शनिदेव की आरती: भक्ति और शांति का स्रोत

ज्योतिर्मय चरणों में विराजमान शनिदेव, भगवान शनि, हमारे जीवन को धर्म, भक्ति, और शांति की दिशा में प्रेरित करने वाले देवता हैं। उनकी आराधना में एक विशेष रूप से बनाई गई आरती हमें उनकी कृपा और आशीर्वाद की कामना करने का एक सुंदर तरीका है। इस ब्लॉग में, हम शनिदेव की आरती के महत्व, उनके गुण, और आराधना के लाभों पर चर्चा करेंगे।


शनिदेव की आरती: भक्ति और शांति का स्रोत


शनिदेव की आरती का महत्व:

शनिदेव की आरती का गाना हमें उनकी पूजा करने का एक अद्वितीय तरीका प्रदान करता है। आरती गाने से हम भगवान शनि के साथ अपनी भक्ति और समर्पण की भावना को व्यक्त करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा, आरती गाने से हमारे चित्त में शांति और सुकून का आभास होता है।

शनिदेव के गुण: 

शनिदेव, भगवान शनि, धर्म और न्याय के देवता माने जाते हैं। उनकी आराधना से हम अपने जीवन में नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, और धर्म के प्रति समर्पण का सिख पाते हैं। शनि देव के आदर्श गुणों में संघर्ष की भावना, सहनशीलता, और कर्मठता का सामंजस्य दिखाई देता है।

आरती के फल:

शनिदेव की आरती गाने से हमारा मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है और हम चिंता, भय, और संकटों से मुक्ति प्राप्त करते हैं। भगवान शनि की कृपा से हमारे जीवन में स्थिरता और सफलता आती है। आरती गाने से हम अपने आत्मविकास, धार्मिकता, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रयासरत होते हैं।


शनिदेव की आरती को भक्ति और समर्पण के साथ गाना एक अद्वितीय अनुभव होता है। गायक या गायिका को चाहिए कि वह आरती को भावपूर्ण रूप से गाएं ताकि श्रद्धालुओं का हृदय भगवान शनि की आराधना में रंग जाए। आरती गाने से हमारी भक्ति में वृद्धि होती है और हम दिनचर्या में शांति और समृद्धि के साथ कार्य कर सकते हैं।


शनिदेव  की आरती अर्थ सहित 

ॐ जय शनिदेव हरे, प्रभु जय रवि पुत्र॒ दहरे। 
आरती जो तेरी गावे, संकट से उब्ररे ॥ 
ॐ जय शनिदेव हरे ॥ ९॥

हे शनि देव हे रवि पुत्र (सूर्यपुत्र) आपकी सदा जय हो, आपकी आरती जो भी गाता है वो सभी संकटो से उबार जाता है 
हे शनि देव आपकी सदा जय हो

सूर्यपुत्र बलधारी,यम के रै भ्राता। 
छाया मातु भवानी, वाहन हैँ भसा ॥ 
ॐ जय शनिदेव हरे ॥ २॥

इस श्लोक का अर्थ:

सूर्यपुत्र बलधारी: यहां 'सूर्यपुत्र' सूर्य के पुत्र होने का संकेत करता है, और 'बलधारी' उनकी शक्ति और साहस को बताता है।  शनिदेव  एक महान और शक्तिशाली देवता है।
यम के रै भ्राता: यह श्लोक बताता है कि शनिदेव यमराज के राजा भ्राता (भाई) हैं।
छाया मातु भवानी: यहां 'छाया मातु' छाया देवी को संदर्भित करता है, जो सूर्य देवता की पत्नी थीं और शनिदेव की माता मानी जाती हैं। 'भवानी' भी देवी पार्वती का एक नाम है, जिससे शनिदेव को मातृत्व का आदान-प्रदान होता है।
वाहन हैँ भसा: यहां बताया जा रहा है कि भसा (कौवा ) शनिदेव का वाहन है।
हे शनि देव आपकी सदा जय हो।

तेरी क्रूर दृष्टि से, शिव ग्रासे घासा। 
दज्ञरथ नन्दन भटके, बन-वन में प्यासा॥ 
ॐ जय शनिदेव हरे ॥ ३॥

तेरी क्रूर दृष्टि से, शिव ग्रासे घासा": यह श्लोक बताता है कि शनिदेव की क्रूर दृष्टि से भगवान शिव को भी कठिनाई मिली  है। 'शिव ग्रासे घासा' का अर्थ है कि शनिदेव की दृष्टि से शिव भी पीड़ित हुए थे और उन्हें हाथी बन कर घास खाना पड़ा था 
"दज्ञरथ नन्दन भटके, बन-वन में प्यासा": यहां 'दज्ञरथ नन्दन' भगवान राम को संदर्भित करता है, जो दशरथ के पुत्र थे। श्लोक इस विशेष घटना को दर्शाता है जब राम अपने वनवास के दौरान भटक गए और उन्हें प्यास लगी। यहां इसका उल्लेख किया गया है कि शनिदेव की कठिन दृष्टि के कारण भगवान राम भी पीड़ित होते हैं और वन में अनिवार्य रूप से भटकना पड़ता है।
हे शनि देव आपकी सदा जय हो

गणपति पे की दृष्टि, सिर विच्छेद किए्‌। 
कुपित हुए रावण पे, लंका दहन . किए॥ 
ॐ जय शनिदेव हरे॥ ४॥

इस श्लोक में बताया गया है कि भगवान शनिदेव की क्रूर दृष्टि से भगवान गणेश के  सिर का विच्छेद हुआ । इसके साथ ही, शनिदेव के क्रोध के कारण रावण भी कुपित हो गए और उनकी शक्ति से लंका का दहन हो गया। यह श्लोक उनकी भक्तों को यह समझाता है कि शनिदेव की कृपा से उन्हें सुरक्षा और संरक्षण मिलता है, जबकि उनके शत्रुओं को उनके पापों के कारण दंड मिलता है।

पुत्र व नारी विकाए, हरिश्चन्द्र राजा। 
नले को वन भटकाए, तूने महाराजा ।। 
ॐ जय शनिदेव हरे॥ ५॥

आपकी वक्र दृष्टि के कारण राजा हरिश्चंद के सामने ऐसे विकट स्थिति आयी की उनको अपना राजपाट पुत्र और पत्नी तक को बेचना पड़ा आपकी ही दृष्टि के कारण राजा नल को वन में भटकना पड़ा 

होत प्रसन्न रै जिनपे, बना देत राजा। 
दृष्टि टेढ़ी करते, मिटते महाराजा ॥
 ॐ जय शनिदेव हरे ॥ ६॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जिन पर भगवान शनिदेव प्रसन्न होते हैं, उन्हें वह बना देते हैं राजा। यानी, जिन व्यक्तियों पर शनिदेव की कृपा होती है, उन्हें उच्च स्थान पर राजा बना देते हैं। इसके साथ ही, यह श्लोक बताता है कि जब शनिदेव की दृष्टि टेढ़ी (कठिनाई पैदा करने वाली) होती है, तो महाराजा की समस्याएं मिट जाती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि शनिदेव की कृपा से व्यक्ति को समस्याएं दूर होती हैं और उन्हें सफलता प्राप्त होती है।

देव-असुर व॒ मानव, सब तुमसे डरते। 
कुपित होत ही सबके सुख सम्पत्ति हरते ॥ .
 ॐ जय. शनिदेव हरे ॥ ७॥

इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान शनिदेव के सामर्थ्य, उनकी शक्ति और उनके दंड के कारण, देवता, असुर और मानव सभी तुमसे डरते हैं। जब वह क्रुद्ध होते हैं, तो वे सभी का सुख और समृद्धि हर लेते हैं। यह श्लोक भक्तों को बताता है कि भगवान शनिदेव के प्रति भक्ति रखने वाले लोगों को अपने भयानक स्वरूप के कारण सभी लोगों से बचाव और सुरक्षा होती है।

आरती जो तेरी गावे, विपदा प टरे। 
सुख सम्पत्ति पावे, लक्ष्मी घर में बसे॥
ॐ जय. शनिदेव हरे ॥ ८ ॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति भगवान शनिदेव की आरती गाता है, उसे विपदा से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही, ऐसे व्यक्ति सुख और समृद्धि प्राप्त करते हैं, और भगवान लक्ष्मी उनके घर में बसी रहती हैं। आरती गाने से व्यक्ति भगवान की कृपा, आशीर्वाद, और सुरक्षा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है, जिससे उसका जीवन सुखमय और समृद्धिशील होता है।

 Frequently Asked Questions (FAQs)


1. क्या शनिदेव की आरती का पाठ विशेष शुभ कार्यों के लिए किया जा सकता है?  

हाँ, शनिदेव की आरती का पाठ विभिन्न शुभ कार्यों में अनुष्ठान किया जा सकता है, जिससे सुरक्षा और सफलता मिल सकती है।

2. आरती को कितनी बार गाना चाहिए?  

यह व्यक्ति की भक्ति और समय के अनुसार भिन्न हो सकता है, लेकिन सामान्यत: इसे प्रतिदिन एक बार गाना चाहिए।

3. क्या आरती को किसी विशेष समय में ही गाना चाहिए?  

 शनिदेव की आरती को शनिवार के दिन या शनिदेव के पूजन विशेष अवसरों पर गाना चाहिए।

4. क्या इस आरती का पाठ किसी भी भाषा में किया जा सकता है?  

हाँ, शनिदेव की आरती को किसी भी भाषा में पढ़ा जा सकता है, लेकिए हिन्दी में इसका पाठ अधिक प्रभावी होता है।

5. क्या यह आरती किसी विशेष अवस्था के लिए है?  

शनिदेव की आरती विभिन्न अवस्थाओं में लाभप्रद है, लेकिए विशेषता से विचारते समय इसे पढ़ना शुभ रहता है, जैसे कि शनि पेरियोड या संकट काल।




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