्राच्य) में और आग्नेयी अथवा अग्निदेवता की रक्षा करने में भी हो। यह प्रार्थना है कि दुष्प्रेक्ष्य और शत्रुओं से बचाव के लिए मां देवी की कृपा और सहायता मिले।

दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खङ्गधारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18॥


इस श्लोक में देवी के विभिन्न अवतारों की रक्षा के लिए विभिन्न दिशाओं में उनके अवतारों की पूजा की जा रही है:

1. दक्षिणे (दक्षिण दिशा) वाराही: दक्षिण दिशा में वाराही अवतार की रक्षा की जा रही है।
2. नैऋत्यां (दक्षिणात्य दिशा) खङ्गधारिणी: दक्षिणात्य दिशा में खङ्गधारिणी अवतार की सुरक्षा की जा रही है।
3. प्रतीच्यां (पूर्व दिशा) वारुणी: पूर्व दिशा में वारुणी अवतार की रक्षा की जा रही है।
4. वायव्यां (पश्चिम दिशा) मृगवाहिनी: पश्चिम दिशा में मृगवाहिनी अवतार की सुरक्षा की जा रही है।

इस प्रार्थना के माध्यम से, विभिन्न दिशाओं में मां देवी के अवतारों की कृपा और सहायता की बिना, जीवन के विभिन्न पहलुओं के खिलवाड़ से बचाव की प्रार्थना की जा रही है।

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी। ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥19॥


इस श्लोक में, देवी के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है और यह बताया गया है कि कौमारी दिशा की ओर पाती है, ऐशानी दिशा में शूल (त्रिशूल) धारण करती है, ऊर्ध्व में ब्रह्माणी होती है, अधस्तात् में वैष्णवी रूप लेती है। यह विभिन्न दिशाओं के आधार पर देवी की रक्षा करने के लिए कवच का प्रयोग कैसे करें, यह बताता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को विभिन्न दिशाओं में देवी की आराधना और रक्षा करनी चाहिए, ताकि उन्हें सम्पूर्ण दिशाओं से सुरक्षा मिले।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना।जाया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥20॥

 
इस श्लोक में दश दिशाओं के रक्षक देवी कवच के माध्यम से दी गई हैं। यहाँ तक कि शववाहना, जिसका अर्थ होता है कि वह शव (मृत्यु) को अपने वाहन के रूप में प्रकट करती है, भी दिशाओं की रक्षा करती है। इस श्लोक में देवी के विभिन्न रूपों के माध्यम से सम्पूर्ण दिशाओं की सुरक्षा के लिए कवच का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है, ताकि व्यक्ति को सभी दिशाओं से सुरक्षा मिले।

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता। शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्धनि व्यवस्थिता॥21॥


इस श्लोक में देवी कवच के माध्यम से दो अधिक रूपों के साथ दिशाओं की रक्षा की जाती है। देवी कवच के वामपार्श्व (बाईं तरफ) में "अजिता" और दक्षिण तरफ (दाईं तरफ) "अपराजिता" नामक रूप में विराजमान हैं, जो दोनों ही दिशाओं की रक्षा करते हैं। इसके अलावा, देवी का "उमा मूर्धनि व्यवस्थिता" रूप मूर्धन (सिर) पर स्थित होता है और मानव जीवन के अनुशासन और संरचना की रक्षा करता है।

यह श्लोक दिशाओं की सुरक्षा के लिए देवी कवच का उपयोग करने की सलाह देता है, ताकि व्यक्ति सम्पूर्ण दिशाओं से सुरक्षित रह सके।

मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी। त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22॥


इस श्लोक में देवी कवच के माध्यम से भ्रूणेत्र (आंखों के बीच) में "यमघण्टा" नामक रूप के साथ देवी की रक्षा की जाती है, जो आंखों के बीच के स्थान पर स्थित है। देवी के मालाधारी ललाट (माथे) पर भी "यशस्विनी" रूप होता है। यह रूप देवी के चेहरे के विभिन्न अंगों की सुरक्षा करने में मदद करता है।

इस रूपों का जिक्र कवच में किया गया है ताकि व्यक्ति कवच पहनकर सम्पूर्ण शरीर के साथ अपने चेहरे के भागों की भी सुरक्षा कर सके और अनिर्वाचनीय घातक संघात से बच सके।

शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी। कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले च शांकरी॥23॥


देवी कवच के इन श्लोकों में देवी के विभिन्न रूपों द्वारा शरीर के विभिन्न स्थानों की सुरक्षा का वर्णन है। यह कवच साधक को शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित रहने में मदद करता है। सबसे ऊपर उदीच्या में कौमारी, ऐशान्या में शूलधारिणी, ऊर्ध्व में ब्रह्माणी और नीचे वैष्णवी देवी का रक्षा द्वारा शरीर की सुरक्षा की जाती है। यह आंखों, कानों, मुख, नाक, श्रोत्र, शिरो, और दिव्य रूप में कई अन्य भागों की सुरक्षा का भी वर्णन करते हैं। इन रूपों की सुरक्षा साधक को अधिक रक्षित और सुरक्षित महसूस करने में मदद करती है।

नासिकायां सुगन्दा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका। अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥24॥


नासिकायां सुगन्दा च यहाँ तक कवच में उल्लिखित है, इसका अर्थ है कि सुगंधित नाक की रक्षा और चर्चिका का रक्षा द्वारके की ओर की ओर हो रहा है, जबकि अधर के चरणों में अमृत की बूँद रखती है। इसके अलावा, जिह्वा में सरस्वती का नाम है, जो विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में प्रतिष्ठित है।

यह कवच शरीर के विभिन्न भागों की सुरक्षा का वर्णन करता है और यह साधक को शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित रहने में मदद करता है।

दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका। घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥25॥


दन्तों की रक्षा कौमारी और कंठ स्थान पर चण्डिका देवी करती हैं। चण्डिका देवी के महामाया और चित्रघण्टा नामक रूप भी तालुक में स्थित हैं। यह कवच इन भागों की सुरक्षा के लिए है और साधक को इन भागों की सुरक्षा दिलाने में मदद करता है।

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला। ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥26॥


कामाक्षी देवी चिबुक स्थान की रक्षा करती है, और भद्रकाली देवी ग्रीवा स्थान की सुरक्षा करती है। सर्वमंगला देवी वचन और आवाज की सुरक्षा करती है, जबकि धनुर्धरी देवी पृष्ठवंश की सुरक्षा करती है।

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी। स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू में व्रजधारिणी॥27॥

"दुर्गा कवच के इस श्लोक में कहा गया है कि माँ दुर्गा का गला नीला होता है, वे नलकूबरी जैसे दैत्य को निगलती हैं, उनके कंधों पर खड़ग धारण करती हैं और उनकी बाहों में युद्ध करने की शक्ति होती है।

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च। नखांछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥


हस्तयों में दण्डिनी (दंड की धारण करने वाली) रक्षा करती हैं, अंगुलियों में अंगुलीष्वरी (अंगुलियों की रक्षा करने वाली) रक्षा करती हैं। नखों में छूलेश्वरी (नखों की रक्षा करने वाली) रक्षा करती हैं, कुक्षि (पेट) में कुलेश्वरी (कुल की रक्षा करने वाली) रक्षा करती हैं॥
 

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी। हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥29॥

 
स्तनौ (सीना) में महादेवी (महाकाली, शिव की पत्नी) की रक्षा करती हैं, मन (मानसिक शांति) को शोक से मुक्त करने वाली हैं। हृदय (दिल) में ललिता देवी का आवास होता है, और उदर (पेट) में शूलधारिणी (त्रिशूल धारण करने वाली) हैं॥"


नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा। पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥30॥



"नाभौ (नाभि) को कामिनी (कामना करने वाली देवी) रक्षा करती हैं, गुह्य (गुप्त) को गुह्येश्वरी (गुप्त ईश्वरी) रक्षा करती है। पूतना को कामिका (कामना करने वाली देवी) रक्षा करती है, मेढ्र (मूत्र) को गुदे (गुदा) में महिषवाहिनी (महिष को लेकर चलने वाली) देवी रक्षा करती है॥"

यह श्लोक दुर्गा कवच का हिस्सा है, और दुर्गा पूजा के समय भक्तों को माँ दुर्गा की रक्षा की गरण्टी देता है।

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी। जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥


"कट्यां (कमर) को भगवती (देवी) रक्षा करती हैं, जानुनी (घुटने) को विन्ध्यवासिनी (विन्ध्य पर्वती, एक रूप में) रक्षा करती हैं। जंघे (पायु) को महाबला (महाशक्तिमान) रक्षा करती हैं, सर्वकाम (सभी इच्छाओं) को पूरा करने वाली देवी हैं॥"

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी। पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥32॥


"गुल्फयों (टखनों) को नारसिंही (नारसिंह की पत्नी) देवी रक्षा करती हैं, पादपृष्ठ (पैर की पीठ) पर तैजसी (तेजस्विनी) देवी रक्षा करती है। पादांगुलीषु (अंगुलियों) पर श्री (श्रीलक्ष्मी) देवी रक्षा करती हैं, पादाधस्तलवासिनी (पैर की तलवारों में वास करने वाली) देवी होती है॥"

नखान्‌ दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी। रोमकूपेषुकौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥


"नखों (नाखूनों) की धारण करने वाली देवी दंष्ट्राकराली होती हैं, केशों (बालों) की ऊपर की भाग की धारणा करने वाली देवी ऊर्ध्वकेशिनी होती हैं। रोमकूपों (बाल के बालकों) में वास करने वाली देवी कौबेरी होती हैं, त्वचा (त्वचा) की रक्षा करने वाली देवी वागीश्वरी होती है॥"

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती। अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥34॥


"जिनके शरीर के अंदर रक्तमज्जा, मांस, और अस्थि होते हैं, जो कालरात्रि और पित्त का भी आदिष्ठान है, वह मुकुटेश्वरी पार्वती है।"

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥35॥


"पद्मावती नामक देवी पद्मकोश में वास करती हैं, और वह चूड़ामणि के समान हैं। उनकी नाखुशी बड़े भयंकर होती हैं, और वे सभी संधियों को पार कर सकती हैं, विच्छेदन कर सकती हैं।"

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥

 
मेरे लिए छत्रेश्वरी नामक शाया ब्रह्माणों को रक्षा करे। वह मेरे अहंकार, मन, और बुद्धि की रक्षा करे, क्योंकि वह धर्म का पालन करने वाली है।"

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्‌।वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥


"प्राणापान, व्यान, और उदान - ये तीन प्राणों के प्रवाह को संरक्षित रखें, और वज्रहस्ता नामक देवी मेरे प्राण की कल्याणकारी और शोभना सुरक्षा करें॥37॥"

रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥

 
"रस, रूप, गंध, शब्द, और स्पर्श - ये पांच योगिनी शक्तियाँ मेरे मन को सदा नारायणी के साथ सत्व, रजस, और तमस से संरक्षित रखें॥38॥"

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥

 
"वाराही मेरी आयु की रक्षा करें, वैष्णवी धर्म की रक्षा करें। चक्रिणी नामक देवी मेरे यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन, और विद्या की रक्षा करें॥39॥"

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेच्पशून्मे रक्ष चण्डिके। पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥

 
"मेरे गोत्र को वाराही देवी रक्षा करें, मेरे पशुओं की रक्षा करें चण्डिका। महालक्ष्मी देवी मेरे पुत्रों की रक्षा करें और भैरवी देवी मेरी पत्नी की सुरक्षा करें॥40॥"

न्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा। राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥41॥

 
"सुपथ पर मेरी सुरक्षा करने वाली देवी मार्ग को सुरक्षित रखें, और महालक्ष्मी राजमार्ग पर स्थित होकर सब प्रकार से विजयी बनाएं॥41॥"

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु। तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥42॥

 
"अगर कोई स्थान या कवच से अछूता है और रक्षित नहीं है, तो वह सभी को रक्षा करें, हे पाप का नाश करने वाली जयन्ती देवी॥42॥"

पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः। कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43॥


"अपने पद को कभी भी शुभ लक्षणों से रहित न बनाएं, और अपने आत्मा के लिए शुभ स्थान पर कभी न जाएं, क्योंकि वहाँ जहाँ भी जाता है, वह सदैव कवच द्वारा अवरुद्ध रहता है॥43॥"

यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्‌। परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्‌॥44॥

 
"जो-जो भी व्यक्ति चाहता है और सोचता है, वह निश्चित रूप से प्राप्त करता है। व्यक्ति भूतल पर परम ऐश्वर्य को प्राप्त करता है॥44॥"

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः। त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्‌॥45॥

 
"जो व्यक्ति भयरहित होकर मर्त्य के रूप में पिदित होता है और युद्धों में अपराजित होता है, वह त्रैलोक्य में पूज्य होता है, क्योंकि वह कवच द्वारा संरक्षित रहता है॥45॥"

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्‌। यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥

 
"देवी का यह कवच देवताओं के भी प्राप्त करने में दुर्लभ है। जो व्यक्ति इसे नित्य त्रिसन्ध्य में भक्तिभाव से पढ़ता है, वह धन्य है॥46॥"

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः। जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥47॥

 
"जिसकी दैवी कला होती है, वह त्रैलोक्य में अपराजित रहता है। वह सौ वर्ष तक जीता है और अमरता के समान होता है, मृत्यु से मुक्त।॥47॥"

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः। स्थावरं जंगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्‌॥48॥

 
"सभी रोग, लू, और अन्य कई विषाणु समान जैसे व्याधियाँ नष्ट होती हैं, जैसे स्थावर, जंगम, और कृत्रिम व्याधियों से युक्त॥48॥"

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले। भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥

 
"सभी प्रकार के अभिचार, मन्त्र, और यंत्र भूमि पर उपयोग किए जाते हैं, और भूचर, खेचर, और जलज योग्य उपदेशक होते हैं॥49॥"

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥50॥

 
"सहजा, कुलजा, माला, डाकिनी, शाकिनी, और अन्तरिक्ष चर - इन भयंकर डाकिनियों को भी महाशक्ति माना जाता है॥50॥"

ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः। ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥51॥

 
"ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, वेताल, कूष्माण्डा, और भैरव आदि सभी शक्तियाँ यहाँ हैं॥51॥"

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्‌॥52॥

 
 "जब यह कवच ह्रदय में स्थित होता है, तो उसके दर्शन से सभी बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं, और राजा की आत्मा में उद्धारण होती है, उसका तेज अत्यंत बढ़ जाता है॥52॥"

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले। जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53॥

 
"जब कोई व्यक्ति चण्डी महाकावच का जाप करके कवच को पूरा करता है, तो उसका यश बढ़ता है और वह भूतल पर कीर्ति से भर जाता है॥53॥"

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्‌। तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥54॥

 
"जब वह भूमंडल और शैल, वन, और जंगलों को धारण करती है, तब तक मां धरती पर सदैव संतान का बिढ़ता हुआ पुत्र-पौत्रिकों के साथ रहती है॥54॥"

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्‌। प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥

 
"जब किसी व्यक्ति महामाया के प्रसाद से, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, चण्डी महाकावच का नित्य जप करके शरीर के अंत के बाद परम स्थान को प्राप्त करता है॥55॥"
 


Devi Mantras : दुर्गा कवच स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56॥

 
"वह परम रूप को प्राप्त करता है और शिव के साथ आनंदित होता है॥ॐ॥56॥"

॥ इति देव्याः कवचं संपूर्णम्‌ ॥

दुर्गा कवच FAQ

 1. दुर्गा कवच क्या है?

दुर्गा कवच का अर्थ होता है "देवी की रक्षा यंत्र"। यह एक पारंपरिक संस्कृत मंत्र है जो मां दुर्गा की कृपा और सुरक्षा के लिए पठने का उपयोग किया जाता है।

 इसकी महत्वपूर्ण जानकारी:
1. दुर्गा कवच मंत्र द्वारा मां दुर्गा की आराधना और रक्षा की इच्छा की जाती है।
2. इस मंत्र के पाठ से व्यक्ति को आंतरिक और बाहरी सुरक्षा की भावना होती है।
3. यह मंत्र सद्गुण, शक्ति, और शांति का प्रतीक माना जाता है।

 2. दुर्गा कवच कब और कैसे पठना चाहिए?

दुर्गा कवच का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि जैसे मां दुर्गा के त्योहारों पर किया जाता है, लेकिन आप इसका पाठ भगवान दुर्गा की कृपा और सुरक्षा के लिए किसी भी समय कर सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करें:
 इसकी महत्वपूर्ण जानकारी:
1. दुर्गा कवच का पाठ निश्चित विधियों के साथ करें, जैसे कि पवित्रता और ध्यान के साथ।
2. व्यक्ति को मां दुर्गा की पूजा के साथ अपने आप को स्नान करना चाहिए और पवित्र होना चाहिए।
3. इस मंत्र का पठ स्थिर मनसा और निष्ठा के साथ करें, और अंधकार से परे एक स्वच्छ और पैसेबले स्थान पर बैठकर करें।
 

 3. दुर्गा कवच के क्या लाभ हैं?

दुर्गा कवच के पाठ से कई आश्चर्यजनक और मानसिक लाभ होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
 इसकी महत्वपूर्ण जानकारी:
1. मां दुर्गा कवच का पठ करने से व्यक्ति के अंदर की शक्ति और साहस बढ़ता है।
2. यह सुरक्षा और सुख-शांति के लिए दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करता है।
3. दुर्गा कवच का पाठ मनोबल को बढ़ाकर स्थिरता और आत्मविश्वास को प्रोत्साहित करता है।
 
 

4. क्या दुर्गा कवच का पाठ सभी के लिए उपयोगी है?

दुर्गा कवच का पाठ सभी व्यक्तियों के लिए उपयोगी हो सकता है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।

महत्वपूर्ण जानकारी:

इसका पठ विश्वास और भक्ति के साथ किया जाना चाहिए।
इसका पठन संकल्प, श्रद्धा और आदर के साथ किया जाना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति दुर्गा माँ की आराधना करता है, तो उसे इसका पाठ करने का सुनीती दिया जाता है।


|| जय माँ दुर्गा की ||




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