रामायण के अनसुने कहानी :बालू का शिवलिंग

रामायण के अनसुने कहानी में हम जानेगे बालू के  शिवलिंग के बारे में कैसे भगवान राम ने  बालू का शिवलिंग बना कर अपने भक्त हनुमान का अहंकार को खत्म किया कैसे भगवान के रामेश्वर जयोतिर्लंग की स्थापना की तो पढ़िए रामायण के अनसुने कहानी :बालू का शिवलिंग


रामायण के अनसुने कहानी :बालू का शिवलिंग


रामायण के अनसुने कहानी :बालू का शिवलिंग The Untold Story of Ramayana: The Shivalinga of Sand

वानर जब सेतु-निर्माण में जुटे हुए थे, तब श्रीराम के मन में वहाँ एक शिवलिंग स्थापित करने का विचार आया। उन्होंने अपनी इच्छा हनुमानजी को बताई ओर बोले, 'हनुमान! यह स्थान अत्यंत मनोरम और दर्शनीय है। मैं यहाँ पर एक शिवलिंग स्थापित करना चाहता हूँ, इसलिए तुम पवनवेग से काशी जाओ और वहाँ से एक शिवलिंग ले आओ।' आज्ञा पाकर हनुमान उसी समय काशी की ओर चल दिए। वहाँ पहुँचकर भगवान्‌ शिव ने उन्हें साक्षात्‌ दर्शन दिए और शिवलिंग सौंपते हुए बोले, 'पवनपुत्र! श्रीराम द्वारा दक्षिण में शिवलिंग की स्थापना मेरी इच्छा को पूर्ण करने के लिए ही कर रहे हैं।

"प्राचीनकाल में विंध्याचल का अहंकार चूर करने के लिए महर्षि अगस्त्य दक्षिण में जाकर वास करने लगे। तभी से वे मेरे यहाँ आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 'हे हनुमान! केवल तुम ही मेरे प्रतीक-स्वरूप इस शिवलिंग को शीघ्र वहाँ लेकर जा सकते हो। मैं साक्षात्‌ इस शिवलिंग में वास करूँगा,' शिवजी ने कहा। शिवजी की बात सुनकर हनुमान के मन में अहंकार उत्पन्न हो गया और वे शिवलिंग लिए वापस लौट पड़े।"

"इधर भगवान्‌ श्रीराम को ज्ञात हो गया कि उनके प्रिय भक्त हनुमान को अहंकार ने घेर लिया है। भला भगवान्‌ अपने भक्त को अहंकार में फँसता कैसे देख सकते थे! अतः उनके अहंकार के नाश का निश्चय कर उन्होंने बालू का एक शिवलिंग बनाया और विधिवत्‌ यज्ञ कर उसकी स्थापना कर दी। तदनंतर उन्होंने ऋषि-मुनियों को भरपूर दान-दक्षिणा देकर विदा किया।"

"मार्ग में हनुमान की भेंट ऋषि-मुनियों से हुई। उनके पास दान-दक्षिणा की सामग्री देखकर हनुमान विस्मित रह गए। उन्होंने इसके विषय में पूछा तो वे बोले, 'पवनपुत्र! शायद तुम्हें ज्ञात नहीं है, समुद्र के दक्षिणी तट पर श्रीराम ने यज्ञ का आयोजन कर शिवलिंग की स्थापना की है। यज्ञ पूर्ण होने पर उन्होंने ही यह दान-दक्षिणा प्रदान की है।'

अब तो हनुमानजी के क्रोध का ठिकाना न रहा। क्रोध को अधिकता से उनका रोम-रोम जलने लगा। वे शीघ्रता से राम के पास पहुँचे और रुष्ट स्वर में बोले, ' भगवन्‌! यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था तो मुझे भ्रमित करने की क्या आवश्यकता थी? मैं इतनी दूर से शिवलिंग लेकर आ रहा हूँ और आपने मेरे परिश्रम पर पानी फेर दिया।'

श्रीराम मुसकराते हुए बोले, “बजरंग! तुम ठीक कहते हो, मुझे तुम्हारी प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। परंतु मुहूर्त निकला जा रहा था, इसलिए मुझे यह शिवलिंग स्थापित करना पड़ा। अब तुम बालू के इस शिवलिंग को उखाड्कर काशी के इस शिवलिंग को यहाँ स्थापित करो।"

हनुमान प्रसन्न हो गए। उन्होंने बालू के शिवलिंग को पूँछ में लपेटा और उसे उखाड्ने लगे। परंतु लाख प्रयत्न करने पर भी वे उसे उखाड़ न सके। उनका अहंकार हम गया। जिसे उन्होंने साधारण बालू का शिवलिंग समझा था, उसी के समक्ष उनकी संपूर्ण शक्ति क्षीण पड़ गई थी। वे श्रीराम के चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगने लगे। श्रीराम ने उन्हें गले से लगा लिया और काशी के शिवलिंग को उत्तर दिशा को ओर स्थापित करते हुए बोले, ''जो मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग के दर्शन के बाद इस शिवलिंग के दर्शन करेंगे, उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा।'

श्रीराम द्वारा स्थापित बालू का शिवलिंग वर्तमान में ' रामेशवरम' के नाम से प्रसिद्ध है, जो द्वादश ज्योतिलिंगों में से एक है।"

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